आओ चलें परिवर्तन की ओर... - 11 Anil Sainger द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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आओ चलें परिवर्तन की ओर... - 11

“जी सर, आपने बुलाया?” रिसेप्शनिस्ट ने अक्षित के कमरे का दरवाज़ा खोल कर पूछा |

अक्षित कैंडिडेट्स के बायो-डाटा पलटते हुए बोला “हाँ, कोई और उम्मीदवार तो नहीं है ?”

“नहीं सर, लेकिन एक औरत आई है और वह कह रही है कि उसकी एक दोस्त है जोकि इस सहायक प्रबन्धक(Assistant Manager) की नियुक्ति के लिए बिल्कुल उपयुक्त है |”

“क्या उसने पहले आवेदन किया था |”

“नहीं, सर |”

“फिर कोई फायदा नहीं |”

“मैंने बोला था, सर |”

“तुमने कहा नहीं कि हमारे यहाँ ऐसा नहीं होता |”

“जी सर, मैंने उन्हें बहुत समझाया | लेकिन वह मान ही नही रही हैं और वह आपसे मिलना चाहती हैं |”

“यह क्या बात हुई | मना कर दीजिये |”

“लेकिन सर.....?”

मैं गुस्से भरे भाव से बोलता हूँ “क्या...?”

“सर वह बहुत ज़िद्द कर रही हैं | कृपया बात तो कर लीजिए |”

“फिर वही बात, मना कर दिया न, आप जाइए |”

वह कुछ अनमने ढंग से बाहर चली जाती है | मैं अपना लैपटॉप निकालने के लिए कुर्सी घुमाकर पीछे पड़े बैग की तरफ अभी झुकता ही हूँ कि दरवाज़ा ज़ोर से खुलता है | रिसेप्शनिस्ट यह कहते हुए अंदर घुसती है “सर, मैंने इन्हें मना किया था और ये फिर भी अन्दर चली आई हैं |”

मैं बिना देखे ही झुके-झुके बोलता हूँ “सुरक्षा कर्मी को बुलाइए | ऐसे थोड़े ही होता है |"

वह औरत बिना मेरी शक्ल देखे बोलती है “सर, आप एक बार मेरी बात तो सुन लीजिए |”

मैं लैपटॉप निकाल कर बैग बन्द करता हूँ और कुर्सी घुमाकर लैपटॉप अपनी मेज़ पर रखते हुए कहता हूँ “आप पागल हैं क्या? जो ऐसी जिद.......|” मैं सामने खड़ी औरत को देख कर दंग रह जाता हूँ और शब्द मुँह के मुँह में ही रह जाते हैं |

मुझ पर नज़र पड़ते ही उस औरत का पर्स उसके हाथ से गिर जाता है और दोनों एक साथ बोलते हैं “आप......!”

आज लगभग पन्द्रह साल के अंतराल के बाद पूनम मेरे सामने खड़ी थी | वह अपनी उम्र से कुछ ज्यादा ही ढल चुकी थी | उसके चेहरे पर वह पहले जैसी चमक नहीं थी | रंग भी शायद वक्त के थपेड़ों ने हल्का सा सांवला कर दिया था | वह कमसिन सी लड़की आज एक हृष्ट-पुष्ट औरत में तब्दील हो चुकी थी |

हम दोनों का ध्यान एक दूसरे को देखते हुए तब टूटा जब मेरी रिसेप्शनिस्ट ने बोला “सर”

“ठीक है तुम जाओ और केशव को बोलना कि वह कुछ ठंडा लाएगा |” यह सुन कर वह दरवाज़ा बंद कर चली गई |

पूनम अभी भी वहीं की वहीं खड़ी थी | उसे देखकर मैं कुछ सकपकाते हुए बोला “क्या हुआ?”

“कुछ नहीं?” उसने जैसे होश में आते हुए बोला और जमीन पर गिरा अपना पर्स उठा कर वह मेरे सामने हिचकिचाते और कांपते हाथों से कुर्सी खींच कर बैठ गई|

कुछ देर हम दोनों एक दूसरे को देखते रहे | वह ही खमोशी तोड़ते हुए बोली “आपने तो बहुत तरक्की कर ली |”

“हाँ, बस यह सब तो ऊपर वाले की मेहरबानी है | आप सुनाइए, आजकल कहाँ रह रही हैं और क्या कर रही हैं |”

“मैं यहीं गुड़गाँव के एक अस्पताल में नर्स का काम कर रही हूँ |”

“नर्स ! तुम नर्स कैसे बन गई ?”

