कॉलेज के प्रधानाचार्य सभा को सम्बोधित करते हुए कहते हैं “मेरे सहयोगियों एवं प्रिय छात्रों, आज हमारे बीच श्री अक्षित जी फिर से आये हैं | अक्षित जी का परिचय देने की आप कोई आवश्यकता ही नहीं है | यह पहले वक्ता हैं जो आप सब में इतने प्रसिद्ध हो गए हैं कि अबकी बार आपके आमन्त्रण पर इन्हें बुलाया गया है |” कह कर वह अक्षित की ओर इशारा करते हुए फिर से बोलते हैं “तालियों से अक्षित जी का स्वागत करें |” अक्षित तालियों की गूंज में अपनी जगह से उठकर प्रधानाचार्य जी के पास पहुँच उन्हें नमस्कार कर सभा को सम्बोधित करते हुए बोलता है “आदरणीय प्रधानाचार्य जी, सभी आचार्य एवं मेरे दोस्तों, मैं तहेदिल से आप सब का आभारी हूँ कि आपने मुझे इस लायक समझा कि मैं आज फिर से योग और अध्यात्म जैसे गहन विषय पर आपके बीच अपने कुछ विचार रखूं | दोस्तों, पिछली बार आपने जिस तरह मेरे विचारों को पसंद किया उससे मैं बहुत प्रभावित हूँ कि हमारी युवा पीढ़ी भी ऐसे विषय को पसंद करती है |
लोग ऐसे ही कहते हैं कि कोई भी इस मॉडर्न युवा पीढ़ी को सिखा-समझा नहीं सकता | उन सबको मैं आज इस मंच से कहना चाहूँगा कि इस नीरस विषय को भी यदि आप आज के हिसाब से ढाल कर पेश करेंगे तो आज की युवा पीढ़ी हमसे भी ज्यादा श्रद्धा और विशवास के साथ स्वीकार करेगी | आज की युवा पीढ़ी कथा कहानियों में नहीं असल व्यावहारिक रूप में स्वीकार करना चाहती है | यह पीढ़ी चाहती है कि अगर सच है तो साबित करके दिखाओ, क्यों ठीक हैं न” और सारा हॉल“yes sir” की आवाज़ से गूंज उठता है |
“मैं भी आप से सहमत हूँ, चलिए अब हम अपने विषय पर वापिस आते हैं | अध्यात्म में हमारे पूर्वजों ने बहुत खोज की और वह खोज उन्होंने कहीं ओर नहीं अपने शरीर पर ही की | उन्होंने देखा, सोचा और समझा कि सब कुछ प्रकृति या यूँ कहें तो ईश्वर ने हमारे इस शरीर में ही दिया है | इस शरीर में जो हमारा सिर है सब कुछ इसमें ही है | जब उन्हें इसका एहसास हुआ होगा तो उन्होंने इस शरीर को साधने के लिए सबसे पहले अपने दिमाग़ यानी मन को साधने की कोशिश शुरू की और वह इसमें कामयाब भी हुए | शारीरिक योग से कहीं ऊपर अध्यात्म योग है इससे आप अपने शरीर और इस प्रकृति दोनों पर काबू पा सकते हैं | तभी तो हमारे पूर्वज इतने युग तक जिन्दा और वह भी जवान रह कर बिताते थे | यह आज भी असम्भव नहीं है | लेकिन करीब सात-आठ सौ साल से इसे ऐसा तरीका बना दिया गया है जैसे इसे कोई कर ही नहीं सकता है | आज मैं आपको इसके फायदे और इसका व्यावहारिक रूप दिखाता हूँ |
हम सब को सुख-दुःख अच्छे बुरे के बारे में बताया और समझाया या दिखाया जाता है और फिर हम सारी ज़िन्दगी उसी के सहारे चलते हुए काट देते हैं | यह बात शिक्षा और ज्ञान पर लागू नहीं होती क्योंकि यह हमें दिमागी और आत्मिक ताकत से प्राप्त होती है | इसे इस तरीके से समझा जा सकता है | जैसे एक अध्यापक अपनी कक्षा में एक जैसा पढ़ाता है लेकिन फिर भी कुछ बच्चे बहुत अच्छे, कुछ अच्छे, और कुछ कम नम्बर लाते हैं | लेकिन कुछ बच्चे फेल भी हो जाते हैं | अध्यापक ने तो सबको एक सा पढ़ाया था फिर रिजल्ट अलग-अलग क्यों आया | वह इसलिए आया क्योंकि बाहर से हमें जो भी शिक्षा या ज्ञान दिया जाता है वह सिर्फ़ सुझाव मात्र ही होता है | हमारा दिमाग़ या मन उस दिए गये सुझाव के बाद उस पर मंथन करता है | उस मंथन के बाद वह सुझाव एक सोच बनता है | जो उस शिक्षा या ज्ञान को और बढ़ाता है और फिर वह सोच हमारी यादाश्त में अंकित हो जाती है |
