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कर्म पथ पर - 20



कर्म पथ पर
Chapter 20



बहुत सोंचने के बाद भी जय यह नहीं तय कर पा रहा था कि अपनी शुरुआत कैसे करे। इसलिए उसने मदन को मिलने के लिए गोमती नदी के किनारे उसी जगह बुलाया था जहाँ वो दोनों पिछली बार मिले थे।
दोनों जब किनारे पर पहुँचे तो मल्लाह रामसनेही भाग कर उनके पास आया।
"बाबूजी आपने पहचाना, हम वही हैं जिसने उस दिन नाव की सैर कराई थी।"
जय ने पहचान कर कहा,
"हाँ बिल्कुल पहचान लिया। कैसे हो ?"
"रामजी की किरपा है बाबूजी। आज भी नाव में बैठेंगे।"
जय ने स्वीकृति के लिए मदन की तरफ देखा। मदन ने सर हिला कर हाँ कर दिया। वह ये देख कर हैरान था कि जय इस मल्लाह से कितने अपनेपन से बात कर रहा था। उसने मन ही मन सोंचा कि जय सचमुच बदल गया है।
रामसनेही उन्हें बीच धार में ले गया। मदन ने जय से पूँछा,
"बोलो क्यों बुलाया था मुझे यहाँ ?"
"मदन मैंने यह तो तय कर लिया है कि मुझे देश व समाज के हित में काम करना है। पर समझ नहीं पा रहा हूँ कि आरंभ कैसे करूँ ?"
"एक बात पूँछूँ जय ?"
"पूँछो क्या पूँछना है ?"
"तुम ये सब सिर्फ वृंदा की नज़रों में खुद को साबित करने के लिए करना चाहते हो।"
"मदन मैं अब खुद की नज़रों में अपनी हैसियत बनाने के ‌लिए ये सब करना चाहता हूँ। अगर इसमें कामयाब रहा तो शायद वृंदा की नज़रों में भी चढ़ जाऊँ।"
मदन को जय का जवाब पसंद आया। उसने कहा,
"तुम सचमुच बदल गए हो जय। तुम जानना चाहते हो कि अपने सफ़र की शुरुआत कैसे करो। देखो मैं अधिक नहीं बता सकता हूँ पर एक सुझाव दे सकता हूँ।"
"वही तो चाहिए मुझे मदन।"
"देखो, वृंदा उस हैमिल्टन के खिलाफ ज़ोर शोर से मुहिम छेड़ना चाहती है। उसने हिंद प्रभात के रिपोर्टर रंजन को हैमिल्टन के पीछे लगाया है। पर यह अकेले रंजन के बस का नहीं है। तुम चाहो तो इस काम में रंजन की मदद कर सकते हो।"
जय मदन की बात पर विचार करने के बाद बोला,
"हैमिल्टन जैसे दरिंदे को बर्बाद करने से अच्छी शुरुआत क्या हो सकती है। पर क्या रंजन मुझे अपने साथ काम करने देगा ? वृंदा के साथ वही हमारा नाटक रुकवाने आया था। वो मुझ पर यकीन करेगा।"
"ऐसे तो नहीं करेगा। हमें उसे यकीन दिलाना होगा। मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूँ।"
"तो फिर कब चलोगे उसके पास ?"
मदन ने कुछ पल हिसाब लगा कर कहा,
"अभी चलकर कोशिश करते हैं। हो सकता है कि वह घर पर मिल जाए।"

जय ने रामसनेही से नाव किनारे ले चलने को कहा। किनारे पर आकर जय ने उसे उसकी मजदूरी दी। वह खुश होकर चला गया।

