अन्नदाता Amitabh Mishra द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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अन्नदाता

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दुनिया इधर की उधर हो जाए । सूरज उगना भूल जाए। मौसम कैसा भी हो, आंधी तूफान हो, सर्दी हो, गर्मी कि बरसात हो, मगनीराम जी नियमित रूप सेरोज सुबह शाम चीटियों को आटा डालने जाएंगे ही । जिन जिन मैदानों की चीटियोंके वे अन्नदाता हैं, वहां वे इस तरह से नियम से समय पर पहुंचते हैं किउसके आसपास रहने वाले लोग अपनी घड़ियां मिला लेते हैं। रोज सुबह 6:00 बजेहुए स्कूटर से निकल पड़ते थे। शहर भर के छिद्रों में झांकते। उनमें आटाडालते। अंदर का तो नहीं मालूम पर लगता है घर के भीतर भी यह सिलसिला जारीरहता होगा। यह क्रिया हर दरार हर छेद हर सुराख के साथ बहुत तल्लीनता सेबहुत भक्ति भाव से निपटाई जाती होगी।

शहर भर में चीटियां कहां-कहां हो सकती हैं यह श्रीयुत मगनीराम जी को भली-भांति पता है।

पर चीटियां कहां नहीं हैं।

वे सड़क किनारे हैं , मैदानों के बीचो-बीच हैं चीटियां, दीवारों की संधपर हैं, पेड़ों पर हैं, जमीन के भीतर हैं। चीटियां। कहां-कहां नहीं हैं। चीटियां ।

माननीय मगनीराम जी सिर्फकाली चीटियों को आटा डालते थे उनके मुताबिक लाल चीटियां मानव विरोधी हैं यहकाटती हैं उन्हें डर है कि फिलहाल तो कम हैं जिस रफ्तार से लाल चीटियांबढ़ रही हैं उनके मुताबिक आने वाले समय में वे बहुसंख्यक हो जाएंगे जबकिकाली चीटियों को एहसास ही नहीं है इस बात का। काली चीटियों से ज्यादा निरीहऔर सहनशील प्राणी इस जगत में दूसरा नहीं है। काली चीटियां कितनी संयमितहैं, कितनी अनुशासित। एक लाइन से चलती हैं तो बस चलती जाती हैं। बस एक हीआदत है खराब काली चीटियों की । वे बहुत जल्दी-जल्दी अपने घर बदलती हैं। एक दिन कहीं आटा डालते थे दूसरे दिन चीटियां वहां नहीं होती थीं। चीटियोंकी इस हरकत से परेशान थे वे पर चीटियों से क्या और कैसे कहा जाए ।

इसकाउन्हें एक उपाय सूझा। वे चीटियों को एक जगह इकट्ठा करने की सोच रहे थे । काली चीटियों को ही । क्यों कि अक्सर लाल चीटियां भी उनका फायदा उठा लेतीहैं । फिलहाल तो सहना से उन्हें यह सब । हां तो उपाय उन्होंने यह सोचा थाकि एक ढेर आटे का उन्होंने मैदान के बीचों-बीच लगा दिया । वे यह सोच रहे थेकि सारी चीटियां आटे के उस ढेर के आसपास इकट्ठा होकर रहने लगेंगे फिरउन्हें सहूलियत रहेगी पर वे चीटियां थी ना तो कुत्ते गधे मैं सुबह लगाएचिड़िया और ना ही आदमी की लालच में आ जाए अपने भारत से ज्यादा बोझ उठानेवाली चीटियां यदि उस ढेर से टकराती भी थी तो आटा पीठ पर लगती थी और अपनेरास्ते पर चल पड़ती थी । वे नहीं इकट्ठा हुई लालच के तले। मगनीराम का यह उपाय असफल था ।

वेसंस्कृति के नाम पर, एकता के नाम पर, श्रेष्ठताता के नाम पर, उपेक्षा केनाम पर आदमियों को तो इकट्ठा कर सकते थे। नस्ल के नाम पर कुत्तों, गायोंऔर आदमियों तक को अलग अलग कर सकते थे पर चीटियों के साथ वैसा कोई हथकंडानहीं लगा पा रहे थे । चीटियों को फुर्सत नहीं थी। वे तो बस अपने काम मेंलगी रहती थीं। कहीं ना कहीं हमेशा आती जाती रहती थीं। मगनीरामजी त्रस्तथे। चीटियों की इस आदत से वे परेशान थे, लगभग पागलपन की हद तक। रात कोग्यारह बजे उठकर चींटियों को आटा डालने निकल पड़ते थे और यह देखते कि सुबहचीटियां किस रास्ते पर जाएंगी। पर चीटियां किसी बने बने रास्ते पर तो चलने से रहीं। वे अपने दो आयाम वाले संसार में कितने ही आयाम ढूंढती रहतीहैं । ऊंचाई भी पहाड़ी टीले में मिल ही जाती थी उन्हें ।

