AAO CHALE PARIVERTAN KI OR - PART-4 books and stories free download online pdf in Hindi

आओ चलें परिवर्तन कि ओर... - 4

कॉलेज के प्रधानाचार्य सभा को सम्बोधित करते हुए कहते हैं “मेरे सहयोगियों एवं मेरे प्रिय छात्रों, आज हम एक बार फिर धर्म और अध्यात्म(spirituality) जैसे गूढ़ विषय को समझने व उस पर चर्चा करने लिये एकत्रित हुए हैं | आज हमारे बीच श्री अक्षित जी आए हैं जो एक बहुत बड़ी कम्पनी में जनरल मैनेजर के पद पर कार्यरत हैं | यह धर्म और अध्यात्म को इस आधुनिक युग के अनुरूप ढाल कर एक नए ढंग से पेश करते आ रहे हैं | मुझे उम्मीद है कि आपको यह बोरिंग विषय आज बहुत रोचक लगेगा | तालियों से अक्षित जी का स्वागत करें|”

अक्षित तालियों की गूंज में अपनी जगह से उठ कर प्रधानाचार्य को नमस्कार कर, सभा को सम्बोधित करते हुए बोलता है “आदरणीय प्रधानाचार्य जी, सभी आचार्य एवं मेरे दोस्तों, मैं तहेदिल से आप सब का आभारी हूँ कि आपने मुझे धर्म और अध्यात्म जैसे गहन(deep) विषय पर चर्चा करने के लिए आमंत्रित किया | दोस्तों, मैं आपको सबसे पहले यह बताना चाहूँगा कि मैंने भी अपनी स्नातकोत्तर(post graduation) की पढ़ाई इसी कॉलेज से की है | धार्मिक और आध्यात्मिक विषय पर चर्चा की परम्परा मेरे समय से भी पहले से चली आ रही है | जब मैं आपकी उम्र का था तो मेरे लिए भी यह आधा-एक घंटा बहुत ही बोरिंग हुआ करता था और आज शायद आपके लिए भी है | आपकी यह सोच, आपके पुराने अनुभवों के कारण है लेकिन मुझे पूरा विश्वास है कि मेरा भाषण खत्म होने तक यह सोच अवश्य बदल जाएगी |

आज आपको कुछ बदला-बदला सा नहीं लग रहा, मैं गेरुए वस्त्र या कुर्ता पायजामा या फिर माथे पर कोई बहुत बड़ा टीका, गले में कई मालाएं व सारी उँगलियों में रत्न या नगीने जड़ित अंगूठियाँ पहने नहीं आया हूँ......|” पूरे हॉल में सुगबुगाहट शुरू हो जाती है, “क्यों सही बात है न, मैं तो आपकी ही तरह पेंट कमीज में हूँ और आपकी तरह ही दिखता हूँ | असल में पूछें तो, मैं आप में से ही एक हूँ और आपकी तरह ही सोचता हूँ बस थोड़े अलग अंदाज से |

आपको अपने कॉलेज की प्रबन्धक कमेटी का शुक्र गुज़ार होना चाहिए कि वह आपके भविष्य को एक नया आयाम या रास्ता दिखाना चाहते हैं....|” पूरे हॉल में हल्की-सी हंसी की आवाज़ आती है...., अक्षित मुस्कुराते हुए बोलता है “दोस्तों आपको मेरी बातें सुन कर हंसी आ रही है | कोई बात नहीं, हँसी आना अच्छा संकेत है लेकिन यह बात मैं अभी थोड़ी देर में साबित कर दूंगा |

आप लोग हमारे देश का भविष्य हैं और हर बड़े या बुजुर्ग का कर्तव्य है कि वह अपने युवा बच्चों को एक ऐसी दिशा दे जिससे कि उसका आने वाला समय अच्छा और खुशहाल हो और इसी सोच को लेकर आपका कॉलेज प्रशासन ऐसे भाषण का आयोजन करता है | अब इसमें कॉलेज प्रशासन का क्या दोष यदि आने वाले वक्ता अपना फर्ज़ सिर्फ़ किताबी भाषण तक ही सीमित रखे, लेकिन आज ऐसा नहीं होगा | आज हम किताबों से ऊपर उठ कर वास्तविक जीवन में धर्म, धार्मिक किताबों और अध्यात्म को देखने की कोशिश करेंगे |

