यही प्यार है Arjit Mishra द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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यही प्यार है

उन दिनों कबीर लखनऊ विश्वविद्यालय में एल.एल.बी. तृतीय वर्ष का छात्र था| पारिवारिक पृष्ठभूमि व व्यक्तिगत रूचि के कारण स्वाभाविक तौर पर छात्रसंघ का एक जुझारू पदाधिकारी भी था| उस दिन फीस वृद्धि के विरोध में कुलपति के कार्यालय का घेराव छात्रसंघ की ओर से आयोजित किया जा रहा था जब कबीर ने पहली बार उसे देखा| सामान्य कद-काठी की वो लड़की, चेहरे पर दैवीय सौम्यता लिए, युवा जोश व उत्साह से भरपूर, छात्राओं के एक छोटे से समूह का नेतृत्व कर रही थी| ऐसा नहीं था कि कबीर ने उससे ज्यादा खुबसूरत लड़की कभी देखी नहीं थी, पर पता नहीं क्यूँ वो उसकी तरफ अनायास ही आकर्षित हो रहा था| स्वयं छात्रसंघ का पदाधिकारी होने की वजह से कबीर को पता था की ये संघ में तो थी नही, जिन्हें नेतृत्व सौंपा गया था| निश्चित तौर पर ये उसके अन्दर का नैसर्गिक गुण था, जो उसने स्वयं से ये जिम्मेदारी ले ली थी| कबीर ने अपने साथी और मित्र अतुल से उसके बारे में पूछना चाहा तो देखा कि अतुल भी उसी लड़की को देख रहा था| कबीर ने ध्यान दिया कि उसके साथ के अधिकांश लड़के उसी लड़की को देख रहे थे| कबीर को अपने मन में इर्ष्या का अनुभव हुआ, जैसे उस लड़की के साथ उसका कोई पुराना रिश्ता हो और उसे देखने का हक भी सिर्फ उसी को हो| कबीर ने अपने एक साथी से उसका नाम पता करने को कहा और सभी का ध्यान घेराव प्रदर्शन के क्रम में वापस लगाने के लिए रेलिंग पर चढ़कर नारे लगाने लगा| कुछ समय पश्चात वह नीचे उतरा, उसके साथी ने आकर उसे बताया कि उस लड़की का नाम नेहा है और वो एल.एल.बी. प्रथम वर्ष की छात्रा है| कबीर ने उस लड़की को देखते हुए धीरे से उसका नाम बोला- “नेहा”| समंदर की मदमस्त लहर की तरह नेहा लगातार नारे लगाये जा रही थी और कबीर बस उसे देखता रहा| बस देखता ही रहा|

पूरा दिन और पूरी रात अपने मन में उमड़ने वाले भावों को समझने की कोशिश करने के बाद अगली सुबह कबीर यूनिवर्सिटी पहुंचा ये सोंचकर कि सबसे पहले अपने अभिन्न मित्र अतुल को बताएगा कि उसे नेहा से प्यार हो गया है| जैसा सब को पता है यूनिवर्सिटी में छात्र-छात्राएं क्लास में कम कैंटीन में ज्यादा पाये जाते हैं, कबीर को अतुल भी कैंटीन में अकेला और उदास बैठा मिला|

कबीर ने पास जाकर सामने वाली कुर्सी पर बैठते हुए पूछा “का हुआ भाई, मुंह लटकाए काहे बैठे हो?”

अतुल ने तुरंत जवाब दिया “भाई, मेरे को लग रहा है कि मेरे को नेहा से सच्चा वाला प्यार हो गया है”|

नेहा नाम सुनते ही कबीर कुछ पल के लिए संज्ञाशून्य हो गया लेकिन खुद को संभाल कर अनजान बनते हुए प्रश्न किया “नेहा! कौन नेहा?”

अतुल बोला “भाई कल जो लड़की सबसे आगे थी ना प्रदर्शन में वही| उसका नाम नेहा है| फर्स्ट इयर| मेरे को भा गयी है| प्यार हो गया मेरे को”|

अब तक इर्ष्या और प्रतिस्पर्धा के भाव कबीर में आ चुके थे, उसने कहा “छोड़ यार उसे| वो तेरे टाइप की नहीं है| वो अच्छे घर की लगती है तेरे टाइम पास के चक्कर में नहीं पड़ेगी| फिर तुझे तो पहले भी कई बार सच्चा प्यार हुआ है उनका क्या हुआ”|

अतुल ने कबीर का हाथ पकड़कर कहा “कसम से कह रहा हूँ भाई, इस बार सब अलग है, बस एक बार नेहा मुझे मिल जाये, और कुछ नहीं चाहिए| पहले भी तूने मेरी मदद की है एक आखरी बार नेहा को पाने में मेरी मदद कर दे भाई, मेरी जिंदगी संवर जाएगी”|

