आओ चलें परिवर्तन की ओर... - 10 Anil Sainger द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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आओ चलें परिवर्तन की ओर... - 10

‘हाँ जी’,

आवाज़ सुन कर मैं पीछे मुड़ कर देखता हूँ तो वह मेरे पीछे ही आ रही थी | मैं उसे देख कर मुस्कुराते हुए बोला “आप मेरे पीछे आ रही हैं या मैं आपके आगे चल रहा हूँ |”

वह मुस्कुराते हुए बोली “असल में, मैं अपनी गाड़ी खड़ी कर रही थी तो मैंने देखा आप आज फिर बाज़ार जा रहे हैं | मुझ से रहा नहीं गया और यह सोच के आपके पीछे आ गई कि कहीं आप फिर न गिर जाएँ |”

मैंने हँसते हुए कहा “आपने मुझे इतना गिरा हुआ समझ लिया है |”

“अब यह हम कैसे कह सकते हैं | हाँ, हमारी पहली मुलाकात गिरे हुए इंसान से ही हुई थी | अब वह गिरा हुआ था या फिर मुझे देख कर गिर गया था |” कह कर वह ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगती है | उसकी बेबाक हंसी देख, मैं भी अपने को रोक नहीं पाता हूँ |

“आप शायद अभी-अभी आई हैं | आप आराम करिए और चिंता न करे आज आप न सही कोई और मुझ जैसे गिरे को उठा ही लेगा |” कह कर मैं मुस्कुरा देता हूँ |

“अरे-अरे ! आप तो बुरा मान गये | मैं एक डॉक्टर हूँ और पेशेंट का ध्यान रखना मेरा फर्ज़ है |”

“आपको गलती लग रही है, मैं आदमी हूँ और आप औरतों की डॉक्टर हैं |”

यह सुन वह तपाक से बोली “पेशेंट तो पेशेंट होता है और फर्स्ट एड देने में क्या आदमी और क्या औरत |”

मैं उसका ज़वाब सुन कर कुछ भी बोलने या कहने की स्थिति में नहीं था सो कुछ न सूझने पर बोला “चलिए |”

वह खुश हो कर बोली “यही पहले कह देते | चलिए, आपको यहाँ की मार्किट दिखा देती हूँ | यहाँ एक-दो दुकाने हैं, जिन्हें आप फ़ोन पर ही सामान लिखवा दीजिए | वह घर पर ही सामान पहुंचा देते हैं |”

मैंने ‘हाँ’ में सिर हिला दिया |

एक दुकान पर मैं सामान लेने के लिए रुका तो उसने वहाँ से सामान खरीदने से मना करते हुए बोला “आप सामान की लिस्ट मुझे दे दीजिएगा मैं मंगवा दूंगी |”

बिना सामान दिलवाए ही वह मुझे पूरे बाज़ार में घुमाती रही और उसने मुझे पूरे बाज़ार की सारी दूकानों और दुकानदारों की जानकारी बहुत विस्तार से सुनाई | मैं घर पहुँच कर यही सोचता रहा कि यह औरत कितना बोलती है | इसके पेशेंट का क्या हाल होता होगा | बोल-बोल कर सबकी ऐसी की तैसी कर देती होगी |

*

धीरे-धीरे हम दोनों की नजदीकीयाँ बढ़ने लगी | उसके साथ रहते हुए मुझे एहसास हुआ कि वह सचमुच बहुत ही भोली और खुली सोच की है | उसे कोई परवाह नहीं कि लोग उसके बारे में क्या सोचते या कहते हैं | बस कोई उसे मदद के लिए पुकार ले या उसके पास आ जाए या फिर उसे कोई बीमार दिख जाए | उसे न सिर्फ़ हॉस्पिटल बुला कर उसका इलाज करती या करवाती थी, बल्कि जबरदस्ती दवाएं भी खिलाती थी |

हमारे ही अपार्टमेंट का एक आदमी जोकि शादी-शुदा तो था लेकिन अभी भी दूसरी औरतों पर लाइन मारने की उसकी आदत गई नहीं थी | पता नहीं क्यों उसकी अपनी पत्नी भी उसे कुछ नहीं कहती थी | वह किसी न किसी बहाने से डॉक्टर साहिबा के पास आता रहता था | अगर कोई बात या कोई काम न हो तो कहीं से किसी बीमार को ही पकड़ कर ले आता था और फिर कुछ दिन उसकी दवाई के बहाने ही मिलता रहता था |

मुझे एक बात समझ नहीं आती थी कि क्यों डॉक्टर साहिबा को यह बात समझ नहीं आती थी कि वह उनसे सिर्फ़ मिलने के बहाने ढूंढता है | कई बार यह लगता था कि शायद वह यह सब समझ कर भी नहीं समझना चाहती हैं |

यह मुझ से सहन नहीं होता था लेकिन कहने की हिम्मत भी नहीं पड़ती थी | यही सोच कर चुप कर जाता था कि वह क्या सोचेंगी | मैं यह सब उन्हें कहूँ भी तो किस हक़ से |

इसी तरह पांच कब महीने बीत गए पता ही नहीं चला |

*

“मैंने परसों आपसे पूछा तो था कि मैं शिर्डी जा रही हूँ, आप भी चलेंगे |”

“हाँ, तो फिर |”

“उस समय आपने कोई ज़वाब ही नहीं दिया, तो मैंने सोचा कि आप शायद इच्छुक नहीं है |”

“हाँ, मेरी कोई इच्छा नहीं है |”

“हाँ, ठीक है | मैंने कौन सी आप से जबरदस्ती की है |”