सबसे पहले हम धर्म से शुरू करते हैं वैसे धर्म शब्द ही अपने आप में विवादास्पद है, क्योंकि जिसे हम धर्म का नाम देते हैं असल में वह धर्म है ही नहीं, खैर हम यहाँ किताबी शब्दों और प्रचलित गलत शब्दों और विवादों में न पड़ कर गहराई में जाने की कोशिश करते हैं और धर्म शब्द को धर्म की तरह ही लेते हुए आगे बढ़ते हैं |

आप सब ने सुना और पढ़ा होगा कि ईश्वर अजन्मा है, वह जन्म नहीं ले सकता | यह सब धर्म बताते हैं और सब धार्मिक किताबों में भी लिखा है लेकिन फिर भी हम इस पर ध्यान नहीं देते हैं | जिनकी हम सब पूजा करते हैं वह भगवान हैं | भगवान वह हैं जिन्हें ईश्वर चुनता है ईश्वरीय संदेश देने के लिए या वह हैं जिन्हें ईश्वर अपने दूत के रूप में ब्रह्मज्ञान की जानकारी देने के लिए व हमारे बीच फैले अज्ञान को दूर करने के लिए भेजते हैं | हम ईश्वर द्वारा भेजे गये दूत और उसकी जीवनी में ही खो गये हैं | उस दूत और उस संदेश को भेजने का तात्पर्य क्या था न हम जानने की कोशिश कर रहे हैं और न हम उसे खोज रहे हैं जिसने वह दूत और संदेश भेजा था ?

हर धर्म में कितना पैसा और श्रमशक्ति(manpower) सिर्फ़ उस दूत की पूजा और उसके कथावाचन पर खर्च हो रहा है | हर रोज़ एक नया कथावाचक बहुत तामझाम से उतरता है और लोगों को उस दूत यानी भगवान के एक नए रूप के बारे मेंट विस्तार पूर्वक बताता है कि उनकी आँखें कैसी थीं उनका रंग क्या था और क्यों था उन्होंने क्या कपड़े पहने थे और क्यों पहने थे इत्यादि..... | आप बताएं इससे होगा क्या ? हाँ जो ये कथावाचन कर रहे हैं उनका व्यापार अच्छा चल रहा है लेकिन आप अपने आसपास देखिए कि क्या कोई फर्क पड़ रहा है | सदियों से यह चल रहा है और उसके बावजूद भी नकारात्मक सोच(negativity) बढ़ती जा रही है |

आप सब जानते ही हैं कि हम अपनी ज़िन्दगी में किसी न किसी व्यक्ति, वस्तु, बात या घटना से जरूर प्रभावित हो, उससे डरने लगते हैं | हमारी इसी इंसानी फ़ितरत को इन धर्म और समाज के ठेकेदारों ने हमारी रोजमर्रा की ज़िन्दगी में इस तरह पिरो दिया है कि आज हम ज्यादातर कार्य दिल यानी श्रद्धा से कम और डर से ज्यादा कर रहे हैं | धर्म और समाज के ठेकेदार हमें डराते हैं कि हम पूजा-पाठ नहीं करेंगे तो भगवान् बुरा करेंगे, हम इस दिन ऐसा नहीं करेंगे तो हमारा बुरा होगा, हम प्रसाद ग्रहण नहीं करेंगे तो हमारा बुरा होगा, हम रोज धार्मिक स्थल नहीं जाएंगे तो हमारा बुरा होगा, हम धर्म पर नहीं चलेंगे तो हमारा बुरा होगा, हम झूठ बोलेंगे या गलत विचार रखेंगे तो हमारा बुरा होगा इत्यादि | सब में सिर्फ़ डर का घोल है और सोचिये जब हम यह घोल पी-पी कर बड़े होगें तो हमारा अच्छा कैसे हो सकता है.....?”