कबीर असमंजस में था| एक तरफ दोस्ती दूसरी तरफ प्यार| फिर उसने सोंचा कि जो देवत्व और तेज़ उसने नेहा के अन्दर महसूस किया था, वो अतुल जैसे लड़के के चक्कर में कभी नहीं पड़ेगी| एक मुलाकात करवा देते हैं, नेहा रिजेक्ट कर देगी| सांप भी मार जायेगा और लाठी भी नहीं टूटेगी| अतुल से दोस्ती भी बनी रहेगी और नेहा के लिए उसका रास्ता भी साफ़ हो जायेगा|

पर कभी-कभी हम जैसा सोंचते हैं वैसा होता नहीं| पहली मुलाक़ात में ही नेहा अतुल से इम्प्रेस हो गयी| कबीर पर तो मानों पहाड़ ही टूट पड़ा था| उसे समझ नहीं आ रहा था कि नेहा जैसी लड़की अतुल की चिकनी-चुपड़ी बातों में कैसे आ गयी| वो तो जानता ही था कि अतुल यही बातें पहले भी कई लड़कियों से बोल चुका था| फिर उसे ये भी लगा कि शायद नेहा के लिए जो उसने महसूस किया था वही गलत था| नेहा भी एक सामान्य लड़की ही थी| जो भी हो एक बात तय हो चुकी थी कि बिना मैदान में उतरे कबीर मैच हार चुका था| अब ना वो अतुल को रोक सकता था ना नेहा को|

उन्हीं दिनों रिलायंस ने हर भारतीय के हाथ में सस्ते मोबाइल पकड़ा दिए थे| अतुल भी हर वक़्त नेहा से मोबाइल पर बात करता रहता| क्या छात्रसंघ कार्यालय, क्या क्रिकेट ग्राउंड और क्या कैंटीन, अतुल और नेहा बतियाते ही रहते| कबीर चूँकि अतुल के हमेशा साथ होता था उसे ये सब बातें सुननी पड़ती थीं, हालांकि ये समझना कोई मुश्किल नहीं कि जब अतुल और नेहा प्यार भरी बातें करते थे तो कबीर पर क्या गुज़रती रही होगी| पर कबीर को अब तक ये समझ आ गया था कि नेहा अतुल से बहुत प्यार करने लगी थी| कहते हैं औरत जब किसी को चाहती है तो टूट कर चाहती है| कबीर भी खुश था क्योंकि नेहा बहुत खुश थी|

  अतुल और कबीर में बिलकुल भाई जैसा रिश्ता था| तो अतुल ने अपनी डेट की बुकिंग वगैरा की जिम्मेदारी कबीर को ही दे रखी थी| कभी-कभार वो तीनो भी साथ में फिल्म देखने या लंच करने जाते थे| अतुल का अभिन्न मित्र होने की वजह से नेहा भी कबीर का बहुत सम्मान करती थी| एक दिन अतुल ने कबीर को बताया कि वो और नेहा सारी हदें लांघ चुके है| कबीर को पता था कि वो दोनों एक दूसरे से प्यार करते थे तो ये सब तो स्वाभाविक ही था| फिर भी एक अनजाने से डर से उसकी रूह काँप गयी| डर, क्रोध और दुःख के मिले जुले भाव उसके मन में चल रहे थे|

 उसने अतुल से रुंधे हुए गले से कहा “भाई, सिर्फ एक प्रार्थना है तुमसे,कभी नेहा को धोखा मत देना”|

अतुल हँसते हुए बोला “भाई, तू क्यूँ इतना इमोशनल हो रहा है? नहीं दूंगा धोखा उसे”|

परन्तु कबीर जानता था कि ऐसा एक ना एक दिन होगा जरुर| बस वो कुछ कर नही सकता था क्यूंकि नेहा अपनी मर्ज़ी से अतुल के साथ थी|

समय गुज़रता गया| कबीर पढाई पूरी करके दिल्ली में एक लीगल फर्म में काम करने लगा और अतुल लखनऊ में ही प्रैक्टिस करने लगा| कबीर ने नेहा के लिए अपने प्यार को अपने ही दिल के किसी कोने में दफ़न कर दिया था| अतुल से कभी-कभार बात होती भी थी तो नेहा के बारे में पूछने का ना कोई अधिकार था ना जरुरत| नेहा से अपने प्यार के पूरा ना हो पाने को अपनी बदकिस्मती समझ कर समझौता कर लिया था कबीर ने|

पर समय ने फिर एक बार करवट ली| एक दिन अचानक ही राजीव चौक मेट्रो स्टेशन पर कबीर की मुलाक़ात नेहा से हो गयी| वह बहुत बदली हुई लग रही थी| नेहा ने बताया कि उसने दिल्ली के एक कॉलेज में एल.एल.एम. में एडमिशन लिया है और हॉस्टल में रहती है| मोबाइल नंबर लेने/देने के बाद जल्दी ही मिलने का वादा करके दोनों अपने अपने गंतव्य को चले गए| कबीर के मन में फिर प्यार का अंकुर फूटा| लेकिन अतुल और नेहा के रिश्ते को जानते हुए नेहा को कॉल करने या मैसेज करने की उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी| वो बस चाह रहा था कि सामने से कॉल/मैसेज आ जाये|