मगनीरामजी कभी कभी गुस्सा हो उठते थे। उन्हें लगता था चीटियां चिढ़ा रही हों। परास्त कर रही हों उन्हें। कभी कभी सोचते सारे छेदों को बंद कर दें। फिरकहां जाएंगी चीटियां या फिर कुचल दें सारी चीटियों को । चींटी मुक्त कर देंयह धरा धाम क्योंकि कृतज्ञ चीटियों ने उनके प्रति कभी भी कृतज्ञता व्यक्तनहीं की कभी एहसान नहीं माना । वे अकसर इस बात का इंतजार करते कि कभी नाकभी शहर भर की चीटियां लाइन से लगकर उनके घर आएंगीं उनका एहसान मानने। परचीटियां थी कि उन्हें समझ पाना मुश्किल था, लगभग असंभव । खुश हैं या दुखीयह जान पाना मगनीराम जैसे लोगों के लिए संभव ही नहीं था। चीटियों को कोईभाव भी तो नहीं आते थे । वे आटा खाती हैं या नहीं यह भी तो समझ पानामुश्किल था । कुत्तों को रोटी डालो तो दुम हिलाते हैं, गाय का खुश होनाझलकता है, चिड़िया भी समझ में आ जाती हैं। पर चीटियां ये चीटियां बिल्कुलसमझ के बाहर है । पता नहीं किन परिस्थितियों में उन्होंने तय किया थाचींटियों को आटा डालेंगे।

मगनीराम जी को परेशानी का सबब सिर्फ चीटियां ही हों ऐसा नहीं था । जड़ मेंउनकी परेशानी का सबब उनका घर था , उनकी बीवी थी जो लगातार लड़कियां पैदाकर रही थीं। वे त्रस्त थे अपनी बीवी की इस हरकत पर। चीटियों को न कुचलनेवाले मगनीराम जी घर पर एक खतरनाक और हिंसक पशु थे। वे लड़कियों को बेरहमीसे कूटते हैं, बीवी को बाल पकड़कर घसीटते हैं , बीमार हो या स्वस्थ स्त्रीको रोज रोज निचोड़ते हैं और झटक कर टांग देते हैं घर के कोने में। लड़कियों को गर्भ में ही मारने का पुण्य कार्य वे कर चुके हैं । उनका बसनहीं चलता वरना वे अपनी बाकी लड़कियों को अभी गला घोट दें। चींटियों कोआटा खिलाने के पीछे उनका उद्देश्य और आशा है कि उन्हें चीटियां आशीषेंगी तोउन्हें पुत्र प्राप्ति होगी। दयालु मगनीराम जी की दया चीटियों से चीटियोंतक है। दुकान पर या घर पर वे एक जल्लाद किस्म के आदमी हैं। आदमी कोनिचोड़ना उनकी विशेषज्ञता का क्षेत्र है।

पिछले कुछ दिनों से उनकी परेशानी का सबब एक स्कूटर मैकेनिक था , जो उनकीदेखा देखी पिछले दिनों एक पोटली लाकर उनसे पहले ही चींटियों को आटा डालनेलगा था। वे यह बर्दाश्त नहीं कर पा रहे थे कि उनका यह निस्वार्थ कार्य कोईदूसरा हथिया ले। वे अपनी काली चीटियों के बारे में शंकित हो चले थे । और तोऔर वह मनीराम जी से बात करने की हिम्मत तक कर लेता है ।

"ऐसा लगता है इस बार बारिश अच्छी होगी काली चीटियां आ रही हैं। है ना सेठ जी। " या जब कीचड़ हो जाएगा तो कहां जाएंगीं चीटियां। "

तेज नजर से तरेरते मगनीराम जी पर वह तो आटा डाल रहा होता है। उसे उनकीघूरती नजरों का सामना नहीं करना पड़ता था। मगनीराम जी के अपने भीतर असंख्यगालियों का स्रोत फूट पड़ता। "साले हरामजादे खुद के घर खाने को कुछ नहींहोगा दस दस पिल्ले होंगे टुकड़खोर के पर बराबरी मगनीराम से करेंगे । अरे तूतो एक ही मैदान संभालता है मेरे जिम्मे में तो इस शहर की सारी चीटियांहैं। इस शहर की सारी चीटियों को आटा खिला सके तब जानूं। " पर बाहर कुछ नहींआता था । वे समझ नहीं पा रहे थे कि यह मगनीराम से क्यों बराबरी कर रहाहै । एक दिन पूछ रहा था " सेठ जी चीटियों को ही क्यों आटा खिलाते हो, भूखेतो बहुत है इस दुनिया में। "

वहीस्त्रोत अंदर फट पड़ा था - " अरे तुम से मतलब सुअर की औलाद " पर बाहरसिर्फ इतना निकला "तू क्यों खिलाता है?" बोला था वह "अच्छा लगता है बस। आपको देखा तो लगा कि इससे चैन मिलता होगा इसलिए मैं भी डालने लगा आटा परचींटियों को ही क्यों सेठ जी? क्या उन्हें जरूरत भी है ?

