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ब्रांडेड

कविता हर वर्ष की भांति दीदी के घर सर्दियों की छुट्टियां बिताने जा रही थी ।यही वह समय होता था जब वह फुर्सत से अपने बीमार पिता और मां के संग कुछ समय बिताती थी । उच्च पदासीन दीदी जीजाजी के घर में किसी भी प्रकार की कोई कमी न थी और कविता के लिए वो किसी रिजोर्ट से कम न था ।एक साधारण परिवार में जन्मी और साधारण परिवार में विवाहित कविता के लिए बैग में कपड़े रखना एक महाभारत ही था।
"कविता ,तीन दिन से एक बैग नहीं लगा। आखिरकार ऐसी कौन सी पैकिंग कर रही हो",रवि ने एक मीठी सी झिड़की दी।
"बस दो मिनट रुक जाइए ,एक सूट रखना यह गया है", कविता ने मुस्करा कर कहा ।
जब से देश की राजधानी दिल्ली में जाकर छुट्टियां बिताने का और बीमारी से जूझ रहे पिता के संग रहने का सिलसिला शुरू हुआ है ,तब से कविता को छुट्टियों का बेसब्री से इंतजार रहता है ।पिता का असीम स्नेह ,मां का संग और अपार खुशी देने वाली खुशी का साथ ,साथ में दीदी की मीठी डांट ।
कविता ने इसकी तैयारी में अपने कपड़ों को भी ब्रांडेड और नान ब्रांडेड की श्रेणी में विभाजित कर दिया था। ब्रांडेड और स्मार्ट कपड़े दिल्ली के लिए,कुछ चमकीले गांव के लिए और तीसरी श्रेणी के कस्बे के उस महाविद्यालय के लिए जहां वह पिछले 20 वर्षों से पढ़ा रही है।
अभी कविता बैग की जिप बन्द कर ही रही थी कि फोन की घंटी बज उठी।
फोन उठाया तो खुशी की चहकती हुई आवाज आई,"मौसी कुछ अपने पुराने कपड़े लेकर आना ,हम दोनों साथ मिलकर क्राफ्ट करेंगे,कुछ कुछ बनाएंगे। मम्मी के ब्रांडेड कपड़े होते हैं,वो उन्हें काटने नहीं देती"
"अच्छा मेरी गुड़िया,जरूर लें आऊंगी,"खुशी को आशा बंधा कर कविता तुरन्त फिर से अलमारी की तरफ बढ़ गई ।
"अरे भई, अब दीया जलाने का समय हो गया है,फिर से अलमारी क्यो खोल दी ",सुरेश ने कुछ नाराजगी भरे स्वर में कहा ।
"खुशी का फोन था , कुछ पुराने कपड़े क्राफ्ट के लिए मंगा रही है", कविता ने डरते डरते कहा । सुरेश को कविता का इस प्रौढ़ावस्था में खुशी के साथ बच्चा बन जाना बिल्कुल पसंद न था ।
"कोई बात नहीं , अपने कपड़े मत कम करो ,खुशी के कपड़ों के लिए एक छोटा बैग अलग से बना लो" । सुरेश की बदली आवाज और मूड को देखकर हतप्रभ कविता ने एक छोटा काला बैग बना लिया ।
नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से दीदी के घर जाते हुए जब थ्री व्हीलर कनाट प्लेस से गुज़रा तो सुरेश ने चहकती हुई आवाज में कहा ," देखो आजकल सभी ब्रांड्स पर सेल लगी है, मार्क एण्ड स्पेनसर,लुई फिलिप, वुडलैंड और बैनेटन ,"।
"जानती हूं सर्दी में तुम हर साल दो ब्रांडेड स्वेटर जरूर लेते हो ,और इस बार भी ले लेना ",बड़े प्बयार से कविता ने आश्वस्त किया।