“वक्त ने बना दिया |”

“अच्छा !”

“तुम कुछ अपने बारे में बताओ |”

“मेरे पास ऐसा कुछ नहीं है बताने को |”

“मैं तुमसे कुछ पूछना चाहती हूँ |”

“बोलो |”

“तुम कॉलेज खत्म होने के बाद अपने परिवार समेत कहाँ भाग गये थे |”

“तुम्हें कैसे पता ?”

“वो छोड़ो, जो मैं पूछ रही हूँ, वह बताओ | मैंने तुम्हारा बहुत इन्तजार किया | लेकिन जब तुम वापिस नहीं आये तो मैंने अपने को वक्त के हालात पर छोड़ दिया | देखो तुम मिले भी तो कब और कैसे हालात में |”

“क्यों ? हालात को क्या हो गया |”

वह कुछ दुःख भरी आवाज़ में बोली “अभी पता चल जाएगा |”

मैंने हैरान होते हुए बोला “क्या बात है | तुम कुछ छुपा रही हो |”

“मैं उस समय तुमसे मिलना चाहती थी और यह कहना चाहती थी कि जो भी कुछ मैंने किया वो मेरी मजबूरी थी | लेकिन देखो, मुझे वक्त ने यह मौका ही नहीं दिया |” कह कर वह अपने आँसू पोंछते हुए भर्राई आवाज़ में बोली “उस दिन के लिए sorry” कह कर वह अपने आप को रोकने के बावजूद रो पड़ी |

“प्लीज, आप छोड़िये न इतनी पुरानी बात को और प्लीज ऐसे मत रोइए |”

वह अपने आप को नियंत्रित करते हुए बोली “प्लीज, आज मत रोकिये | कब से इस दिन का इन्तजार कर रही थी |” कह कर वह फिर से रोने लगी | मुझसे उसकी वह हालत देखी नहीं जा रही थी | लेकिन मैं कुछ कर भी नहीं सकता था | बस उसके चुप होने के इन्तजार के अलावा मेरे पास कुछ चारा भी तो नहीं था |

उसने अपने पर्स से रुमाल निकाला और अपना चेहरा साफ़ करते हुए बोली “आपने क्या सोचा था उस समय |”

“कुछ नहीं, मुझे भी यही लगा था कि जरूर आपकी कोई मजबूरी होगी | प्लीज अब इन बातों को छोड़िए |” मैंने बात बदलते हुए बोला “तुम यहाँ गुड़गाँव में ही रहती हो, चलिए मिलते रहेंगे | अरे हाँ ! तुम आई कैसे थीं|”

“मेरी एक दोस्त है, वह आपसे मिलना चाहती है |’

“तो बुलाइए न |”

वह बहुत ही अनमने ढंग से उठी | उसके उठने से ऐसा लग रहा था कि वह अभी मुझे छोड़ कर जाना नहीं चाहती थी |

वह वापिस एक औरत को लेकर कमरे में आई और वह दोनों मेरे सामने कुर्सी पर आ कर बैठ गईं | उसकी दोस्त को देख कर मैं मुस्कुराते हुए बोला “ये हैं तुम्हारी दोस्त और ये यहाँ पर मेरे साथ काम करना चाहती हैं|”

पूनम बोली “हाँ, यह आपके साथ रह कर काम करने की बहुत इच्छुक हैं | इनका मानना है कि यह आपको और आप इनको बहुत पसंद करेंगे |”

उस औरत को देख कर मेरी हंसी रुक ही नहीं रही थी | बड़ी मुश्किल से अपनी हंसी पर काबू पाते हुए मैंने कहा “यह सहायक प्रबन्धक बिक्री के पद पर कैसे काम कर सकती हैं | इन्होंने तो इतना लम्बा गाँव की औरतों जैसा घूंघट ओढ़ रखा है|”

