प्रेम मोक्ष - 11 - अंतिम भाग Sohail K Saifi द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • स्वयंवधू - 31

    विनाशकारी जन्मदिन भाग 4दाहिने हाथ ज़ंजीर ने वो काली तरल महाश...

  • प्रेम और युद्ध - 5

    अध्याय 5: आर्या और अर्जुन की यात्रा में एक नए मोड़ की शुरुआत...

  • Krick और Nakchadi - 2

    " कहानी मे अब क्रिक और नकचडी की दोस्ती प्रेम मे बदल गई थी। क...

  • Devil I Hate You - 21

    जिसे सून मिहींर,,,,,,,,रूही को ऊपर से नीचे देखते हुए,,,,,अपन...

  • शोहरत का घमंड - 102

    अपनी मॉम की बाते सुन कर आर्यन को बहुत ही गुस्सा आता है और वो...

श्रेणी
शेयर करे

प्रेम मोक्ष - 11 - अंतिम भाग

अविनाश को जब होश आया तब उसने खुदको तेख़ाने में बंधा पाया साथ मे चंद्रिका भी बेहोश पड़ी थी, आस पास की चीजों को देख कर अविनाश समझ गया कि इस समय वो हवेली के तेख़ाने में है।

वो पहले खुद को छुड़ाने का प्रयास करता है फिर थक कर चंद्रिका को उठाने का,
इसी बीच चमड़े के जूतों की टक टक करके उसकी ओर किसी के आने की आवाज आती है। जैसे जैसे वो व्यक्ति पास आता जाता है अविनाश का डर बढ़ता जाता है। और जब वो व्यक्ति ठीक अविनाश के सामने आया तो अविनाश हकाबका रह गया और बोला" सुभाष तुम ? तुमने तो मुझे डरा ही दिया था सुनो मुझे पता है तुम्हारा इन सब बातों पर विश्वास नही है। मगर इस हवेली में कुछ पारलौकिक शक्तियों का वास है। उन शक्तियों ने ही मुझे और चंद्रिका को यहाँ इस हाल में ला पटका, इससे पहले कोई अनहोनी हो तुम मेरे हाथ पैर खोलो ताकि जल्द से जल्द हम यहां से निकल सके ।

अविनाश की इन सभी बातों पर सुभाष ने कोई प्रतिक्रिया नही दिखाई बल्कि सुभाष को तो कोई फर्क ही नही पड़ रहा था वो अविनाश के पास जाने के जगह अविनाश के सामने रखे एक प्राचीन सिहांसन पर बड़े ही गर्व से बैठ गया,
इस व्यवहार को देख कर अविनाश को बड़ा अजीब सा लगा और वो संदेह भरे स्वर में बोला" सुभाष.... सुभाष तुम्हे समझ भी आ रहा है। मैं क्या बोल रहा हूँ। सुभाष... सुभाष...
अंत मे अविनाश तेज स्वर में सुभाष को पुकारता है। मगर सुभाष पैर पर पैर रख कर राजाओ की भांति बैठा रहा इतने में चंद्रिका को भी होश आ गया और वो सुभाष को अपने सामने बैठा देख कर सब कुछ समझ गई।
अविनाश ने जब चंद्रिका को जगा हुआ देखा तो वो चंद्रिका को दुविधाओं की नज़र से ऐसे देखता है। जैसे पूछ रहा हो आखिर यहाँ पर क्या हो रहा है।
चंद्रिका भी अविनाश की दुविधा को भाँप गई और बोली " अविनाश तुम जिसे अपना भाई सुभाष समझ रहे हो असल मे केवल ये शरीर सुभाष का है, मगर इसमे आत्मा राजा रणवीर की है। जो तुम्हारे पूर्वजो में से एक है।
अविनाश " क्या मतलब मेरे भाई पर किसी प्रेत का साया है।

चंद्रिका" " हां कुछ ऐसा ही किन्तु एक अंतर है। तुम्हारा भाई अब जीवित नही है।

अविनाश " असम्भव प्रेतों का कुछ ज्ञान मुझे भी है। जिसके अनुसार कोई भी प्रेत किसी मृत शरीर मे वास नही कर सकता।
इतनी बात सुन कर सुभाष के शरीर का प्रेत जोर जोर से राक्षसी हँसी हसने लगा फिर उसके बाद बोला " यदि कोई साधारण प्रेत हो तो वो ऐसा नही कर सकता परंतु मेरे जैसा प्रेत जिसको चालीस दिनों के महायज्ञ को कर के बांध देने के वर्षों बाद मुक्ति मिल जाए, उसके लिए ऐसा करना सम्भव है।

अविनाश " मतलब...??