हॉल में चारों तरफ तालियाँ बजने लगती हैं | तालियों की आवाज़ सुन अक्षित चुप कर जाता है | इसी शोर के बीच एक छात्र अपनी सीट पर खड़ा हो कर ज़ोर से बोलता है “सर, सर मैं कुछ कहना.....|” उसकी आवाज़ सुनकर, सब छात्र उसकी ओर देखने लगते हैं और तालियों का स्वर मध्यम हो जाता है | अक्षित उसकी बात सुनकर हाथ से इशारा करता है कि जो बोलना है बोलो | वह छात्र अक्षित का इशारा समझ ज़ोर से बोलता हैं “सर पहली बार कोई हमारे मन की बात आपकी जगह से कह रहा है, अच्छा लगा....|” सब उसकी बात सुन कर और ज़ोर से तालियाँ बजाने लगते हैं |

अक्षित हाथ के इशारे से सबको शांत करते हुए बोलता है “दोस्तों, मैंने पहले ही कहा था, आज आपको अच्छा लगेगा, खैर आगे बढ़ते हैं | दोस्तों, आपने कभी गौर किया है कि वह धर्म जो हमें सच बोलने, हमें धर्म और कानून पर चलने की शिक्षा देता है, वह धर्म स्थल ही अनाधिकृत जमीन पर या फिर आगे-पीछे, दायें-बाएं अनाधिकृत सरकारी या फिर व्यक्तिगत जमीन कब्जा कर बना होता है | अब आप ही बताएं कि ऐसे धार्मिक स्थल में बैठे और उसे चलाने वाले धर्म के ठेकेदार हमें अच्छी शिक्षा कैसे दे सकते हैं?

आपने संस्कार और परम्परा या सभ्यता शब्द अपने माता-पिता, बड़े बुजुर्गों या इन धर्म और समाज के ठेकेदारों से बहुत बार सुने होंगे | मुझे विश्वास है कि आपने कभी इन पर न तो गौर किया होगा और न ही जानने की कोशिश की होगी कि आख़िर इनका मतलब है क्या ? आज मैं आपको बताता हूँ कि इनका व्यावहारिक अर्थ क्या है | लम्बे समय तक चलने वाला आपका व्यवहार या आदतें ही भविष्य में आपके संस्कार बन जाते हैं | आप इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि आपके माता-पिता यदि पूजा-पाठी हैं तो यह संस्कार आपको बचपन से मिलता है | हमारे परिवार या समाज के यह संस्कार ही पीढ़ी दर पीढ़ी चलने पर हमारी परम्परा या सभ्यता बन जाते हैं | परम्परा परिवार के लिए और सभ्यता शब्द का प्रयोग समाज के लिए किया जाता है | यही कारण है कि हमारे बुजुर्ग कहते हैं, अपनी आज की आदतें सुधारो क्योंकि कल यह ही हमारे संस्कार बनेगे |

यह बात दूसरी है कि समाज और धर्म के ठेकेदार इन शब्दों का नाजायज़ फ़ायदा उठाते हैं और इन शब्दों का गलत प्रयोग कर हमे भड़काते हैं कि दूसरे धर्म वाले हमारे धर्म में पूजनीय भगवान्, गुरु या स्थल का अपमान कर रहे हैं | हमारे धर्म की पूजनीय किताब या वस्तु को फाड़ या जला रहे हैं | हमारे पूजनीय पेड़ या पशु को काटा या मारा जा रहा है |

बस यह बात सुन कर हम उठा लेते हैं हथियार और दंगा-फसाद कर कुछ को मौत के घाट पहुँचा देते हैं | उन्होंने लिखा, बोला या पशु को मारा और आपने क्या किया ? आपने उस इंसान या धर्म के लोगों को शारीरिक चोट पहुंचाई या फिर मार ही दिया, बिना जाने कि वह दोषी भी हैं या नहीं | आपने कभी सोचा है कि ऐसा हम से क्यों करवाया जा रहा है और क्यों हम कर रहे हैं | इसके बारे में विस्तार से मैं अगली बार बताऊंगा इस बार सिर्फ़ इतना ही कहूँगा कि ऐसा सिर्फ़ इसलिए हो रहा है कि हम भौतिकवादी (MATERIALISTIC) हो गये हैं | जो भी बातें मैंने अभी बताईं वह सब सामग्री(material) या चीज हैं जैसे धार्मिक स्थल, मूर्ति, किताब, पशु इत्यादि और ईश्वर material नहीं परम आत्मा है |

यदि हमारे संस्कार और हमारी सभ्यता या परम्परा की जड़े मजबूत हैं तो किसी के कुछ भी करने पर वह जड़े नहीं हिल सकतीं क्योंकि छोटे-मोटे आंधी तूफ़ान से मजबूत पेड़ कभी गिरा नहीं करते | हर धर्म और समाज संयम बरतने को कहता है | अतः संयम बरतें और कट्टरपंथी विचार धारा पर चलने वाले इन धर्म और समाज के ठेकेदारों के भड़कावे में न आएं |