वह औरत घूँघट के अंदर से ही बोली “आप चाहेंगे तो सब कुछ हो सकता है |”

“मैडम मेरे चाहने से क्या होता है | आपकी इस पद के लिए उचित शिक्षा और अनुभव होने के साथ-साथ व्यक्तित्व भी तो होना चाहिए | कम्पनी की कोई नीति होती है | यह मेरे घर की कम्पनी थोड़े ही है | आप इनके साथ आई हैं तो मैं इतनी बात भी कर रहा हूँ वरना बिना आवेदन दिए हम किसी से बात नहीं करते |”

“आवेदन का मेरे पास समय नहीं था और मेरे पास वह सब है जो आपको चाहिए|”

“चलिए मैं चाहता हूँ कि आप घूंघट उठा दीजिये तो क्या आप उठा देंगी |”

“हाँ, मैं उठा तो दूंगी पर सोच लीजिए उसके बाद आपका क्या होगा|”

“अगर आपको अपने पर इतना विशवास है तो इन्तजार किस लिए कर रही हैं |” कह कर मैंने पूनम को देखते हुए बोला “मैडम आप किसे लाई हैं |”

“आप इनको छोड़िये मेरे से बात करिए | मेरा कहना है कि यदि मैंने घूंघट उतार दिया तो क्या आप मुझे रख लेंगे |”

उस औरत की बात सुन कर अब मुझे कुछ गड़बड़ लग रही थी | मैंने घबराते हुए बोला “ठीक है उतारिये |’

उसके घूंघट उतारते ही, उस औरत को देख मैं पूरी तरह से सुन्न हो गया | कुछ देर तो मुझे कुछ सूझा ही नहीं और मेरी यह हालत देख कर सोनिया खुद ही बोली “क्या हुआ GM साहिब, सारे तोते उड़ गये न, मैं पहले ही कह रही थी |”

“तु.....तुम और यहाँ !”

“जी | मुझे तुम्हारे बारे में सब कुछ पता है, समझे साहिब |”

हम दोनों को इस तरह बात करते देख पूनम उठ कर खड़ी हो गई और बोली “आप दोनों बैठ कर बातें करिए, मैं चलती हूँ|”

हम दोनों के काफी रोकने के बावजूद भी वह चली गई | उसके जाते ही सोनिया बोली “यह मेरे ही विभाग में काम करती है | बहुत ही अच्छी औरत है | हमारी काफी पहले से अच्छी दोस्ती है लेकिन आप इसे कैसे जानते हैं ?”

“हमने तीन साल कॉलेज में एक साथ गुजारे हैं | आज वह मुझे इतने साल के बाद मिली...|”

“बस और कुछ कहने की जरूरत नहीं | वह जैसे यहाँ से गई है वही बताता है कि उस समय आप लोगों की आपस में काफी बनती होगी | क्यों?”

“अच्छा अब औरतों वाली बातें छोड़िये और यह बताइए आपको यहाँ मेरे ऑफिस में यह ड्रामा करते हुए अच्छा लगा | लोग क्या सोचेंगे?”

“सब अच्छा ही सोचेंगे |”

“कैसे?”

“मैंने रिसेप्शन पर बता दिया कि तुम मेरे दोस्त हो |”

“क्यों?”

“तुमने मेरे साथ तब अच्छा किया था जो मैं तुम्हारे साथ अच्छा करूँ|”

“ये तो गलत बात है |”

“होती रहे |”

उस समय उसका भाव देख, आख़िर मुझे हथियार डालने पड़े | मैं बात बदलते हुए बोला “ठीक है अब तो सब बराबर |”

“GM साहिब, अभी कहाँ बराबर | अभी तो मैं मिली हूँ | आगे-आगे देखिए | इतने दिन मेरा दिमाग़ ख़राब रखा उसके चुन-चुन कर बदले लूंगी |”

“तुम्हारे लक्षण कुछ ठीक नहीं लग रहे हैं | इससे पहले तुम ऑफिस में कोई और ड्रामा करो | चलो बाहर चलते हैं |”

“इतनी देर में याद आई |”

इससे पहले की वह कुछ और बोलती मैंने अपने बैग में सारा सामान रखा और उसे मुस्कुराते हुए कहा “चलिए....|”