प्रेत " जब मेरे नीच भाई ने अनेकों क्रियाओं के पश्चात मुझे बांध दिया था तो कुछ वर्षों तक वो इस तेख़ाने मे नही आया लेकिन एक दिन उस पापी ने एक अबला को जबरन पकड़ कर इस तेख़ाने मे ठीक उसी जगह जिंदा चुनवा दिया, जिस जगह कभी मुझे दफन किया था उस समय वो अबला रोती बिलखती उस दुष्ट से दया की भीख मांगती रही मगर उसने एक ना सुनी उस समय मे बंधन में बँधा था इलिय मैं देखने के सिवा कुछ और ना कर सका फिर सात दिन की दर्दनाक स्थिति को झेलने के बाद उस कन्या ने अपने प्राण त्याग दिये और उसकी मृत्यु से वो स्थान फिर से अपवित्र हो गया और किसी भी अपवित्र स्थान पर कोई भी पवित्र क्रिया टिकी नही रहती इसीलिए मैं भी बंधन मुक्त हो गया और साथ मे मुझे और भी अधिक शक्तियां प्राप्त हुई। और जानते हो वो अबला कौन थी यही चंद्रिका तुम्हारा अमर प्रेम
और जब में मुक्त हुआ तो मैंने सबसे पहले उस नीच पापी और उसकी पत्नी का अंत किया इन सभी हत्याओ में चंद्रिका ने मेरा पूरा साथ दिया, मगर दुर्भाग्य से उसके दो बेटे अलग अलग स्थान पर जा बसे जिसके कारण मैं उसके अपवित्र रक्त का सम्पूर्ण अंत नही कर पाया मगर कुछ ही वर्षो में उसके विदेश गए बेटे का परिवार यहाँ आया और उनको भी मैने मोत के घाट उतार दिया अब रह गया था तो एक तुम्हारे पिता जिनके दो पुत्र थे जिसमें से एक को मैने पहले मार दिया और दूसरे को आज मार डालूंगा फिर इस धरती से उसके अंश का खात्मा हो जाएगा

अविनाश " इसका मतलब वो जंगल मे मिला सुभाष और उसदिन हवेली के आंगन में दिखा काला साया मेरा भ्रम नही बल्कि सुभाष की आत्मा थी जो मुझे इस जगह से भागाना चाहती थी,

प्रेत " जी हाँ ( हल्की मुस्कान दिखाते हुए)




अविनाश " लेकिन तुम एक बात भूल रहे हो कुछ सालों पहले विदेश से आये विक्रम की एक बेटी को कोई जीवित बचा कर ले गया था और वो आज भी जीवित होगी इसलिए तुम कभी हमारे वंश का सर्वनाश नही कर पाओगे । इसपर अविनाश विजय मुस्कान दिखाता है।

लेकिन प्रेत उसकी इस बात पर जोर जोर से हस्ते हुए बोलता है" जिस युवती की लाश पुलिस को सुभाष की गाड़ी में मिली थी तुम्हे क्या लगता है । वो कौन थी वो वही अभागनी थी जो खुद ब खुद अपने काल के पास खिंची चली आई थी, उसके भीतर तुम्हारी प्रेमिका ने ही वास किया था और सुभाष को मारने के लिए निकल पड़ी लेकिन अफसोस जब उसने सुभाष को स्पर्श किया तो उसको तुम्हारा पता चला और तुरंत ही उसने पाला बदल लिया जब मौका मिलने पर भी चंद्रिका ने किसी को नही मारा तो मुझे थोड़ा संदेह हुआ इसलिये ये कार्य मैंने स्वयं किया, और उनकी गाड़ी को दुर्घटनाग्रस्त करके उन दोनों को मौत की आगोश में सुला दिया।उसके बाद जब मैं सुभाष के शरीर मे घूंसा तो मुझे सब कुछ समझ आ गया, आखिर क्यों चंद्रिका ने ऐसा किया लेकिन मैंने चंद्रिका को ये सब नही बताया और उसको भी लगा कि मैं कुछ नही जानता। इसलिये वो मेरे साथ होने का नाटक करने लगी ताकि सही समय आने पर मुझे मार कर तुम्हे बचा सके लेकिन मैं हर समय तुम दोनो पर नज़र गड़ाए बैठा था और आज तुम मेरे सामने हो,

