आओ चलें परिवर्तन की ओर... - 9 Anil Sainger द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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आओ चलें परिवर्तन की ओर... - 9

मैं ज़िन्दगी में पहली बार अपने घर से दूर नये शहर और नयी जगह पर आया था | मन में एक अज़ीब सा डर लगा रहता था | अपने आप को हर समय यही समझाता था जो भी होता है वह सब ईश्वर की मर्जी से ही होता है | यह भी विचार आता था कि हो सकता है सोमेश के साथ रह कर मैंने जो भी सीखा अब उसे व्यावहारिक रूप देने का समय आ गया हो|

नए ऑफिस में आने पर मैं शुरू-शुरू में तो काफी व्यस्त रहा | जैसे-जैसे रोज़मर्रा की दिनचर्या ठीक होने लगी वैसे-वैसे मेरा आत्मविश्वास भी बढ़ने लगा | रोज माँ व बच्चों से तथा सोमेश व भाभी से बात कर दूरी-दूरी नहीं लगती थी |

मुझे एक मुश्किल जो काफ़ी समय से परेशान कर रही थी | वह भी मेरे ऑफिस की सहकर्मी ने अपनी एक विश्वास पात्र अधेड़ उम्र की बाई को रोटी बनाने व साफ़-सफ़ाई करने के लिए भेज कर मुझे इस परेशानी से भी मुक्ति दिला दी थी |

अब मैं शाम को घर आ कर थोड़ी देर आराम से टीवी देखता | बच्चों से बात करता और रात का खाना खा कर कुछ देर धार्मिक किताबें पढ़ता | रात को सोने से पहले घंटो मेडिटेशन करता | ज़िन्दगी थोड़ी-सी धीमी चाल से तो जरूर चल रही थी | लेकिन जिस जगह पर मैं पहुंचना चाहता था वह पाकर एक सुकून भी था | हाँ ! कभी-कभी अकेलापन जरूर महसूस होता था |

*

उस दिन की घटना ने मेरी ज़िन्दगी ही पलट कर रख दी | वह घटना, अज़ीब तो जरूर थी लेकिन जब मैं मेडिटेशन के लिए बैठा तो सारी गुथ्थियाँ खुद-ब-खुद ही खुल गईं | मैं मेडिटेशन से उठने के बाद अवाक-सा सोचता रह गया कि यह सब मैंने पहले ही देखा हुआ था फिर भी मेरा ध्यान उस ओर क्यों नहीं गया ?

उस रात मुझे काफी देर तक नींद नहीं आई | सोचते-सोचते कब सो गया पता ही नहीं चला | ज़ोर-ज़ोर से बजती डोर बेल से मेरी नींद टूटी | जल्दी से उठा और यह सोच कर दरवाज़ा खोला कि काम वाली बाई आई होगी | लेकिन सामने उसे खड़ा देख मैं हैरानी से उसे देखता ही रह गया | मुझे चुप खड़ा देख वह बोली “क्या बात है? रात भर क्या दर्द से परेशान रहे?”

यह सुनकर मुझे कुछ होश आया | मैं बोला “‘नहीं, नहीं, ऐसी कोई बात नहीं | रात भर बिना किसी परेशानी के भी नींद नहीं आई और यही सोच में......|”

वह बीच में ही बोल पड़ी “ऐसा क्या याद आ गया, जिसने आपको सारी रात जगाए रखा | जरूर कोई न कोई बहुत ही ख़ास याद होगी ?” फिर कुछ सोच कर बोली “नहीं बताना चाहते हैं तो कोई बात नहीं | मैं तो बस आपका हाल-चाल पूछने आई थी |” कह कर वह अंदर आई और दरवाज़े के पास ही रखी टेबल पर दवाइयाँ रख कर बोली “कृपया इन्हें ले लेना | यदि आपको ऑफिस जाना हो और मुझसे कोई परेशानी न हो तो मैं छोड़ दूंगी |” कह कर पीछे मुड़ी और बिना मुझे देखे बाहर निकल गई |