*

गाड़ी में बैठकर आफिस से अभी कुछ दूर ही निकले थे कि सोनिया ने इशारा कर मुझे गाड़ी सड़क के किनारे रोकने को कहा | गाड़ी सड़क किनारे रोकते हुए मैंने उसे प्रश्न भरी निगाहों से देखा तो वह ज़ोर-ज़ोर से रोते हुए मुझ से लिपट कर बार-बार मेरी पीठ पर मुक्के मारते हुए बोली “आप को शर्म नहीं आती | आपने एक बार भी मुझे ढूंढ़ने की कोशिश नहीं की | इसलिए दोस्ती की थी आपने |”

मैंने हँसते हुए कहा “मैडम कोशिश तो मैंने भी की थी | लेकिन आपने अपने पीछे के सारे निशान ही मिटा दिए थे और मैं ठहरा शरीफ आदमी, मैंने नहीं मिटाए तभी तो आप मुझ तक पहुँच सकीं | अब चलाऊं गाड़ी या कुछ मेरी और पिटाई करनी है |”

हम दो महीने के बाद मिले थे और वह भी तब जब मैं पूरी तरह से उम्मीद खो चुका था | तीन घंटे सोनिया मेरे साथ रही और उस तीन घंटे में उसने अपने साथ बीते एक-एक पल का हिसाब दिया और वो भी मेरे न चाहते हुए |

इतना समय उसके साथ बिताने के बाद मुझे यह तो समझ आ ही चुका था कि वह जब भी मिलेगी तो मुझ से अलग होने के बाद से लेकर मिलने तक हिसाब जरूर देगी | चाहे आप उसे सुनना चाहें या न चाहें लेकिन वह आपको बिना देखे धाराप्रवाह बोलती ही जाएगी |

आज उसकी आपबीती सुन मुझे मालूम हुआ कि वह अचानक बॉम्बे से दिल्ली अपनी माँ की तबियत ख़राब होने के कारण आई थी | लेकिन उसके आने के कुछ दिन के अंदर ही उसकी माँ चल बसी | उसका विश्व स्वास्थ्य संगठन से अनुबंध भी खत्म हो चुका था और उसकी माँ जो उसके दोनों बेटों को सम्भाल रही थी, वह भी अब नहीं रही थी | अतः उसने यहीं दिल्ली रह कर गुड़गांव के एक अस्पताल में जहाँ वह पहले कार्य कर रही थी वहीँ वापिस नौकरी शुरू कर दी | उसके बारे में एक और बात यह पता लगी कि उसने अपनी इच्छा से शादी के पांच साल बाद ही अपने पति से तलाक ले लिया था |

वह मेरे से काफी नाराज़ थी इसलिए उसने चाहते हुए भी मुझसे सम्पर्क नहीं किया | दिल्ली आते हुए उसका मोबाइल फ़ोन चोरी हो गया था | इसलिए मेरे सम्पर्क करने पर फ़ोन बंद आता था | लेकिन कुछ दिनों में जब सब कुछ सामान्य हुआ तो उसे मेरी याद सताने लगी | उसे लगा कि मैंने इतना बुरा भी नहीं कहा था जितना बुरा उसे लगा | काफी दिनों तक स्वयं से झूझने के बाद उसने मुझसे सम्पर्क करने की सोची | उसकी व मेरी किस्मत अच्छी थी या ईश्वर की इच्छा | उसी दिन शाम को सोमेश व मीतू उसकी माँ के मरने की खबर सुनने पर उसके घर अफ़सोस करने पहुंचे | सोनिया, सोमेश की रिश्ते में बहन लगती थी | बातों ही बातों में बॉम्बे का जिक्र हुआ और वहाँ से मेरा | बस उसे तो मौका चाहिए था, उसने मेरी पूरी रिपोर्ट तैयार कर ली |

*

दो साल बाद ..........

“आज कॉफ़ी डे में कॉफ़ी पिलाने के लिए ख़ास क्यों बुलाया गया है |” मैं कॉफ़ी पीते हुए सोनिया से पूछता हूँ |

“आपको कुछ याद रहता है | आज से दो साल पहले इसी दिन आप मुझे सड़क पर गिरे मिले थे |”

“यह तुम्हारी गलती है कि तुमने गिरे हुए को गले लगाया |”

“मुझे तो नहीं लगता | तुम्हें अफ़सोस है तो बताओ |”

“अफ़सोस तो नहीं है......लेकिन....?”

