इश्क़ जुनून - 10 PARESH MAKWANA द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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इश्क़ जुनून - 10





वीरा को बुलाने के लिए वो आधी रात को वो अपनी सुरीली आवाज में वही दर्दभरा गाना वो गाकर नाचती..
तेरे संग प्यार में नही तोड़ना..हो..ओ..तेरे संग प्यार में नही तोड़ना..

उसीकी जुबान पर ये गाना सुनकर मानो मुजे मेरा पिछला जन्म याद आने लगा.. ये कहानी फिर से पचीस साल पहले गई..
उसने जैसे बताया वैसी ही मेरे अतीत की एक के बाद एक घटनाऐ मेरी आँखों के सामने घूमने लगी
मुजे मानो मेरे सारे सवालों के जवाब मिल गए
इस जनम का वीरेन यानी उस जनम वीरा हा, में ही वो वीरा हु , ये जो मेरे सामने खड़ी है वो मेरी सरो है... और मास्टरजी की बेटी माया, जिसने मुजे पाने के लिए मेरी संध्या को मारने की कोशिश की.. वो ओर कोई नही सरस्वती की बहन कावेरी ही है.. और सरस्वती की वो सहेली मोहिनी जिसने सरस्वती को बचाने के लिए अपनी जान देदी वो ओर कोई नही मेरी संध्या है।
* * *

मेरी सरो शादी के जोड़े में एकदम से मेरे सामने ही खड़ी थी। उसे सामने देखकर खुशी के मारे उसे गले लगा ने के में उसके पास दौड़ा पर मेरा शरीर उसके शरीर के आरपार निकल गया वो एक आत्मा थी।
उस दिन लंबा घूंघट डाले कावेरी शादी के मंडप में मेरे पास आकर बैठ गई मेरे अलावा शायद वहां सबको पता था की वो सरो नही कावेरी है।
शादी की पहेली रात को सुहाग की सेज पर जब मैने उसे अपनी सरो समझकर उसका घूंघट उठाया तब मुजे पता चला की वो सरो नही उसकी बहन कावेरी है।
सरो की जगह उसे देखकर ही में हैरानी से खड़ा हो गया।
मुझे कुछ समझ नही आ रहा था की ये क्या हो रहा है। मेने उसे हैरानी से गुस्से में पूछा,
''ये क्या मज़ाक है कावेरी..? सरो कहा है..?''
मेरी इस बेबसी पर वो हँसी। उसने कहा,
''वही जहाँ उसे होना चाइए..''
मैने हैरानी से पूछा।
''मतलब..?''
उसने मुस्कुराकर मेरे करीब आकर धीरे से कहा।
''मार दिया उसे..''
गुस्से में मेने अपना आपा खो दिया, चिल्लाते हुए मेने उससे पूछा
''क्या बकवास कर रही हो..बतावो वो कहा है ?''
उसने भी मेरी तरह चिल्लाकर बड़ी आवाज में कहा,
''बोला ना मार दिया उसे..यकीन नही आता तो जाओ झील के पास जाकर उसकी लाश देख आवो''
उसी पल मुझे उसपर बहुत गुस्सा आया और गुस्से में मेने उसका उसी पल गला दबा दिया।
थोड़ीदेर तड़पकर वो वही मर गई..।
सरो को ढूंढने के लिए जब में झील के किनारे पोहचा तो दूर मेरी आँखों के सामने उसकी लाश पड़ी थी।
पास जाकर उसके शरीर से लिपटकर में रोने लगा पर जब उसका चहेरा देखा तो वो सरो थी ही नही वो मोहिनी थी वही मोहिनी जो अपनी सहेली को बचाने के लिए यहाँ पर खुद मरने आ गई।
मेने देखा की वो अभी भी जिंदा थी उसकी सांसे चल रही थी.. मेने उसे उठाया।
उसे बचाना मेरे लिए बेहद जरूरी था क्योंकि शायद वो जानती थी की इसवक़्त सरो कहा है।
में उसे अपनी बाहो में उठाकर हड़बड़ाई में भगाता हुवा गाँव की ओर ले ही जा रह था की तभी...
तभी.. पीछे से मेरे सर पर किसी ने वार किया और में मोहिनी के साथ वही ढेर हो गया।
फिर वो लोग मुजे ओर मोहिनी को वही जान से मारकर चले गए।
इनसब घटनाओ के बाद गाव में मेरी ओर मेरे परिवार की बहुत बदनामी हुई सबको यही लगा की में ठाकुर साहेब की बड़ी बेटी कावेरी को मारकर अपनी प्रेमिका मोहिनी के साथ भाग गया।

गाव के बाहर शादी के जोड़े में पड़ी हमारी लाशें देखकर कुछ ऋषिमुनियो ने साथ ही विधिवत हमारा अंतिमसंस्कार कर दिया।
सरस्वती उस पुराने घर मे बर्षो से कैद रही इसिलए वो एक प्रेतआत्मा बनकर रह गई। उसके मरने के ठीक दिनों बाद, गांव में लोगो की रहस्मय तरीके से मोत होने लगी लोग मरने लगे। इस सब मोत के पीछे उस घर का वास्ता था। इसीलिए गाववालो ने किसी बड़े तांत्रिक बुलाया, उस तांत्रिक ने उस घर के दरवाजे को अपनी मंत्रो शक्ति से बांध दिया ताकि वो वहां से कभी बहार न निकले।