ये सब धर्मों और समाज में हो रहा है | हम ऐसा होने दे रहे हैं सिर्फ़ तभी हो रहा है | वरना जैसे मैंने पहले भी कहा है कि धर्म और समाज बुरा नहीं है सिर्फ़ उसके ठेकेदार बुरे हैं और हम उन्हें ऐसा करने दे रहे हैं वह गलत है”, पूरे हॉल में सुगबुगाहट शुरू हो जाती है | अक्षित कुछ क्षण के लिए चुप करने के बाद हँसते हुए बोलता है “क्यों, सही बात है न ? चलिए अब आगे बढ़ते हैं और अब मैं आपको धर्म के बारे में एक अलग ढ़ंग से समझता हूँ |

बचपन में आपका सम्पर्क सब से पहले और सबसे ज्यादा अपनी माँ से होता है | आपको अपनी माँ पर धीरे-धीरे पूर्णतः विश्वास हो जाता है कि वह ही आपकी हर जरूरत को पूरा करेगी और वह करती भी है | वह आपको रोता देख, भूखा या डरा देख, सीने से लगा लेती है और आपको भी उसके सीने से लगना व उसके आँचल में बैठना अच्छा लगता है | जैसे-जैसे आप बड़े होने लगते हैं, आपको समझ आने लगती है | तब आप माँ के आंचल से निकल, बाहर की दुनिया में विचरण(wander) करने लगते हो | अब आपकी माँ, आपको कितना भी डराए-धमकाए फिर भी आप सब कुछ स्वयं अनुभव करना चाहते हो | जो माँ, अपने बच्चे को ऐसे समय में भी अपने आँचल से बांधे रखती है उसका बच्चा समझदार और परिपक्व(mature) होने में समय लगाता है या फिर वह सारी ज़िन्दगी परिपक्व हो ही नहीं पाता है | जो माँ, इसके विपरीत करती है, उसका बच्चा जल्दी ही परिपक्व हो जाता है |

बचपन में हमारी माँ का जो धर्म होता है वही हम भी अपना लेते हैं | अगर हम ध्यान से देखें तो हमारा धर्म हमारी माँ है क्योंकि हमारा धर्म व धार्मिक किताबें, माँ की तरह ही हमें वह सब बातें, अनुभव और ज्ञान देते हैं जो हमारे लिए जरूरी है | धर्म हमें ईश्वर के होने के बारे में बताता है | हमारे अंदर आस्था और विश्वास जगाता है | हमें यह सिखाता है कि किसी भी कार्य को निष्पक्ष और बिना लालच के करना चाहिए | यह सब ठीक उसी प्रकार होता है जैसे कि हमारी माँ हमारे साथ बिना किसी लालच और निष्पक्ष भाव से प्यार व दुलार करती है | हम उम्र या फिर पैसे से कितने भी बड़े हो जाएँ माँ को उतनी ही इज्जत देते व प्यार करते हैं क्योंकि वह ही हमारी पहली अध्यापक है |

धरती में बीज डालो तो हवा, पानी, धरती मिलकर उसे पौधे में परिवर्तित कर देते हैं | ऐसे ही यदि ईश्वर की खोज रूपी बीज को सब धर्म मिलकर प्यार, सोच और समझ से सींचे तो ईश्वर के दर्शन रूपी पौधे में अवश्य परिवर्तित कर पाएंगे | यह सब करने के लिए धर्मों को एक होने की आवश्यकता नहीं है, हर धर्म को अपने नियमों के हिसाब से ही चलना चाहिए | सब धर्म आत्मसात हो कर भी अलग चल सकते हैं, ठीक वैसे, जैसे माँ, माँ ही होती चाहे अपनी हो या फिर दूसरे की हो और दूसरे की माँ के साथ चल कर भी आप अपनी माँ के साथ रह सकते हैं |

हमने लगभग हर क्षेत्र में ख़ोज की है | हजारों आविष्कार किए और आज हम उस जगह खड़े हैं जहाँ रोज नए से नए बदलाव आ रहे हैं | आज हम पूर्णतः कंप्यूटर युग में आ चुके है जहाँ अब हम शायद सोच भी नहीं सकते कि यदि अचानक हमारे बीच से कंप्यूटर निकल जाए तो हमारा क्या होगा |

