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अगले चौराहे पर

अगले चौराहे पर

असलम मकान ढूंढते ढूंढते तंग हो गया। जो मकान उसे पसंद आता था उसका किराया उसकी पहुंच से बाहर होता था और जिस मकान का किराया उसे जमता था वह मकान उसेपसंद नहीं आता था । मकान मालिक लगातार मकान खाली करने पर जोर डाल रहा है, आखिर उसे वहां दुकानें बनवानी हैं। अब की एक सप्ताह की मोहलत दी है। पूरेजोर से ढूंढ रहा था वह मकान। इस इलाके में मकान तो बहुत हैं पर ज्यादातर भरे हुए और खाली हैं तो किराया अनाप-शनाप। पुराने शहर में मिल जाते हैं परवहां से फैक्ट्री बहुत दूर हो जाएगी। मामू तो उससे अक्सर कहा करते- "आजा इधर ही आ जा इधर मकान भी ठीक मिल जाएंगे और फिर अपने लोग हैं सब"

मामू डॉक्टर थे पर ऐसे ख्यालात। असलम को हैरानी होती थी वह खुद इतना तोपढ़ा लिखा ना था पर जितना पढ़ा था उसने यही सीखा था कि सब अपने ही हैं। औरयहां नए शहर में उसे तो कुछ भी परायापन नहीं लगता था। मामू उसे अक्सरअपने पराए का फर्क समझाते रहते थे । पुराने दंगों का हवाला देते रहते थे। पर असलम को अपने शहर का कोई ऐसा वाकया याद नहीं आता था जिसमें इस तरह काकोई बड़ा हादसा गुजरा हो। माहौल बिगड़ रहा था। समय के आगे जानेने के साथलोग पीछे जा रहे थे, फिर भी हवाओं में इतनी बदबू नहीं घुली थी कि सांस भीना ली जा सके। फिलहाल असलम फैक्ट्री के आसपास नए शहर से ही अपना मतलब रखरहा था।

तभी एक रोज सिंह ने बतायाथा- " अमा मियां वो जो मिश्रा जी हैं न। अरे हां यार वह एकाउंट्स वाले अरेवो जिनकी कहीं पर निगाहें कहीं पर निशाना है ना। उनका मकान अभी कल हीखाली हुआ है । जा धमको जल्द से जल्द। किराया थोड़ा ज्यादा लगे तो भी देदेना । मकान बहुत बढ़िया है और जगह भी ठीक है।

असलम ने उससे मिश्रा जी का पता लिया और फैक्ट्री से छूटते ही सीधा वहांपहुंचा। तब तक मिश्रा जी पहुंचे नहीं थे घर वह इधर-उधर टहल कर फिर वापसआया। वह मौका हाथ से नहीं जाने देना चाहता था । अब आ गए थे मिश्रा जी । असलम ने बताया कि वह फलां फलां जगह काम करता है और यह मकान चाहता है। मिश्रा जी ने उसे सिर से पैर तक देखा -" हूं तो तुम्हें चाहिए मकान। सिंहने भेजा है तुम्हें तो तुम्हें ना तो नहीं कर सकते। देख लो यह लगा हुआपोर्शन है । तीन कमरे हैं, किचन लेट्रिन बाथरूम। पीछे भी खुला आंगन है। असलम ने देखा मकान । पसंद आ गया । किराया अलबत्ता ज्यादा था, पर मिश्रा जीकम करने को बिल्कुल तैयार न थे। असलम ने हां कर दी । तीन महीने का एडवांसदेने का तय हुआ । मकान साफ सुथरा रखने की हिदायत । असलम खुश था।

बिना देर किए अगले दिन सामान सहित वह आ गया। एडवांस दिया चाबी ली। सामान उतरवाने लगा। दो बेटे थे बड़ा शाहिद इंजीनियरिंग फाइनल में था औरछोटा दसवीं में था । बेगम गोरी चिट्टी गोल मटोल। वह मिश्राइन के सारेअंदाज को नकारते हुए एक मुसलमान परिवार था। असलम की बीवी मिली मिश्राइनसे। बात बात में हंसना। मिश्राइन को कुछ जमा नहीं, पर क्या करें वे। अबतो एडवांस ले लिया गया था। लग तो साफ-सुथरे रहे हैं, पर अपनी जात सेकैसे बात आएंगे, कितने भी बड़े हो जाएं पर एक बर्तन से पानी पीना तो करतेही होंगे। मांस मछली खाते ही होंगे। खाना भी एक बर्तन से ही खाते होंगेही। मिश्राइन का सोच का क्रम जारी ही था कि परवीन बोली - "चलूं बहनजीसामान जमाना है " । मिश्राइन मुस्कुराई जबरदस्ती। उन्हें क्या करना किराएसे मतलब रखो ।