इतना सुन अविनाश समझ गया जिस युवती की लाश उसको अजाब सिंह ने दिखाई थी वो अविनाश के खानदान की एक वारिस थी अविनाश इस बात पर तिलमिला गया क्रोध से उसका मुंह लाल हो गया और गुस्से में उठकर प्रेत की तरफ उछला मगर हाथ पैर बंधे होने के कारण वो वही गिर गया इस पर प्रेत फिर से हंसने लगा तभी गोली चलने की आवाज़ आई और गोली सीधा प्रेत के शरीर मे आ लगी।
गोली चलाने वाला व्यक्ति अजाब सिंह था जो प्रेत को सुभाष समझ कर गोली मरता है। लेकिन वो प्रेत था और भला गोली से प्रेत का क्या हो सकता था हा इस पर प्रेत बोखला गया और अजाब सिंह की दूसरी गोली चलने से पहले ही उस पर कूद पड़ा प्रेत के अंदर अपार बल था इसलिये अजाब जैसा बलशाली व्यक्ति भी उसके लिए किसी बच्चे समान कमजोर सिद्ध हुआ इसी बीच चंद्रिका ने पास पड़े काँच के एक टुकड़े से अपनी और अविनाश की रस्सी झटपट काट दी और जैसे ही प्रेत अजाब सिंह को अदमरा कर के उठा तो अविनाश ने एक कलश का पानी उस पर फेंक दिया इस कलश को चंद्रिका ने अविनाश को दिया था वो पानी उसके उप्पर पड़ते ही वो दर्द से करहाने लगा उसके शरीर से धुँआ निकलना शुरू हो गया और वो बेहोश हो गया तब अविनाश ने उसको घसीट कर पास की एक कोठरी में बंद कर दिया।


चंद्रिका ने अविनाश को इशारा करते हुए बोला
" " वो जो दीवार है। उसके पीछे दो लोगों के कंकाल दफन है। इस राक्षस को रोकने के लिए तुम्हे उन दोनों कंकालों का क्रिया क्रम करना होगा अब जाओ और उस दीवार को तोड़ दो।

अविनाश" लेकिन इस से तो तुम भी ..... नही मैं ये नही कर सकता मैं तुम्हे नही खो सकता

चंद्रिका "जब तक मैं तुम्हारी यादों में हूँ तूम मुझे कभी नही खो सकते मगर ये क्रिया करनी अत्यंत आवयशक है। यहाँ बात केवल तुम्हारी या मेरी नही है। कियोकि अपना बदला लेने के बाद भी उसकी आत्मा को शांति नही मिलेगी और इसलिये वो आगे भी कई मासूमो को मरेगा, हमें ये सब होने नहीं देना है उसको जड़ से इस लोक से उखाड़ना है तो मेरे कंकाल को भी भस्म करना होगा कियोकि इतने वर्षों में उसने अपनी आत्मा के कुछ अंश मेरे कंकाल में भी स्थापित कर दिए ( चंद्रिका अविनाश का हाथ अपने सिर पर रख कर) तुम्हे मेरी सोंगन्ध तुम्हे ये करना ही होगा।

अविनाश के लिए ये सब करना बेहद मुश्किल था मगर तर्कों के आधार पर चंद्रिका ने उसको मना ही लिया एक अंतिम बार दोनों गले लगे और प्रेम मिलाप के कुछ बूंद आंखों से बहाए फिर अविनाश ने उस दीवार को तोड़ना आरम्भ किया चंद्रिका उस कोठरी के बाहर निगरानी रखने लगी जिसमे प्रेत बन्द था