“ठीक है, अब यह तो बताइए की आप जा कैसे रही हैं |”

“हमारे हॉस्पिटल के कुछ लोग हर साल इन दिनों एक बस लेकर शिर्डी जाते हैं | उन्ही के साथ जा रही हूँ |”

मैं बात को पलटते हुए बोला “आप कब आएंगी |”

वह चहक कर बोली “कल सुबह जाऊंगी और परसों शाम या उससे अगले दिन सुबह वापिस आ जाऊंगी | आप बताएं आपके लिए मैं क्या लाऊं|”

मैं हँसते हुए बोला “मैडम, जो आपको पसंद हो |”

वह गुस्से से बोली “मैंने आपको कई बार कहा है, मुझे मेरे नाम से बुलाया करो|”

मैंने हँसते हुए कहा “आप गुस्से क्यों हो रही हैं, आपको कोई भी आपके नाम से नहीं पुकारता है | सब डॉक्टर साहिबा ही कह कर पूकारते हैं तो मैं आपका नाम लेने की हिम्मत कैसे कर सकता हूँ | इसलिए डॉक्टर न कह कर मैडम से ही काम चला लेता हूँ | फिर आपका नाम भी तो लम्बा है|”

“हम पिछले करीब चार-पांच महीने से एक दूसरे को जानते हैं और पड़ोसी भी है तो आप मेरा नाम क्यों नहीं ले सकते......|”

“पर यार, इसमें गुस्सा होने की भी बात नहीं है | हाँ, यदि आपको बुरा न लगे तो मेरे जहन में जब से आपको देखा है, आपके लिए एक नाम आया था | अगर कहें तो उस नाम से आपको पूकारा करूं |”

यह सुनकर वह कुछ शांत होते हुए भी कर्कश स्वर में बोली “क्या नाम |”

मैं उसके हाव-भाव देखते हुए मुस्कुरा कर बोला “सोनिया |”,

वह पहली बार थोड़ी मुस्कुराई और बोली “मुझे पसंद हैं | अब दोबारा मुझे मैडम कह कर पुकारा तो मैं आप से बात नहीं करुँगी |” फिर सिर पर हाथ रखते हुए बोली “आप के पास आ जाओ तो आप बस बातों से ही काम चला लेते हैं | आपको मैंने कई बार बोला है कि भूख से मेरे सिर में दर्द शुरू हो जाता है | क्या हुआ, आप आज बाहर डिनर करवाने वाले थे | समय देख रहे हैं आठ बज रहे हैं और साहिब यह बॉम्बे है | रात को दिन से ज्यादा भीड़ होती है और अभी आप बाहर निकल कर दस घंटे तो रेस्टोरेंट ढूंढने में....|”

मैं बीच में ही बोल पड़ता हूँ “चलिए मैं तो तैयार हूँ | आप ही बेफिजूल की बातों में उलझ गयी थीं |” कह अपनी जगह से उठ कर दरवाज़े तक पहुँच जाता हूँ |

वह धीरे से उठ कर आते हुए कहती है “अभी मैं न टोकती तो आप यही नौ बजा देते |” फिर रौब से कहती है “अब चलिए|”

मैंने जो रेस्टोरेंट पहले से देख रखा था | सीधे वहीं ले जाकर जब गाड़ी खड़ी की तो वह गाड़ी से उतरती हुई बोली “क्या बात है, आज तो GM साहिब ने कमाल कर दिया | देखा मेरे बोलने का असर | अभी न बोलती तो आपने सारी बम्बई घुमा देनी थी...|”

“अन्दर चलें, मुझे भूख लग रही है |” मैंने सिर झुका कर कहा तो वह मुस्कुराते हुए चुपचाप मेरे साथ चल पड़ती है |

अन्दर पहुँचने पर अन्दर का माहौल देख कर उसने कहा “वाह, आपकी पसंद इतनी अच्छी है, मुझे तो पहली बार पता लगा |’ फिर कुछ रुक कर बोली “पिछली बार आप कहाँ ले गये थे, याद है आपको |”

मैं मुस्कुराते हुए बोला “मैडम, मैं बॉम्बे में नया हूँ | मुझे जैसा किसी ने बताया वैसा ही मैंने किया |”

“वो तो सब ठीक है, पर यहाँ तो सब टेबल्स पर रिज़र्व की तख्ती लगी है | आप आज फिर धोखा खा गये |” कह कर वह हँस दी |

मैं उसकी बात सुन, मुस्कुरा कर मैनेजर को हाथ के इशारे से बुलाया और धीरे से उसे अपना परिचय दिया | वह मुझे अपने साथ अपने बुकिंग काउंटर पर ले गया और वहाँ पड़े रजिस्टर में मेरी सुबह कराई बुकिंग देखकर बोला “yes Sir, आप ठीक कह रहे हैं |” कह कर मुझे व सोनिया को कोने की टेबल की तरफ ले जाता है और कुर्सी खींच उसे व मुझे बैठा कर चला जाता है |

“वाह GM साहिब, देखा मेरी सोहबत का असर, आप भी अक्लमंद हो गये हैं |”

मैं उसके कटाक्ष को सुनकर मुस्कुराते हुए बोला “सोनिया जी, अक्ल वाली तो आप ही है | आख़िर आप डॉक्टर और मैं पेशेंट, याद है न हमारी पहली मुलाकात और फिर आप ने अभी कहा भी है कि मैं अक्ल में मंद हूँ |”

वह हँसते हुए बोली “आप टांग बड़ी अच्छी खींच लेते हैं |”

“जब आप हर बात में अपनी टांग ऊपर रखेंगी तो मुझे खींचनी ही पड़ेगी |”

वेटर, मीनू कार्ड टेबल पर रख खड़ा हो जाता है | मैं इशारे से उसे जाने को कहता हूँ और मेन्यु कार्ड सोनिया की तरह बढ़ा देता हूँ |

मेन्यु कार्ड को खोलते ही वह मेरी तरफ प्रश्न भरी निगाहों से देखती है | मैं उसका प्रश्न समझते हुए कहता हूँ “क्यों आप हार्ड ड्रिंक नहीं लेतीं ?”