अध्यापक सिर्फ़ पढ़ा ही सकता है दिमागी ताकत का प्रयोग तो विद्यार्थी को ही करना है | जो करता है वह पास हो जाता है, जो नहीं करता वह फेल हो जाता है | यानी यहाँ यह साबित होता है कि शिक्षा बाहर से मिलती है लेकिन ज्ञान आपके अंदर है वह दी गयी शिक्षा आपके ज्ञान को बढ़ाती है | ज्ञान आप अपने दिमाग़ और आत्मा से प्राप्त करते हैं क्योंकि वह पहले होता ही नहीं है | अब आप कहेंगे यह कैसे सम्भव है | मैं कहता हूँ कि यह ही सम्भव है जैसे आज तक जो भी खोज हुयीं क्या वह पहले किसी किताब में लिखी थीं | अगर नहीं तो न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत सिर्फ़ एक सेब के सिर पर गिरने भर से कैसे बना दिया | क्या गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत न्यूटन के खोजने से पहले नहीं था? वह तो हजारों सालों से था |
यदि आप, आज के सब वैज्ञानिकों की जीवनी पढ़ेगें तो आपको मालूम होगा कि ज्यादातर वैज्ञानिक पढ़ाई में अव्वल नहीं थे | लेकिन एक घटना ने उनके जीवन को पूरा बदल दिया | उस घटना पर जब उन्होंने अपना शरीर, दिमाग़ और आत्मा को केन्द्रित कर दिया तो एक अदृश्य ताकत ने उन्हें वह ज्ञान दिया जो खोज बन कर विश्व के सामने आया |
श्री कृष्ण या फिर महात्मा बुद्ध, पैगम्बर मोहम्मद, जीजस और गुरु नानक द्वारा दिया गया ब्रह्मज्ञान उनसे पहले नहीं था तो वह ज्ञान आया कहाँ से | इसलिए मेरा आपको कहना है कि आपको आपके शिक्षक जो भी शिक्षा दे रहे हैं वह सिर्फ़ एक सुझाव मात्र है और आपको उस सुझाव का विश्लेषण करना है | यह विश्लेषण ही आपकी यादाश्त पर अंकित होगा | अतः शिक्षा के अलावा दिमागी व्यायाम भी करें क्योंकि दिमागी विश्लेषण ही आपको अव्वल नंबर दिलवाता है | ध्यान से ही आप दिमागी विश्लेषण में निपुर्ण हो पाते हैं |
‘ध्यान’ शब्द का बहुत प्रयोग अध्यात्म में होता है और इसे ऐसा दिखाया और बताया गया है कि हम आम इंसान इसे कर ही नहीं सकते | जबकि हमारे लिए यह एक आम बात है | हम बचपन से इसे करते आये हैं | आप ने जब भी कोई कार्य ध्यान से किया तो उसमें सफलता पाई है | आप ने जब भी मन लगा यानि ध्यान से पढ़ा है तो वह आपको याद हो गया | आपने उसे पेपर में लिखते समय याद किया तो वह आपको याद आया और आप ने उसे वैसे ही लिखा जैसे आपने उस समय पढ़ा था | आप समझ ही गये होंगे कि अपने दिमाग़ से अपने पूरे शरीर को किसी भी कार्य पर केन्द्रित कर देने को ही हम ध्यान कहते हैं | आपका ध्यान कभी इस ओर शायद गया ही नहीं होगा कि जिस समय आप ध्यान से पढ़ रहे थे तो आपने उस ख़ास समय पर अपनी सब इन्द्रियों पर विजय पा ली थी | वह सब इन्द्रियां उस पाठ को याद करने में आपके साथ लग गयीं थीं | आपने पेपर में उत्तर लिखते समय जब ध्यान से उस याद किये पाठ को वापिस याद करने की कोशिश की तो सब इन्द्रियों ने आपका साथ दिया | बस इसे ही अध्यात्म में ध्यान कहते हैं |
अब मैं आपकी इस यदाशत को और आगे ले जाता हूँ | यदि आप याद किए गये पाठ को कुछ दिन के बाद पूरी तरह से वापिस याद कर पाते हैं तो कुछ और याद क्यों नहीं कर पाते क्योंकि आपने कभी इस ओर ध्यान ही नहीं दिया | मैं आज आपको उस ओर ले चलता हूँ | हर इंसान के जीवन में कुछ ऐसे पल होते हैं जो उसे जीवन भर याद रहते हैं | वह कुछ पल आपके जीवन के भी होंगे जिन्हें आप आज भी आँख बन्द कर देख सकते हैं | कभी आपने सोचा कि जब यह पल आपको याद रह सकते हैं तो कुछ पल यदि आप याद करना चाहें तो ध्यानावस्था में वह पल भी हू-ब-हू याद आ सकते हैं | जैसे मान लीजिए आपकी चाबी कहीं खो गयी है और आपको याद नहीं आ रही है | तो आप यदि ध्यानावस्था में चाबी के खोने से पहले की अवस्था में जाएंगे और वहाँ से खोने तक आएंगे तो आपको मालूम पड़ जाएगा की वह कहाँ खोई थी | यह करना मुश्किल जरूर है लेकिन असम्भव नहीं |