उसका आंधी की तरह आना और तूफ़ान की तरह चले जाना देख, मैं सोचता ही रह जाता हूँ कि आख़िर यह औरत है क्या बला | खुद ही प्रश्न पूछती है खुद ही ज़वाब देती है और फिर खुद ही बुरा मान जाती है | मैंने आख़िर ऐसा क्या कह दिया, जो इतना बुरा लगा कि महारानी मेरे कुछ बोलने से पहले ही चल दीं |

कुछ लोग ऐसे ही होते हैं, सोचते हुए मैं दरवाज़ा बन्द कर फिर से बैड पर आ कर लेट जाता हूँ | अचानक मुझे याद आया कि उसने कल यह तो बताया था कि वह इसी अपार्टमेंट में मेरे फ्लोर से दो फ्लोर नीचे रहती है | लेकिन घर का नंबर तो बताया ही नहीं ? मैं अगर उसका धन्यवाद करना भी चाहूँ तो कैसे करूँगा ? यह सोचते हुए करवट बदली ही थी कि फिर से डोर बेल बज उठती है | मैं यह सोच कर झटके से दरवाज़ा खोलता हूँ कि फिर वही महारानी आई होंगी | सामने काम वाली बाई को खड़ा देख कर मैं बोला “क्या बात है आज तुम लेट हो गईं |”

वह अंदर घुसते हुए बोली “नहीं साहिब, मैं तो रोज़ इसी समय आती हूँ |” कह कर वह दरवाज़ा बन्द करते हुए फिर से बोली “डॉक्टर साहिबा, क्या आपके पास आयीं थी?”

“हाँ”, कह कर मैं सोफे पर बैठ जाता हूँ |

“क्या हो गया आपको ?” इससे पहले कि मैं कुछ बोलता वह फिर बोल उठी “वह अभी बता रहीं थी कि कल शाम को आप रास्ते में फिसल कर गिर गये थे|”

“हाँ |”

“ज्यादा चोट तो नहीं लगी ?

“नहीं |”

“डॉक्टर साहिबा मुझ से कह कर गईं हैं कि ‘मुझ से तो कुछ कह नहीं रहे हैं, तुम पूछ लेना | कुछ गड़बड़ लगे तो फ़ोन पर बात कर, हॉस्पिटल आ जाएँ | वहाँ किसी और डॉक्टर से दिखवा दूंगी’, अब आप बताइए आपको कैसा लग रहा है |”

“बिल्कुल ठीक हूँ |” कह कर मैं अभी सोच ही रहा था कि मेरे पास तो उसका फ़ोन नम्बर......|

बाई मेरी सोच को तोड़ते हुए बोली “उन्होंने अपना फ़ोन नंबर दिया है |” कह कर उसने मुझे एक कागच की पर्ची थमा दी |

वह घर की सफाई करते हुए फिर से बोली “मैडम, अभी छह-सात महीने पहले ही यहाँ आयीं हैं | वह क्या WHO कुछ होता है उसके किसी काम पर एक साल के लिए यहाँ बॉम्बे आयीं हैं | वैसे तो वह रहने वाली दिल्ली की हैं | अरे हाँ साहिब ! आप भी तो वहीँ के रहने वाले हो |”

“हाँ |”

“साहिब, फिर तो आप जरूर मैडम को जानते होंगे ?”

मैं खिसियाते हुए बोला “तुम क्या बॉम्बे में सब को जानती हो?”

वह अपनी झेंप मिटाते हुए बोली “नहीं, मैं तो यह सोच के बोली कि लोग कहते हैं, दिल्ली, बॉम्बे से बहुत ही छोटा है |” कह वह दूसरे कमरे में चली गई |

मैं भी उठ कर नहाने चल दिया | अभी नहा कर आया ही था कि काम वाली बाई आई और बोली “साहिब, मेरा काम तो खत्म हो गया है अगर आप कहें तो मैं आपका नाश्ता परोस दूँ |”

“बन गया है तो दे दो |”

वह नाश्ता दे कर बोली “साहिब, मैं जाऊँ |”

मैंने कुछ हिचकिचाते हुए पूछा “तुम मैडम को कैसे जानती हो ?”