उधर बिहोश पड़ा प्रेत उठ गया उसने जब खुद को कोठरी के भीतर कैद पाया तो उसने बल नीति की जगह छल नीति का उपयोग किया वो सुभष के शरीर से बाहर आया ताकि चंद्रिका को लगे वो अब भी बेहोश हैं। और वो आसानी से कोठरी से निकल सके। अब बाहर निकल कर उसने अविनाश के सामने एक भ्रमजाल फैलाया जिससे अविनाश को दीवार तोड़ते तोड़ते अचानक ऐसा लगा वो हवेली के बाहर है। अपने आपको बाहर देख अविनाश सकपका गया फीर मुड़ा और हवेली को अपने पीछे पाया, वो हवेली की तरफ दौड़ा तो उसको रणवीर का प्रेत अंदर जाने से रोकने लगा, अविनाश ने जो भाला दीवार खोदने के लिए पकड़ा हुआ था उस से ही प्रेत पर अविनाश ने वार किया इस प्रकार दो से तीन बार जोरदार वार किया लेकिन हर बार वो बज जाता फिर अंतिम वार से वो प्रेत बच ना सका और अविनाश ने भाला उसके सिर में घुसा दिया अचानक प्रेत का बिछाया भ्रम जाल टूट गया और अविनाश ने खुद को तेख़ाने में ही पाया और अविनाश ने जिसको मारा था वो प्रेत नही अजाब सिंह था जो रक्त में लतपत मृत पड़ा था असल मे हुआ ये था प्रेत ने जो भ्रमजाल फैलाया था उसमें अविनाश जिस ओर भाग रहा था वो तेख़ाने से बाहर निकलने का रास्ता था और अजाब सिंह उसको बाहर जाने से रोकने का प्रयास कर रहा था वो प्रेत अविनाश को तेख़ाने से बाहर भेजने में सफल हो भी जाता किन्तु इन सब पर चंद्रिका की नज़र पड़ गई और मामले को समझते हुए उसने भी शरीर छोड़ कर आत्मा रूप ले कर वो रणवीर के प्रेत से जा भिड़ी तो रणवीर अपनी सुरक्षा करते समय वो भ्रम जाल कायम ना रख सका। अविनाश को अजाब की मृत्यु से बड़ा आघात लगा लेकिन दो प्रेतों के अदृश्य युद्ध के कारण उस तेख़ाने की दीवारें भूकम्म की भांति कम्पन करने लगी साथ मे धम धम की जोरदार आवाजे भी अविनाश को सुनाई देती जैसे कोई किसी हाथी को बार बार पटक रहा हो, मामले की गंभीरता को देखते हुए अविनाश को लगा अब और अधिक विलम्भ प्राण घातक सिद्ध होगा, बस वो बिना किसी चीज़ पर ध्यान दिए वो अपने दीवार तोड़ने के कार्य मे दोबारा जूट गया।
इस बीच चंद्रिका और रणवीर के प्रेत में घंघोर युद्ध हो रहा था भले ही रणवीर अधिक शक्तिशाली प्रेत था किन्तु चंद्रिका भी इस प्रेत युद्ध मे कुछ कम साबित नही हो रही थी और ऐसा शायद इसलिए था के वो अपने प्रेम के लिए लड़ रही थी और रणवीर अपने क्रोध को शांत करने के लिए
इस युद्ध मे चन्द्रिका बुरी तरह घायल हो गई थी मगर किसी भी प्रकार से हार मानने को तैयार नही थी

तबतक अविनाश ने दीवार तोड़ कर उन कंकालों को निकाल लिया था जिसे रणवीर सिंह देखते ही चन्द्रिका से लड़ना छोड़ अविनाश की ओर लपक पड़ा मगर चन्द्रिका ने भी अपनी सारी शक्ति एकत्रित कर के उसको जकड़ लिया,
अविनाश इतना तो समझ गया अब और अधिक विलंब करना प्राण घातक सिद्ध होगा, इसलिए उसने तुरंत उन हड्डियों को अग्नि के सुपुर्त कर दिया, उन हड्डियों के जलते ही चंद्रिका और रणवीर दोनों के प्रेतों की पीड़ा दयाक चीत्कार पूरी हवेली में गूंज उठी उनकी भयंकर चीत्कार विशेष कर चंद्रिका की सुनकर अविनाश रो पड़ा वो चंद्रिका के कष्ट को पूर्ण रूप से महसूस कर सकता था जब हड्डीयां पूर्ण रूप से भस्म हो गई तो वहाँ पर सम्पूर्ण शांति स्थापित हो गई। अविनाश बुरी तरह टूट गया वो पागलो की भांति चंद्रिका की राख को अपने सीने से बार बार लगा कर विलाप करने लगा और चंद्रिका का नाम जपते हुए फुट फुट कर रोता इस प्रकार का विलाप कई घंटों तक चला अंत मे जब सुबह हुई तो अविनाश खुद को संभाल कर बाहर निकल आया बाहर झाड़ियो में उसको दिलबाग सिंह की दो टुकड़ों में कटी लाश भी मिली जिसको संभवत रणवीर ने मारा होगा, अविनाश वहाँ से निकल कर अपने घर नही गया बल्कि वो उन जंगलो में जा कर कही खो गया, कियोंकि वो जनता था कि संसार मे कोई उसके ऊपर विश्वास नही करेगा और वो कहेगा भी क्या और साबित कैसे करेगा।
और वो सही भी था जब अजाब सिंह को लापता हुए 24 घंटो से अधिक हो गए तो एक खोजी दस्ता उसकी खोज में उस हवेली पर भेजा गया, जब खोजकर्ता हवेली पहुंचे तो सबसे पहले उनको दिलबाग की कटी हुई लाश मिली फिर बाद में उनको लाशो का ढेर मिला उन्हें अजाब सिंह और पास के गांव की एक लड़की की लाश मिली साथ मे वो औज़ार भी मिला जिससे अजाब की हत्या हुई थी और उस पर अविनाश की उंगलियों के निशान थे। अब पुलिस के लिए ये साफ था कि इन सब मे केवल अविनाश ही अपराधी है ऊपर से अविनाश का गायब होना उनके शक को मजबूत कर गया। जगह जगह अविनाश के संगीन अपराधी होने के प्रचार कराये गए। मगर वो हाथ नही आया कोई नही जानता था वो कहा गया और आज भी अविनाश लापता है।