“मेरा साथ पसंद नहीं है तो बताओ |”

“तुम बात तो बताओ |”

“कोई फायदा नही अगर आपको अफ़सोस या गलती महसूस हो रही है |”

“बिल्कुल, कोई फायदा नही है | यदि तुम इस रिश्ते को आगे बढ़ाने के लिए आज बात करने आई हो |”

“ठीक है फिर जल्दी से कॉफ़ी पी लो और चलो यहाँ से, बच्चे भी इन्तजार कर रहे होंगे |”

मैं मुस्कुराते हुए बोला “आप वैसे बात क्या करने आयी थीं ? वह तो करिए|”

“नहीं कुछ नहीं |” सोनिया नाराज़ होते हुए कॉफ़ी पी कर खड़ी हो जाती है|

“मैडम, नाराज़ क्यों होती हो, मेरी पूरी बात तो सुन लो |”

“कोई फायदा नहीं, आज दो साल साथ बिताने के बाद अगर तुम्हें अपनी गलती महसूस हो रही है |”

“किस गधे ने कहा |”

“जो गधा मेरे सामने बैठा है |”

मैं हँसते हुए बोला “मेरी पूरी बात तो सुन लो | फिर फैसला करना |”

“अब बोलने को कुछ रहा ही नहीं, बस चलो यहाँ से |”

“मैडम, तुम हीरा हो | तुम्हारे अंदर हर वो ख़ासियत है जो एक अच्छी औरत में होनी चाहिए | कुछ कमियां भी हैं और उनमें से एक है कि तुम किसी भी निष्कर्ष पर बहुत ही जल्दी पहुँच जाती हो |”

वह नाराज़ होते हुए बोली “बात को घुमाने की कोशिश मत करो |”

“नहीं मैं बात घुमा नहीं रहा हूँ | मैंने कहा कि मुझे तुम्हारा साथ पा कर कोई अफ़सोस नहीं है, लेकिन दुःख होता है......|”

वह गुस्से में बीच में ही बोल पड़ती है “बात एक ही है | चाहे अफ़सोस हो या फिर दुःख |”

“अरे यार पूरी बात तो सुन लो | मुझे दुःख होता है कि तुम बेवजह समय बर्बाद करती हो | तुम जो बात आज दो साल के बाद करने आई हो, वह कम से कम एक साल पहले ही कर लेनी चाहिए थी | एक दूसरे को पहचानने की विद्या तुम्हारे पास भी है और मेरे पास भी है फिर जानेमन इतनी देर क्यों ? मैं कब से इस दिन का इन्तजार कर रहा था |”

वह यह बात सुन कर मंद-मंद मुस्कुराते हुए बोली “तुम जानते हो मैं क्या कहना चाहती हूँ ?”

“जी”

वह अदा से मुँह बनाते हुए कहती है “अच्छा बताओ क्या ?”

“आज तुम ऐसे क्यों दिखा रही हो जैसे हमें आज मिले हुए सिर्फ़ दो-तीन महीने ही हुए हैं | इन दो सालो में हम एक दूसरे को अपना गुस्सा, ख़ुशी, नाराज़गी और अपना वह सबकुछ दिखा चुके हैं जो एक अच्छे दोस्तों को दिखाना चाहिए | शादी तो अब बस एक औपचारिकता ही रह गई है | तुम जब कहो उस दिन वह भी पूरी कर लेंगे | मैं पूरे विशवास के साथ कह सकता हूँ कि हम दोनों मिलकर एक मिसाल बनेगें | तुम बहुत अच्छी पत्नी और माँ और मैं चाहे अच्छा पति न भी बन पाऊं लेकिन अच्छा पिता जरूर बन सकता हूँ |”

वह गीली आँखों से भर्राई आवाज़ में बोली “मुझे तुम्हारे जैसा ही साथ चाहिए था | मैं खुशकिस्मत हूँ कि मुझे आप जैसा दोस्त मिला | जो अपने साथी की हर चाहत, हर बात, बिना बोले ही समझ जाता है | बस तुम में एक ही कमी है जो मुझे बहुत बुरी लगती है | जब तुम नाराज़ हो कर कई-कई दिन चुप कर जाते हो |”

“हर इंसान में कुछ न कुछ कमी तो होती ही है | तुम तो कमियों का भंडार हो लेकिन फिर भी मैं तुम्हें, तुम से ज्यादा चाहता हूँ |”

“तुम चाहते हो वो तो ठीक है लेकिन कमियां क्या हैं पहले वह बताओ ?”