“नहीं, नहीं, ऐसी कोई बात नहीं | जब मैं मेडिकल कॉलेज में थी | तब कई बार बियर पी थी | अब उसे भी लगभग दस साल हो गए हैं | परन्तु आज आप जैसे बड़े आदमी के साथ लेने में मुझे कोई इतराज़ नहीं | अगर मैं बहक गयी तो लोग क्या कहेंगे, इतनी उमरदार हो गयी है लेकिन शौक गए नहीं |”

मैंने हँसते हुए कहा “अभी आपकी उम्र ही क्या है और फिर इस शहर में हमें कौन पहचानता है |”

इस पर वह कुछ आश्वस्त होते हुए बोली “बात तो आपकी ठीक है | चलो फिर आज हो ही जाए | आप भी क्या याद करेंगे, आपको कोई पीने वाली औरत मिली थी |”

मैंने इशारे से वेटर को बुलाकर आर्डर लिखवा दिया | थोड़ी ही देर में दो बियर और गिलास लाकर उसने गिलासों में बियर डाली और हमारे सामने रख कर चला गया | हमने अपना-अपना गिलास उठाते हुए “चियर्स, हमारी दोस्ती के नाम” बोल कर गिलास मुँह को लगा लिया |

“आज पुराने दिन याद आ गये |”

“मतलब”

वह बोली “मैं जब यहाँ बॉम्बे आई थी तो अपने आपको काफी अकेला महसूस करती थी | बस इसलिए मैं अपने आपको व्यस्त रखने के लिए हर समय किसी न किसी की सहायता में लगी रहती थी और फिर थक हार कर सो जाती थी |”

“लेकिन ऐसा लगता नहीं कि आप लोगों की इतनी सेवा सिर्फ़ समय बिताने के लिए ही करती हो |”

“मैं डॉक्टर हूँ और मेरा काम है लोगों की सेवा करना |”

“वह तो है, लेकिन यह आप की आदत भी है कि आप से कोई बीमार व्यक्ति देखा ही नहीं जाता |”

“अच्छा जी, आप तो मेरे बारे में काफी कुछ जानते हैं |”

“मैं तो यह भी जानता हूँ कि आप लोगों का भविष्य तक देख सकती हैं |”

“अच्छा जी, वह कैसे |”

“बस मेरा अनुमान है | मैं भी चेहरा पढ़ कर कुछ-कुछ जान जाता हूँ|”

“सही में !”

“जी”

मेरी बात सुन वह कहीं खो गई | मैंने मुस्कुराते हुए बोला “ क्या हुआ, मैंने ऐसा क्या बोल दिया ? आधे गिलास में ही नशा हो गया क्या ?”

वह हँसते हुए बोली “जी नहीं, मुझे एक-बोतल में नशा नहीं होता | मैं तो यह सोच रही थी कि साहिब इतना कैसे जानने लग गये है, मेरे बारे में?”

“क्यों, मैंने कुछ गलत कहा |”

“नहीं कहा तो गलत नहीं है लेकिन आपने यह चेहरा पढ़ कर नहीं बोला है|”

“तो फिर कैसे ?”

“लोगों के घर की बातें सुन कर |”

“मतलब”

“आप मतलब बहुत निकलते हो |”

“तो आप सीधे-सीधे बता दो |”

“बाई मैडम है मेरे चेहरे के पीछे, बोलो सच है कि नहीं ?” उसकी दूरदर्शिता देख कर मैं अपनी हंसी रोक नहीं पाता हूँ | वह मुस्कुराते हुए बोली “आपके हँसने का मतलब है कि मैंने सही कहा है | चलिए ठीक है, बहुत देख लिया मेरा चेहरा | अब थोड़ी तेज़ी दिखाइए वरना देर हो जाएगी, मुझे सुबह जाना भी है |”

*

रेस्टोरेंट से बाहर निकलते हुए मुझे थोड़े से कुछ ज्यादा ही सरूर महसूस हो रहा था | लेकिन उसे देख कर मैं हैरान था कि उसे लेश मात्र भी सुरूर नहीं था | वह मुझे देख कर मुस्कुराते हुए बोली “GM साहिब को तो चढ़ी लगती है | ठीक है, आप आराम से बैठिएगा | गाड़ी मैं चला लूंगी | थोड़ा लम्बा घूम कर घर जाएंगे, तब तक आपका सरूर भी उतर जाएगा|”

मैं अपनी झेंप मिटाते हुए बोला “चढ़ी-वढ़ी तो नहीं है, हाँ थोड़ा सा सरूर जरूर है, वो भी इस लिए कि आपने अपने हिस्से का भी आधे से ज्यादा मेरे गिलास में डाल दिया था |”

वह मुस्कुराते हुए बोली “डॉक्टर ने थोड़ी ही कहा था कि आप पी ही लो | अगर आपको ठीक नहीं लग रहा था तो मत पीते|”

