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गेहूं की खरीद

गेहूं की खरीद

वह गेंहू इकठ्ठा खरीदने का समय था । मई का महीनासाल दर साल बढ़ते तापमान का रिकॉर्ड तोड़ता मौसम, गेहूं के उत्पादन कारिकॉर्ड तोड़ता, उसके साथ बढ़ते भावों का भी । जो गेहूं 2 साल पहले ढाई सौरुपए क्विंटल था पिछले साल 400 था और इस साल तो लग रहा है कि ₹600 लगेंगेएक थैले में । चार थैले खरीदने पड़ते थे शशांक को हर साल। इस साल भी जानाही था मंडी । रोज सुबह-सुबह ट्रैक्टर ट्राली मोहल्लों के चक्कर लगाने लगेथे। गेहूं लो शरबती की हांक हर ट्रैक्टर वाला लगाता था गेहूं कौन सा थायह कोई नहीं जानता था । बेचने वाला भी जानता था या नहीं। अभी उसी दिनशशांक के ऑफिस में बहस चल पड़ी थी शरबती गेहूं मिलता भी है या नहीं। शशांकका मानना था कि अब किसी भी फसल की देसी वैरायटी नहीं बची है दरअसलवर्णसंकर और अधिक उपजाऊ किसम के बीज मिल रहे हों तो कौन भला देसी वैरायटीके बीज बोएगा जो एक चौथाई फसल दे। जमीन और स्वाद की परवाह भला कौन करताहै। क्या अनाज क्या सब्जी सबका वास्तविक स्वाद जाता रहा। भुट्टों कीमिठास, टमाटर की खटास चने का सौंधापन सभी कुछ तो वर्णसंकरता के हवाले होचुका है।

शशांक हर साल चावल दाल गेहूं इकट्ठा खरीद लेता है । दाल चावल एक दुकान सेतो गेहूं दूसरी दुकान से। दाल चावल मंडी में राज ट्रेडर्स जो शर्मा जी कीहै और गेहूं फाइन ग्रेन मर्चेंट से लेता है जो कि सलीम मियां की है। सलीमभाई की दुकान में एक भाव रहता था जबान के पक्के थे। जैसा बोलते थे वैसा हीगेहूं देते ही थे । उनके यहां गेहूं रहता भी अच्छी किस्म का था। यहसिलसिला सालों से चल रहा था। शशांक का मानना था की ट्राली वाले गेहूं कीवैरायटी में मिलावट करते हैं तौल में गड़बड़ करते हैं। सलीम मियां तो बोरेतक का वजन अलग से बांट रखकर गेहूं बेचते हैं ।

फोनसे भाव वगैरह पूछ कर वह नियत तारीख पर पहुंच गया । बीवी भी साथ थी चटचटातीधूप थी आसमान आग उगल रहा था धरती तवे की तरह तप रही थी और वे सिंक रहेथे। किसी तरह गर्मी की दो तरफा मार सहते वह 'राज ट्रेडर्स' पहुंचे। सेठजी ने दूर से देख लिया था मुस्कुरा कर स्वागत किया "आओ साहब आओ, अरे भोलेदिखाना तो साहब को उधर कट्टे वाली दाल और वह काली मूंछ चावल । "

"पहले जरा दम तो ले लेना दो लालाजी क्या गर्मी पड़ रही है" पसीना पोंछते हुए शशांक बोला।

" अरे हां हां हां बैठो ना बैठो बैठो साहब जी। अरे जरा पानी पिला ठंडा वो जरा भीतर से फ्रीज से ले आ। "

शशांक और उसकी पत्नी ने पसीना पोंछा पानी पिया। दाल चावल देखें। हर सालकी तरह कट्टे तैयार कर चेक देकर लाला से बोले" हम गेहूं लेकर आते हैं तांगेया ठेले में उसी में लदवा देना। "

" गेहूं कहां से लेते हो साहब"

लाला ने पूछा।

वे दोनों अचकचा गए। पिछले सालों में यह सवाल लाला ने कभी नहीं पूछा। जबकिहर साल यही होता था । शशांक ने अचकचाहट से उबरते हुए बताया " अरे पता तोहै तुम्हें सलीम मियां की दुकान से "

"क्या साहब अभी भी उन्हीं की दुकान से लेते हो " लाला बोला

"पर हम तो हर साल वहीं से लेते हैं"

"अब तो समझो साबजी आप तो पंडित हैं । इन पर भरोसा नहीं किया जा सकता है । "

शशांक की बीवी को बुरा लग रहा था " चलो जी कम से कम भरोसे का आदमी है वह। "

