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प्रेम मोक्ष - 8

अजाब सिंह ने दिलबाग से जिस दिन आने का वादा किया था। उस दिन अजाब दिलबाग के पास ना जा कर नेहा के माता पिता की छान बिन में जुट जाता है।
छान बिन करते समय अजाब के हाथ एक ऐसा ठोस सबूत लगता है। जिस से उसको इस गुथी का एक सिरा मिल जाता है। इसलिय वो सीधा नेहा के माता पिता के पास पहुँच गया।

अजाब एक ओर कुर्सी पर बेठा हुआ अपने सामने बैठे नेहा के पिता किशोर यादव की ओर संदेह दृष्टि से देखे जा रहा था तभी नेहा की माता चाय ले कर आती है। और दोनों पुरषो के बीच मे पड़ी टेबल पर रख कर अपने पति देव के दाई ओर जा कर बैठ जाती है।

अजाब चाय की चुस्की ले कर बोला" यादव जी आपने कभी बताया नही के आप पहले राजा सूर्य प्रताब सिंह औऱ उनके खानदान के पीढ़ियों से चले आ रहे वफ़ादार नोकरो में से थे?.....?

इस सवाल ने किशोर यादव के होश उड़ा दिए, उसके हाथ से चाय की पियाली छूट कर ज़मीन पर आ गिरी जिसे उसकी पत्नी ने झट पट उठ कर साफ किया। जब सब कुछ वापिस से सामान्य हुआ तो अजाब सिंह ने अपना सवाल फिर से दोहराया जिसके उत्तर में किशोर हड़बड़ा कर बोला " माफ कीजियेगा साहब मैं इसको बताना भूल गया ।

अजाब " नही आप भूले नही बल्कि जान बूझ कर आपने ये बात मुझसे छुपाई है।

यादव " छुपाई है। आप कैसी बेतुकी बात कर रहे है। भला मैं ये सब क्यों छुपाउँगा, सीधी सी तो बात है मालिक,
मुझे याद नही आई

अजाब " तब भी नही जब मैंने सुभाष के बारे में पूछते समय बताया था के वो राजा सूर्य प्रताप सिंह के खानदान से है।

यादव हकलाते हुए " हहहह हां उस समय भी नही....

अजाब " ठीक है मान लेता हूँ आप उस समय बताना भूल गए। लेकिन आपने एक और बात नही बताई के नेहा आपकी लड़की नही है।

यादव अपनी आँखों को फैला कर बोला" क्या बकवास कर रहे हो आप।



किशोर का इतना बोलना था के अजाब सिंह ने अपनी जेब से एक जन्म पत्री (birth proof) निकाल कर यादव के सामने पटक दी और बोला"

नाम नेहा प्रताब सिंह पिता का नाम विक्रम प्रताब सिंह माता का नाम संचिता देवी जन्म तिथि 3 अगस्त 1998,
ये जन्म पत्री तुम्हारे गुनाहों का जीता जागता सबूत है यादव,
साल 2000 मई के महीने में राजा सूर्य प्रताब सिंह के वंशक विक्रम प्रताब सिंह विदेश से यात्रा कर अपनी पत्नी और दो वर्षीय बेटी नेहा के साथ हिंदुस्तान आये थे और अपनी उस पुश्तेनी हवेली में ठहरे थे उनकी देख भाल का पूरा जिम्मा तुम्हारे हाथों में था सप्तह भर सब कुछ ठीक था फिर एक दिन सुबह को तुम जब हवेली में पहुचे,
तो तुमने देखा विक्रम और उसकी पत्नी ने फांसी लगा कर आत्मा हत्या कर ली है और उनकी दो वर्ष की बालिका भी लापता है। तुमने पुलिस को सूचना दी कई दिनों तक छान बिन हुई मगर कोई भी सुराग हाथ ना आया।

वही तुम 4जून 2000 को यहाँ आये और अचानक तुम्हारी 2 वर्ष की बेटी भी आ टपकी इतना ही नही तुम्हे ईश्वर की इतनी कृपा मिली के एक दयावान आदमी अपना खानदानी जान से भी प्यारा घर दान में दे देता है। अब बाकी का सच तुम खुद बोलोगे। या मैं तुम्हे थाने ले जा कर तुम्हारे हलक में हाथ डाल कर बाहर निकालू......................





