बिखरते सपने - 9 Goodwin Masih द्वारा बाल कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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बिखरते सपने - 9

बिखरते सपने

(9)

‘‘हाँ अंकल, आपको याद होगा, एक दिन आपने खुद ही कहा था कि स्नेहा दीदी मुझसे भी अच्छा बैडमिन्टन खेलती हैं, अगर पापा मान जायें तो स्नेहा दीदी आराम से इस टूर्नामेंट की महिला चैम्पियन बन सकती हैं।’’

‘‘हां कहा तो था, और स्नेहा खेलती भी अच्छा है। लेकिन हम यह बात तुम्हारे पापा को कैसे बतायेंगे, कि स्नेहा उनकी मर्जी के खिलाफ रोज तुम्हारे साथ ही बैडमिन्टन की प्रेक्टिस करती है। क्योंकि उन्होंने मुझे सख्त हिदायत दे रखी है कि मैं स्नेहा को कभी भी बैडमिन्टन ग्राउण्ड पर न आने दूं। अगर उन्हें यह पता चल गया कि मैं तुम्हारे साथ रोज स्नेहा को भी प्रेक्टिस कराता हूं, तो वह मुझसे नाराज हो जायेंगे। हो सकता है, तुम्हारे पापा मुझसे दोस्ती भी खत्म कर दें?’’

‘‘यह बात तो है, लेकिन अंकल प्लीज, कुछ करिए। किसी तरह स्नेहा दीदी का नाम इस महिला जूनियर बैडमिन्टन टूर्नामेंट में शामिल करवा दीजिए। रही बात पापा की, तो उनको हम कैसे भी मना लेंगे। और वैसे भी पापा स्नेहा दीदी को सिर्फ इसलिए खेलने से मना करते हैं, क्योंकि वह लड़की हैं। पापा के मन में यह बात बैठी हुई है कि लड़कियां कुछ कर नहीं सकतीं। लेकिन जब स्नेहा दीदी बैडमिन्टन टूर्नामेंट में खेलेंगी तो पापा को यह विश्वास हो जायेगा कि वाकई स्नेहा दीदी कुछ कर सकती हैं। अंकल, मेरा दिल कहता है कि अगर दीदी इस टूर्नामेंट में हिस्सा लेंगी, तो वह अवश्य जीतेगी और पापा के बिखरते सपने फिर पूरेे होने लगेंगे।’’

‘‘मुन्ना, कह तो तुम ठीक रहे हो। मेरा दिल भी यही कहता है कि स्नेहा बाजी मार के ले जाएगी। वैसे भी स्नेहा को खेलने का इससे अच्छा मौका फिर कभी नहीं मिल पायेगा। ठीक है, मैं आज ही, बल्कि अभी टूर्नामेंट के चेयरमैन मिस्टर कपूर के पास जा रहा हूं, उनसे मिलकर स्नेहा के लिए बात करता हूं। उन्हें स्नेहा की प्रेक्टिस के वीडियो भी दिखा दूंगा, हो सकता है, कुछ काम बन जाये।’’

‘‘बन जायेगा अंकल, मेरा दिल कहता है कि चेयरमैन साहब आपकी बात नहीं टालेंगे।’’

‘‘ठीक है, मैं चलता हूं। और हां, अगर स्नेहा का नाम टूर्नामेंट में शामिल हो गया तो हम मिस्टर गुप्ता को कैसे बतायेंगे?’’

‘‘अंकल, वो सब हम बाद में सोचेंगे। फिलहाल तो आप स्नेहा दीदी के लिए बात करिये।’’

मुन्ना के कहते ही रोहन वहां से चला जाता है। उसके जाने के बाद मुन्ना भगवान् से कहता है, ‘‘भगवान्! आज तो तुम्हें मेरी प्रार्थना सुननी ही पड़ेगी। कैसे भी हो स्नेहा दीदी का नाम टूर्नामेंट के लिए सलेक्ट करवाना ही है।’’

शाम का समय। हॉस्पिटल में मुन्ना अपने बेड पर बैठा हुआ है। उसके मम्मी-पापा और स्नेहा दीदी उसके पास बैठे हैं। मुन्ना की मम्मी और स्नेहा दीदी उससे बात करती हैं। उसे हंसाने के लिए जोक सुनाती हैं, लेकिन मुन्ना बेमन से हँसता है। सच बात तो यह है कि मुन्ना का मन उसके रोहन अंकल में पड़ा हुआ है। वह बार-बार उन्हीं के बारे में सोचने लगता है। रोहन अंकल के फोन का उसे बेसब्री से इंतजार है। उसके कान सिर्फ एक ही बात को सुनने के लिए बेचैन हो रहे थे, कि रोहन अंकल ने बैडमिंटन टूर्नामेंट कमेटी के चेयरमैन मिस्टर कपूर से स्नेहा की बात की या नहीं...? ...अगर की तो उसका रिजल्ट क्या रहा...?’’

जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा था, वैसे-वैसे मुन्ना के दिल की धड़कने भी तेज हो रही थीं।

रोहन अंकल के फोन का इंतजार करते-करते रात के दस बज गये, मगर रोहन अंकल का फोन नहीं आया तो, मुन्ना एकदम निराश हो गया। उसने अनुमान लगा लिया कि स्नेहा दीदी का नाम महिला जूनियर बैडमिन्टन टूर्नामेंट में शामिल नहीं हो पाया। इसीलिए रोहन अंकल ने फोन नहीं किया।

यही सब सोच कर मुन्ना का मन टूट गया। उसके पापा के चेहरे पर हँसी लाने के लिए एक आखिरी उम्मीद थी, वो भी टूट गयी। उसे ऐसा लग रहा था जैसे अब उसके पापा कभी हँस नहीं सकंेगे। उसके पापा की आँखों से छिनते सपने को देखकर मुन्ना का मन भी कर रहा था कि वह अपने पापा से लिपट कर खूब रोए, लेकिन वह ऐसा भी नहीं कर सकता था।

मुन्ना इन्हीं विचारों की नदी में गोते लगा रहा था कि डॉक्टर चड्डा राउन्ड पर आये और मुन्ना को हॉस्पिटल में देखकर चैंकते हुए उसके पापा से बोले, ‘‘मिस्टर गुप्ता, क्या हुआ...? ...मुन्ना की छुट्टी तो शाम पाँच बजे ही हो गयी थी, फिर आप लोग अभी तक हॉस्पिटल में...?’’

डॉक्टर चड्डा के पूछने पर मिस्टर गुप्ता ने कहा, ‘‘वो क्या है कि मुन्ना का कोई दोस्त इससे मिलने आने वाला है, उसी के इन्तजार में हम लोग रुके हुए हैं। वह आकर मुन्ना से मिल लेगा, तो हम लोग चले जायेंगे।’’

‘‘ओह तो ये बात है।’’ कहकर डॉक्टर चड्डा वहां से चले गये। उनके जाने के बाद मुन्ना ने अपने पापा से कहा, ‘‘पापा, लगता है, मेरा दोस्त अब नहीं आयेगा। चलिए, घर चलते हैं।’’

मुन्ना के कहते ही उसके पापा ने अपनी पत्नी सपना से कहा, ‘‘ठीक है, सपना, तुम मुन्ना का सामान पैक करो, मैं ड्राइवर से कहकर गाड़ी निकलबाता हूं।’’

कहकर मिस्टर गुप्ता मुन्ना के पास से चले ही थे कि अचानक मुन्ना के मोबाइल फोन की घण्टी बज उठी। फोन की घण्टी की आवाज सुनकर मिस्टर गुप्ता रुक गये।

मुन्ना ने मोबाइल स्क्रीन पर देखकर कहा, ‘‘मेरे दोस्त का ही है। आप लोग यहीं बैठिए मैं उससे बात करके आता हूं।’’

कहता हुआ मुन्ना बाहर हॉस्पिटल के बरामदे में आ गया और फोन रिसीव करते हुए बोला, ‘‘हाँ अंकल, बताइये क्या हुआ...? हमारा काम बना या...?’’

‘‘मुबारक हो मुन्ना, अपना काम बन गया। जूनियर बैडमिन्टन टूर्नामेंट के महिला वर्ग में स्नेहा का नाम शामिल हो गया।’’

‘‘लेकिन अंकल इतनी देर कैसे हो गयी। डॉक्टर चड्डा भी कह रहे थे कि हम लोग अभी तक घर नहीं गये हैं।’’

‘‘तो क्या तुम अभी तक हॉस्पिटल में ही हो...घर नहीं गये...?’’