बड़े सेल सेल के आकर्षक पोस्टर देखकर बुनाई की शौकीन कविता का मन भी भटक ही रहा था कि एक मां की आर्द आवाज ने उसका ध्यान आकर्षित किया," कुछ खाने को दे दें , बच्चा भूखा है ।तेरे बच्चे सुखी रहें,सुहाग बना रहे,कुछ दे दे माई "।ठंड में उस अधनंगे बच्चे को कांपते देखकर सुरेश ने झट से दस रुपए का नोट निकाला और उस आर्द आवाज को शांत कर दिया ।
कविता ब्रांडेड शोरूम की चकाचौंध और उस अधनंगे बच्चे के विरोधाभासी दृश्य को आत्मसात कर पाती,इतने में घर आ गया ।
सबको प्रणाम कर माता पिता की आंखों की चमक देखकर कविता की आंखें छलछला आईं।
दीदी के बड़े से सरकारी बंगले में सभी ब्रांडेड वस्तुएं देखकर कविता को अपने पति की बात याद आ गई और वह सोचने पर विवश हो गई कि उसे भी इस बार एक ब्रांडेड स्वेटर अपने और सुरेश के लिए ले लेना चाहिए ।
अगले दिन स्कूल से लौटते ही खुशी ने रोना शुरू कर दिया। कविता के बहुत बार पूछने पर उसने बताया कि उसके नए पेंसिल बाक्स को लेकर उसके सहपाठी ने बहुत चिढ़ाया और कहा
"खुशी,तेरा पेंसिल बाक्स लोकल है, इसमें कोई ब्रांड नहीं लिखा है ।"
इतना कहकर आठ साल की खुशी ने पेंसिल बाक्स फैंक दिया ।
"मौसी मुझे कल स्कूल के लिए ब्रांडेड पेंसिल बाक्स ही चाहिए"।
खुशी की ऐसी जिद सुनकर कविता सन्न रह गई ।उसे लगा शहरों में रहने वाले बच्चे कितनी छोटी उम्र में ब्रांडेड वस्तु को श्रेष्ठ समझने लगे हैं।एक ब्रिटिश इंडिया कम्पनी को भगाने में इतने साल लगे और आज उसके सालों बाद भी ,ये आजाद भारत की तीसरी पीढ़ी की संतानें वहीं कंपनी का लेबल ढूंढ रही हैं ।उसे लगा जैसे बड़े शहरों में फिर से गुलामी की हवा चल पड़ी है।
शाम होते होते कविता ने खुशी को तो समझा दिया ,उसके साथ मिलकर पुराने कपड़ों की गुड़िया बनाई,फिर उसपर " खुशी ब्रांड" का लेबल लगाकर उसे भारतीय परिधान में सजा भी दिया,पर इस सबके बीच कविता का अपना मन अभी भी कनाट परदेस की ब्रांडेड सेल पर अटका था।
शाम को दीदी के आफिस से आते ही कविता का ध्यान सबसे पहले उन लिफाफों पर अनायास ही चला गया जिनमें दीदी अपनी पसंदीदा भारतीय ब्रांड के कपड़े लाई थी ।
"कविता देख तेरे और सुरेश के लिए कुर्ता लाई हूं, जल्दी से पहन कर दिखा ", आते ही दीदी ने प्यार भरा आदेश दिया ।
"तुम्हारी पसंदीदा ब्रांड का है, अच्छा होगा और नाप के अनुसार फिट भी,यही तो खास बात है ब्रांड की", महेश जीजाजी ने दीदी को पर्याय से छेड़ा।
रात को जब कविता अपने कमरे में सोने जाने लगी तो मां ने उसे अपने हाथ से बुना गुलाबी रंग का स्वेटर दिया और कहा ," तुम्हारे पास इस रंग का स्वेटर नहीं था , अतः तुम्हारे लिए बुना है।पहन कर दिखाओ ।महंगा ब्रांडेड तो नहीं है पर गर्म बहुत है।"
"मां , ये तो बहुत मुलायम और गर्म है, बिल्कुल आपके ब्रांडेड पर्याय और आशीर्वाद सा ", कविता ने यह कहकर मां को गले लगा लिया और उसके मन में चल रहे ब्रांडेड /नान ब्रांडेड की ऊहापोह पर जैसे पूर्ण विराम लग गया ।


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