जब सुभाष अविनाश को उस गुप्त तेख़ाने में ले गया तो वहाँ पर कई दरवाजे थे, जिनको देख कर लगता था के इनके अंदर कमरे होंगे, मगर वो सभी दरवाजे केवल दिखावे के थे। असली रास्ता तो उस दीवार में से निकला जिसके पास रखी एक मूर्ति को सुभाष ने घुमाया और उस मूर्ति को घुमाने से पहले ये बता पाना के वहाँ कोई खुफिया रास्ता है असंभव था।

वो गुप्त द्वार खुलने के बाद सुभाष के साथ अविनाश ने उसमे प्रवेश किया। वो कमरा बेहद ही शानदार कलाकृतियों से भरा पड़ा था उस कमरे में राजमिस्त्रयो द्वारा ऐसी उत्तम कारीगरी की हुई थी, के दिन के समय सूर्य द्वारा और रात के समय चंद्रमा द्वारा वहाँ के दरवाजे खुलते ही रोशनी हो जाती थी। उस कमरे की दीवारों पर शिल्पयों द्वारा बड़ी ही सुन्दर नकाशी कराई हुई थी।
कहने को तो वो केवल एक ही कमरा था मगर अन्दर प्रवेश करने पर पता लगता था के उसने हवेली की एक तिहाई जमीन घेर रखी थी। जिस के कारण वो काफी लंबा चौड़ा कमरा था कमरे के बीचों बीच एक दीवार खड़ी थी जिसमे अविनाश के राज वंश की शाखाएं नाम और चित्र द्वारा गुदी हुई थी। बस उनके वंश की नई पीढ़ियों का चित्र नहीं था केवल नाम था।

सुभाष उन चित्रों मे से एक की और संकेत करके अविनाश से बोला " ये हमारे पर दादा राजा सूर्य प्रताब सिंह हैँ। बड़े ही सहासी और उपकारी पुरुष थे लोगो मे दूर दूर तक इनके गुणगान हुआ करता था।

इसके बाद सुभाष आगे की श्रृंखला बढ़ाते हुए बोला

" इनकी तीन संताने थी जिनमे से ये चित्र बड़े पुत्र रणवीर प्रताब सिंह का हैँ।......
और ये चित्र दूसरी संतान विमला देवी का हैँ।........
और ये अंतिम चित्र उनके तीसरे पुत्र और हमारे दादा उतरा आदित्य सिंह का हैँ।
पता हैँ। हमारे परदादा की संतानो के साथ एक बड़ी ही रहस्यमय और गम्भीर कहानी जुडी हुई।


अविनाश " और वो क्या हैँ......???

सुभाष " राज घराने की परम्पराओ के अनुसार राज गद्दी का असली हक़दार बड़ा पुत्र होता हैँ। जो की रणवीर प्रताब सिंह था किन्तु उनके विवहा पश्चात् उनको वर्षो तक कोई पुत्र नहीं हुआ, जिससे लोगो को बल्कि खुद रणवीर प्रताब सिंह को भी भविष्य मे संतान प्राप्ति का कभी सुख नहीं मिलेगा ऐसा विश्वास हो गया था।
अब समाज के हिसाब से किसी ऐसे व्यक्ति का राज गद्दी पर बैठना उचित नहीं था जिसके कोई संतान ही ना हो। इसलिए राज गद्दी का अधिकार हमारे दादा उतरा आदित्य सिंह को दे दिया गया। जिस पर उनके बड़े भाई रणवीर ने भी कोई आपत्ति नहीं जताई। अब तक हमारे दादा के दो पुत्र हो चुके थे। जिसमे बड़े पुत्र का नाम उदय और छोटे का नाम तेज़ था। कुछ वर्षो मे उदय का भी विवहा हो गया।

सब कुछ इसी प्रकार से सामान्य चल रहा था के तभी एक चमत्कार हुआ।
हुआ ये के रणवीर प्रताब की पत्नी बुढ़ापे मे गर्भवती हो गई। जिस ने सब चौका दिया, मगर विधि का विधान कौन बदल सकता हैँ। सो हमारे दादा और लोगो ने मिलकर रणवीर प्रताब सिंह को उनकी इच्छा के विरुद्ध जा कर वापस राज गद्दी पर बिठा दिया।
आने वाले नौ माह तक हवेली मे उत्सव का सा माहौल रहा और फिर एक दिन वो काली मनहूस रात आई जब रणवीर की संतान ने जन्म लिया लेकिन जीवित नहीं मृत।
यहाँ तक की उनकी पत्नी भी जीवित ना रह पाई और इन सब दुखों का रणवीर प्रताब पर इतना गेहरा प्रभाव पड़ा के वो रातो रात इस राज्य को छोड़ कर अज्ञात वास मे चले गये। हमारे दादा ने अपने बड़े भाई की बहुत ख़ोज बिन करवाई पर उनका कोई पता ना चला।
अब तक जो कुछ हुआ था वो तो केवल हमारे परिवार के दुखो की शुरुआत थी इसके बाद तो जैसे हमारे परिवार के साथ कोई श्राप जुड़ गया हो।

