दि ट्रेन Arjit Mishra द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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दि ट्रेन

कबीर की नौकरी केंद्रीय सरकार के विभाग में होने की वजह से अंतर्प्रदेशीय तबादले होते रहते थे| उस समय उसकी तैनाती गुजरात के पोरबंदर में थी| वैसे तो कबीर का घर लखनऊ से बहुत दूर था किन्तु कबीर महीने में एक बार घर का चक्कर जरुर लगाता था| अधिकांश लड़के जो अपने घर से दूर नौकरी करते हैं, शादी होने तक ऐसा ही करते हैं| कबीर की पसंदीदा ट्रेन थी, पोरबंदर-मोतिहारी, शुक्रवार को दोपहर ३ बजे पोरबंदर से चलकर इतवार की सुबह ५ बजे लखनऊ पहुँचती थी| देखा जाये तो बहुत समय ले लेती थी लेकिन कबीर को यही ट्रेन पसंद थी क्यूंकि इतने समय तक अपनी ही दुनिया में रहने का सुख उसे बहुत आकर्षित करता था| अपनी बर्थ पर बैठो, खाओ, अपना पसंदीदा उपन्यास पढो और सो जाओ बस यही काम| मजा आ जाता था|

इसी बीच कबीर की नेहा के साथ शादी तय हो गयी| लोग समझते हैं की सरकारी नौकरी में छुट्टी लेने में क्या समस्या लेकिन कबीर को बड़ी मुश्किल से तीन सप्ताह की छुट्टी मिली थी| सो अपनी पसंदीदा ट्रेन में अपनी पसंद की बुक की गयी साइड लोअर बर्थ पर बैठ गए जाकर| पोरबंदर से लगभग खाली ही चलती है, सो बहुत कम मुसाफिर थे डिब्बे में| लेकिन कबीर को उससे क्या वो तो अपनी मंगेतर से मोबाइल पर बतियाने में व्यस्त था| कुछ दो घंटे बाद ट्रेन जामनगर स्टेशन पहुंची, कबीर अब तक फ़ोन रखकर साथ लाया उपन्यास पढ़ रहा था|

कबीर बचपन से थोडा रोमांटिक तबीयत का था, सफ़र चाहे बस से हो, ट्रेन से हो या प्लेन से हो, उम्मीद यही रहती की कोई अच्छी सी लड़की साथ बैठ जाए तो सफ़र का मजा आ जाये| साथ ही साथ किसी भी अजनबी से तुरंत दोस्ती कर लेने में भी माहिर था| तो बस इसी इंतजार में उत्सुकतावश डिब्बे के अन्दर आने वालों को निहार रहा था| तभी उसकी नजर दो लड़कियों पर पड़ी, जो उसके ही डिब्बे में प्रवेश कर रही थीं, उनमे से एक कबीर को बहुत अच्छी लगी| सांवली सी, मध्यम कद-काठी की वह लड़की बड़ी आकर्षक लग रही थी| प्रार्थना का दौर शुरू हो गया की बस अब ये लड़की उसके कम्पार्टमेंट में ही बैठे, किन्तु हाय रे दुर्भाग्य, वह लड़की अपनी सहेली के साथ कबीर के ठीक पहले वाले कम्पार्टमेंट में बैठ गयी| और वो भी ऐसी जगह जहाँ से कबीर देख तक नही पा रहा था| कबीर मन मसोस कर रह गया, उसने अपने कम्पार्टमेंट में बैठे लोगों की शक्लें देखी और मन में सोंचा की भगवान् क्या दिखा कर अब मुझे क्या दिखा रहे हो| तभी कुछ ऐसा हुआ जिसकी कल्पना तक नही की थी, बिल्ली के भाग्य से छींका फूट गया|

