इश्क़ जुनून - 9 PARESH MAKWANA द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

इश्क़ जुनून - 9




दो साल बीते, ओर इन दो सालों में वीरा और सरस्वती एकदूसरे के काफी करीब आ गए।
शहर के पास में ही मोहिनी का गाव था 'लखनपुर' वहाँ पहाड़ी की चोटी के उसपार पानी की एक खूबसूरत झील हुवा करती थी।
वीरा ओर सरस्वती चोरीछुपे अक्षर मिलने वहाँ जाया करते थे। ओर एकदूसरे की बाहों में बाहे डाले उस झील के उस सौंदर्य को देखते हुए एकदूसरे में खो जाते थे। ये बात मोहिनी के अलावा और कोई नहीं जानता था।

एक दिन वीर से मिलने आई कावेरी ने वीरा के सामने अपने प्यार का जिक्र किया वीरा ने उसे इनकार करते हुवे कहा
"कावेरी मैं तुमसे नहीं पर तुम्हारी बहन सरो से प्यार करता हु।"
कावेरी के लिए सरस्वती मानो पहले से ही दुश्मन थी। उसे यही लगता था। की उसकी बहन ने उसकी कामियाबी के साथ साथ उस से उसका प्यार भी छीन लिया।
तब से सरस्वती ओर वीरा को अलग करना मानो उसका एकमात्र मकसद हो गया। उसे लगा की अब पानी सर से ऊपर उठ गया है। अब सरस्वती ओर वीरा को अलग करने का एक ही रास्ता हैं।
कावेरीने उसी वक़्त जाकर ठाकुर साहब से कहा
बापु में वीरा को बेहद पसंद करती हूं। मुजे लगता हैं की आपको हमारी शादी कर देनी चाहिए।
कावेरी की ये बात सुनकर ठाकुर साहब बहुत खुश हुए वो तो यही चाहते ही थे की वीरा जैसा बहादुर लड़का उसके घर का दामाद बने। उन्होंने फ़ौरन अपने सबसे अच्छे दोस्त रतनसिंह को फोन करकर कावेरी और वीरा के रिश्ते के लिए उन्हें अपने घर बुला लिया।

उनकी हा होते ही उन्हों ने वीरा को अपने घर का दामाद बनाने का सोच ही लिया।
घर आकर जब रतनसिंह ने वीरा से कहा
"वीरा, ठाकुर साहब ने अपने घर बुलाया था। तुम्हारे रिश्ते के लिए। मैने तो हा कर दी है। क्या तुम्हें उनकी बेटी पसंद है।
उस वक़्त वीरा ने बिना सोचे समझे हा कर दी उसे लगा ठाकुर साहब की बेटी मतलब बापु सरस्वती की ही बात कर रहे हैं। ओर सरस्वती से तो वो प्यार भी करता है।

उसी वक़्त वीरा झील के पास अपनी सरस्वती से मिलने पोहच गया उसके इंतजार में सरस्वती पहले से ही वहाँ खड़ी थी। उसके पास जाकर एकदम से खुश होते हुवे उसने उसे को अपनी बाहों में उठा लिया।
जब सरस्वती ने हैरानी से उसकी आंखों में देखा तो वीर ने उसे बताया की
''आज सुबह ही बापु ठाकुर साहब से मिलकर आये हैं उन्होंने बताया की ठाकुर साहब मुझे अपने घर का दामाद बनाना चाहते है''
"सच...?"
"हा, सरो देखना अब जल्द ही हमारी शादी होगी"
इतना सुनते ही सरस्वती मानो खुशी से पागल हो गई उनकी आंखों में तो उसके वीरा के साथ नए नए रिश्ते के नए सपने भी पनपने लगे
झील के किनारे एकदूसरे की बाहों में खो गए वीरा ओर सरस्वती को दूर से एक बड़े पथ्थर के पीछे छुपकर देख रही कावेरी को लगा की ये सरस्वती रहेगी तो शायद उसे उसका वीरा कभी नहीं मिलेगा। सरस्वती को रास्ते से हटाने के लिए उसने एक और चाल चली। सरस्वती नामके इस कांटे को अपने ओर वीरा के रास्ते से हटाने के लिए उसने एक सूर्या नामके अनजान आदमी की मदद ली।
वो सूर्या उनसे मिलने ठाकुर साहब की हवेली पर आया, उसने सूर्या को समजाते हुवे कहा,
''सूर्या, समझ गए ना क्या करना है तुम्हे ? तुम झील के किनारे तैयार रहना लाल रंग के शादी के जोड़े में एक लड़की वहां आएगी और जैसे ही वो वहां आए उसे ये ख़ंजर उसे मार देना ओर सुनो तबतक मारना जबतक वो पूरी तरह से मर ना जाए''
इधर सोला सिंगर सजी सरस्वती जिसे तो ये भी नही पता था की वीरा की शादी उससे नही पर उसकी बड़ी बहन कावेरी से तय हुई है। उसे तो लगा की वो ही अपने वीरा की दुल्हन बनेगी.. सोलासिंगर में जब अपने कमरे से बाहर निकल रही थी तब उसने पास ही के टेबल पर पड़ा एक खत देखा
उसने वो खत हाथ में लिया, खोलकर देखा तो उसमे लिखा था की
''शादी से पहले में तुमसे मिलना चाहता हु कुछ बात करनी है वही.. झील के पास आ जावो जहाँ हम अक्षर मिला करते थे''
-तुम्हारा वीरा.