“अच्छा छोड़ो इन बातों को, इसके लिए सारी ज़िन्दगी पड़ी है | अभी तो यह बताओ की तुम तैयार हो |”

“हाँ”

“सोच लो एक बार, क्योंकि इसके बाद सोचने का मौका नहीं मिलेगा |”

“साहिब आप सोचिये, आपको मेरे अंदर इतनी कमियां दिखती हैं | औरत जब एक बार फैसला कर लेती है तो वह हमेशा अंतिम होता है |”

“ठीक है, अब एक मुश्किल है और वह यह है कि बच्चों को यह कैसे बताया जाए?”

“भैया भाभी हैं न, उनसे आप बात करो | वह दोनों ही बच्चों से बात कर सकते हैं|”

“मुझे लगता है उन दोनों ने कुछ तो गड़बड़ की है | तुमने ध्यान दिया कि आजकल बच्चों के सुर कुछ बदले-बदले से हैं |”

“हाँ, लग तो मुझे भी रहा है |”

मैं इससे पहले कुछ बोलता, सोनिया के फ़ोन की घंटी बज उठती है | फ़ोन पर नंबर देख कर सोनिया मुस्कुरा कर फोन मुझे दिखाती है | मैं इशारा कर उसे समझाता हूँ कि फोन उठाओ पर यह मत बताना की हम दोनों साथ हैं |”

सोनिया फ़ोन उठा कर बोलती है “नमस्कार भाभी, कहिए कैसे याद किया|”

मीतू दूसरी तरफ से बोलती “तुम क्या अभी अस्पताल में हो |”

‘क्यों, क्या हुआ |”

“इतना हैरान हो कर क्यों बोल रही हो | मैंने तो वैसे ही पूछ लिया था|”

“कहिए, कोई ख़ास बात |”

“हाँ”,

“कहिए”,

“असल में, तुम्हारे भैया तुम दोनों से अकेले में कुछ बात करना चाहते हैं |”

“कब”

“अगर तुम दोनों को समय हो तो आज ही |”

“हाँ, क्यों नहीं, मैं और अक्षित शाम को आते हैं |”

“ठीक है, हम इंतजार करेंगे |” कह कर मीतू फ़ोन रख देती है |

सोनिया मुझे हैरानी से देखते हुए बोली “आज हमें अकेले क्यों बुलाया है |”

मैं बोला “मुझे लगता है भाई इसी बात के लिए बुला रहा है |’

“आप कैसे कह सकते हो ?”

“चलिए चलते हैं |”

*

सोमेश मुस्कुराते हुए बोला “आप दोनों को हैरानी हो रही होगी कि मैंने अकेले आने को क्यों कहा |”

“हाँ....भाई साहिब” सोनिया कुछ हिचकिचाते हुए बोली |

“इनको भी बस......, बैठे-बैठे कुछ भी सोचते रहते हैं |” मीतू चाय की ट्रे मेज़ पर रखते हुए बोली |

हम सब एक दूसरे से नजरें छुपाते हुए चाय की चुस्की लेने लगे | सोनिया इतनी देर कैसे चुप रह सकती थी | वह चाय का कप मेज़ पर रखते हुए बोली “भाई साहिब आप जरूर बच्चों के बारे में कुछ हिदायत देना चाहते होंगे, क्यों सही है न ?”

सोनिया, सोमेश को हाँ में सिर हिलाते देख कर मुझे इशारा करते हुए बोली “देखा मैं सही कह रही थी न, और आप इतने साल से भाई साहिब के साथ हैं फिर भी उन्हें समझ नहीं पाए | भाई साहिब यह मान ही नहीं रहे थे, और कह रहे थे कि जरूर कोई ख़ास बात होगी.....|”

सोमेश बीच में ही बात काटते हुए बोला “ये भी सही सोच रहा था |”

सोनिया हैरान होते हुए बोली “क्या....?”