एक बुजुर्ग आंटी कबीर के पास आयीं और बोलीं “बेटा, क्या आप मेरी बर्थ पर शिफ्ट हो सकते हो, मैं ऊपर वाली बर्थ पर नही चढ़ सकती”| आंटी की ऊँगली का इशारा देखकर कबीर को सहसा यकीन ही नही हुआ की आंटी उस लड़की के सामने वाली बर्थ की बात कर रही थीं| पाँचों उंगलियाँ घी में, अपने मन का भी हो रहा था और विनम्रता और दयालुता दिखने का भी भरपूर मौका था| अपने मन में फूटते हुए लड्डुओं को सँभालते हुए कबीर उठा और आंटी की बर्थ पर जा कर बैठ गया| कबीर ने अपने कम्पार्टमेंट का मुआयना किया, सामने वाली दोनों बर्थों पर वो दोनों लड़कियां थीं और कबीर के नीचे वाली बर्थ पर एक भाभीजी थीं, कबीर से ज्यादा उम्र नही थीं उनकी पर भाभीजी इसलिए क्यूंकि शादी-शुदा थीं और साथ में एक छोटा सा बच्चा भी था| तो भाभीजी लखनऊ अपने मायके जा रही थीं, उनके पति उन्हें स्टेशन छोड़ने आये थे| ये सब कबीर को खुद ही पता चल गया क्यूंकि भाभीजी लगातार फ़ोन पर अपने पति को समझा रही थीं, की चिंता ना करो कोई दिक्कत नही होगी| लेकिन कबीर बार-बार उस लड़की की तरफ ही देख रहा था पर वो लड़कियां आपस में ही बतिया रहीं थीं| कबीर ने सोंचा की इतना हैण्डसम लड़का सामने है फिर भी ये एक बार भी नही देखीं, लगता है चार्म कुछ कम हो रहा है| तभी भाभीजी ने उसका ध्यान भंग किया, मोबाइल पर अपने पति से बात करते-करते वो बोलीं “भैया,आप कहाँ तक जायेंगे?” कबीर का जवाब सुनते ही वो चहक कर अपने पति से बोलीं “ऊपर वाली बर्थ पर जो भैया हैं वो भी लखनऊ तक जायेंगे, अब चिंता की कोई बात नहीं”|

तभी डिब्बे का अटेंडेंट वहां से गुजरा, उस लड़की ने उसे रोककर बताया की उसके पिता रेलवे में अधिकारी हैं, जो की बरेली में तैनात हैं, और अपने पिता को फ़ोन लगा कर उस अटेंडेंट को दे दिया| उधर से लड़की के पिता ने जो भी कहा हो शायद यही कहा होगा की मेरी बेटी है, ध्यान रखना| कबीर ने सोंचा ये तो बड़ी एटीटयूड वाली लगती है| कबीर बात शुरू करने का मौका तलाश रहा था लेकिन वो दोनों लड़कियां अपने में इतनी मशगूल थीं, की कबीर को कोई मौका नही मिल पा रहा था| हालांकि उनकी बातों से इतना पता चल गया था की वो लड़कियां जामनगर के मेडिकल कॉलेज की छात्राएं हैं, दूसरी लड़की को अजमेर उतरना है और उस लड़की जिसका नाम सोनिया है उसे बरेली| कबीर ने सोंचा की लम्बा सफ़र है मौका तो जरुर मिलेगा और अपने उपन्यास में व्यस्त हो गया| पढ़ते –पढ़ते कब आँख लग गयी पता ही नही चला| सुबह जगा तो देखा ट्रेन किसी स्टेशन पर खड़ी है, बर्थ से उतरकर मुंह धोया और बाहर स्टेशन पर से चाय ली, अन्दर अपनी बर्थ पर पहुंचकर बोला “भाभीजी, चाय पियेंगी?” भाभीजी मुस्कुराकर बोलीं “शुक्रिया भाई, चाय यहीं डिब्बे में आई थी, मैंने पी ली”| चाय की चुस्की लेते हुए कबीर वहीँ पास में बैठ गया| बाकी बातें शुरू करने में माहिर तो वो था ही| दोनों लड़कियों व भाभीजी से फॉर्मल परिचय के बाद इधर उधर की बातें शुरू हो गयीं| सबने एक दुसरे के मोबाइल नंबर भी ले लिए| भाभीजी सी.आई.डी.से कम नही थीं, उन्होंने तो प्रश्नों का अम्बार लगा दिया| बातों-बातों में उन्होंने पूछ लिया की इतनी दूर घर है, अभी ना होली है ना दिवाली तो अभी क्यूँ जा रहे हैं, कुछ दिन बाद होली है तब जाते| एक बार के लिए कबीर का मन हुआ की कुछ झूठ बोल दे, लेकिन नेहा से वो सच्चा प्यार करता था, और अपनी जिंदगी के इतने बड़े मुद्दे के बारे में झूठ कैसे बोल सकता था| अनायास ही उसके मुंह से निकल गया, “शादी है मेरी”| सुनकर सब लोग बहुत खुश हो गए, अब भाभीजी से ज्यादा वो लड़कियां पूछने लगीं नेहा के बारे में| तभी भाभीजी की नजर कबीर के मोबाइल पर पड़ी, उसके होमस्क्रीन पर नेहा की फोटो लगी थी, जिसे देखकर, भाभीजी ने पूछा, “ यही है नेहा” कंबिर ने हाँ में उत्तर देते हुए, मोबाइल उन्हें दे दिया, तीनों लोगों में होड़ लग गयी नेहा की फोटो देखने की| सोनिया ने कबीर से कहा की शादी के दिन वो कबीर को विश करेगी| कबीर समझ गया था की वह मैदान हार गया है, अब यहाँ कुछ नही हो सकता| उसने पूरी तरह से अपने आपको उपन्यास को समर्पित कर दिया|