आप एकाग्र हो ध्यान से अपने दिमाग़, शरीर और फिर अपनी आत्मा पर विजय पाना सीख सकते हैं | अध्यात्म का मानना है कि हमारे दिमाग़ से भी ऊपर हमारी आत्मा है उससे हम अपने दिमाग़ को साध सकते हैं और फिर हमारा दिमाग़ हमारे शरीर को साध सकता है |
आप सोच रहे होंगे कि पहले मैं दिमाग़ की बात कर रहा था तो अब आत्मा कहाँ से आ गयी | क्यों यही सोच रहे हैं |”
सारा हॉल “yes सर” से गूँज उठता है |
“आप अपनी यादाशत को वहीँ तक ही लेकर जा सकते हैं जहाँ तक आपका शरीर है यानी पैदा होने से अभी तक | पैदा होने से पहले और आज से आगे के लिए आपको आत्मा का सहारा लेना होगा | आप एक सीमा तक अपने शरीर को साध सकते हैं | आप यह कह सकते हैं कि दिमाग़ की एक सीमा है | उससे आगे आपको अपनी आत्मा का सहारा ही लेना होगा जो आपके दिमाग़ और शरीर दोनों को पूरी तरह से साध सकती है और वह भी बिना किसी सीमा के |
आपको हैरान होने की जरूरत नही है | अपनी आत्मा की आवाज़ हम सबने सुनी है | याद करिए बहुत बार आपका दिमाग़ कुछ और सोचता या कहता है | आपका दिल कुछ और कहता है | सोचिये वह अलग विचार कहाँ से आता है | आपके दिमाग़ से आये विचार से अलग आया विचार ही आपकी आत्मा की आवाज़ है | अपनी आत्मा से साक्षात्कार का अध्यात्म में बहुत अहम स्थान है |
अब आप सोचिए कि जब आप ध्यान से अपने दिमाग़ में कोई यादाश्त बना सकते हैं तो आप ध्यान से कोई यादाश्त मिटा भी सकते हैं | यानी आपको जब कोई आदत पड़ जाती है तो इसका मतलब है कि उस आदत ने आपकी यादाश्त में जगह बना ली है | अब आप उस आदत पर कण्ट्रोल कर उसे छोड़ने की कोशिश करते हैं | कई बार आप उस आदत को छोड़ने में कामयाब भी हो जाते हैं | कई बार वह कण्ट्रोल खो भी देते हैं और ऐसा होते ही वह आदत दोबारा हावी हो जाती है जैसे सिगरेट या शराब की आदत | यदि आप ध्यान लगा कर इस आदत को अपनी यादाश्त से ही मिटा दें तो फिर वह आदत दोबारा आप पर हावी नहीं होगी |
यह आपके जीवन की हर आदत पर लागू होता है | इसका एक और तरीका भी है कि उस अंकित जगह पर हम एक नई और अच्छी आदत अंकित कर दे तो भी वह पुरानी और गंदी सोच मिट जाएगी | इस से आपको यह समझना चाहिए कि आपको किसी भी बात पर कण्ट्रोल करने की जरूरत नहीं उसे सदा के लिए अपनी यादाश्त से ही मिटाना है या एक नई यादाश्त बनानी है | आप ऐसा करके जरूर देखिएगा | आपके जीवन में अपने आप परिवर्तन आना शुरू हो जाएगा |
इसे आप हल्के में न लें | यह यादाश्त बनाना और मिटाना आपके जीवन का स्वरुप ही बदल देगा | जैसे किसी को डर से लगता अँधेरे से तो किसी को इंटरव्यू देने में तो किसी को भाषण देने में | वह सब डर अगर आप अपनी यादाश्त से मिटा देंगे तो आप में आत्मविश्वास आ जाएगा जो आपको नई ऊँचाइयों पर ले जाएगा |”
यह सुन कर पूरा हॉल तालियों से गूंज उठता है | अक्षित कुछ देर के लिए चुप कर जाता है | तालियों का स्वर मध्यम होते ही एक लड़के की आवाज़ आती है | वह बोला “सर मुझे ऊंचाई से बहुत डर लगता है क्या मैं ये ध्यान से खुद ही ठीक कर सकता हूँ |”