आज हमें जिस किसी चीज की आवशयकता पड़ती है, तो हम सबसे पहले यह देखते हैं कि वह आज के मुताबिक है या कि नहीं | हम हमेशा चाहे फ़ोन, किताब, कपड़े, दवाई हो या कुछ और लेटेस्ट ही लेना चाहते हैं | आख़िर क्यों ? क्योंकि हम उन सब सुख-सुविधाओं और तकनीक का फायदा ले सकें जो आज मार्किट में उपलब्ध(available) हैं | लेकिन जब धर्म या भगवान की बात आती है तो हम सैकड़ों साल पहले के उदाहरण बार-बार देते है, आख़िर क्यों? क्यों, हम इस विषय में अपने आप को बदलना नहीं चाहते हैं | लेकिन अब समय आ गया है, हमें अपनी सोच को बदलना ही होगा | हमें अब परिवर्तन की ओर कदम बढ़ाना ही होगा और वह परिवर्तन सोच का परिवर्तन है | हम यदि इस विषय में अपने आपको बदल लेंगे तो इस देश में या विश्व में धर्म के कारण या धर्म के लिए जो भी लड़ाई-झगड़े हो रहे हैं उन्हें रोक कर मानवता व शांति को वापिस कायम कर पाएंगे | सोचिये यदि ऐसा हो जाए तो इस संसार में होने वाले लड़ाई-झगड़े तीन चौथाई खत्म हो जाएंगे|

आप सब नवयुवक हमारा भविष्य हैं अतः मेरी आप सब से यह अनुरोध है कि आप मेरी कही इन बातों पर गौर करिए और अपने चारों तरफ फैले इस अलगाववादी वातावरण को पहचानिए | यह सिर्फ़ धार्मिक कट्टरपंथ की देन है | आगे ऐसा और चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब हम सब अपने आप को आपसी लड़ाई से ही समाप्त कर लेंगे | यही समय है हम सबका एकजुट हो कर बुराई से लड़ने का |

समय आ चुका है परिवर्तन का, अब हमें चलना ही होगा परिवर्तन की ओर | हमें अपने धर्म और समाज से ऊपर उठ कर इंसानियत और प्यार को बढ़ावा देना ही होगा | अब मेरे साथ मिल कर बोलिए... |” हॉल में बैठे सब लोग उठकर खड़े हो जाते हैं, उन्हें देख अक्षित बोलता है “बोलिए, हम नवयुवक एक जुट होकर परिवर्तन की ओर चलते हुए बदलेंगे इस बीमार सोच को और अब नहीं होने देंगे धर्म के नाम पर मारकाट, करेंगे सब धर्मों का सम्मान |” सब अक्षित के साथ सुर से सुर मिलाकर बोलते हैं और फिर सारा हॉल करतल ध्वनि से गूंज उठता है |

अक्षित सबको हाथ जोड़ कर नमस्कार कर बोलता है “आप सब ने जो जोश और समझदारी दिखाई है मैं उसे शब्दों में बयाँ नहीं कर सकता | मेरी आवाज़ के साथ अपनी आवाज़ मिलाने और इस आवाज़ को हमारी आवाज़ बनाने के लिए आप सब का बहुत-बहुत धन्यवाद |” कह कर अक्षित मंच पर से जैसे ही नीचे उतरने की कोशिश करता है तो सब छात्र व अन्य लोग अपनी जगह से उठकर खड़े हो जाते हैं और ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगते है “सर, सर......|”

दो-तीन छात्र जल्दी से मंच पर चढ़ कर आ जाते हैं और हाथ के इशारे से सबको चुप करने को कहते हैं और उन में से एक छात्र अक्षित के पास आकर बोलता है “सर, पहली बार हमने धर्म को समझा है | सर यह मेरे नहीं, हम सबके विचार हैं कि आज तक हम धर्म और अपने परिवार और अपने परिवार की परम्परा का मज़ाक ही बनाते आए हैं | पहली बार हमें आपने वो समझाया है जो हम शायद कभी समझ ही न पाते | अतः हम सबकी तरफ से, मैं अनुरोध करना चाहूँगा कि आप हमें कुछ और ज्ञान दें | क्यों दोस्तों, मैं ठीक कह रहा हूँ....|” पूरा हॉल “यस सर |” की आवाज़ से गूंज उठता है |