सोमेश गंभीर भाव से बोला “हाँ, मैं ठीक कह रहा हूँ | तुम दोनों ही सही सोच रहे हो | मैं तुम्हारे और बच्चों के बारे में तुम दोनों से ज़रुरी बात करना चाहता हूँ | तुम लोग तो वक्त की नजाकत को समझते नहीं हो | क्योंकि मैं बड़ा हूँ तो मेरा फर्ज़ है कि तुम्हें आने वाले समय के बारे में आगाह करूँ | तुम लोग यह नहीं देख पा रहे हो कि तुम्हारा बेटा इस समय ग्यारहवीं कक्षा में है और अक्षित की बेटी दसवीं में और दोनों ही बड़े हो रहे हैं | उन पर ही तुम दोनों का परिवार और भविष्य निर्भर है | वह जैसा सोचेंगे, समझेंगे और करेंगे वैसा ही उनसे छोटे भाई-बहन भी करेंगे....|”

सोनिया बीच में ही बोल पड़ती है “यह बात तो आपकी बिल्कुल सही है, पर हम दोनों ने ऐसा क्या कर दिया | बच्चे अभी जब आये थे तब उन्होंने आपसे कुछ कहा क्या?”

“नहीं, मुझसे किसी ने कुछ नहीं कहा | मैं तो आप दोनों से सिर्फ़ यह कहना चाहता हूँ कि आप लोग कुछ अपने और बच्चों के भविष्य के बारे में सोचें और कुछ निर्णय लें | अब यहाँ से आप दोनों को किस तरफ जाना है....|”

मीतू जो अभी तक चुपचाप हमारी बातें सुन रही थी | अपना चाय का कप मेज़ पर रखते हुए बोली “ये तो साफ़-साफ़ कुछ कहेंगे नहीं और ऐसे तुम दोनों को कुछ समझ में आएगा नहीं |”

“ठीक बात है | भाभी आप ही बताएं भाई साहिब आख़िर कहना क्या चाहते हैं?” सोनिया कुछ परेशान-सी बोली |

मीतू मुस्कुराते हुए बोली “आप दोनों को मिले हुए दो साल से ऊपर हो चुके हैं | अभी तक आप दोनों एक दूसरे को अच्छी तरह से समझ ही चुके होंगे | अगर आप दोनों साथ रहने के लिए राज़ी हैं तो अब समय है आप दोनों शादी कर लें |”

सोमेश सोनिया को देखते हुए बोला “देखिए, हम आपको सुझाव ही दे सकते हैं लेकिन फ़ैसला तो आप दोनों को ही करना है|”

“भाई, बात ऐसी है कि मैडम में कमियां तो बहुत हैं लेकिन अब वक्त की मजबूरी इसकी भी है और मेरी भी, समझौता तो करना ही पड़ेगा |”

मेरी बात सुन सोनिया चिढ़ते हुए बोली “अभी भी समय है अगर आपको इतनी कमियां दिखती हैं तो कोई भी मजबूरी हो लेकिन ऐसा फैसला नहीं लेना चाहिए कि आगे आने वाले समय में दुःख हो | जहाँ तक आपसी सम्बन्ध की बात है तो वो एक दोस्त की तरह हमेशा रहेंगे |”

सोमेश मुस्कुराते हुए बोला “सोनिया तुम्हें तो मालूम ही है, इसकी आदत है | वैसे मीतू से पूछ लो यह तुम्हारे सामने न सही लेकिन तुम्हारी बहुत तारीफ करता है.......|”

सोनिया मुस्कुराते हुए बोली “भाई साहिब आप लोगों के साथ रहते-रहते अब मुझे भी थोड़ी बहुत अक्ल आ गयी है | इससे अच्छा और क्या मौका हो सकता था आप से यह राज़ की बात निकलवाने का |” यह बात सुन हम सब हँस पड़ते हैं |

मीतू “सोनिया आज तो तुमने कमाल ही कर दिया |”

“भाभी, आपने भी तो कभी नहीं बताया कि ये मेरे बारे में क्या कहते हैं?”