हंसी की आती आवाज़ के बीच अक्षित बोला “बिल्कुल दोस्त, आप अपने किसी भी डर को, बुरी आदत को निकाल सकते हैं और किसी भी अच्छी आदत को बढ़ा सकते हैं |” यह सुन कर हॉल फिर तालियों से गूंज उठता है |
अक्षित हाथ के इशारे से चुप कराते हुए बोलता है “दोस्तों, आप बच्चों की ज़िन्दगी अभी शुरू ही हुई है | आपको अभी इस कॉलेज से निकल कर इस समाज में अपनी एक पहचान बनानी है | अपने आपको खड़ा करना है | एक पेड़ की तरह जिसके सहारे कई और ज़िन्दगी चलेंगी | अतः आप लोगों से मेरी गुज़ारिश है कि इस समाज, धर्म, देश और विश्व को पहचानने से पहले अपनी शारीरिक, दिमागी और आत्मिक शक्ति को पहचानो | यह करते हुए आपको अपने आप ईश्वरीय और प्राकृतिक शक्ति का आभास हो जाएगा |
आप सबके जीवन में कुछ ऐसी घटनाएं या दुर्घटनाएं अवश्य हुई होंगी जिस मे से आप सही सलामत बाहर निकल आये होंगे | आज भी जब आप उनके बारे में सोचते होंगे तो आपके पूरे शरीर में सिहरन-सी दौड़ जाती होगी और सोच आती होगी कि आख़िर यह हुआ कैसे | आपने कभी यह नहीं सोचा होगा कि आप उस असम्भव जैसी स्थिति से निकल क्यों आए | चलिए, आज सोचिये और समझिये | आप उस असम्भव जैसी स्थिति से इसलिए निकल आए क्योंकि उस समय आपने अपनी पूरी शारीरिक और दिमागी ताकत के साथ अपने अनुभव को लगा दिया | आपके इस प्रयास को देख कर ईश्वरीय ताकत भी आप के साथ आ मिली और आप वहाँ से बाहर आ गये लेकिन फिर भी आपने ईश्वरीय ताकत को नहीं पहचाना |
अब प्रश्न उठता है कि आख़िर यह दिमागी ताकत होती क्या है | हमारा दिमाग़, शरीर के द्वारा की गयी हर क्रिया से होने वाली सम्भावना या प्रेडिक्शन के बारे में बताता है | यह हमारे द्वारा की गयी हर छोटी से छोटी क्रिया पर लागू होती है | जैसे आप रोटी तोड़ कर मुँह में डालते हैं तो आपके हाथ द्वारा की गयी क्रिया है | अब दिमाग़ आपको सम्भावना बताता है कि यह रोटी मुँह में पहुंचेगी या नहीं | यह बात बच्चे को देख कर समझी जा सकती है | बच्चे के दिमाग़ में यह क्रिया अंकित नहीं होती है | इसलिए उसके हाथ से तोड़ी गयी रोटी मुँह में जाने की बजाय कई बार इधर-उधर भी चली जाती है | बच्चे द्वारा बार-बार की गई यह क्रिया धीरे-धीरे दिमाग़ में अंकित हो जाती है और वह हमारे लिए आम बात हो जाती है |
आप कहीं छलांग लगाना चाहें तो आपका दिमाग़ पहले ही बता देता है कि सम्भावना क्या है अब आप उस पर चले या न चलें | दिमाग़ द्वारा लगाई गयी सम्भावना कई बार सही तो कई बार गलत साबित होती है | जो दिमाग़ द्वारा लगाई गयी सम्भावनाओं को समझ जाते हैं और आपने दिमाग़ को साध लेते हैं | वह कुछ अलग कर जाते हैं | जैसे आप जब क्रिकेट खेलते हैं तो सामने से आती हुई बाल की सम्भावना आपका दिमाग़ आपको बताता है | उसी सम्भावना पर आप बल्ले द्वारा प्रतिक्रिया करते हैं | यदि सम्भावना बिल्कुल ठीक हुई तो छक्का लगता है | काफी हद तक ठीक हुई तो रन मिलते हैं | काफी कम ठीक हुई तो बाल बल्ले के पास से निकल जाती है और यदि बिल्कुल गलत हुई तो आप आउट हो जाते हैं | जो इसे अपने दिमाग़ द्वारा साध लेता है वह तेंदुलकर जैसा प्रसिद्ध खिलाड़ी बन जाता है |
इसी बात पर मैं आज का विषय समाप्त करता हूँ | अगली बार हम अध्यात्म के साथ कुछ और विषयों पर भी चर्चा करेंगे | ‘धन्यवाद’ |”
अक्षित के भाषण खत्म करने पर कुछ समय तक तो हॉल में सन्नाटा रहा और फिर पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा | सब तालियाँ बजाते हुए खड़े हो कर अक्षित का स्वागत करते हैं |
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