मंडप में जाने की बजाय वो अपने वीरा से मिलने झील के किनारे पोहची।
उसने वहां आसपास चारो ओर देखा पर उसे वहाँ अपना वीरा कही नजर नही आया। वो वह से वापस हवेली लौटने ही वाली थी की उसे लगा की उसके पीछे कोई है कोन हो सकता है शायद वीरा आया होगा उसे देखने के लिए जैसे ही वो पीछे की ओर मुड़ी वहाँ पर कोई नही था।
''यहां तो कोई नही है। ये वीरा भी ना''
तभी दबे पाव पीछे से कोई उसकी एकदम नजदीक आया, उसने काले कपड़े से अपना आधा चहेरा धका हुवा था। उसके हाथ में एक रामपुरी तेजधार छुरा था।
वीरा ने उसे मिलने के लिए यहां बुलाया पर वो नही आया इसीलिए वो वहां वापस लौटने के लिए जैसे ही वो पीछे की ओर मुड़ी ठीक उसके सामने खड़े सूर्या ने उसके सीने में वो रामपुरी खंजर उतार दिया,
''आह...'' उसके मुह से एक दर्दनाक चींख निकल गई..
वो उसे मारने वाले का चहेरा देख पाती इसे पहले ही सामने खड़े सूर्या ने अपने होठ भिसकर उस खंजर से दो तीन वार ओर किये ओर वो वही पर गीर पड़ी..
चुपचाप ख़ंजर उस झील में फेंककर सूर्या वहाँ से फ़ौरन भाग निकला।
कावेरी ने अपना काम कर दिया, सरस्वती को सूर्या के हाथो से मरवा दिया। पर उसे कहा पता था। की वहाँ झील के किनारे, शादी के जोड़े में जो मरी पड़ी थी वो असल में सरस्वती थी ही नही। वो मोहिनी थी वही मोहिनी जिसने अपनी सहेली की जान बचाने के लिए अपनी जान की कुरबानी दे दी।

* * *

जब मोहिनी को पता चल गया की कावेरी ने सरस्वती को जान से मारने के लिए किसीको पैसे देकर भेजा है। तो वो काफी हत तक डर गई..
वीरा के नाम का वो खत भी कावेरी के साजिशो का एक हिस्सा था ताकी वो खत पढ़कर सरस्वती अपने वीरा से मिलने वहाँ उस झील पर जाए और वो सूर्या उसे जान से मार दे
कावेरी ने रखा वीरा का वो खत को पढ़कर जब सरस्वती उतावली होकर अपने वीरा से मिलने के लिए झील के किनारे जा रही थी तभी मोहिनी ने रास्ते मे उसे रोक लिया

''तुम्हारी जान को खतरा है..?''
''मेरी जान को खतरा है.. ? कोन मारना चाहेगा मुजे..?''
''कावेरी.., उसने तुम्हे मारने के लिए धोखे से झील के किनारे बुलाया है..''
सरस्वती को मोहिनी की बातो पर यकीन ही नही आ रहा था। आखिर उसकी बहेन भली उसको क्यों मारे ? ओर वो भी धोखे से..?
उसने मोहिनी की बात नही मानी और वीरा से मिलने की चाह में झील के किनारे जाने लगी अब मोहिनी के पास एक ही रास्ता था
उसने उसका हाथ पकड़ा और खीचते हुवे वो उसे गाँव के बाहर वाले एक पुराने घर तक ले गई..
सरस्वती उसे कहती रही..
मोहिनी.. मोहिनी मेरा हाथ छोड़ो.. वीर मेरा इंतजार कर रहा होगा.. मोहिनी..
पर मोहिनी ने उसकी एक ना सुनी..
ओर उसे उसी घर के एक कमरे में लेजाकर अंदर की और धक्का दे दिया फिर दरवाजा बंद करके बाहर से कुंडी लगा दी..
सरस्वती अंदर चींखती रही चिल्लाती रही पर..मोहिनी ने दरवाजा नही खोला
उसने उससे बाहर से ही कहा
"सरो, मुजे माफ कर दो पर तुम्हे बचाने के लिए मुजे ये करना होगा। अगर में जिंदा रही तो में खुद आउंगी ये कुंडी खोलने नही तो किसी और को भेज दूंगी।"
ओर इतना कहते ही वो अपने घर गई और सरस्वती के जैसे ही सोला सिंगर ओर दुल्हन लाल रंग के लिबास में उस झील के किनारे पोहच गई जहाँ मौत उसका इंतजार कर रही थी।
इधर सरस्वती को जिस पुराने घर मे उसने बंध किया था वो घर काफी सालो से बंध पड़ा था इसिलए वहां कोई आता जाता नही था।
उसी बंध कमरे की कैद में एक कोने में बैठकर रोती हुई सरस्वती अपने वीरा का इंतज़ार करे जा रही थी। उसे अभ भी उम्मीद थी की उसका वीरा उसे बचाने के लिए जरूर आएगा पर वो नही आया उसके इंतजार में ही दिन पर दिन बीतते गए..
वीरा को बुलाने के लिए वो आधी रात को वो अपनी सुरीली आवाज में वही दर्दभरा गाना वो गाकर नाचती..
तेरे संग प्यार में नही तोड़ना..हो..ओ..तेरे संग प्यार में नही तोड़ना..

क्रमशः