कियोंकि इसके बाद बड़े ही अविश्वसनीय और रहस्यमय रूप से हमारे परिवार के सदस्यों की अज्ञात कारणों से एक एक कर मृत्यु होने लगी।
सबसे पहले हमारे दादा की बड़ी बहन के दो जवान बेटों की इस हवेली मे बड़ी ही भयंकर मृत्यु हुई। उसके बाद हमारे दादा की बहन भी जीवित ना रही। अबतक परिवार के सभी सदस्य बुरी तरह से भयभीत हो गये थे हवेली का प्रत्येक सदस्य डरा सहमा रहता। हवेली मे अजीबो गरीब भुताह घटनाओ का सिलसिला सा बंध गया।

अभी तक की घटनाओ से हमारा परिवार उभरा भी नहीं था के हमारे दादा के छोटे पुत्र तेज़ की किसी ने हत्या कर दी। तेज़ की हत्या ने उदय को काफ़ी परेशान कर दिया। और उन्होंने अपनी पत्नी के साथ उसी समय विदेश की ओर प्रस्थान किया। हमारे दादा और उदय के बिच मे इस बात पर काफ़ी गरमा गर्मी हुई और उदय के चले जाने से गुस्सा हो कर हमारे दादा ने उनके साथ सारे सम्बन्ध तोड़ दिए।
कुछ समय बाद पुत्र शोक के कारण हमारी दादी का भी दिहांत हो गया।

इन सब से परेशान हो कर हमारे दादा ने इस हवेली मे चालीस दिनों तक महा यज्ञ करवाया और इस हवेली को भविष्य मे होने वाली हानि से बचाया।
हवेली के सुरक्षित होते ही हमारे दादा ने एक और विवहा किया। और उस से उनकी तीन पुत्रियां और दो जुड़वा पुत्र हुए।

उनकी पहली पुत्री का नाम कंदला था
उसके बाद उनके दो जुड़वा लड़के हुए एक अजय प्रताब सिंह यानि हमारे पिताजी और दूसरे चंद्र देव सिंह थे।

उसके बाद हमारे दादा को कौमुदी और फिर कंचना नाम की पुत्रियां हुई।
ये पाँचो चित्र उन्ही संतान के हैँ।
उन पांच चित्रों मे से चंद्र देव के चित्र ने अविनाश का सारा ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लिया और अविनाश बड़ी हैरानी से उस चित्र को बस देखे ही जा रहा था तभी सुभाष बोला।

सुभाष " क्या हुआ भाई साहब, किस चीज़ मे खो गये हो,


अविनाश " यार सुभाष क्या तुम्हें चंद्र देव सिंह की सूरत मुझसे मिलती जुलती लग रही हैँ। या ये केवल मेरा भ्रम है।

सुभाष " बिलकुल हूबहू आप उनके हमशक्ल हो, पर इसमें अचंभित होने की कोनसी बात हैँ। वैज्ञानिक रूप से एक ही वंश के लोगो की शक्ल एक जैसी होना या एक दूसरे से मिलती जुलती दिखना। सामान्य बात हैँ।

अविनाश "अर्रे मेरा मतलब कुछ और था खेर जाने दो, अच्छा तुम इनके बारे मे क्या जानते हो।

सुभाष " किनके...? अपने चंद्र देव के बारे मे।

अवि " हा इनके ही बारे मे।

सुभाष " ज्यादा नहीं बस इतना जानता हुँ। के इन्होने हमारे दादा पर प्राण घातक हमला किया था जिसमे दादा जी घायल तो हुए किन्तु जीवित बच निकले और बाद मे हमारे दादा ने इनको मृत्यु दंड दे दिया था।


अविनाश " क्या...... ? इन्होने दादा जी पर जान लेवा हमला किया था। पर क्यों??...

सुभाष " ये सब तो मुझे नहीं पता पर शायद तुम्हे कुछ याद आ जाये।

अविनाश " क्या मतलब??

