बिखरते सपने - 10 - अंतिम भाग Goodwin Masih द्वारा बाल कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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बिखरते सपने - 10 - अंतिम भाग

बिखरते सपने

(10)

‘‘बेटा, तुम रोज छत पर खड़ी होकर मुन्ना का खेल देखती हो, तो क्या तुम्हें खेल देखना अच्छा लगता है...?’’

‘‘जी, जब मुन्ना को बैडमिन्टन खेलते हुए देखती हूं तो मेरा भी मन करता है कि मैं भी खेलूं, लेकिन....।’’

‘‘लेकिन क्या...?’’

‘‘अंकल, दीदी को बैडमिन्टन खेलना बहुत पसंद है, लेकिन पापा दीदी को खेलने के लिए मना करते हैं। उनका कहना है कि दीदी लड़की है, और लड़कियों को खेलने-कूदने की बजाय घर के कामों में ध्यान देना चाहिए। पापा ने मुझसे भी कह रखा है कि अगर दीदी कभी मेरे साथ खेले तो मैं पापा को बताऊं। इसीलिए दीदी खेलती नहीं है।’’ मुन्ना ने बताया।

‘‘ये तो स्नेहा के साथ बहुत बड़ी नाइंसाफी है। लेकिन तुम चिन्ता मत करो। भले ही तुम्हारे पापा ने तुम्हें खेलने से मना कर रखा है और वह तुम्हें खेलने नहीं देते हैं, फिर भी मैं तुम्हें मुन्ना के साथ बैडमिन्टन खेलना सिखाऊंगा।’’

‘‘और अगर पापा ने मुझे खेलते हुए देख लिया तो...?’’ स्नेहा ने कहा।

‘‘...अगर तुम्हारे पापा ने देख लिया तो उन्हें मैं सम्हाल लूंगा। ठीक है, कल से तुम भी मुन्ना के साथ खेलोगी।’’

‘‘लेकिन मुन्ना ने पापा को बता दिया तो...?’’

‘‘क्यों मुन्ना, क्या तुम नहीं चाहते कि तुम्हारी दीदी तुम्हारे साथ खेले....?’’

‘‘क्यों नहीं अंकल, मैं तो चाहता हूं कि दीदी का मन है तो वह जरूर खेलें।’’

‘‘तो ठीक है, कल से मुन्ना के साथ स्नेहा खेलेगी और मैं तुम दोनों को खेलना सिखाऊंगा।’’

‘‘अरे वाह, फिर तो बड़ा मजा आयेगा, क्यों दीदी...?’’

‘‘मजा तो आयेगा मुन्ना, लेकिन तुम पापा को बताना मत कि मैं भी तुम्हारे साथ खेलती हूं।’’

‘‘कैसी बात कर रही हो दीदी, मैं पापा को क्यों बताऊंगा..? सच तो यह है कि जब भी पापा तुम्हें खेलने के लिए मना करते हैं, तो मुझे बहुत दुःख होता है, लेकिन मैं कुछ कह नहीं पाता हूं, क्योंकि तुम तो पापा की आदत जानती हो, वह किसी की नहीं सुनते।’’

मुन्ना ने कहा, तो स्नेहा ने उसे प्यार से गले लगा लिया और कहने लगी, ‘‘मेरे प्यारे भईया, आज मैं बहुत-बहुत खुश हूं।’’

रोहन मिस्टर गुप्ता को आगे की बात बताते हुए कहता है, ‘‘और उस दिन के बाद मैं मुन्ना के साथ स्नेहा को भी बैडमिन्टन की प्रैक्टिस करवाने लगा, क्योंकि मैं नहीं चाहता था, स्नेहा का मन टूटे और हमारे शहर से एक बैडमिन्टन खिलाड़ी कम हो।’’

‘‘तुम लोगों ने स्नेहा को खिलाने के लिए इतनी बड़ी योजना बना डाली, और मुझे पता भी नहीं चला...?’’

मिस्टर गुप्ता ने कहा तो रोहन ने कहा, ‘‘पता तो तुम्हें तब चलता मिस्टर गुप्ता, जब तुम्हें कोई बताता। हमें मालूम था, कि तुम स्नेहा को कभी बैडमिन्टन कोर्ट पर नहीं आने दोगे। तुम तो हमेशा एक ही बात कहते थे कि स्नेहा लड़की है और लड़की कभी भी लड़कों से आगे नहीं निकल सकती। इसीलिए तुम्हारा प्यार भी एकतरफा हो गया था...तुम मुन्ना के लिए अधिक और स्नेहा को कम प्यार करते हो।’’

रोहन की बात पर सपना बीच में बोलते हुए कहने लगी, ‘‘कुछ भी कह लो रोहन भाई साहब, पर आज भगवान् ने खुद-व-खुद इनकेे इस भ्रम को तोड़ दिया कि लड़कियां भी लड़कों से किसी बात में कम नहीं होती हैं, जैसा कि हमारी स्नेहा ने साबित कर दिया।’’