मेरी बात सुनते ही, वह वहीँ टेबल के पास धप से बैठ गयी | मुझे ऐसा लगा कि वह शायद इसी इन्तजार में थी | बैठते ही उसने धाराप्रवाह बोलना शुरू कर दिया “साहिब, मैडम बहुत ही अच्छी हैं | उनको यहाँ आये अभी छह या सात महीने ही हुए हैं और इतने छोटे से समय में ही इस अपार्टमेंट के लोग उन्हें बहुत पसंद और इज्जत करते हैं | वह कभी भी यह नहीं सोचती हैं कि कौन बड़ा है और कौन छोटा है | अगर किसी ने मदद मांगी तो उसी समय उसकी मदद को तैयार हो जाती हैं |”

कुछ देर रुक कर बाई शायद मेरी प्रतिक्रिया के इन्तजार में थी | जब मैं कुछ नहीं बोला तो वह फिर बोलना शुरू हुई “साहिब वह चाहे किसी को जानती हैं या नहीं, फिर भी मदद करती हैं | रास्ते में भी कभी कोई बीमार या दुःखी मिल जाए तो उसे अस्पताल पहुंचा कर इलाज़ करवाती हैं | उनसे दवाई लेना वाला यदि समय पर दवाई न खाए या फिर गलती से भी बोल दे कि याद नहीं रही तो बहुत डांट मारती हैं | यहाँ पर कोई भी उनके घर दवाई लेने कभी भी पहुँच जाता है | ऐसी औरत के बारे में जब कुछ गलत सुनने को मिलता है तो बहुत बुरा लगता है |”

मैं हैरान होते हुए बोला “गलत क्यों कहते हैं ?”

“साहिब, यहाँ इस अपार्टमेंट में हैं एक-दो लोग जो मैडम की शराफत का फायदा उठाने के चक्कर में हैं | वही कुछ-कुछ बकते फिरते हैं|”

“मैडम को पता है क्या?”

“साहिब, वह लोग कोई काम या तकलीफ़ नहीं भी हो तो भी मैडम के पास सुबह-शाम पहुँच जाते हैं | कई बार उनके साथ गाड़ी में बैठ अस्पताल इलाज के लिए जाते हैं | लेकिन वापिस आकर बोलते हैं कि आज वह मैडम के साथ घूमने गए थे | मैडम तो हर किसी से हँस कर मिलती हैं और कोई कैसा भी हो उसे एक ही नज़र से देखती हैं | बस यह ही एक कमी हैं उनमे | वह लोग, मैडम की इसी आदत का गलत फ़ायदा उठाते हैं | कई बार शाम को किसी भी बहाने से उनके घर जाकर इधर-उधर की बातें कर टाइम पास करते हैं | बाहर आकर कहते हैं, मैडम तो मुझे आने ही नहीं दे रही थीं |”

“तुम्हारी मैडम को अच्छे-बुरे की पहचान नहीं है क्या ?”

“साहिब, वह बहुत भोली हैं |”

“बड़ी अज़ीब बात है | खैर, छोड़ो इस बात को, यह बताओ कि तुम इतना कुछ मैडम के बारे में कैसे जानती हो |”

वह हँसते हुए बोली “साहिब, मैं यह बात तो बताना ही भूल गयी | शाम को आपके यहाँ काम करने के बाद, मैं मैडम के पास काम करने जाती हूँ | सुबह तो वह खुद ही नाश्ता और लंच का खाना बनाती हैं | शाम को क्योंकि वह थक कर आती हैं और उन्हें पढ़ना भी होता है इसलिए शाम का खाना और घर की साफ़-सफाई मैं करती हूँ | साहिब, आपको सुन कर हैरानी होगी कि मैडम कुछ अलग तरह की किताबें भी पढ़ती हैं |”