ट्रेन रात में १२-०१ बजे बरेली पहुँचती थी, कबीर ने सोनिया से कहा की अगर जरूरत हो तो जब बरेली आये तो वह उसे जगा दे, पर सोनिया के ये कहने पर की कोई घर से लेने आएगा कबीर निश्चिंत होकर सो गया| अचानक रात में १२ बजे के आस-पास भाभीजी ने झकझोड़ कर कबीर को जगाया| कबीर ने देखा भाभीजी थर-थर काँप रही थीं| कबीर के पूछने पर उन्होंने बोला “भैया, वो लोग सोनिया को ले गए”| कबीर को समझ नही आया उसने पूछा “बरेली आ गया”| भाभीजी बोलीं “पता नही, अभी दो अटेंडेंट आये और सोनिया से बोले की बरेली निकला जा रहा है, जल्दी से चलो| वो भी घबराकर उनके साथ चली गयी| कबीर ने पूछा “और उसका सामान”| भाभीजी ने जवाब दिया “सूटकेस तो ले गयी है, लेकिन अजीब माहौल लग रहा था, मुझे बड़ा डर लग रहा है”| कबीर की नज़र गठरी बना कर रखे गए सोनिया की बर्थ के कम्बल,चद्दर पर गयी, उसे जैसे जी झाडा उसमे से सोनिया का मोबाइल और वालेट नीचे गिरा| सोनिया का सामान देखकर भाभीजी बोलीं “ऐसा लगता है, सोनिया को बरेली निकल जाने का डर दिखाकर और उसकी हडबडाहट का फायेदा उठाकर उन लोगों ने उसका मोबाइल और वालेट यहाँ छिपा दिया और इतनी सफाई से किया की मुझे भी कुछ समझ नहीं आया”| सोनिया का मोबाइल और वालेट लेकर कबीर दरवाजे की तरफ बढ़ा, ट्रेन अभी तक रुकी नही थी तो निश्चय ही वो लोग अभी ट्रेन में ही होंगे| रात के १२ बजे थे, सभी यात्री सो रहे थे, डिब्बे में रोशनी भी कम थी| दरवाजे के पास पहुंचकर कबीर ने देखा की जो अटेंडेंट की बर्थ होती है, जहाँ पर अटेंडेंट सारा सामान रखता है, वहां पर बिस्तर बिछा हुआ था और वो दोनों अटेंडेंट सोनिया पर उस बिस्तर पर लेट जाने का दबाव बना रहे थे|