असलमने अपने दोनों बेटों की मदद से सामान जमा लिया । चाय नुक्कड़ वाले ठेले सेमंगवा कर पी। मिश्रा जी ऑफिस से नहीं आए थे । शाम को आए तब मिला आयाउनसे। खुश हुए ऐसा लगा असलम को। चलो ठीक है। तो असलम मियां को ठीये की जुगाड़ हो गई थी । हालांकि किराया ज्यादा था, पिछले मकान से तीन सौज्यादा। देखेंगे करेंगे कुछ न कुछ।

उनकी बेगम मिलनसार थीं। आसपास सबसे मिल आई थीं। उन्होंने सोचा था कि वेयदि आसपास की औरतों के ही कपड़े सीना शुरू कर दें, तो बढ़े हुए किराए कापता नहीं चलेगा और उनका समय भी कट जाएगा। और वैसा ही किया उन्होंने। वेकपड़े अच्छे सीती थीं। टाइम पर देती थीं। सिलाई भी कम लेती थीं, व्यवहारउनका बहुत अच्छा था तो उनके यहां काफी लोग आने लगे । मतलब कि आमदनी का एकअच्छा खासा जरिया निकल आया था। बढ़े हुए किराए के अलावा भी आमदनी होनेलगी । शुरू शुरू में तो मिश्राइन का ध्यान नहीं गया, पर जैसे-जैसे भीड़बढ़ने लगी। उनका का दिमाग हिसाब लगाने लगा। उनका माथा ठनकने लगा। बढ़तीहुई भीड़ देखकर उनकी छाती पर सांप लोटने लगा । अब तो कुछ करना चाहिए।

" इन्होंने तो दुकान खोल ली। अपन ने तो रहने को दिया था मकान। " वे मिश्रा जी से बोल रहीं थीं।

" अरे तो क्या हुआ । अब आजकल तनख्वाह से किसका काम चलता है। लौंडो की पढ़ाईभी महंगी पड़ती हैगी त से पर किराया भी ज्यादा हैगा। अब हर कोई अकाउंटसेक्शन में तो होता नहीं है । " मिश्रा जी ने आंख दबाते हुए कहा। मिश्राइनको जमा नहीं। "अरे पर ये धंधा बंद करना होगा। कैसे सबसे हंस हंस कर बातकरती है। आजकल मांस मच्छी भी ज्यादा बनता है। " चुप थे मिश्रा जी। कभीकभार वे भी असलम मियां के यहां खा लेते थे । मांस मच्छी उनकी बेगम बनाती भीबहुत बढ़िया। उनके मुंह में पानी भर आया।

" कुछ करो चुप क्यों बैठे हो"

" पर क्या करें किराया अच्छा मिल रहा है। तीन महीने का एडवांस वैसे ही ले रखा है । "

" अब हम कुछ नहीं जानते। किराया बढ़ा दो। दुकान का अलग से किराया लो ।

" यह ठीक नहीं लगता या तो मना कर दे कि यह दुकानदारी बंद कर दो या मकान छोड़ दो । "

"तुम चुप रहो साफ-साफ कहो कि किराए बढ़ाने का नहीं कह पाओगे मैं कर लूंगी बात। "

मिश्रा जी चुप्पी लगा गए।

मिश्राइनजारी थीं- "अरे कुल दो ही तो औलाद हैं। क्या खर्चा है। अब खर्चा तो अपनेयहां हैं। " मिश्राजी वाकआऊट कर गए थे। सही था पांच लड़कियां और एक नालायकलड़का । कित्ता ही कमाओ । कित्ता ही पैसा अईठो पर ससुर कम पड़ता है। और यहमियां है पर औलादें तो दो ही हैं ससुरे और औरदोनों लम्डे और सो भी पढ़नेमें जहीन । चलो छोड़ो। पर मिश्राइन ने नहीं छोड़ा वे दूसरे दिन दोपहर थीअसलम के घर ।

परवीन को समझ नहीं आया। आज ये इधर कैसे ।

"आओ आओ कैसे रास्ता भूल गईं आप। बड़ा अच्छा लगा जो आप आईं। "

"यूं ही सोचा बहुत दिनों से तुम्हारा नहीं आए थे । "

"अरे वाह बहनजी यह तो आप ही का घर है चाहे जब आ जाया करिये। "

देखो तो कैसा मीठा बोलती है।

" और सिलाई की दुकान कैसी चल रही है ?"

