बिखरते सपने - 3 Goodwin Masih द्वारा बाल कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

बिखरते सपने - 3

बिखरते सपने

(3)

उस दिन मुन्ना अपने ट्यूशन वाले सर से ट्यूशन पढ़ रहा था। स्नेहा ने कमरे में प्रवेश करते ही देखा कि मुन्ना का रैकिट और चिड़िया अलमारी में रखा हुआ है। चिड़िया और रैकिट देखकर स्नेहा का चेहरा खुशी से ताजे फूल की तरह खिल उठा। उसका खिलाड़ी मन हिचकोले लेने लगा और वह खुद को रोक नहीं पायी। वह मन में बोली,‘‘अरे वाह, मुन्ना का रैकिट और चिड़िया.....बहुत बनता है अपने आपको। कहता है मुझे अपना रैकिट खेलने को नहीं देगा। अब देखती हूं कि मुझे कौन रोकता है। बच्चू जब तक तुम ट्यूशन पढ़ोगे, तब तक इस रैकिट से मैं खेलूंगी।’’ कहकर उसने रैकिट उठाया और बाहर वाले कमरे में आ गयी।

ट्यूशन की छुट्टी होते ही मुन्ना ने फटाफट अपना बस्ता समेटा और पहुंच गया उस कमरे में, जिसमें उसने अपना रैकिट रखा था। यह क्या...? अलमारी में अपना रैकिट न पाकर उसकी भवें तन गयीं और वह मन में सोचने लगा कि अभी ट्यूशन वाले सर के आने से पहले मैं अपना रैकिट यहीं रखकर गया था और अब वो यहां से गायव है...?

कहीं ऐसा तो नहीं कि मम्मी ने यहां से उठाकर कहीं और रख दिया हो...?

यह खयाल दिमाग में आते ही वह सीधा किचिन में काम कर रहीं अपनी मम्मी के पास पहुंचा और बोला,‘‘ मम्मी! आपने मेरा रैकिट देखा?’’

‘‘रैकिट, नहीं तो।’’

‘‘तो फिर मेरा रैकिट कहां गया..?’’

‘‘मुझे क्या मालूम। तुमने रखा कहां था ?’’

‘‘अन्दर वाले कमरे की अलमारी में।’’

‘‘अलमारी में रखा था, तो फिर वहां से कहां चला गया ?’’

‘‘वही तो मैं भी आपसे पूछ रहा हूं।’’

मुन्ना ने झुंझलाते हुए कहा तो उसकी मम्मी ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘तुमने ठीक से अलमारी में देखा भी, या यूं ही देखकर चले आये?’’

‘‘मम्मी, अलमारी में ही नहीं, मैंने तो कमरे का कोना-कोना छान मारा, लेकिन मेरा रैकिट वहां नहीं है। ..मैं क्या करुं...? मुझे खेलने जाना है। बाहर मेरे दोस्त मेरा इंतजार कर रहे होंगे।’’

‘‘तो इसमें इतना परेशान होने की क्या बात है। वहां नहीं है, तो दूसरे कमरे में देख लो। हो सकता है तुमने दूसरे कमरे में रखा हो, और तुम्हें ध्यान उस कमरे का रहा हो।’’

‘‘मम्मी आप भी...।’’ भुनभुनाता हुआ मुन्ना वहां से चला गया।

एक....दो....तीन....चार....बाहर वाले कमरे में स्नेह अलेके ही चिड़िया को रैकिट पर उछाल-उछाल कर खेल रही थी। मुन्ना जैसे ही दूसरे कमरे में जाने के लिए उधर से निकला, तो अचानक स्नेहा की आवाज सुनकर रुक गया। उसने अन्दर कमरे में झांक कर देखा। स्नेहा रैकिट से खलने में मस्त थी। ‘‘...हूं...तो यह बात है, मैं अपना रैकिट कमरे में ढूंढ रहा था, और रैकिट स्नेहा दीदी के पास है।’’ उसने गर्दन हिलाकर मन में कहा, और धड़धड़ाता हुआ कमरे में घुस गया। स्नेहा का ध्यान अभी भी खेलने में था। थोड़ी देर मुन्ना यूं ही स्नेहा को देखता रहा फिर बोला, ’’दीदी, मेरा रैकिट और चिड़िया तुम्हारे पास है, और मैं सब जगह ढूंढ रहा हूं।’’

‘‘तो क्या हो गया। अगर मैंने तुम्हारा रैकिट और चिड़िया ले भी लिया तो कौन-सी आफत आ गयी। तुम ट्यूशन पढ़ रहे थे, तो मैंने सोचा मैं ही खेल लूं।’’ पूर्ववत् खेलते हुए स्नेहा ने कहा।