मैंने मजे लेते हुए कहा “अरे भाई, डॉक्टर ने ही तो पीने को दी थी |”

वह हँसते हुए बोली “डॉक्टर आप को कहेगी की चलती गाड़ी से कूद जाओ तो क्या आप कूद जाओगे |”

“डॉक्टर जो कहेगा मेरे भले के लिए कहेगा |” कह मैंने गाड़ी का दरवाज़ा थोड़ा-सा खोल बाहर पैर निकाल लेता हूँ |”

वह मेरा हाथ पकड़ते हुए ज़ोर से चिल्लाती है “पागल हो क्या, बन्द करो दरवाज़ा|”

उसका गुस्सा भरा चेहरा देख मैं दरवाज़ा बंद कर देता हूँ |

“कभी आप कहती हैं कूद जाओ और कभी कहती हैं दरवाज़ा बंद कर दो | आख़िर आप चाहती क्या हैं |”

“बेवकूफों वाली बातें क्यों कर रहे हो | अब हमारी उम्र, सड़क पर चलती गाड़ी में ड्रामा करने की नहीं रही | जो देख रहे होंगे क्या सोचेंगे |” वह गुस्से से हांफते हुए बोली |

“सोनू जी आपके साथ बैठ कर कौन जवान नहीं होना चाहेगा |”

“आपको चढ़ गयी है |”

“जब नशे की बोतल साथ में हो तो किसे नहीं चढ़ेगी |”

वह मुस्कुराते हुए बोली “अब तो पक्का है कि आपको चढ़ गयी है वरना ऐसी बहकी-बहकी बातें आपने आजतक नहीं की | आपने तो मेरी जान ही निकाल दी थी|”

“ऐसी बातें कहने का, आपने कभी मौका ही नहीं दिया |”

“अच्छा जी |” कह वह मुस्कुरा देती है |

मैं चुपचाप उसकी तरफ देखता रहा, उसने गाड़ी चलाते हुए कई बार मेरी तरफ देखा और जब कई बार देखने पर भी मैं कुछ नहीं बोला तो वह बोली “ऐसे क्यों देख रहे हो |”

“हूँ”

“हूँ क्या, मैं पूछ रही हूँ, आप ऐसे क्यों देख रहे हो ?”

“ठीक है, नहीं देखता |” कह कर मैं खिड़की से बाहर देखना शुरू कर देता हूँ |

वह मेरा ध्यान अपनी तरफ खीचनें के लिए वह कुछ भी बोलती जा रही थी लेकिन मैंने उसकी तरफ दोबारा नहीं देखा | घर पहुँचने पर जैसे ही उसने गाड़ी खड़ी की तो मैं चुपचाप गाड़ी में से निकल कर आँखें झुकाय-झुकाय बोला “सुखद यात्रा की कामनाएं और शुभ रात्री |” कह मैं लिफ्ट की तरफ चल दिया | वह गाड़ी बंद कर मेरी तरफ भाग कर आती है लेकिन उसके पहुँचने से पहले ही लिफ्ट आ जाती है और मैं लिफ्ट में चढ़ जाता हूँ |

*

मैं सुबह-सुबह नहा कर निकला ही था कि घंटी बज उठती है तो मुझे यही लगता है कि जरूर ही सोनिया आई होगी | मैं दरवाज़ा खोलता हूँ बाई को देखकर निराशा होती है | मैं उसे अंदर आने का रास्ता दे दरवाज़ा बंद कर लेता हूँ | घड़ी पर नज़र जाती है तो समय देख कर एक अज़ीब-सी सिहरन होती है | अगले एक घंटे में हम दोनों के ऑफिस जाने का समय हो जाएगा | पता नहीं, वह अभी आएगी भी की नहीं | दो दिन तो बहुत मुश्किल से निकाल लिए थे पर यह कुछ समय निकलना मुश्किल हो रहा था |

जब आख़िर न रहा गया तो, मैं यह सोचकर कि बाई को तो जरूर पता होगा की वह कब आई है | मैंने रसोई में जाकर बाई से पूछ ही लिया “डॉक्टर साहिबा, आ गईं क्या ?”

“हाँ, वह तो कल देर रात को ही आ गयी थीं |” कह वह अपना काम करने लगती है |

“अच्छा.....|”

बाई काम कर चली जाती है | मैं सोनिया का काफी देर इन्तज़ार करने बाद अनमने मन से ऑफिस के लिए निकल जाता हूँ |

*

शाम को घर पहुँच कर अभी दरवाज़ा खोल ही रहा था कि काम वाली बाई आ गयी|

“बाबूजी, आप मुँह-हाथ धो लीजिये, जब तक मैं चाय बनाती हूँ |”

मैंने मुँह-हाथ धोकर कपड़े बदले और सोफे पर आकर बैठ गया | थोड़ी देर में ही बाई चाय देकर बोली “अच्छा बाबूजी, मैं चलती हूँ |”

मैं हैरानी से पूछता हूँ “काम इतनी जल्दी खत्म हो गया ?”

“हाँ, काम ही क्या था? झाड़ू-पोंचा तो सुबह ही कर दिया था | बस चार बर्तन थे सो साफ़ कर आपके लिए बस चाय ही तो बनानी थी |”

“रात का खाना ?”