“अलग, मतलब |”

इसपर वह बोली “मैं, उनकी टेबल साफ़ करते हुए देखी हूँ | वह क़िताबें ज्योतिष वगैरह की होती हैं | उन पर जन्मकुंडली की तरह के चित्र बने होते हैं | साहिब मुझे तो बड़ी हैरानी होती है कि इतनी बड़ी डॉक्टर हो कर भी वह ऐसी किताबें पढ़ती हैं | साहिब, आपको पता है, वह डॉक्टर तो औरतों की हैं पर इलाज सब का करती हैं....|”

मैं उसकी बात सुन हँसते हुए बोला “आम बीमारी का इलाज तो औरतों की डॉक्टर भी कर सकती है | जहाँ तक दूसरी किताबें पढ़ने की बात है तो हर किसी का अपना-अपना शौक है |”

वह एक लम्बा सा ‘हाँ’ कर उठते हुए बोली “अच्छा साहिब, बहुत देर हो गयी | अब मैं चलती हूँ |” वह दरवाज़े के पास पहुँच कर फिर से बोली “साहिब, आप से बात हो तो मेरा नाम मत ही लेना कि मैंने आपको यह सब बताया |”

“नहीं.....नहीं, मैं तुम्हारा नाम क्यों लूँगा और फिर तुमने कुछ ऐसा-वैसा तो कहा ही नहीं | तुम इस बारे में बिल्कुल चिंता न करो |” वह मुस्कुरा कर दरवाज़ा बंद कर चली गयी |

*

मैं नाश्ता कर खाली बर्तन रसोई में रखकर, वहीँ सोफे पर पैर रख पसर जाता हूँ और कल हुई घटना को याद करने की कोशिश करता हूँ ...शाम को कुछ अज़ीब-सी बैचनी हो रही थी | इसलिए ऑफिस से थोड़ा जल्दी निकल आया था | घर पहुँचकर सीधे बेडरूम में आकर बिस्तर पर लेट गया था और कब मेरी आँख लग गयी मुझे पता भी नहीं चला |

मेरी नींद तब टूटी जब दरवाज़े की घंटी बार-बार और कुछ ज़ोर-ज़ोर से बज रही थी | मैं जल्दी से उठा और भाग कर दरवाज़ा खोला तो देखा दरवाज़े पर काम वाली बाई खड़ी थी | मेरे दरवाज़ा खोलते ही, वह अन्दर घुसते हुए बोली “क्या साहिब, मैं इतनी देर से घंटी बजा रही थी? लगता है, आज आप जल्दी आकर सो गये थे |”

मैंने सिर खुजाते हुए हाँ में सिर हिला दिया, इसपर वह बोली “अभी थोड़ी देर आप और नहीं खोलते तो मैं चली जाती | कोई बात नहीं, मैं आपके लिए चाय बनाती हूँ | बाकी के काम उसके बाद कर लूंगी |” कह वह रसोई की तरफ चली गयी और मै बैठक में आकर टीवी पर न्यूज़ देखने लगा |

थोड़ी ही देर में वह चाय बना कर ले आई और चाय का कप मेरे पास रखी टेबल पर रखते हुए बोली “साहिब, मैंने आपको कल भी बोला था कि चाय की पत्ति और चीनी खत्म होने वाली है | आप लाए नहीं, लगता है आप शायद भूल गये |”

मैंने टीवी देखते हुए हाँ में सिर हिला दिया तो वह बोली “साहिब, कल सुबह की चाय नहीं बन पायेगी, आज जरूर ले आना|”

“ठीक है” कहने पर वह रसोई में काम करने चली गयी और मैं टीवी देखते हुए गर्म-गर्म चाय की चुस्की लेने लगा |

काम वाली बाई ने अपना काम कर, जाते हुए फिर से मुझे बाज़ार से सामान लाने की हिदायत दी | पता नहीं क्यों मेरा दिल बाज़ार जा कर सामान लाने को नहीं हो रहा था फिर भी मैं अनमने मन से कपड़े बदल बाज़ार जाने को निकल पड़ा |