* * *

मेरे सामने खड़ी सरो ने बताया,
वीर, मोहिनी..मतलब तुम्हारी संध्या.. वो अभी भी जिंदा है
संजीवनी हॉस्पिटल में वो सात साल से तुम्हारे आने का इंतजार कर रही है..
उस रात तुम्हारा दोस्त भवानी तुम्हे ओर संध्या को बचाने नही आया था पर कावेरी यानी माया के कहने पर ही संध्या को मारने आया था।
उसने जानबूझकर संध्या के सर पर जोर से पथ्थर मारा ताकी वो मर जाए और तुम हमेशा के लिए माया के हो जावो.. पर उस वक़्त संध्या जिंदा थी।
फिर भवानी ने पीछे से तुम पर भी वार किया.. तुमपर उसने वार किया ये माया बर्दाश्त नही कर पाई और उसने उसी पल भवानी को मार दिया..
फिर माया ही तुम्हे वहाँ से उठाकर हॉस्पिटल ले गई..
ईधर उसी वक़्त रात में लखनपुरा के बहार उस घर का वो दरवाजा किसीने खोल दिया और में वहाँ से हमेशा के लिए आजाद हो गई..
में वहां पहोंची तब मोहिनी यानी संध्या मर रही थी.. उसे बचाने के लिए मेने वही बेहोश पड़े एक गुंडे के शरीर मे प्रवेश किया और फिर में संध्या को लेकर शहर की संजीवनी हॉस्पिटल आ गई..
उस वक़्त से लेकर आज तक सात साल हो गए अब भी तुम्हारी संध्या गहरी नींद में वही सोई हुई है.।

सरो की बात सुनकर.. लगा की फ़ौरन मुझे होस्प्टल पोहचना चाइए
में हॉस्पिटल की ओर निकल ने ही वाला था की तभी एक फोन कॉल आया मेने देखा तो वो माया ही थी। मेने फोन रिसीव किया
सामने से माया की आवाज आई
हेल्लो वीर.., (वो हँसी..) सोरी, वीरेन.. मुझे पता चल गया की तुम्हारी संध्या जिंदा है और कहा है.. संजीवनी हॉस्पिटल रुम नंबर सात.. (फिर धमकी भरे लब्जों में आगे बोली) तुम आ रहे हो या उसे जान से मार दु..''
में एकदम से घबरा गया वो संध्या को कुछ कर दे इससे पहले में उसे बचाने के लिए फ़ौरन में हॉस्पिटल की और भागा।
सरो समझ गई की किसका फोन था उसने मुझसे कहा
"वीर, में संध्या को कुछ नही होने दूंगी"
पर तब तक उसकी बात सुनी अनसुनी करके में अपनी संध्या को बचाने के लिए वहाँ से निकल गया।

मेरी बाइक संजीवनी हॉस्पिटल की ओर फूल स्पीड से जा ही रहा थी की अचानक मेरे मोबाइल की रिंग बजी। इस वक़्त संध्या की जान मेरे लिए ज्यादा इम्पोर्टेन्ट थी इसीलिए मेने मोबाइल को बजने दिया कोल नही उठाया। पर दो तीन बार कोल आये इसीलिए ना चाहते हुवे भी मेने बाइक हाइवे की एक साइड स्टैंड पर लगाई और कॉल देखा माया का ही नंबर था मेने मोबाइल कान पर रखा।
सामने से माया की हँसी सुनाई दी ओर फिर उसने कहा
''वीरेन, अपनी संध्या को बचाना है ना..?''
उसकी बात सुनकर में एकदम से घबरा गया.. में उसके सामने गिड़गिड़ाने लगा,
''तुम जो बोलोगी में वो करूँगा प्लीज़.. मेरी संध्या को...''
उसने धमकीभरे अंदाज में कहा,
''तो मेरी बात कान खोलकर सुन..चुपचाप पहाड़ीवाले मंदिर की ओर आ..''
''पहाड़ीवाले मंदिर ! मंदिर..क्यु..'' मेने उससे हैरानी से पूछा,
''अरे राजा, तुजसे शादी जो करनी है..''

मुजे पता ही था की मुजे पाने के लिए ये किसी भी हद तक जा सकती है। पर इसवक़्त संध्या को बचाने के लिए उसके साथ शादी करने के अलावा मेरे पास ओर कोई रास्ता नही था।
मेने उससे कहा,
''ठीक है.. संध्या को कुछ मत करना में आ रहा हु..''
फिर मेने अपने बेस्टफ्रेंड हार्दिक कोल किया ओर उसे फ़ौरन संजीवनी हॉस्पिटल जाने को कह दिया।
* * *
क्रमशः