सेठके पास जवाब नहीं था, था भी तो इस गवार को, अनपढ़ को , उल्लू के पट्ठेको क्यों बताएं। बहुत गुस्सा थे स्कूटर मैकेनिक पर। उन्होंने वह मैदानछोड़ दिया था उसके लिए। हालांकि चिंता रहती है उन्हें वहां की चीटियों कीभी। अकसर रात में वे आटा बुरक आते हैं उस मैदान में ।

अबबारिश के दिन नजदीक थे। चीटियां बहुत जल्दी-जल्दी रास्ता बदलती है इनदिनों। बारिश के दरमियान पता नहीं कहां बिला जाती है चीटियां । मगनीराम जीबहुत बेचैन रहते हैं बारिश में। जैसे चीटियों की उनकी कोई जरूरत नहीं है। पर इस बारिश में चींटियों ने इकट्ठा होकर कुछ तय किया , वे मगनीराम सेभागते भागते तंग आ गई थी। उन्हें दयालु मगनीराम के मंसूबे समझ में आ रहेथे। उन्हें उन सारे कुत्तों गायों और चिड़ियों का हश्र पता था जो पहलेमस्त थे, सारे मोहल्ले के थे, पर मगनीराम ने लालच देकर किस तरह उन्हेंअपना आश्रित बनाया और फिर अब किस तरह तड़पाता है वह इन सब को । उनकी यहीतरकीब है पहले खूब गीला करो तभी तो निचोड़ने का मजा आएगा और निचुड़ेगा भीअपनी ही मर्जी से। चीटियों को सामने दिखता है गंगाराम । वह मेहनतीगंगाराम, जिसे उन्होंने लालच देकर कर्जा दिया और आज वही गंगाराम उनकागुलाम है, उसे वे मारे या जिलाएं। इस तरह से उन्हें संतोष मिलता है औरअपने पर गर्व होता है , अपनी ही पीठ थपथपाने का मन होता है पर चीटियों नेदेख लिया था मगनीराम का वह क्रूर और हिंसक चेहरा जो आटे के ढेर के पीछेनहीं छुपा रहा था। जो उन्हें लाल चीटियों से अलग नहीं कर पा रहा था, जिससे भड़काने से भी वे अपनी काली चीटियां होने पर गर्व नहीं कर रही थीं । किसी भी कीमत पर अपने मेहनतीपन और स्वावलंबीपन को छोड़ नहीं पा रही थीं। वेमगनीराम को काटना चाह रही थीं पर वे काली चीटियां थीं जिन्होंने काटनानहीं जाना था । लाल चीटियां उनके साथ थीं। वह मगनीराम को काटती भी थी पर वह काली चीटियों के पीछे और जोर शोर से पड़ जाता था ।

आखिरकाली चीटियों ने अपने ही तरीके से ढूंढा रास्ता वे सब मगनीराम से भागतेभागते तंग हो गई थीं वे मगनीराम के बदन पर चढ़ने लगीं। उसके आसपास फैलगईं। मगनीराम के आस-पास चीटियां ही चीटियां थीं। उसके घर द्वार दुकान सभीजगह फैल गई थी चीटियां। उसका खाना-पीना, हगना मूतना हराम कर दिया थाचीटियों ने । वे खा रहे होते तो चीटियां ही चीटियां दिखतीं। वे जहां पैररखना चाह रहे थे वहीं चीटियां थीं काली चीटियां। इस कदर रेंगती थीं जैसे वेकोई टीले पत्थर या दीवार बेजान हों। उन्हें लगता कि वे अब बेजान हो गएहैं । उन्हें सपने में भी चीटियां ही चीटियां दिखतीं थीं। काली चीटियांअनुशासित चीटियां बहक गई थीं। मंगनीराम जी अब सो नहीं सकते थे, खा नहींसकते थे, उठना बैठना तक मुश्किल था अब उनका। चीटियों ने उनसे बदला लिया था। यही तरीका था चीटियों के पास मगनीराम से अपना चींटीपन बचाने का । मगनीरामजी का क्या हुआ यह तो पाठक खुद तय करें पर चीटियां अब मुक्त हैं। मेहनतीचीटियां । अपने बोझ से ज्यादा भार उठाने वाली चीटियों ने अब मनीराम जी कोछोड़ दिया है, पर अब तो उसे सभी जगह चीटियां ही दिखती हैं चीटियां औरचींटियां।

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