अभी अपने अपार्टमेंट से थोड़ी दूर ही निकला था कि हल्की-हल्की बारिश शुरू हो गई | जबकि आसमान में इतने ज्यादा बादल भी नहीं थे कि बारिश हो | हम दिल्ली वालों को बारिश के मौसम में भी हर समय छाता ले जाने की आदत तो होती नहीं है | इसलिए यह सोच कर कि कहीं भीग न जाऊं, मैं जल्दी-जल्दी कदम बढ़ाने लगा | बारिश तेज़ होते देख मैं लगभग भागने-सा लगा था कि तभी मेरा पैर किसी चीज में फंसा और मेरे काफी सम्भलने के बावजूद भी जमीन पर जा गिरा | मेरा सिर वहीँ रास्ते में पड़े एक लकड़ी के बक्से से जा टकराया |

मैं यह सोच कर कि चोट तो कोई ख़ास होगी नहीं, जल्द उठकर खड़ा हो जाता हूँ | सीधा खड़े होते ही सिर चकरा जाता है और फिर जमीन पर गिर जाता हूँ | मुझे आँख के ऊपर सिर में काफी दर्द सा महसूस होता है सो लेटे-लेटे ही जब आँख के ऊपर हाथ लगाया तो वहाँ से आते खून को देख कर घबराहट-सी होने लगी |

मैंने नज़र उठा कर इधर-उधर देखा ही था कि सामने से एक सफ़ेद रंग की आती गाड़ी ने ज़ोर से ब्रेक मारे | गाड़ी के रुकते ही एक स्वर्ग की अप्सरा से भी सुंदर औरत निकल कर मेरी तरफ भाग कर आती है | मैं स्तब्ध सा उसे देखता ही रह जाता हूँ | उस औरत ने माथे पर सफेद रंग की बिंदी लगा रखी थी | सफ़ेद साड़ी जिस पर हल्के गोल्डन रंग के फूल पत्ते बने हुए थे जोकि उस साड़ी और बलाउज को और भी सुंदर बना रहे थे, बड़े ही सलीके से बाँध रखी थी | वह मेरे पास आई और उसने अपना हाथ आगे बढ़ाया तो मैं उसके हाथ पकड़ कर उठने की कोशिश करता हूँ | उसके सहारे से खड़े होते हुए मेरी नज़र उसके गले पर पड़ते ही अचानक मेरे मुहं से निकल जाता है “अरे ! आप तो डॉक्टर हैं, आईये इन्हें देखिये...?”

वह हँसते हुए, मेरा हाथ पकड़े-पकड़े अपनी गाड़ी के पास ले जाती है | वह गाड़ी का दरवाज़ा खोल कर मुझे गाड़ी में बैठने का इशारा करते हुए कहती है “शायद आप गिर गए हैं, इसलिए आप कुछ भूल रहे हैं | बोलना कुछ चाहते हैं और बोल कुछ और ही रहे हैं | कोई बात नहीं, ऐसा कई बार होता है |”

वह गाड़ी में आकर बैठते हुए कहती है “घबराने की कोई बात नहीं है | घाव कुछ ख़ास गहरा नही लग रहा है |” कह, वह गाड़ी के कप बोर्ड से दवा का डिब्बा निकाल कर कहती है “आप आँख बंद कर लीजिये और शांत हो जाइये, यह दवा थोड़ा सा लगेगी |”

मैं आँखे बन्द कर सोचता हूँ यह मेरे साथ क्या हो रहा है | मुझे ऐसा क्यों लग रहा है जैसे मैंने इसे और इस घटना को पहले भी देखा हुआ है | फिर वही नज़ारा मेरी आँखों के सामने घूमने लगता है तो मैं घबरा कर आँखें खोल देता हूँ | वह मुस्कुराते हुए कहती है “आपको आँखे बंद करने को कहा था ना कि आँख बन्द कर खो जाने को | यदि कुछ ज्यादा परेशानी लग रही है तो अस्पताल ले चलती हूँ|”