“क्यों? आपको डॉक्टर साहिबा ने नहीं बताया कि शाम का खाना वह बनाकर लाएंगी |”

“अच्छा, मुझे तो उन्होंने कुछ नहीं कहा |”

“पता नहीं, अभी कुछ देर पहले तो मिली थीं | मुझसे कह रहीं थीं कि आपका खाना नहीं बनाना, मैं बना कर ला रही हूँ |”

मैं अपनी ख़ुशी छुपाते हुए बोला “हो सकता है | मुझे बोलना उन्हें याद न रहा हो|”

“हाँ हो सकता है | अच्छा, मैं जा रही हूँ | आप दरवाज़ा बंद कर लीजिए |”

“ठीक है |” कह कर मैं उसके जाने के बाद अभी टीवी चलाता ही हूँ कि टेलीफोन की घंटी बज उठती है | फ़ोन उठा कर मैं कितनी देर बच्चों से बातें करता रहा पता ही नहीं चला | फ़ोन अभी रखा ही था कि दरवाज़ा एक झटके से खुलता है और सोनिया खाने का सामान अंदर लाकर जल्दी से वहीँ टेबल पर रख देती है |

“हैलो, कैसे हैं साहिब के मिजाज |”

मैं नज़रें झुकाए हुए ही ज़वाब देता हूँ “ठीक हैं |”

“लगता है, अभी भी भूत उतरा नही है | वैसे दरवाज़ा मेरे लिए खोल कर रखा था | मुझे मालूम था, तभी तो मैंने बिना घंटी बजाए या खड़काए अंदर आ गई|”

“वो तो बाई के जाने के बाद याद ही नहीं रहा |”

“अच्छा, अब यह नाटक छोड़ो और खाने के लिए आप जब तक प्लेट्स वगेरह निकालिए | मैं तब तक आपके लिए शिर्डी से जो लाई हूँ, वह घर से लेकर आती हूँ |” कह वह तेज़ी से बाहर निकल जाती है |

मैं खाने के लिए बर्तन टेबल पर ला कर रख देता हूँ | वह वापिस आकर, सामान साइड टेबल पर रखते हुए बोली “रोटी खा कर दिखाती हूँ |”

“अच्छा आप नाटक छोड़िये और इधर देखिए |” कह वह वहीँ टेबल के पास, रोटी प्लेट्स में डालने के लिए बैठ जाती है |

मैं गुस्सा दिखाते हुए ज़ोर से बोलता हूँ “क्या नाटक-नाटक लगा रखा है | मैं तुम्हें नौटंकी बाज लगता हूँ | चलो उठो यहाँ से |” वह पहले तो उसे मज़ाक समझती है | लेकिन मैं फिर ज़ोर से बोलता हूँ “मैंने क्या कहा उठो यहाँ से?”

वह मेरा गुस्से वाला चेहरा देख, डरकर उठ खड़ी होती है | उसके उठते ही मैं अपनी जगह से उठ कर उसे गले से लगा लेता हूँ | वह कुछ देर तो सहमी-सी आलिंगनबध खड़ी रहती है | मैं कुछ क्षण बाद ही उसे बाहुपाश से मुक्त कर अपनी जगह पर आ कर बैठ जाता हूँ|

मैं यह सब इतनी जल्दी करता हूँ कि वह कुछ समय तो स्तब्ध-सी खड़ी रहती है और फिर धप से बैठते हुए कहती है “आपको शर्म नहीं आती | मेरे से बिना पूछे आपकी हिम्मत कैसे हुई यह सब करने की | आपको क्या मैं ऐसी-वैसी दिखती हूँ|’

“यह आपकी सजा थी |”

“सजा के लिए आप ऐसे करेगें मेरे साथ | बहुत गलत बात है |”

“सोनिया जी आपने ही मुझे दोस्त कहा था |”

“तो, आप ऐसे करेंगे |”

“अरे यार, एक जफ्फी ही तो डाली है | कौन-सा आपको किस कर दिया और अगर आपको बुरा लगा तो उसके लिए ‘sorry’ |”

“आज आप ने कर लिया लेकिन अब यह हरकत दोबारा मत करना |” फिर कुछ रुक कर गुस्से से बोली “मुझे, यह सब बिल्कुल नहीं पसंद, मैं आपकी इज्जत करती हूँ और.....|”

“ठीक है, कृपया मुझे माफ़ कर दें और ऐसी हरकत दोबारा नहीं होगी | यह मेरा वादा रहा |”

वह आंखे नीचे किये, चुपचाप खाना डालने लगती है |

*

“खाना कैसा लगा?”

“मेरी हिम्मत कि मैं आपके बनाए खाने पर कुछ टीका-टिप्पणी करूँ |”

“आपको हो क्या गया है |”

“मैं ऐसा ही हूँ, यह तो आपका ध्यान अब गया है |”

“आप कहना क्या चाहते हो?”

“मैडम, इस संसार में, ईश्वर की बनाई मैं एक अकेली ही कृति हूँ मेरे जैसा कोई और है ही नहीं |”

“अच्छा जी, कहकर वह झूठे बर्तन उठा कर रसोई में चली जाती है|”

“बर्तन उठाने की क्या ज़रूरत थी, सुबह बाई आती तो ले जाती |”

“पहली बात की झूठे बर्तन कमरे में नहीं होने चाहिए और दूसरी बात की रात को रसोई साफ़ कर के ही सोना चाहिए | सारे कीड़े-मकोड़े रात को बर्तन चाटते हैं और फिर चारों तरफ दिखते रहते हैं | मुझे काक्रोच से बहुत घिन आती है | लेकिन यहाँ तो मजबूरी है...|”

“डॉक्टर साहिब काक्रोच को भी रात की पार्टी का मज़ा लेने दिया करो | वो बेचारे हमारे सहारे ही तो जीते हैं | वरना इस भरी दुनिया में कौन है उनका |”