परवीनसमझ गई तो यह बात है। "अरे कहां की दुकान । वो तो लड़के की पढ़ाई औरकिराया भी ज्यादा । थोड़ी तंगी थी और हाथ में हुनर था सो दो-चार लोगों कीसिल देती हूं कपड़े । "

"दो चार कहां। पूरे टाइम भीड़ लगी रहती है। पूरी दुकान ही चला रखी है तुमने घर में। टेलर मक्खी मारते हैं । " मिश्राइन ने मुस्कुराते हुए कहा।

परवीन सकते मे थी वह समझ नहीं पाई कि यह मजाक था या जहर । मिश्राइन भीहैरत में थी बात इतनी जल्दी यहां तक पहुंच जाएगी यह उनको ज्ञान नहीं था।

परवीन बोली - "मेहनत लगती है सिलाई भी कम ही लेती हूं। बस काम चल रहा है बहन किसी तरह इस मंहगाई के जमाने में । "

"बनोनहीं परवीन। कुल जमा दो औलादें और वह भी लड़के। मियां जी भी तो कुछकमाते होंगे और इस पर तुम्हारी यह दुकान की आमदनी । मकान के किराए परदुकान चला रही हो तुम तो। "

परवीन को लगा जैसे किसी ने उसके पेट को घूंसा सा मारा हो वह बिलबिला गई। अरे इसी बढ़े हुए किराए की वजह से उसने शुरू की यह सिलाई। किसको बताएं अब।

"अब बताएं कि आप चाय पिएंगे ठंडा । " परवीन ने बात टालने की कोशिश की।

" अरे हम न पिएं चाय शरबत तुम्हारे यहां। और हां अगले महीने से किराए में ₹200 बढ़ा देना ऐसा ये कह रहे थे तुम अपने मियां को बता देना । अच्छा चलूं महरी आती होगी, और चल दीं अपने पीछे परवीन को उलझता छोड़ कर।

यह तो अजीब था। किराया तीन महीने के भीतर ही बढ़ाया जा रहा है । वहपरेशान हो गई । असलम के घर आते ही उसे सब बताया। अगले दिन मिला उनसे उनकेदफ्तर में ।

" क्या बात है मिसिर जी, अरे किराया अभी से बढ़ाने का कह रहे हैं, और सो भी भाभी के मार्फत । कल भी तो मिला था मैं आपसे । "

मिश्रा जी सकपका गए

"अरे नहीं नहीं मुझे याद नहीं रहा होगा । "

पर ये तो गलत है मिसिर जी। अभी तो हम आए ही हैं रहने, और किराया भी पहले से ज्यादा है। "

" तुम्हें क्या फर्क पड़ता है दो चार सौ रुपए में। घर में दुकान अच्छी चल रही है भईया । "

असलम हड़बड़ा गया। तो यह चक्कर है वह बिना कुछ सुने कहे वापस आ गया ।

बिनाकुछ कहे सुने उसने मिश्रा जी को बढ़ा हुआ किराया देना शुरू कर दिया। इसबीच परवीन का काम और बढ़ चला था । मशीन बिजली वाली करवा ली थी। काम बढ़ गयाथा रफ्तार बढ़ गई थी। मिश्राइन के लिए जले पर नमक छिड़कने जैसा था। वेअकसर मैं स्विच से लाइट बंद कर देती थी। परवीन खीज उठती थी। 2 जून कीरोटी चैन से नहीं खाने दे रहे हैं लोग ।

मिश्राइनके जलने के लिए परवीन का बढ़ता काम तो था ही साथ ही दो होशियार लड़कों काहोना भी था। मिश्रा जी के खुद के 5 लड़कियां और एक लड़का था। लड़का लाड़प्यार से बिगड़ रहा था । हर साल की मार्कशीट में कुछ अंक कम हो जाते । वेभर गई थीं। असलम के परिवार को बर्दाश्त नहीं कर पा रहीं थीं। उन्होंनेपरवीन से दुकान के हिस्से की बात की । यह सब बहुत गड़बड़ था। परवीन उखड़गई "अब आपको हम लोग सहन नहीं हो रहे हैं अब हम लोग यह मकान छोड़ दें। "

मिश्राइन तो तैयार बैठी थीं "अरे तुम करता हम ही तुमसे खाली करवा देंगेमकान। सब भ्रष्ट कर रखा है हमारा मकान और ऊपर से यह धंधा चला रखा है । भलेघर की औरतें कोई काम करती है भला। "

परवीन कुछ ना बोली।

असलमफिर मकान की तलाश में था। पर मकान आसानी से मिलते नहीं थे। इधर मकानमालिक किराएदार में बोलचाल बंद थी। दिन गुजर रहे थे। मिश्राइन का दबावमिश्रा जी पर बढ़ रहा था । तब मिश्रा जी ने उन्हें आश्वासन दिया। और फिरउस दिन का वाकया है कुछ लोग डंडे लेकर असलम के घर के बाहर घर के सामने जमाहो गए। " अबे निकल बाहर मुसल्ले खाली कर बे घर। "

कटवे निकलता है कि नहीं माहौल खराब करते हैं जासूसी करते हैं । पहलवान दरवाजा तोड़ दे धंधा करवाता है अपनी बीवी से। "