" अरे अरे बाई साहब आप भी किन पर भरोसा कर रही हैं। जो देश के साथ गद्दारीकर रहे हैं । वैसे उससे अच्छा गेहूं जय विजय ट्रेडर्स पर आया है लीजिए पता" लाला ने कार्ड दिया और पता समझाया "ये रोड जहां खत्म होती है वहां से दांएघूम कर अगले चौराहे पर बांए हाथ से तीसरी है। बड़ी दुकान है लाखों का मालउतरता है । आप तो वहीं से लीजिए अपने लोगों के बीच में सौदा सुलफ करनाचाहिए। " मस्जिद टूटने के बाद हुए दंगों के बाद यह नया फिनोमिना सामने आयाहै किन दुकानों से सामान लेना किन से नहीं लेना यह सामान नहीं धर्म तयकरेगा। कौन सी फिल्म चलेगी और कौन सी उतरेगी यह भी धर्म ही तय करेगा। शशांकसोच रहा था । फिर सोचा जयविजय भी रास्ते में पड़ता है चलो देखते चलें। औरवे रुके जय विजय ट्रेडर्स पर । वहां दुकान पर तमाम झंडे तने थे भगवे । वैसेयह आजकल आम है सोचा उसने । पर भीतर घुसकर तो दंग ही रह गया था । देवीदेवताओं की तस्वीरें, कुछ तय करने वाले नेताओं की तस्वीरें हाथ फूल मालासमेत। शशांक समझ गया था कि वह कहां पहुंच गया या पहुंचा दिया गया है। खैरचलो अपन को तो गेहूं से मतलब है । वहां जो सेठ बैठा था वह कुछ आधुनिक दिखताथा कपड़े लत्ते, बोलने का तरीका एकदम मॉडर्न था ।

"कहिए साहब क्या सेवा करूं"

" जरा गेहूं देखना था। "

हां हां आइए आइए"

उसनेसैंपल दिखाना शुरू किया। भाव ज्यादा थे, गेहूं भी पसंद नहीं आ रहा था । फिरबिने भी नहीं थे बिनवाई अलग से ₹25 बोरा। वे देखकर अब उतर ही रहे थे किदुकान मालिक ने पूछ लिया "कहां से आ रहे हैं सर । "

"बहादुरगंज से। " बताया शशांक ने।

"अरे तो आप हैं जिन्हें राज वालों ने भेजा है । तो पहले कहना चाहिए था न। अरे छोरे जरा दो ठंडा लाना तो । आपके लिए तो अलग से मार निकाल कर रखा है। "

यहरुख उन दोनों के लिए चकित कर देने वाला था। तत्काल उनके लिए ठंडा आया। भीतर से गेहूं निकलवा कर दिखाया गया। ₹25 उनके लिए कम किए गए यहां सौहार्दनए किस्म का था। यह उस दंगे से ज्यादा डरावना था जहां जान माल ली जातीहै। यहां तो भरोसा ही मारा जा रहा है। शशांक को अपने मोहल्ले में आयोजितउन भोजों की याद आई जो मिलने बैठने के लिए कम प्यार के बंधन की एकता की जगहनफरत से एकता पैदा करने के लिए किया जा रहे हैैं। अब यहां दुकानों कानिर्धारण किया जा रहा है ।

" हां तो साहब कितने बोरे लेने हैं। "

चेहरे पर अतिरिक्त विनम्रता जिसमें धर्म का सॉफ्ट कॉर्नर भी था शामिल थाला कर सेठ बोला। शशांक ने टालने के लिहाज से कहा " सैंपल की पुड़िया बांधदें। घर पर पिताजी को दिखा दूं पसंद आएगा तो ले लेंगे । "

"अरेपिताजी तो यहीं से लेने को कहेंगे। गेहूं बाद में देखेंगे या कहो देखे हीनहीं उन्होंने तो पार्टीशन भी देखा है और सब कुछ हमसे आपसे ज्यादा ही देखासमझा होगा। "

" फिर भी उन्हें दिखा कर ही लेना ठीक रहेगा। "

" अच्छा चलिए नहीं जमे तो वापस कर दीजिएगा लाने ले जाने का खर्चा हमारा कहिए कितने थैले लदवा दूं। "

सेठ के स्वर में इस बार आत्मविश्वास था आग्रह कम, आदेश नुमा अनुरोध था।

यह शब्दश: धर्म संकट था शशांक के लिए।

" अरे यह भी हम उनसे ही पूछ कर आपको खबर कर देंगे। " शशांक घिघियाया। "

" ठीक है फिर पता दें दें। "

शशांक हक्का-बक्का था इस अतिरिक्त आग्रह से । जैसे तैसे टाल कर वे जब तपती धूप में बाहर निकले तो भीतर कूलर से ज्यादा ठंडक उन्हें बाहर लगी। गर्महवा की लू उन्हें शीतल हवा के झोंके लग रहे थे

"क्या करें अब" शशांक ने राहत की सांस लेकर पूछा ।

"अरे करना क्या है । जो हर साल करते हैं वही करना है और क्या। "

और वे सलीम मियां की दुकान की ओर बढ़ चले यह जानते हुए कि उन्हें उधर बढ़ते हुए देखा जा रहा है।

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