“आप हैं न, पार्टी देने को |”

मेरे दिमाग़ में अचानक एक शरारत सूझती है और मैं ज़ोर से चिल्लाता हूँ “सोनू जी तुम्हारे पैर पर काक्रोच |”

“कहाँ, कहाँ.......|” कहते हुए वह अपनी जगह से कूद कर मेरे पास सोफे के किनारे तक आ जाती है | वह सम्भलने की कोशिश में मेरे पर गिर जाती है |

मैं हँसते हुए बोला “देखा मेरे बच्चों का कमाल |”

यह सुन कर वह फटाफट मेरी गोदी से उठते हुए बोली “काक्रोच था भी या ये आपकी शरारत थी |”

“लगा तो था, अब असल में था कि नहीं अब यह कह नहीं सकता| यदि चार-पांच और होते तो कितना अच्छा होता | मुझे तो आपका गिरना बहुत अच्छा लगा|”

“सब आदमियों की जात एक ही होती है, मौका मिले सही...|” वह अपनी जगह बैठते हुए बोली |

“ऐ मैडम, मेरी जात सबसे अलग है और मैं भाग कर तुम्हारी गोदी में आकर नहीं गिरा था | आप आई हैं और वह भी जानते-बूझते और क्या पता शायद आप मौका ढूंढ़ रही हों|”

“मौका और वो भी तुम्हारे साथ | हुंह........, कभी शक्ल देखी है आइने में|”

“मैडम, रोज देखता हूँ | मुझे नहीं लगता, आपके आस-पास मेरे से सुंदर कोई है|”

“मै किसी को देखती ही नहीं और जिस दिन देखूंगी तो लाइनें लग जाएंगी, समझे|”

“आपको पता है न, स्याना कौआ कहाँ गिरता है |”

वह अपने कंधे उचकाते हुए बोली “मैं कौआ हूँ ही नहीं, मैं तो कौई हूँ, समझे |”

“कौआ होता है कौई शब्द होता ही नहीं | अगर यह शब्द होता भी तो लिखने वाले ने नहीं लिखना था क्योंकि वह जानता था कि वह तो और भी गन्दी जगह पर गिरती |”

“वैसे आपको फालतू बातें लेकर समय बिताना कितना अच्छा लगता है |”

“मेरे लिए आप टाइम पास नहीं हो |”

“ओफ्फ ! आप कितना पकाते हो |”

“ठीक है मत पको, चलो बाहर चलते हैं | आपको खाना खाने के बाद जो खाना अच्छा लगता है वह खिलाते हैं |”

“क्या?”

“मालूम है, रात के समय सड़क के उस पार बहुत सारे आइसक्रीम वाले खड़े होते हैं | चलिए, आपको आइसक्रीम खिलाते हैं|”

“आपको कैसे पता लगा कि मुझे खाने के बाद आइसक्रीम अच्छी लगती है|”

“मैं अक्ल से मंद जो हूँ |”

“बात को टालो मत, बताओ न आपको कैसे मालूम हुआ?”

“मुझे तो बहुत कुछ पता है |”

“जैसे?”

“जैसे कुछ नहीं, मैं तो ऐसे ही कह रहा था | एक दिन बातों-बातों में आपने ही बताया था कि आपको खाना खाने बाद आइसक्रीम खाना अच्छा लगता है |”

“मैंने कब कहा...|”

“अब आइसक्रीम खानी है या बहस करनी है |”

“अच्छा ठीक है | चलिए |”

*

मैंने सुना था कि रात के समय भी बम्बई जैसा शहर जागता रहता है | उस दिन देख भी लिया | हम यह सोच कर गये कि वहाँ कुछ ही लोग होंगे | लेकिन काफ़ी लोगों को देख मैंने आइसक्रीम लेकर सोनिया से कहा “चलिए, यहाँ तो काफी भीड़ है | थोड़ी दूर तक घूम कर आते हैं |”

“अंदर अपने अपार्टमेन्ट की खुली जगह में ही घूम लेते हैं |”

“नहीं, वहाँ फिर आपकी जान-पहचान का कोई मिल जाएगा और आपको तो बस बात करने के लिए कोई चाहिए होता है |”

“आप मेरे बोलने से परेशान हैं क्या ?”

“नहीं, मैं आपकी जान-पहचान से परेशान हूँ |”

“मैं डॉक्टर हूँ, सब को मेरे से जान-पहचान रखनी होती है | क्योंकि उनको कभी भी मेरे से काम पड़ सकता है | मेरे को किसी से जान-पहचान रखने का कोई शौक नही है |”

“ठीक है मान लिया |” कहकर मैं आपर्टमेंट के सामने की सड़क के दूसरी तरफ से आगे बढ़ जाता हूँ | सोनिया को आइसक्रीम खाते-खाते, बार-बार अपने कंधों को रगड़ते देख मुझे याद आता है कि इस समय दिल्ली में तो बहुत ही ज्यादा ठंड पड़ रही होगी | यहाँ इस दिसम्बर के महीने में भी रात के समय महसूस करने लायक ही ठंड है | चुपचाप चलते-चलते काफी दूर निकलने पर वह बोली “काफी दूर निकल आएं है | आप कहें तो वापिस चलें |”

“हाँ ठीक है |”

“क्या हुआ? आप तो बिल्कुल चुप कर गये, वैसे आप चुप अच्छे नहीं लगते|”

“मैं बोलता हूँ तो आप कहती हैं, बहुत बोलते हो | चुप कर जाता हूँ तो कहती हैं कि चुप क्यों कर गए हो |”