सुभाष अविनाश से कहना क्या चाहता था ये तो पता नहीं, पर सुभाष ने अवि के प्रशन पर ऐसे भाव दर्शाय जैसे वो अवि से मजाक कर रहा हो, और उसी चंचल हंसी मे खिलखिला कर हँसता हुआ सुभाष बोला "
मेरा मतलब हैँ। जैसे कोई दूसरा जन्म वगेरा।

अविनाश को अब इस बात का अर्थ केवल सुभाष का हंसी मजाक के साथ छेड़ खानी करने का लगा।
और उसने भी प्रति उत्तर मे ठहाके मार कर हंसना चालू कर दिया।

थोड़ी देर हंसी मजाक करने के बाद सुभाष फिर से बोला

सुभाष " चंद्र देव की मृत्यु पश्चात् इस हवेली मे उन रहस्यमय घटनाओ का सिलसिला फिर से सक्रिय हो गया। चंद्र देव की मृत्यु के अगले ही दिन उनकी तीनो बहनो की लाश इस तेखाने मे मिली। और तो और दो से तीन दिन बाद हमारे दादा और हमारी दादी की लाशें भी इसी तेखाने मे मिली।
इन घटनाओ ने हमारे पिता जी को बेहद भयभीत कर दिया था। तो पिता जी ने माँ के साथ शहर जा कर रहने का निर्णय लिया और इस हवेली को छोड़ कर चले गए।

अविनाश " उसके बाद बरसों तक ये हवेली वीरान खंडर बनी पड़ी रही और वर्षो बाद तुमने इसकी ख़ामोशी तोड़ी राइट,

सुभाष " नहीं उसके बाद ये हवेली वीरान तो पड़ी परन्तु केवल 2 वर्षो के लिए। तुम्हें याद हैं। हमारे दादा की पहली संतान उदय प्रताब सिंह।

अविनाश उत्सुकता दिखाते हुआ हाँ बोलता हैं। फिर सुभाष आगे बोला
सुभाष " उदय प्रताब को एक पुत्र हुआ था जिसकी आयु लगभग हमारे पिता जितनी थी विदेश मे पड़ने लिखने के कारण उसको श्राप जैसी बातो पर रत्ती भर विश्वास नहीं था।

एक दम से अविनाश सुभाष को छेड़ते हुए बोला "बिलकुल तुम्हारी तरह।
इसके उत्तर मे सुभाष केवल हलकी सी एक मुस्कान दिखाता हैं। और फिर आगे बोला " उदय के पुत्र का नाम विक्रम प्रताब सिंह था विक्रम ने अपने विवहा के तीन वर्षो बाद हिंदुस्तान आने का फैसला किया। और इस हवेली मे रहने का मन बनाया। विक्रम के पिता उदय ने उसको बहुत समझाया पर जवान खून वो भी विदेशी सभ्यता और संस्कृति मे पला बड़ा हुआ। पिता की बात कैसे मानता, वो अपनी पत्नी और दो वर्षीय बेटी के साथ इस हवेली मे आ कर रहने लगा। पहले पहल तो यहाँ उसको कई किस्से कहानियाँ सुनने को मिली पर इन बातो को उसने लोगो का अंध विश्वास मान कर अनदेखा किया। किन्तु सप्ताह भर रुकने पर उसके साथ ऐसी ऐसी भयंकर घटनाए घटित हुई के उसको भी इन सब पर अटूट विश्वास हो गया और तुरंत ही उसने विदेश वापस जाने का टिकेट करा लिया। मगर दुर्भाग्य उसको इस हवेली से निकलने का अवसर तक ना मिला जिस सुबह उनको यहाँ से जाना था उस सुबह उनके नौकर को दोनों पति पत्नी की फांसी के फंदे मे लटकती लाश मिली और उनकी दो वर्षीय पुत्री गायब हो गई थी। जो आज तक एक रहस्य बनी हुई हैं।

सुभाष की बातो ने अविनाश को सोच मे डाल दिया। दोनों भाई कुछ देर बस खामोश खड़े रहे। फिर अचानक अविनाश ने अपनी ख़ामोशी को तोड़ कर बोला
अविनाश " आख़िर ये सब जानकारी तुम्हे मिली कहाँ से, क्या इन सब बातो मे कुछ सच्चाई भी हैं।