कबीर के वहां पहुँचने से एक तो तुरंत चला गया और दूसरा बोला “मैडम से कह रहे हैं, अभी बरेली आने में देर है, तब तक यहाँ लेटकर आराम कर लीजिये”| कबीर ने उसकी बात अनसुनी कर सोनिया को उसका सामान देते हुए कहा “तुम अपना मोबाइल और वालेट बर्थ पर ही भूल गयी थी”| अटेंडेंट फिर बोला “सर आप सो जाए जाकर मैं मैडम को बरेली उतार दूंगा”| कबीर एक बार फिर उसकी बात अनसुनी कर सोनिया से लगभग डांटते हुए बोला “जब मैंने कहा था तो बरेली आने पर मुझे जागे क्यों नहीं?” सोनिया ने बहुत गंभीरता से जवाब दिया “सब कुछ अचानक से हुआ, मुझे कुछ समझ ही नही आया”| कुछ समय तीनों ऐसे ही खड़े रहे, फिर वह अटेंडेंट कबीर के बिलकुल पास से निकलते हुए धीमे से बोला “सर आप ही एन्जॉय कर लीजिये, मुझे बस कुछ खर्चा-पानी कर देना”| कबीर ने एक नज़र सोनिया पर डाली, उसे सुनाई नही दिया था शायद, फिर गुस्से से बस इतना बोला “जाओ यहाँ से”| अटेंडेंट के जाने के बाद सोनिया ने बड़े धीमे से बोला “भैया, आप मेरी वजह से बहुत परेशान हो रहे हैं”| कबीर ने सोनिया के सिर पर प्यार से हाथ रखते हुए कहा “कोई बात नही, बेटा”| कबीर ने बाहर देखा स्टेशन का दूर-दूर तक कोई निशान नही था, इधर वह अटेंडेंट भी डिब्बे के अँधेरे से उनकी तरफ ही देख रहा था, कबीर को लगा इस समय सोनिया के साथ यहाँ अकेले रुकना ठीक नही है उसने सोनिया का सूटकेस उठाया और उसे लेकर बर्थ पर चला गया| वहां भाभीजी डर के मारे आधी हुई जा रही थीं| उनके पास पहुँचते ही सोनिया उनसे लिपट कर रो पड़ी| शायद उसे भी खतरे का एहसास हो रहा था लेकिन पता नही क्यूँ वो विरोध नही कर पायी थी| दोनों इस घटना की ही बात कर रहे थे इसी बीच अटेंडेंट टी.सी. को लेकर वह आ गया| कम्पार्टमेंट में मौजूद एक अन्य महिला को देखकर वो ठिठके फिर कबीर से पूछा “सर आपको कहाँ तक जाना है?” जवाब सुनने की रस्म अदायगी करके वो लोग वहां से चले गए| कबीर ने सोंचा की अच्छा हुआ की वह सोनिया को लेकर बर्थ पर आ गया, वरना ये कोई भी आरोप लगा देते| ट्रेन के बरेली पहुँचने पर कबीर ने सोनिया का सूटकेस नीचे उतारा, फिर अपने रिश्तेदारों से मिल रही सोनिया को एक नज़र देखा फिर बिना किसी थैंक यू या गुड बाए के वापस अपने डिब्बे में चढ़ गया| ट्रेन चल रही थी और कबीर ये सोंच रहा था की जिसका पिता रेलवे में अधिकारी है यदि वो लड़की ट्रेन में ही सुरक्षित नही तो फिर वो बाहर और कहाँ सुरक्षित हो सकती है| शायद बच्चो को सुरक्षित रखने का सिर्फ एक ही उपाय है की उन्हें खुद अपनी सुरक्षा करने के काबिल बनाओ|