अक्षित वापिस मंच पर आकर बोलता है “दोस्तों, मैं सपने में भी ऐसा नज़ारा देखने की उम्मीद नहीं कर सकता था | मेरे विचारों को आपने जो प्यार और सम्मान दिया हैं, मैं तहेदिल से आप सब का शुक्रगुजार हूँ | मुझे यह और भी अच्छा इसलिए लग रहा है क्योंकि यह सम्मान मुझे उस कॉलेज से मिल रहा है, जहाँ का मैं छात्र रह चुका हूँ | कृपया आप सब बैठ जाइए, मुझे आपका यह अनुरोध स्वीकार है |” अक्षित की यह बात सुनकर सब अपनी जगह पर बैठ जाते हैं |

अक्षित मुस्कुराते हुए बोलता है “दोस्तों आप बोर होकर भी खुश हैं तो आइये आज हम इन फैले आडम्बरों से बाहर निकल कर सबसे पहले अपने शरीर और दिमाग़ का निरीक्षण करते हैं | साइंस हमे भी जानवर ही मानती है और वह सच भी है क्योंकि हम अपने आप को पहचाने बिना जानवरों जैसा ही व्यवहार करते हैं या कर रहे हैं | हम इंसानों को सब कुछ बताया या समझाया जाता है वरना हम जानवर हैं | लाखों में से कोई एक बचपन से ही बिना बताए या समझाए सब से अलग व्यवहार करता या बिना पढ़े ज्ञान देता है वह ही ईश्वर का दूत कहलाता है |

हमें बचपन से बताया जाता है यह अच्छा, यह बुरा है, यह दुःख है और यह सुख है और पूरी ज़िन्दगी हम उसी दी गई शिक्षा के सहारे चलते हैं और अपना कुछ भी दिमाग़ नहीं लगाते | जैसे यह गाली है और दूसरे द्वारा दी गयी गाली पर हमें गुस्सा करना है, तभी तो हम करते हैं वरना दूसरी भाषा में दी गयी गाली पर हम अपना गुस्सा क्यों नहीं दिखाते क्योंकि वह हमें समझ नहीं आती तो इसका मतलब साफ़ है गाली हमें बताई गई है वरना वह हमारे लिए एक साधारण सा शब्द है | इसी तरह हमें गम और ख़ुशी के बारे में बताया गया है या हमने दूसरों को उस पर अपनी प्रतिक्रिया(reaction) करते देखा है वरना हम ख़ुशी पर गम और गम पर ख़ुशी जाहिर करते | अब बहुत हो चुका, कुछ खुद भी सोचो और करो सब सिखाये-पढ़ाये पर ही मत चलो कुछ पढ़े-लिखों जैसा व्यवहार करो |

यह सब व्यवहार हमें सिखाये व पढ़ाए जाते हैं और इन सब के बारे में हमारे पूर्वजों को पता था और इसलिए उन्होंने इस पर पूरा शोध भी किया था | उन्होंने दो व्यवहार का ख़ास जिक्र किया एक था कर्म यानि की क्रिया(action) और दूसरा था प्यार, इन दोनों पर किसी भाषा, देश, धर्म का कोई प्रभाव नहीं है | हम हर परिस्थिति में इनको समझ जाते हैं | गीता में और लगभग हर धर्म और हर धार्मिक किताब में इनका विशेष स्थान है, अतः इन्हें पहचानो और इन पर चलो बाकी सब अपने आप ही हो जाएगा |

अब मैं आपको थोड़ा योग के बारे में बताता हूँ और यह बताता हूँ कि कैसे हम योग को व्यावहारिक(practical) बना कर रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में प्रयोग कर सकते हैं | यहाँ हम सन्दर्भ में कुछ तो कर्म योग, भक्ति योग और शारीरिक योग की बात करेंगे लेकिन सिर्फ़ उतनी, जितनी आपके लिए ज़रूरी है |

हमारे आज के जीवन में और हजारों साल पहले के जीवन शैली में काफी अंतर अवश्य आ गया है लेकिन हमारे पूर्वजों द्वारा किए गए शारीरिक अध्ययन(study) पर इसका कोई प्रभाव नहीं है | हमारे पूर्वजों ने जैसा शरीर का अध्ययन किया था लगभग वैसा ही आज की मेडिकल साइंस ने किया है | तब और अब की खोज में सिर्फ़ इतना फर्क है कि आज की साइंस बीमारी को ठीक करने के लिए है और तब की साइंस बीमारी न होने देने के लिए बनाई गयी थी | आजकल आपने देखा ही है कि शारीरिक योग से आप कितनी बीमारीयाँ ठीक कर सकते हैं और कितनी बीमारीयाँ योग से होंगी ही नहीं और यह आज की मेडिकल साइंस मानती भी है |