अविनाश के प्रशन पर सुभाष कोई उत्तर नहीं देता, वो तो केवल एक रहस्य्पूर्ण मुस्कान अविनाश को दिखा कर उस तेखाने से बहार निकल जाता हैं। और दुविधाओं से घिरा अविनाश भी सुभाष के पीछे पीछे चल दिया।
जब वो लोग हवेली के द्वार पर पहुचे तो।
हवेली मे घुसते ही सुभाष और अविनाश का सामना चन्द्रिका से हुआ।
अविनाश ने देखा के सुभाष और चन्द्रिका के बिच आँखों ही आँखो मे कुछ गुप्त बात हुई। जिसने चन्द्रिका के मुख को मलिन सा कर दिया।
और सुभाष सीधा अपने कक्ष मे जा बैठा।
सुभाष और चन्द्रिका को ये यकीन था अविनाश को उनकी संकेतो द्वारा की बातो की भनक तक ना लगी होगी। परन्तु अविनाश उनकी उम्मीद से कई गुना अधिक बुद्धि मान था और अब उसको अपने भाई पर भी संदेह होने लगा।............





अजाब की रोब दार और भय पैदा करने वाली जोरदार आवाज ने यादव और उसकी पत्नी को थोड़ा डरा दिया।जिसके कारण यादव कुछ देर खामोश बैठा रहा और फिर कुछ सोच कर रोनी सूरत मे बोला।

यादव " मैं मानता हुँ। के मैने आपसे बहुत सी बातें छुपाई हैँ। और ये भी सच हैँ। के नेहा के असली माता पिता हम नहीं हैँ। उसके असली पिता हमारे मालिक विक्रम प्रताब सिंह हैँ।
मगर ईश्वर की सौगंध नेहा के असली माता पिता की मृत्यु से हमारा कोई लेना देना नहीं हैँ।


अजाब " कोई लेना देना नहीं हैं। बहुत बढ़िया। आखिर कैसे कोई लेना देना नहीं हैं। ये तो साफ ज़ाहिर है। के तुमने ही उनकी हत्या कर उनकी बेटी का अपहरण किया था। और इनको अदालत मे साबित करने के लिए जितने सबूतों की आवश्यकता हैं। वो सब मेरे पास मौजूद हैं। बस एक बात हैं। जो मुझे अब तक खटक रही हैं। जिसको जानने के लिए मैं यहाँ आया हुँ।
आखिर क्यों और किस मकसद से तुमने नेहा के माता पिता की हत्या कर उनकी बेटी को पाला पोसा। आखिर इन सब से तुम्हे क्या हासिल होने वाला था


इन आरोपों ने यादव के मन को गेहरी ठेस पहुंचाई। जिसके कारण यादव फुट फुट कर रोने लगा और इसी रूद्र स्तिथि मे बोला "
साहब भले ही आपको मेरी बातो पर विश्वास ना हो, फिर भी मे आपको सब कुछ बताऊंगा।

बरसो से राजा सूर्य प्रताब सिंह के वंश के साथ एक श्राप सा जुडा हुआ हैं। जिसके चलते उस हवेली मे उनके परिवार के अनेको सदस्यों की मौत हो चुकी हैं।
जब विक्रम मालिक वहां रहने आये तो मैंने उनको कई बार समझाया और उस हवेली के बारे मे सावधान भी किया मगर पड़े लिखें होने के कारण वो हर बार इन बातों को मजाक बना कर हसने लग जाते थे।
कुछ दिन वहाँ रह कर उन्होंने इन सब का जब स्वयं अनुभव किया तब जा कर उनको इन बातों पर विश्वास हुआ।
किंतु तब तक बहोत देर हो चुकी थी जिस सुबह उनकी फ्लाइट थी वो सुबह उनकी अंतिम सुबह बन गई। उस समय नेहा बिटिया दो वर्ष की चंचल गुड़िया सी थी जिससे कुछ ही दिनों मे हमें गेहरा लगाव हो गया था।
उस समय हमें उसको कही दूर ले जा कर अपनी बेटी के जैसे उसकी परवरिश करना उचित लगा। किंतु हमारे पास कोई ठिकाना ना था तभी हमें ज्ञान चंद जी की याद आई जो मालिक विक्रम के विदेशी विद्यालय के सहपाठी थे। हमें विश्वास था के वो ऐसी संकट घड़ी मे आवश्य सहायता करेंगे कियोंकि विदेश मे मालिक विक्रम ने ज्ञान चंद जी पर कई उपकार किये थे। जिसके कारण उन्होंने अपनी दोस्ती का क़र्ज़ अदा किया। और हमें ये घर दे दिया। मगर सारा त्याग सारी मेहनत व्यर्थ गई।
कियोंकि भाग्य नेहा को एक बार फिर उस मनहूस जगह पर ले गया। और उसको मार डाला।


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