मैंने पूरी तरह होश में आते हुए कहा “नहीं, नहीं ऐसा कुछ नहीं, वैसे पता नहीं क्यों मुझे ऐसा लग रहा है कि आपको मैंने पहले भी देखा है |”

“आप ऐसे लगते तो नहीं |”

“मतलब |”

“आशिक मिजाज लोग ज्यादातर ऐसे डाय्लाग मारते हैं |”

मैं गुस्सा दिखाते हुए बोलता हूँ “आपको मैं ऐसा-वैसा लगता हूँ |”

यह सुन वह ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगी | फिर अपनी हँसी पर काबू पाते हुए बोली “मैं तो आपकी ही बात का ज़वाब दे रही थी | वैसे कई बार ऐसा हो जाता है, घबराने और कुछ सोचने की ज्यादा जरूरत नहीं | आप तो बस यह बताइए कि मैं आपको कहाँ ड्राप करूँ|” मैंने अपने घर की ओर इशारा किया और कहा “मैं सड़क के उस पार जो सफेद रंग का अपार्टमेंट दिख रहा है उसी में रहता हूँ |”

उसने खुश होते हुए कहा “अरे वाह ! मैं भी वहीं रहती हूँ |”

वह मुझे मेरे कमरे तक छोड़ने के लिए आई और जाते-जाते बोली “by the way, आप जा कहाँ रहे थे, क्योंकि आपके गिरने के हिसाब से तो लगता है कि आप घर से कहीं जा रहे थे |”

उसकी बात सुन कर मैं अपने सिर पर हाथ मारते हुए बोला “ओह हो ! मैं तो बाज़ार चीनी और चाय पत्ति लेने जा रहा था | मेरी बाई ने कहा था कि सुबह चाय बनाने के लिए कुछ नहीं है |”

वह मुस्कुराते हुए बोली “कोई बात नहीं, मैं आपके फ्लोर से दो फ्लोर नीचे इसी बिल्डिंग में रहती हूँ | अभी ला कर दे देती हूँ|”

“आप क्यों परेशान हो रही हैं | थोड़ी देर में, मैं बाज़ार जा कर ले आऊँगा|”

वह मेरी बात सुनी-अनसुनी कर “कहा न, आप चुपचाप आराम कीजिए |” कह कर चली जाती है |

मैं अभी कपड़े बदल कर गुसलखाने से बाहर ही निकला था कि घंटी बज उठी | मैं समझ गया कि वही आई होगी और मेरा अंदाजा ठीक ही था | वह चीनी और चाय के लिफाफे मेरे हाथ में थमाते हुए बोली “आप क्या अकेले रहते हैं |” मैंने हाँ में सिर हिला दिया | मैं इससे पहले कुछ भी बोल पाता, वह पलटी और जल्दी-जल्दी चलते हुए सीढ़ियाँ उतर गई |

मैं रात को जब मेडिटेशन करने के लिए बैठा तो कुछ समय तक तो ध्यान लगा | अचानक केन्द्रित ध्यान टूट गया और मुझे फिर शाम वाली घटना याद आने लगी | मुझे यह समझ नहीं आ रहा था कि क्यों मुझे ऐसा लग रहा है जैसे यह घटना मैंने पहले भी देखी है |

यह देखने के लिए कि ऐसा मेरे साथ कब हुआ | मैं वापिस मेडिटेशन करने के लिए बैठ जाता हूँ | काफी जद्दोजहद करने के बाद मुझे याद आने लगता है कि पहली बार जब बचपन में, मैं बेहोश हुआ था तब मैं एक ऐसी जगह पहुँच गया था | जहाँ आसमान में रंगबिरंगी गेंदे घूम रही थी और ऐसा ही नज़ारा मैंने तब देखा जब मैं बच्चो के साथ मेडिटेशन करने के लिए बैठा था | तब एक बात अलग हुई थी और वह यह थी कि उन गेंदों के साथ मैं कही और गया था | जहाँ मुझे एक सफेद कपड़ो में और सिर पर सफेद कपड़ा बांधे एक सफेद दाढ़ी वाला बाबा मिला था जो मुझे देख कर मुस्कुरा रहा था |