यह सब परवीन के कानों में सीसे की तरह जा रहा था । दोनों लड़के घर मेंथे। बड़ा तैश में आ गया " खोल दे मम्मी दरवाजा मैंने निपटता हूं इन लोगोंसे। "

खिड़की के दरार से देखा। इस मोहल्ले का तो कोई नहीं लगता था । सब बाहर केथे । तभी उस दरार में उसकी नजर कल्लू से मिल गई। कल्लू ऑटो वाला जो कॉलेजके चौराहे पर खड़ा रहता था । एक बार किराए को लेकर किच किच को लेकर उसीके कॉलेज के लड़के पीट रहे थे तो उसने बचाया था उसे ।

कल्लूने भी देख लिया था । वह पीछे आया। पीछे से खटखट की। शाहिद ने उसे एक फोननंबर दिया। मामू का था । और कहा कि यहां के हालत बयान कर दे।

कल्लू ने वैसे ही किया मामू ने पुलिस को बताया कि हमारी बिरादरी के आदमीको तंग किया जा रहा है। दंगे फसाद हो जाएंगे। समय रहते कुछ करना चाहिएवरना।

यह वरना काम कर दिया था पुलिस पहुंच गई थी सही वक्त पर। लोग भाग गए थे और मामला टल गया था ।

मिश्रा जी मुश्किल में थे। बीवी को डांटते कि यह सब उसी के कारण था।

मोहल्ले का माहौल बिगड़ रहा था । असलम के घर आने वाले लोग बदल रहे थे , मिश्रा जी के भी अलग किसम के लोग आ रहे थे। जाहिर है अब मामला धर्म का था।

शाहिदकी समझ में नहीं आ रहा था किराया बढ़ाने या जलन के तहत मजहब का क्या रोलहै । उस में धर्म का क्या लेना देना । पर वैसा हो रहा था।

यहसब उसने अब्बा से पूछा। असलम को अच्छा लगा कम से कम सवाल तो पूछ रहा हैउसका बेटा। " हां बेटा यही तो हो रहा है प्रॉब्लम कुछ और है लोग धर्म कीआड़ लेकर लड़ रहे हैं और अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं । पर इसमें नुकसान खुदका भी हो रहा है और मजहब का भी। "

" पर अब्बा कुछ तो है वरना कल्लू हमें मदद नहीं करता। कुछ तो बचा है। "

" बचा तो बहुत कुछ है बेटा वरना तो पता नहीं क्या होता। पर अब हम मिश्रा जीके मकान में तो नहीं रह पाएंगे। हमारे यहां आने वाले लोग भी तो उसीवैरायटी के हैं।

तभी परवीन ने भीतर से कहा -

" वो मामू बता रहे थे कि उधर उनकी तरफ खाली है मकान। चलो चलते हैं उधर ही सब अपने लोग हैं। "

असलम को चुभी यह बात

"अरे तो कल्लू कोई गैर था?" शाहिद बोला।

" अब तुम चुप रहो। तुम्हारा खून गर्म है। दिमाग पढ़ाई में लगाओ। "

" ठीक ही तो कह रहा है। मकान तो मैं इसी इलाके में ढूंढूंगा। रहूंगा तो मैंयहीं। शहर के भीतर एक और पाकिस्तान थोड़ी बनाना है। और फिर वहां कौन सीजन्नत है। वहां करता अपने से जलने वाले नहीं होंगे। जलन किसी मजहब कीबपौती तो नहीं है । "

असलम तय करके मिश्रा जी से मिलने गया। मिश्रा जी के घर पर कुछ लोग थे जो असलम कोदेख कर सकपका गए थे। इधर उधर हो गए थे वे सब।

आओ मियां- मिश्रा जी झेंप छुपाते हुए बोले ।

*भाई साहब मैं तो यह बताने आया था कि मकान जल्द से जल्द छोड़ रहा हूं आपका। आप चिंता न करें । "

"अरे ऐसी कोई जल्दी नहीं है। अभी रहिए। "

" नहीं भाई साहब देख रहा हूं मकान ठिकाने का मिल जाएगा तो खाली कर दूंगा । "

" अरे ऐसी जल्दबाजी ना करो जब तक रहना है रहो यार। पिछली बातें भूल जाओ"

असलम समझ नहीं पा रहा था कि मिश्रा जी को यह क्या हो गया है । पर पिछले वाकिये से पछताए हैं। चलो यही बहुत है ।

"अच्छा चलूं। "

"अरे चाय वाय नहीं लेंगे । "

"फिर कभी"

असलम वापस घर आया तो हल्का लग रहा था । सुबह उसे आचार्य जी का मकान देखने जाना है । अगले चौराहे पर है।

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