शारीरिक योग से भी अधिक महत्वपूर्ण है, दिमागी या आत्मिक योग और वह शारीरिक योग से शुरू होता है और भक्ति योग से होते हुए दिमागी या आत्मिक (spiritual/metal/psychic) या आध्यत्मिक (spiritual/ metaphysical) योग पर खत्म होता है | आप सोच रहे होंगे यह योग तो आपने कभी सुना नहीं, नहीं सुना तो कोई बात नहीं आज सुनिए |

वह व्यक्ति जो अच्छा, सच्चा, कर्मठ और धार्मिक है और प्रकृति या ईश्वर से प्यार करता है उसे सबसे पहले अपने शरीर से प्यार करना चाहिए | यह शरीर ईश्वर का दिया सबसे बड़ा तोहफा है | यदि आप स्वस्थ होंगे तो ही कुछ कर पाएंगे | इस शरीर की सुन्दरता और यह जवानी कायम रखने के लिए आपको व्यायाम या शारीरिक योग कम से कम 15 मिनट रोज अवश्य करना चाहिए | यदि आप अपने लिए समय नहीं निकाल सकते हैं तो आपको जीने का कोई हक नहीं है | इस स्वस्थ शरीर के साथ ही आप जीवन का ‘आनन्द’ ले सकते हैं |

आनन्द वह शब्द हैं जिसके लिए हम अपना पूरा जीवन अर्पित कर देते हैं | वह मिलता भी है और खो भी जाता है, फिर मिलता और फिर हाथ से फिसल जाता है लेकिन हम यह सोच नहीं पाते हैं कि ऐसा होता क्यों है | मैं आपको आज बताता हूँ कि ऐसा क्यों होता है|

आप सब ने अभी तक के जीवन में बहुत बार ऐसा अनुभव किया होगा कि जो आनन्द आपको किसी भी व्यवहार या कार्य को शुरू करते समय या शुरूआती दिनों में होता है वह लगातार करते रहने पर खो जाता है | उदाहरण के लिए जो सिगरेट या शराब पीते हैं वह याद करें कि शुरूआती दिनों में लिए गए वह पहले कुछ कश या पेग कितना आनन्द देते थे, फिर कुछ दिन बाद एक पूरी सिगरेट में भी वह आनन्द नहीं आता था तब दिन में दो-तीन, फिर चार और आज पूरी डिब्बी पीने के बाद भी आनन्द का अनुभव नहीं होता है | अतः हम कह सकते हैं कि आनन्द के लिए शुरू किया गया व्यवहार या कार्य आनन्द लेते-लेते कब हमारी आदत में परिवर्तित(changed) हो जाता है हमें पता भी नहीं लगता है |

यहाँ यह साबित होता है कि इन सब चीजों में आनन्द नहीं है और ‘परमानन्द’ तो हो ही नहीं सकता | ‘परमानन्द’(bliss) वह आनन्द है जो कभी खत्म नहीं होता इसलिए वह ईश्वर के लिए ही प्रयोग किया जाता है | मेरा मानना है वह ईश्वर के अलावा भी प्रयोग किया जा सकता है क्योंकि जहाँ भी हम लगातार आनन्द प्राप्त करना चाहते हैं वह आनन्द ‘परमानन्द’ बन जाता है | जैसे यदि आप पहले कहे गये व्यवहार व कार्य संयम से करते तो यह आनन्द बना रहता लेकिन इसके लिए आपको कर्म योग और भक्ति योग के हिसाब से ही चलना होगा |

न्यूटन(Newton) का गति के सिद्धांत(law of motion) का पहला सिद्धांत कहता है कि हर क्रिया के बराबर की प्रतिक्रिया होती है | दूसरे सिद्धांत के अनुसार किसी क्रिया को यदि रोका नहीं जाता है तो वह होती ही रहती है और वह क्रिया तभी रूकती है जब उसे रोका जाता है |