“वो मैं वैसे ही आपको चिढ़ाने के लिए कहती हूँ | आप भी बहुत जल्दी बुरा मान जाते हैं |”

“आप बोलिए, कुछ सुनाइए शिर्डी का सफर कैसा रहा |”

“अच्छा था, मेरी बहुत समय से शिर्डी जाने की इच्छा थी | कभी मौका ही नहीं मिला, बहुत सुना था शिर्डी के बारे में | वहाँ जा कर उससे भी ज्यादा अच्छा लगा | ऐसा लगता है वहाँ जाकर जैसे बाबा अभी भी वहाँ हैं |”

“सब मन की सोच है | जैसा सोचेंगे वैसा ही लगेगा |”

“आप एक बार वहाँ जा कर देखिए, आप को भी अच्छा लगेगा |”

“मेरी ऐसी कोई इच्छा नहीं है |”

“मेरी बहुत इच्छा थी आपके साथ जाने की, लेकिन मुझे नहीं पता था की आप नास्तिक हैं |”

“आपको कैसे पता कि मैं नास्तिक हूँ |”

“मुझे सब पता है |” वह मुस्कुराते हुए बोली |

“ठीक है | यह बताइए, मेरे लिए आप क्या लाई हैं |”

“आपके लिए बाबा की एक बहुत ही खूबसूरत फोटो लाई हूँ | बाकी कुछ और लेने का मौका ही नहीं मिला | असल में शनि-इतवार को ख़ास तौर पर वहाँ बहुत भीड़ होती है | एक गलती से मैं उस बेवकूफ आदमी को साथ ले गई थी, उसने रास्ते भर पागल कर दिया |”

“कौन?”

“अरे, वही समीर |”

उसका नाम सुन कर मेरे तन-बदन में आग-सी लग गयी लेकिन फिर भी अपने ऊपर संयम रखते हुए बोला “वह कैसे आपके साथ था |”

“मुझे अब लगता है कि उसने मुझे बेवकूफ बनाया | उसे मालूम था की हॉस्पिटल से हर साल इन दिनों बस शिर्डी जाती है | वह मेरे पास आया और बोला कि मेरी बीवी शिर्डी जाना चाहती है, कृपया आप उसे भी अपने साथ ले जाएँ | उसकी बीवी की बात थी, मैंने बिना सोचे-समझे हाँ कर दी | सुबह वह खुद आ गया और कहने लगा कि हमारी मैडम की तबियत रात को अचानक खराब हो गयी है और उसकी इच्छा है कि उसकी जगह मैं ही शिर्डी हो आऊं |”

“और आप उसे ले गयीं |”

“हाँ, लेकिन रास्ते भर उसकी हरकतें देख कर मुझे लगा कि मैंने गलती कर दी इस इंसान को पहचानने में और यह उसका फायदा उठा रहा है |”

“बहुत जल्दी आपकी आँखें खुल गईं |”

“मतलब?”

“मैडम, आप जैसी बेवकूफ औरत मैंने आज तक नहीं देखी | मैं बहुत समय से इस विषय पर आप से बात करना चाहता था लेकिन हर बार यही सोच कर चुप कर जाता था कि आप को यह बात खुद ही समझ आए तो अच्छा है | मुझे तो हैरानी होती है कि इतना होने के बाद आपको समझ में आया है | वह हर जगह आपको बदनाम करता फिरता है और पता नहीं अब आकर उसने आपके बारे में क्या-क्या फैलाया होगा...|”

“मुझे इन बकवास बातों से क्या लेना | लोगों का काम है हर किसी के बारे में कुछ न कुछ बकना | हम उनके डर से क्या जीना छोड़ दें ?”

“मैडम, वह पहले यह कहता फिरता था कि आप उसे चाहती हैं इसलिए आप उसको अपनी गाड़ी में बैठा अस्पताल ले जाने के बहाने उसके साथ घूमने जाती हैं | वह शाम को आपके घर किसी की दवाई लेने बहाने आता था और बाहर निकल कर कहता था कि मैडम तो आने ही नहीं दे रही थीं | वह कह रही थीं कि रात यहीं रुक जाओ | अब देखो न मेरा भी घर परिवार है, मैडम का तो पता नहीं कोई है या नहीं | अब तो आकर, पता नहीं क्या...|” मैं उसका गुस्से भरा लाल चेहरा देख, कहते-कहते चुप कर जाता हूँ |

कुछ देर तो वह चुप-चाप चलती रही फिर घर पास आते देख तेज़ कदमों से चलते हुए बोली “अक्षित साहिब, मुझे आप से यह उम्मीद नहीं थी कि आप लोगों से मेरी बारे में पूछते फिरेंगे और आपकी बातों से तो लगता है, आप को यह सब सही ही लग रही हैं |”

“मैं क्यों पूछूंगा किसी से ?”

“लोग आपको आ कर ही क्यों बताएँगे ? वह तभी बताएँगे जब आपको सुनने में मज़ा आ रहा हो और उनको सुनाने में...., शर्म नहीं आती आप सबको, किसी को बदनाम करते हुए और उस बाई को मैं नहीं छोडूंगी, वही है सारे झगड़े की जड़ |”

“मुझे तो मालूम था | जब भी मैं बोलूँगा, यही सब होगा |”

“अक्षित साहिब बहुत हुआ | असल में मुझे आज पहचानने में गलती हुई है | आज से मेरे से बात नहीं करना |” कह कर वह आँखे पोंछती हुई तेज़ कदमों से अपार्टमेंट में चली गई और मैं बाहर, अपार्टमेंट के दरवाज़े के पास खड़ा यही सोचता रहा कि क्या मैंने कुछ गलत किया ?