यह दोनों ही घटनाएं मुझे अभी तक असल ज़िन्दगी में नहीं दिखी थी | लेकिन इससे पहले मैं जब जंगल में बेहोश हुआ था तब मैंने जिस औरत को एक्सीडेंट में मरते और तीन बच्चिओं को रोते देखा था वो मेरी पत्नी और मेरी ही औलाद थी |

मैं हैरान हो गया कि कैसे मैंने इतने साल पहले ही भविष्य में होने वाली घटना देख ली थी | इससे भी ज्यादा हैरानी मुझे तब हुई जब इसके बाद वाली घटना मुझे याद आई | आज मिली औरत को भी मैंने उस समय देखा था और इतने वर्षों बाद आज उसी तरह मैं उससे मिला और उसने वैसे ही कपड़े पहने थे और वैसी ही गाड़ी में वह आज भी थी |

मेरा ध्यान टूट चुका था और मैं हैरान-परेशान पसीने में लथपथ जमीन पर बैठा था | ऐसा कैसे हो सकता है | अचानक मुझे सोमेश की बातें याद आने लगीं, जब मैंने उसे बचपन में और जंगल में बेहोश होने पर दिखने वाली घटना के बारे में बताया |

यह सुन कर वह बोला “तुम, आम लोगो से कुछ अलग हो | तुम भविष्य देख सकते हो और तुम्हारे जैसे इस संसार में लोग भरे पड़े हैं | बस वह अपनी ज़िन्दगी में ध्यान, होश, नींद या फिर बेहोशी में अचानक दिखने वाली कड़ियों को असल ज़िन्दगी से जोड़ नहीं पाते हैं | कुछ भूल जाते हैं | कुछ उसका नजायज फायदा उठाते हैं तो कुछ यदि जोड़ते हैं तो अपने आप से ही डरने लगते हैं | पहले दिखने वाली घटनाए अच्छी और बुरी दोनों ही तरह की हो सकती हैं |

मेरी तुम से यही प्रार्थना है कि तुम इन बातों से सबक लो और अपनी ज़िन्दगी को अध्यात्म से जोड़ो | यह कड़िया भी जुड़ जाएंगी और तुम यदि मेडिटेशन में कुछ महारत हासिल कर पाए तो बुरी घटनाओं को कुछ हद तक रोक भी सकते हो | मेरा मानना है कि ईश्वर उन्हें पहले से होने वाली घटना बताता ही सिर्फ़ इसलिए है कि वह अपनी ताकत और दूरदृष्टि को पहचाने और भविष्य में होने वाली घटनाओं को रोकने में अपनी या दूसरों की मदद करें |

तुम्हें सुन कर हैरानी होगी कि ऐसे आधे प्रतिशत से भी कम लोग होंगे जो सही दिशा पकड़ पाते हैं बाकी सब या तो psychic पेशेंट बन जाते हैं या फिर इसका नाजायज फ़ायदा उठाते हैं | पैसे कमाने या फिर गुरु बन लोगों को गुमराह करने लगते हैं | उस ऊपर वाले के यहाँ देर है पर अंधेर नहीं है क्योंकि ऐसा नाजायज करने वालों के साथ, अचानक भविष्य में होने वाली घटनाए दिखनी बंद हो जाती हैं और वह फिर इस संसार के कोलाहल में कही खो जाते हैं |”

इस सबके बाद मुझसे नींद कोसों दूर हो जाती है | मैं यह सोचने लगता हूँ कि इस औरत का मुझसे क्या सम्बन्ध है और क्यों मुझे यह औरत इतने वर्ष पहले दिखी | यह सोचते-सोचते कब मुझे नींद आ जाती है और वह तभी खुलती है जब आज सुबह वह आकर दरवाज़े की बेल बजाती है |

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