“अरे पगली अगर पूरी बात बता दूंगी तो तू सच में ही पागल हो जाएगी | ये दोनों बहुत ऊंची चीज हैं |”

“अच्छा जी, फिर बताओं न और क्या बात है.........|”

सोमेश बात को सँभालते हुए बोला “आप दोनों की बातें सुन कर तो यह लगता है कि आप दोनों फैसला कर चुके हैं तो अब हम आगे की बात करें.....|”

सोनिया और मैं, दोनों एक साथ बोल पड़ते हैं “हाँ, हाँ”

सोमेश मुस्कुराते हुए बोला “आप दोनों को सुन कर ख़ुशी होगी कि आप दोनों के बच्चे भी इस बात के लिए राजी हैं कि सब साथ में रहें | उन से बात कर यह भी समझ आता है कि वह अभी फ़िलहाल साथ रहते हुए भी अलग-अलग रहना चाहते हैं | मेरे हिसाब से ठीक भी है, जब आप लोग पूरी तरह से एक दूसरे के आदी हो जाओ तो फिर सोच लेना | क्यों ठीक है |”

सोनिया गंभीरता से सिर पर हाथ फेरते हुए बोली “इसका मतलब हमें एक बड़ा घर या फ्लोर लेना पड़ेगा जिसमें कम से कम पांच बड़े कमरे हों, ताकि दो में इनका और दो में मेरा परिवार अलग-अलग रहे, बाकी बाद की बाद में देखी जाएगी|”

“उनकी एक और मुश्किल भी थी, वह भी मैंने सुलझा दी है |” सोमेश हँसते हुए बोला |

“वह क्या भाई साहिब ?”

“तुम्हारे बच्चों का कहना था कि जिसको हम इतने समय से अंकिल या आंटी कहते आ रहे हैं उनको अचानक मम्मी व पापा कह पाना बहुत ही मुश्किल है | यह सुन कर मैंने उनको वह सुझाव दिया जिस पर हम सब पहले ही सोच चुके थे |”

“भाई साहिब, आपने कहा कि हम सब पहले ही सोच चुके थे, मतलब ?”

“मतलब छोड़ो पहले सुझाव तो सुनो और जिसे सुन सब बच्चे खुश भी थे और उन्हें पसंद भी आया .......|”

“वह क्या......?”

“मैंने तुम्हारे बच्चों को कहा कि वह पहले अक्षित को अंकिल कहते थे और अब उन्हें पापा कहना पड़ेगा तो क्यों न बीच का नाम रख लो और वह है अप्पा, उसमें अंकिल और पापा दोनों ही शामिल हैं .......|”

“अरे वाह और मेरे लिए |”

“अक्षित के बच्चे आपको आंटी कहते थे और अब उन्हें मम्मी कहना पड़ेगा और बीच का नाम हैं अम्मा जिसमें दोनों ही शामिल हैं, क्यों ठीक है |”

“भाई साहिब कमाल कर दिया आपने, हमारी सारी मुश्किलें हल कर दीं, इसलिए कहते हैं की घर में बड़े बुजुर्ग होने चाहिए.....|”

मीतू बीच में ही बोल पड़ती है “हमने तो अपना फर्ज़ और कर्म किया है बाकी यह सुझाव और इन सब बातों का समय और योजना हमने नहीं बनाई......|”

मैं बात बिगड़ते देख जल्दी से सोनिया को देखते हुए बोलता हूँ “भाभी, आप सही कह रही हैं | समय और योजना तो ईश्वर पहले ही बनाकर रखता है | हम तो बस मोहरे हैं |”

सोनिया मुस्कुराते हुए पहले मुझे और फिर मीतू को देखते हुए कहती है “पति ईश्वर होता है तो अब मेरे लिए ईश्वर अक्षित जी ही हैं, क्यों भाभी, मैंने ईश्वर को पहचान लिया न ?”

हम सब सोनिया की बात सुन हँसने लगते हैं |

*

डायरी के आगे के पन्ने खाली देख गौरव डायरी को बन्द कर अपने बैग में वापिस रख लेता है और बिस्तर पर आँख बन्द कर लेट जाता है |

✽✽✽