मदन और जय रंजन के घर पर बैठे थे। सारी बात सुनने के बाद रंजन ने कहा,
"मदन भाई मैं मान लेता हूँ कि जय बदल गए हैं। क्योंकी आप मुझे यकीन दिला रहे हैं। पर आप कह रहे हैं कि मैं इन्हें अपने साथ काम करने दूँ। वृंदा दीदी को यह बात अच्छी नहीं लगेगी।"
मदन की जगह जय ने जवाब दिया।
"रंजन तुमको यदि मदन पर यकीन है तो तुम मुझे अपने साथ काम करने दो। वृंदा उस हैमिल्टन की सच्चाई सबके सामने लाना चाहती है। तुम अगर हैमिल्टन के खिलाफ सबूत जुटा पाए तो वृंदा को बहुत अच्छा लगेगा।"
"पर ये काम तो मैं अकेला भी कर सकता हूँ।"
इस बार जवाब। मदन ने दिया।
"रंजन ये काम अकेले करना बहुत मुश्किल है। वृंदा उस हैमिल्टन को घायल कर उसकी चंगुल से निकल कर आई है। इस बात से वह बहुत चिढ़ा होगा। इसलिए बहुत चालाकी व सावधानी से काम लेना होगा। जय की छवि अभी भी ‌अंग्रेज़ी हुकूमत के समर्थक की है। यह छवि इस काम में बड़ी सहायक होगी।"
"मदन ठीक कह रहा है रंजन। मैं इस तरह से तुम्हारे काम आ सकता हूँ।"
रंजन कुछ सोंच कर बोला,
"मुझे मदन भाई ‌पर पूरा भरोसा है। इसलिए मैं आपको अपने साथ काम करने की इजाज़त दे रहा हूँ।"
जय ने रंजन की बात सुनकर कहा,
"धन्यवाद.... में पूरी कोशिश करूँगा कि तुम मुझ पर यकीन कर सको। वैसे अब तक तुमने कुछ पता किया है।"
"अभी तक कुछ खास नहीं। राजस्व विभाग में हैमिल्टन द्वारा की गई गड़बड़ियों पर तो पहले ही हिंद प्रभात में छप चुका है। अब मेरी कोशिश उसके और भी घिनौने कृत्य सामने लाने की है। उसके एक ऐसे ही पाप का पता चला है। पर अब तक कोई तफ्तीश नहीं हो पाई।"
मदन ने पूँछा,
"किस पाप की खबर मिली है तुम्हें ?"
"सुनने में आया है कि उसने अपने विभाग में काम करने वाले एक क्लर्क की बेटी के साथ दुष्कर्म किया। जब उस क्लर्क ने आवाज़ उठानी चाही तो उस पर झूठा आरोप लगा कर नौकरी से बर्खास्त करवा दिया। इतने पर भी जब वह क्लर्क नहीं माना तो उसकी बेटी की शादी जबरन एक ऐंग्लो इंडियन मातहत से करा दी। साथ ही उस क्लर्क को धमकीं दी कि अगर वह नहीं माना तो उसकी बाकी की दो बेटियों के साथ भी वैसा ही होगा। अपनी बाकी की दो बेटियों के बारे में सोंच कर वह क्लर्क डर कर चुप बैठ गया।"
जय ने कहा,
"तुम उस क्लर्क से मिले थे ? क्या नाम है उनका ? कहाँ रहते हैं ?"
"मैंने कोशिश की थी। पर शिव प्रसाद सिंह मिले नहीं। वैसे वो चौंक में अपनी तीन बेटियों और पत्नी के साथ रहते थे। पर मैंने सुना है कि हैमिल्टन की धमकी के बाद वो अपने साले के पास मेरठ चले गए। वहीं एक आढ़तिये के यहाँ हिसाब किताब देखते हैं।"
जय ने कहा,
"रंजन हम कल ही मेरठ चलते हैं। तुम्हें उनका पता मालूम है ना ?"
"मुझे उस आढ़त की दुकान का पता मालूम है।"
"ठीक है। कल सुबह ही निकलेंगे।"


हैमिल्टन अब पहले से बहुत ठीक था। दो दिनों पहले ही उसे अस्पताल से छुट्टी मिली थी। लेकिन उसके मन में जो घाव लगे थे वह आसानी से नहीं भरने वाले थे। वह उसे बहुत तकलीफ दे रहे थे। यह खयाल कि वह एक औरत से पराजित हो गया उसके अहम को चोट पहुँचा रहा था। अब तक औरतों को वह कमज़ोर समझ कर इस्तेमाल करता रहा था। पर वृंदा ने उसे ऐसी करारी चोट दी थी कि वह तिलमिला उठा था।
अस्पताल में रहते हुए ही उसने वृंदा की तलाश में अपने आदमी लगा दिए थे। लेकिन उसकी कोई खबर नहीं मिल रही थी।
अपने बंगले में बैठा वह उस दिन के बारे में सोंच रहा था जब वृंदा ने उसे घायल किया था। उस क्षण को याद कर उसके खून में उबाल आ रहा था। उसने तय कर लिया था कि इस बार जब वृंदा उसके कब्ज़े में आएगी तो वह उसे जीवित नहीं छोड़ेगा।
उसे अपने आदमियों पर क्रोध आ रहा था। वह सोंच रहा था कि सब निकम्मे हैं। इतने दिनों में एक लड़की को नहीं ढूंढ़ सके।

वृंदा के बच कर निकल आने के बाद से ही भुवनदा ने सावधानी बरतनी शुरू कर दी थी। उन्होंने वृंदा और बंसी को हिदायत दे रखी थी कि वह जब भी घर से बाहर जाएं तो पूरी एहतियात बरतें। घर लौटते समय आसपास देखते चलें कि कोई पीछे तो नहीं लगा है।
मदन जो हिंद प्रभात के काम के लिए लगभग रोज़ ही आता था भुवनदा ने खास सावधानी रखने को कहा था। इसलिए वह अक्सर आने के लिए अलग अलग रास्तों का प्रयोग करता था।
सबसे अच्छी बात ये थी कि वह अब तक पुलिस की निगाह में नहीं चढ़ा था। क्योंकी वह अपरोक्ष रूप से ही काम करता था।

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