‘‘नहीं, मैंने सोचा, अगर घर चले गये, तो सब गड़बड़ हो जायेगी। हम लोग घर में खुलकर बात भी नहीं कर पायेगे, इसीलिए मैं मम्मी-पापा को यह कहकर कि मेरा एक दोस्त मुझसे मिलने आ रहा है। उसके आने के बाद ही हम घर चलेंगे।’’

‘‘मुन्ना, तुम भी बहुत अच्छा ड्रामा कर लेते हो। खैर! मुझे फोन करने में देर इसीलिए हो गयी, क्योंकि टूर्नामेंट कमेटी के चेयरमैन को मनाने में बहुत समय लगा। उसके बाद खिलाड़ियों की जितनी लिस्ट बनी थीं, उन सभी में स्नेहा का नाम कनफर्म हुआ। जब सब काम हो गया, और यह बात पूरी तरह कनफर्म हो गयी कि स्नेहा टूर्नामेंट में खेल रही है, तब तुम्हें फोन कर रहा हूं।’’

‘‘थैंक्यू अंकल...थैंक्यू वैरी मच। आपको नहीं मालूम अंकल कि यह जानकर कि स्नेहा दीदी इस टूर्नामेंट में खेलेंगी, मुझे कितनी खुशी हो रही है।’’

‘‘मुन्ना, स्नेहा का नाम तो टूर्नामेंट में शामिल हो गया। लेकिन अब यह भी तो बताओ, कि उसको खेलने के लिए अपने पापा को कैसे राजी करोगे...?’’

‘‘उसकी चिन्ता छोड़ दीजिए अंकल...मैंने सब सोच लिया है कि हमें क्या और कैसे करना है। सारी प्लानिंग कल सुबह मैं आपको बता दूंगा।’’

‘‘ठीक है, मैं कल सुबह तुम्हारे फोन का इन्तजार करुंगा।’’

‘‘ओ.के. अंकल...एक बार फिर थैंक्स।’’

...और संयोग की बात थी कि जितने दिन बैडमिन्टन टूर्नामेंट होना था, उतने ही दिनों के लिए स्कूल की तरफ से बच्चे एक पिकनिक टुअर पर जा रहे थे। तो हमने और मुन्ना ने मिलकर यह योजना बनायी कि हम आपसे कहेंगे कि स्नेहा स्कूल की तरफ से पिकनिक टुअर पर जा रही है। ...और ऐसा ही हुआ भी।’’

‘‘वह सब तो ठीक है, लेकिन मेरी समझ में यह नहीं आ रहा है कि स्नेहा ने तो कभी बैडमिन्टन खेला भी नहीं, फिर इसने टूर्नामेंट में इतना अच्छा प्रदर्शन कैसे कर दिया...?’’

‘‘क्यों आश्चर्य हो रहा है न...?’’

‘‘हाँ।’’

‘‘होना भी चाहिए। ...तुम क्या समझते थे मिस्टर गुप्ता...स्नेहा बिटिया को खेलने से रोककर या उसे डांट-डपटकर उसके अन्दर के खिलाड़ी को मार दोगे...? ...नहीं मिस्टर गुप्ता, वो बात अलग है कि तुम्हारे मना करने और नाराज होने की वजह से स्नेहा अपने मन को मारकर रह जाती थी, लेकिन इसके अन्दर का खिलाड़ी बाहर निकलने के लिए झटपटा रहा था।

मैं जब रोज मुन्ना को ट्रेनिंग देता था, तो यह छत के ऊपर खड़ी होकर देखती थी और तब तक देखती रहती थी, जब तक खेल खत्म नहीं हो जाता था। फिर मैंने एक दिन इसे अपने पास बुलाया और इससे पूछा...।’’

समय शाम का। मुन्ना अपने घर के लाॅन में बने बैडमिन्टन कोर्ट पर रोहन के साथ बैडमिन्टन खेल रहा है। सामने घर की छत पर खड़ी स्नेहा बड़े ध्यान से उनका खेल देख रही है। रोहन जब भी मुन्ना को किसी स्टोक के बारे में बताते हैं, तो उनका ध्यान ऊपर छत पर खड़ी स्नेहा की तरफ चला जाता है, तो वह मुन्ना से कहते हैं, ‘‘मुन्ना!

‘‘जी अंकल।’’

‘‘स्नेहा को नीचे बुलाओ।’’

मुन्ना वहीं से स्नेहा को आवाज लगाता है, ‘‘स्नेहा दीदी....।’’

‘‘क्या हुआ मुन्ना....?’’ स्नेहा छत से पूछती है।’’

‘‘अंकल तुम्हें नीचे बुला रहे हैं।’’

‘‘अच्छा, अभी आयी।’’

थोड़ी देर में स्नेहा छत से नीचे उतर कर रोहन और मुन्ना के पास आती है और कहती है, ‘‘जी अंकल।’’

क्रमशः .......

बाल उपन्यास : गुडविन मसीह

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