वो 31 दिसंबर की रात थी| कबीर अपने दोस्तों के साथ गुडगाँव के एक क्लब में न्यू इयर पार्टी करने गया था| चारों तरफ शराब की महक और सिगरेट और हुक्के का धुआं फैला हुआ था| तेज़ म्यूजिक बज रहा था लोग डांस कर रहे थे| पर कबीर के दिल-ओ-दिमाग में सिर्फ नेहा ही चल रही थी| वो बस पीता गया| फिर अचानक 12 बजे से पहले ही निकल गया| अपने घर की पार्किंग में पहुँच कर उसने अपना मोबाइल निकाला|पहले से लिखा हुआ न्यू इयर मैसेज दिखाई दे रहा था जो भेजा नहीं गया था| कहते हैं शराब इंसानी जज्बातों को बाहर निकालने का काम भी करती है| कबीर ने देखा रात के 11:58 बज चुके हैं| या तो अभी मैसेज करना है या कभी नहीं| कबीर ने मैसेज भेज दिया- नेहा को|

उसके बाद दोनों अक्सर बात करने और मिलने लगे| दोनों को एक दूसरे का साथ अच्छा लग रहा था| कबीर की तो बिन मांगे मुराद पूरी हो गयी थी| परन्तु कबीर और नेहा कभी भी अतुल की ज्यादा बात नहीं करते थे| कबीर जानना भी चाहता था कि अब उन दोनों के कैसे रिश्ते हैं और कहीं नेहा को बुरा ना लगे इसलिए पूछ भी नहीं रहा था| एक दिन किसी बात के दौरान नेहा बहुत इमोशनल हो गयी, रोने लगी| कबीर ने उसको सँभालते हुए उसके सर पर हाथ फेरना शुरू कर दिया| कहते हैं स्त्रियों की छठी इन्द्रिय बहुत तेज़ होती है| किसी के स्पर्श से समझ लेती हैं कि उसका इरादा नेक है या नहीं| नेहा को कबीर के स्पर्श में अपनत्व का एहसास हुआ| धीरे-धीरे वो अपने मन की हर बात कबीर को बताने लगी| अपने अतुल से रिश्तों के बारे में भी| उसने बताया की ये एहसास होने में बहुत देर हो गयी, कि अतुल कभी उससे प्यार करता ही नहीं था| उसको पाना अतुल की बस एक जिद थी| कबीर ने महसूस किया कि नेहा अन्दर से बहुत बुरी तरह टूट चुकी थी, इसीलिए वो उसकी बातों को बहुत ध्यान से सुनता रहा जिससे कि नेहा के अंतर्मन से दुःख और पछतावा पूरी तरह से निकल जाये| समस्त घटनाक्रम को जानकर अब कबीर को भी पछतावा हो रहा था कि क्यूँ सही समय पर उसने नेहा को आगाह नहीं किया| दोनों के मन के भाव कब प्रेम में परिवर्तित हो गए उन्हें भी पता नहीं चला| एक दिन दोनों साथ में एक पार्क में टहल रहे थे, जब कबीर ने नेहा को बताया कि वो हमेशा से उससे प्यार करता था, बस अतुल और उसके रिश्ते की वजह से कभी कह नहीं पाया|

शुरू से सारी बातें जानकर नेहा को बड़ा आश्चर्य हुआ,उसने कबीर से कहा “यार तुम कैसे इतना सब मन में भरे हुए सामान्य व्यवहार करते रहे| फिर जब प्यार करते थे मुझसे तो मुझे अतुल जैसे लड़के के साथ जाने ही क्यूँ दिया?”

कबीर ने जवाब दिया “यार मुझे लगा तुम और अतुल एक दूसरे के साथ खुश हो| फिर मैं बीच में क्यूँ आता| मैं तुमसे प्यार करता था ये सच है और हमेशा करता रहता| पर किसी को प्यार करने के लिए उसको पाना जरुरी नहीं| प्यार करना तो खुद में एक सुखद एहसास है| जिससे आप प्यार करते हैं उसकी ख़ुशी में ही आपकी ख़ुशी हो,मेरे लिए तो यही प्यार है|

फिर एक शरारती मुस्कराहट के साथ आगे बोला “एक बड़े आदमी ने कहा है किसी को प्यार करने के लिए ये शर्त नहीं होती की वो भी आपसे प्यार करे”|

कबीर की बातों से नम आँखों में मुस्कुराते हुए नेहा ने कहा “शाहरुख़ खान ने| मैंने भी मोहब्बतें देखी है”|

दोनों खिलखिलाकर हंस पड़े और एक दूसरे के गले लग गए|