सबकी बात सुनने के बाद मिस्टर गुप्ता अपनी गलती को स्वीकार करते हुए कहते हैं, ‘‘तुम लोग ठीक कह रहे हो रोहन, वास्तव में मैंने स्नेहा को असाधारण लड़की की नजर से नहीं देखा। इसीलिए मैं स्नेहा के अन्दर की प्रतिभा को नहीं पहचान पाया। लेकिन आज, स्नेहा ने जूनियर बैडमिन्टन टूर्नामेंट जीतकर मेरे इस भ्रम को तोड़ दिया।’’

‘‘चलो शुक्र है भगवान् का, देर से ही सही, पर तुम्हारी समझ में तो आ गया।’’ सपना ने कहा।

मिस्टर गुप्ता भगवान् की इच्छा को कोई नहीं समझ पाया है, मुझे तो लगता है कि आप स्नेहा से ज्यादा मुन्ना पर भरोसा करते थे, लेकिन भगवान् नहीं चाहता था कि मुन्ना के जरिये आपका सपना साकार हो। तभी तो अचानक एक हफ्ते पहले ही भगवान् ने मुन्ना को बीमार करके हॉस्पिटल के बिस्तर पर लिटा दिया, ताकि मुन्ना की जगह स्नेहा का खेलने का मौका मिले।’’

रोहन ने कहा, तो मिस्टर गुप्ता बोले, तुम ठीक कह रहे हो रोहन, सचमुच आज भगवान् ने मुझे बहुत बड़ा सबक सिखाया है।’’

अपने पापा की बात का समर्थन करते हुए मुन्ना बोला, ‘‘पापा, अब तो दीदी ने खुद साबित कर दिया कि वह किसी से किसी बात में कम नहीं हैं, अब तो आप दीदी के ऊपर से सारी पाबन्दियां हटा लेंगे, और इन्हें खेलने से कभी नहीं रोकेंगे?’’

‘‘नहीं बेटा, स्नेहा ने तो मेरे बिखरते सपनों को साकार किया है, तो भला इसे मैं खेलने से कैसे रोक सकता हूं। यह बात तो अब मैं दाबे के साथ सबसे कह सकता हूं कि हमें लड़कियों को लड़कों से कम नहीं समझना चाहिए। उन्हें भी आगे बढ़ने का हम है, उनके हक को हमें नहीं छीनना चाहिए। तभी हमारा देश तरक्की करेगा।’’

मिस्टर गुप्ता आगे कुछ और कहने वाले थे कि उनके मोबाइल फोन की घण्टी बजने लगी।

ट्रिन.....ट्रिन......ट्रिन......

उन्होंने बात को बीच में ही छोड़ दिया और अपना फोन रिसीव करते हुए बोले, ‘‘हेलो.....।’’

‘‘हेलो....।‘ क्या मैं मिस्टर गुप्ता से बात कर सकता हूं...?’’

‘‘हाँ, बोलिए, मैं गुप्ता ही बोला रहा हूं। .....आप कौन बोल रहे हैं...?

‘‘मिस्टर गुप्ता, मैं बाल प्रेरणा मैगजीन का सम्पादक एस.के. राठौर बोल रहा हूं।’’

‘‘जी, बताइये, आपने कैसे फोन किया...?’’

‘‘मिस्टर गुप्ता, आपकी बेटी स्नेहा ने महिला जूनियर बैडमिन्टन टूर्नामेंट जीता है। मैं अपनी पत्रिका के लिए उसका इन्टरव्यू लेना चाहता हूँ, क्या स्नेहा इस समय घर पर है...?’’

‘‘जी हाँ, स्नेहा इस समय घर पर ही है, आप आ जाइये।’’

‘‘ठीक है मिस्टर गुप्ता, मैं आधे घण्टे में आपके घर पहुँच रहा हूं।’’ कहकर दूसरी तरफ से फोन कट गया।

‘‘किसका फोन था पापा...?’’ स्नेहा ने पूछा।

‘‘बाल प्रेरणा मैगजीन के सम्पादक मिस्टर राठौर का फोन था, वह अभी आधे घण्टे में तुम्हारा इन्टरव्यू लेने आ रहे हैं।’’

‘‘सचमुच पापा, वह मेरा इन्टरव्यू लेंगे...?’’ स्नेहा ने खुश होते हुए पूछा।

‘‘हाँ, सचमुच वह तुम्हारा इन्टरव्यू लेने आ रहे हैं। कहकर मिस्टर गुप्ता ने एक गहरी श्वांस ली और भावुक होते हुए रोहन से बोले, ‘‘रोहन, आज मैं बहुत खुश हूं। जब डॉक्टर चड्डा ने मुन्ना के लिए कहा था कि ये अब कभी बैडमिन्टन नहीं खेल पायेगा, तो मैं तो दिल से टूट ही गया था, लेकिन तुमने मेरे सपनों को साकार कर दिया। अब देखना हिन्दुस्तान के सभी पत्र-पत्रिकाओं में स्नेहा का फोटो छपेगा। हमारी स्नेहा ने आज जिला स्तर पर टूर्नामेंट जीता है, कल प्रदेश स्तर फिर देश स्तर पर खेलेगी, और एक दिन वह आयेगा, जब हमारी स्नेहा सारे देश में साइना नेहबाल की तरह बैडमिन्टन की दुनिया में छा जायेगी। ’’कहकर मिस्टर गुप्ता ने स्नेहा को प्यार से अपने गले लगा लिया।’’

समाप्त

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