अब आप याद करें कर्म योग, वह भी कहता है कि हर कर्म यानी क्रिया की प्रतिक्रिया होती है | इसलिए हर क्रिया अच्छी होनी चाहिए तभी तो प्रतिक्रिया अच्छी होगी चाहे वह आज हो या कल | वह प्रतिक्रिया यदि आपके साथ नहीं होगी तो किसी न किसी के साथ तो अवश्य होगी | आप इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि आज हमारे द्वारा किए गए प्रदूषण(pollution) का कुप्रभाव हमारे आने वाले बच्चे झेलेंगे |

न्यूटन के दूसरे सिद्धांत को श्री कृष्ण ने युद्ध के मैदान में अर्जुन से कहा कि आप धनुष उठाओ और युद्ध शुरू करो, वरना वह होता ही रहेगा यानी बुराई जिसको खत्म करने के लिए आप इस युद्ध भूमि में आये हैं | इसी तरह आप न्यूटन का तीसरा सिद्धांत भी कर्मयोग में खोज सकते हैं | मेरा इन सब बातों का कहने का मतलब सिर्फ़ इतना है कि हमारे पूर्वज सब जानते थे और बहुत पहले ही खोज चुके थे लेकिन उसे बार-बार दोहराने से कोई फायदा नहीं, बस उस सब को आज के माहौल में ढालो और फिर देखो आप सारे विश्व से आगे हो जाएंगे |

आप सब का इस कॉलेज में दाखिला(admission) हुआ है तो यह साफ़ है कि आप बहुत ही प्रतिभाशाली(brilliant) हैं | आपका प्रतिभाशाली होना यह बताता है कि आप कर्म, कर्म योग के हिसाब से ही कर रहें हैं तभी तो आप के परीक्षा में इतने अच्छे नंबर आते हैं | बस आपको यह योग अपने जीवन के हर कार्य को करते हुए करना है फिर देखिये आप और भी सफलता को प्राप्त करेंगे | आपको बस इतना सा ध्यान रखना है कि जीवन में कभी भी असफलता मिलती है तो हताश नहीं होना, बल्कि और डट कर कार्य करना है | आप तो कर्म योगी हैं, आपको फल की इच्छा नहीं है और फल तो हर हालत में अपने आप मिलेगा बस समय का चक्र है आज नहीं तो कल |

भक्ति योग का सबसे बड़ा उदाहरण आपके घर में ही है और वह है आपकी माँ | वह अपने बच्चे से निष्पक्ष भाव से बिना लालच, बिना किसी उम्मीद से प्यार करती है | बच्चा कितना भी बड़ा हो जाए, वह बच्चा कैसा भी व्यवहार करे लेकिन माँ के प्यार में कोई परिवर्तन नहीं आता | आप सब तो कर्म योगी हैं ही, तो यह निश्चित है कि आप भक्ति योगी भी अवश्य हैं | आपको यह प्यार बस अपने जीवन के हर रिश्ते और हर पहलू से करना है और फिर इस समाज से राष्ट्र, राष्ट्र से संसार में परिवर्तन का ऐसा दौर आएगा कि हम सब कह उठेंगे कि यह धरती ही स्वर्ग है | मेरा मानना है कि आप ऐसा कर सकते हैं और एक दिन ऐसा होगा जरूर | मैं यहाँ एक बात और कहना चाहता हूँ कि भक्ति योग या भक्ति शब्द का प्रयोग ईश्वर, धार्मिक ग्रंथ, धार्मिक स्थल से जोड़ा जाता है | जबकि आप उनसे प्यार या भक्ति करें या न करें लेकिन सजीव या जीवित से जरूर करें चाहे वह प्रकृति हो, जानवर हो या फिर इंसान क्योंकि जिसमें भी जीवन है उसमें ईश्वर भी है |

अब यहाँ मैं अपनी वाणी को विराम देता हूँ और आशा करता हूँ कि आपको मेरी बातें पसंद आई होंगी | क्यों ठीक है न” हॉल में एक सुर से सब कहते हैं “अच्छा लगा सर |” अक्षित मुस्कुराते हुए कहता है “अगली बार मैं आपको योग के बारे में बताऊंगा कि कैसे हमें उसे व्यावहारिक रूप में लेना चाहिए और अपने पूर्वजो के शोध का फायदा उठाना चाहिए |” हॉल में बैठे सब अध्यापक व छात्र करतल ध्वनि करते हुए अपनी जगह पर खड़े हो जाते हैं |

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