*

सात-आठ दिन सोनिया न आई और न ही उसने कोई बात की | मुझे भी अपनी गलती का एहसास हो रहा था कि इतने खुले ढंग से उसे नहीं बताना चाहिए था | न ही मुझे लोगों से उसके बारे में कुछ सुनना चाहिए था | इस बीच कई बार बाई ने बात करने की कोशिश की तो मैंने हर बार उसे डांट कर चुप करा दिया कि आजकल ऑफिस के काम के दबाव से मैं पहले ही परेशान हूँ |

मैं इतने दिनों तक यही सोचता रहा कि उस दिन उसने भी गुस्से में बहुत गलत बोला और साथ ही यह भी कह दिया की मुझसे दोबारा बात नहीं करना | अब तो उसे ही आना होगा तभी बात होगी | साथ-ही-साथ यह भी सोच आती थी कि मेरी हिम्मत भी नहीं उससे जा कर कुछ कहूँ | पता नहीं उसने, मेरे बारे में क्या-क्या सोच बना ली होगी |

जब पन्द्रह दिन के करीब हो गये हमारी बात-चीत बंद हुए तो मुझे मजबूरन बाई से पूछना ही पड़ा “आजकल मैं तो ऑफिस की परेशानियों की वजह से कुछ ज्यादा ही व्यस्त हूँ लेकिन डॉक्टर साहिबा भी नहीं दिख रही हैं|”

“आपको सब मालूम होगा, क्यों मज़ाक कर रहे हो साब?”

“नहीं, मुझे कुछ नहीं मालूम |”

“हो ही नहीं सकता |”

उसकी बात सुनकर मुझे गुस्सा आ गया लेकिन फिर भी गुस्से को नियंत्रित करते हुए बोला “मैं जब कह रहा हूँ कि उनसे मुलाकात हुए करीब दस-पन्द्रह दिन हो गये हैं | तुम देख ही रही हो आजकल ऑफिस से भी देर से आता हूँ | वहाँ भी कुछ काम ज्यादा है और अचानक परेशानियाँ भी बढ़ गई हैं | समय ही नहीं मिला डॉक्टर साहिबा से बात करने का और वो भी शायद व्यस्त होंगी तभी यहाँ आई भी नहीं हैं |”

“वह आएँगी कैसे? वह तो वापिस दिल्ली चली गई हैं |”

“क्या.....?”

“हाँ साहिब, उनका वो प्रोजेक्ट भी खत्म हो रहा था और उनके घर में भी कोई बहुत बड़ी परेशानी आ गयी थी | इसलिए वह अपना काम दो-तीन दिन पहले ही खत्म कर आज से चार दिन पहले ही सदा के लिए दिल्ली चली गई हैं |”

“सब सामान वगेरह भी ले गईं?”

“उनका सामान ही क्या था? सिर्फ़ कपड़े ही तो थे बाकी सब तो उन्हें अस्पताल से ही मिला हुआ था |”

मैं अपना गुस्सा या यूँ कहें तो गम छुपाते हुए बोला “किसी को पता है, वह दिल्ली में कहाँ रहती हैं ?”

“साहिब, अगर आपको नहीं पता तो फिर किसी को क्या मालूम ? अच्छा साब दरवाज़ा बन्द कर लीजिए |”

मैं “हाँ” कर उठा लेकिन फिर वहीं बैठ गया | मुझे बहुत आत्मग्लानि हो रही थी कि ज़रा सी बेवकूफी से एक अच्छी दोस्त खो दी | पता नहीं अब वह कभी मिल भी पायेगी या नहीं? इतनी बड़ी दिल्ली में उसे कैसे और कहाँ ढूंढ़ूगा?

*

अगले पूरे हफ्ते मैंने हर तरह से उसके बारे में पता करने की कोशिश की लेकिन हर जगह से मुझे नाकामयाबी ही हाथ लगी |

उस दिन मुझे अपने ऊपर बहुत गुस्सा आ रहा था कि वह इतना समय मेरे साथ रही फिर भी मैंने उसके बारे में कुछ भी पूछने की कोशिश नहीं की | मुझे यह सोच कर भी हैरानी हो रही थी कि उसने भी मुझसे कभी भी इस विषय पर बात नहीं की और न ही कभी मेरे बारे में पूछा | आज सोच-सोच कर बहुत ही अज़ीब-सा महसूस हो रहा था कि वह रहस्यपूर्ण तरीके से आई, मिली, समय बिताया और हर राज़ अपने साथ ही लेकर चली गई |

*

एक दिन घर फ़ोन करने पर पता चला कि अभी-अभी मेरी माँ की तबियत अचानक खराब होने पर सोमेश माँ को अस्पताल ले गया है | सोमेश से बात हुई तो उसने बताया कि यदि मैं यहाँ आ जाऊं तो अच्छा रहेगा क्योंकि माँ मुझे बहुत याद कर रही है | मैं यह सुनकर काफी परेशान हो उसी रात दिल्ली रवाना हो गया |

माँ ठीक हो कर घर तो वापिस आ गईं पर अब उनमें वह ताकत और हिम्मत नहीं रह गयी थी | उनकी गिरती सेहत देख, मैंने अपने ऑफिस में अनुरोध किया कि मुझे दिल्ली वापिस बुला लिया जाए क्योंकि अब मेरे घर के हालात ठीक नहीं है| ईश्वर की कृपा से वह मान गये और मैं दिल्ली वापिस आ गया |

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