‘‘अच्छा ठीक है। तुमने बहुत खेल लिया अब मेरा रैकिट मुझे दो।’’

‘‘नहीं मिलेगा तुम्हारा रैकिट। आज इससे मैं खेलूंगी।’’ कहकर स्नेहा फिर खेलने लगी।

‘‘दीदी प्लीज, मैं कह रहा हूं न कि मेरा रैकिट मुझे दे दो। मेरे दोस्त बाहर मेरा इंतजार कर रहे होंगें, मुझे उनके साथ खेलने जाना है।’’ कहकर मुन्ना उसके हाथ से रैकिट छीनने लगा, तो स्नेहा ने अपना हाथ ऊंचा कर लिया।

दोनों में रैकिट को लेकर छीना-झपटी होने लगी। स्नेहा रैकिट को लेकर कमरे में इधर-उधर भागने लगी। मुन्ना भी उसके पीछे भागने लगा और कहने लगा, ‘‘देखो दीदी मेरा रैकिट दे दो, मुझे खेलने जाना है।’’

‘‘नहीं...नहीं...नहीं....तुम्हारा रैकिट तब तक नहीं मिलेगा, जब तक तुम मुझसे ये वायदा नहीं कर लोगे, कि तुम मुझे भी अपने साथ खिलाया करोगे।’’

‘‘नहीं, मैं तुम्हें अपने साथ नहीं खिला सकता।’’

‘‘क्यों...क्यों नहीं खिलाओगे...’’

‘‘क्योंकि तुम्हें रैकिट खेलने के लिए पापा ने मना किया है।’’

‘‘तो ठीक है, ऐसी बात है तो मैं भी तुम्हारा रैकिट नहीं दूंगी।’’

‘‘क्यों नहीं दोगी, लाओ दे दो मेरा रैकिट।’’

मुन्ना ने उससे रैकिट छीनने की कोशिश की तो वह कूदकर पलंग पर चढ़ गयी और उसे चिढ़ाते हुए बोली, ‘‘लो, ले सकते हो तो ले लो अपना रैकिट। मुन्ना भी कूदकर पलंग पर चढ़ गया। उसके पलंग पे चढ़ते ही स्नेहा पलंग से नीचे कूद गयी। उसके साथ ही मुन्ना भी कूद गया और उसे पकड़ने की कोशिश करने लगा, तो स्नेहा कमरे में इधर-उधर भागने लगती है, मुन्ना भी उसके पीछे-पीछे भागने लगता है। जब वह भागते-भागते थक जाता है और स्नेहा से रैकिट नहीं ले पाता है, तो वह जोर से चीखकर कहता है, ‘‘मम्मी!......देखो......दीदी मेरा रैकिट नहीं दे रही

है...।’’

मुन्ना की आवाज सुनकर सपना झंुझलाकर कहती है।‘‘इन बच्चों ने तो नाक-में-दम कर रखा है। जब देखो तब आपस में लड़ते रहते हैं। इनके पापा अपने आॅफिस का काम कर रहे हैं अगर उन्होंने सुन लिया तो अभी मेरी आफत कर देंगे।’’ कहकर वह वहीं किचिन में से आवाज लगाकर कहती हैं,‘‘ स्नेहा...भईया को क्यों परेशान कर रही हो....दे दो उसका रैकिट...।’’

स्नेहा भी उसी तरह चीखकर कहती है, ‘‘नहीं, मैं नहीं दूंगी...।’’

मुन्ना एकदम बिफर पड़ता है और लगभग रोते हुए कहता है,‘‘देखो मम्मी, यह नहीं दे रही हैं मेरा रैकिट...।’’

कहकर मुन्ना स्नेहा से रैकिट छीनने की कोशिश करता है, तो स्नेहा फिर कमरे में भागने लगती है। मुन्ना भी उसके पीछे भागने लगता है। दोनों खूब चीखते-चिल्लाते हैं। उनका शोर सुनकर मिस्टर गुप्ता अपना काम करते हुए कहते हैं, ‘‘हूं..हूं..हूं...इस घर में तो जरा-सा काम करना भी मुश्किल हो जाता है।’’कहकर वह वहीं से चीखकर सपना से कहते हैं, ‘‘सपना.....।’’

सपना किचिन में से ही कहती है, ‘‘क्या है..?

‘‘यह दोनों इतना शोर मचा रहे हैं और तुम इनसे कुछ कह भी नहीं रही हो हयं...मुझे कितना डिस्टर्ब हो रहा है...जाओ, जाकर देखो ये दोनों क्यों चिल्ला रहे हैं।’’

‘‘मैं किचिन में खाना बना रही हूं.....तुम खुद जाकर देख लो क्या बात है।’’

सपना का उत्तर पाकर मिस्टर गुप्ता एकदम झुंझला जाते हैं इतने में कांच टूटने की आवाज आती है तो मिस्टर गुप्ता और अधिक झल्लाते हुए कहते हैं, ‘‘पता नहीं कौन-सी आफत आ गयी। कहते हुए वह मुन्ना और स्नेहा के कमरे में जाते हैं।

अचानक अपने पापा को देखकर स्नेहा एकदम सहम-सी जाती है। मिस्टर गुप्ता उसे घूरते हुए कहते हैं,‘‘क्या बात है हयं...?...क्यों इतना शोर मचा रहे हो हयं...? और यह शो पीस किसने तोड़ा...?’’

‘‘स्नेहा डरते हुए कहती है, ‘‘मुन्ना ने।’’

‘‘क्यों मुन्ना, तुमने यह शो पीस क्यों तोड़ा...?’’

‘‘पापा, मैंने यह जानबूझ कर थोड़े ही तोड़ा है। दीदी मेरा रैकिट नहीं दे रही थी, मैं इनसे अपना रैकिट लेने के लिए इनके पीछे भागा, तो इसमें मेरा हाथ लग गया और ये नीचे गिरकर टूट गया।

मुन्ना की बात सुनकर मिस्टर गुप्ता स्नेहा के ऊपर नाराज होकर कहते हैं, ‘‘क्यों स्नेहा, भईया का रैकिट क्यों नहीं दे रही हो...?’’

‘‘मैं कब मना कर रही हूँ पापा, मैं तो इससे कह रही थी कि मुझे भी अपने साथ खिला ले, तो ये मना कर रहा था।’’

‘‘तुमसे पचास बार कहा है कि तुम लड़की हो और लड़की की तरह रहा करो। मुझे लड़कियों का इस तरह खेलना-कूदना बिल्कुल पसंद नहीं हैं समझी, लाओ इधर रैकिट।’’

वह स्नेहा से रैकिट छीनकर मुन्ना को देते हुए लाड़ जताकर कहते हैं, ‘‘लो बेटा, जाओ, तुम खेलने जाओ।.......और हां बेटा ध्यान से खेलना, चोट मत मार लेना।’’

‘‘ठीक है पापा।’’ कहकर वह पास खड़ी स्नेहा का मुंह चिढ़ाता है और खुशी-खुशी खेलने चला जाता है।’’ मुन्ना के जाने के बाद वह नाराज होकर स्नेहा से कहते हैं, ‘‘तुम यहां खड़ी-खड़ी क्या कर रही हो, जाओ, जाकर अपनी मम्मी के साथ किचिन में काम करवाओ।’’

अपने पापा के इस उपेक्षित व्यवहार से स्नेहा का मन भर आता है। वह एकदम सिसिक पड़ती है और वहां से चली जाती है।

समय रात का। घर के सब लोग खाना खाकर अपने-अपने बिस्तर पर लेटे हैं। स्नेहा और मुन्ना अपने कमरे में और उनके मम्मी-पापा अपने कमरे में।

मुन्ना गहरी नींद में सोया हुआ है। स्नेहा बिस्तर पर सीधे लेटी हुई छत की तरफ देख रही है। उसे नींद नहीं आ रही है। उसकी आँखें गहरी सोच में डूबी हुई हैं। वह मन-ही-मन कहती है, ‘‘आखिर मेरे अन्दर ऐसी कौन-सी कमी है, जिसकी वजह से पापा मुझे पसंद नहीं करते हैं? मैं पढ़ने में भी मुन्ना से बेहतर हूं। हर बार अपनी कक्षा में टाॅप करती हूं, जबकि मुन्ना औसत अंकों से पास होता है। उसके पास होने पर पापा उसे हमेशा मंहगे-से-मंहगा गिफ्ट देते हैं, और खूब खुशी मनाते हैं, जबकि मुझे न गिफ्ट देते हैं और न ही खुश होते हैं।

बस बात-बात पर मुझे झिड़कते रहते हैं और यही कहते रहते हैं, ‘‘कि तुम लड़की हो, तुम्हें लड़कियों की तरह रहना चाहिए।’’ सोचते-सोचते स्नेहा को पिछले साल वाली बात याद आ जाती है, जब वह स्कूल के डिबेट काॅम्पिटिशन में पूरे स्कूल में फस्र्ट आयी थी।

क्रमशः .......

बाल उपन्यास : गुडविन मसीह

E-mail : scriptwritergm8@gmail.com