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कर्म पथ पर - 6



कर्म पथ पर
Chapter 6



कोर्ट रूम में उपस्थित सभी लोग श्यामलाल की तर्कशक्ति से बहुत प्रभावित थे। मानस की नोटबुक सामने लाकर उन्होंने अपना पक्ष मजबूत कर लिया था।‌ अब वह केस को पुरी तरह से अपने पक्ष में मोड़ने के लिए कमर कस चुके थे।
श्यामलाल ने जज से कहा,
"योर लॉर्डशिप, जिस वाक्य की मैं चर्चा कर रहा था वह मानस ने लिखा है। अतः मैं मानस से ही कुछ सवाल पूँछना चाहता हूँ।"
इजाज़त मिलने पर श्यामलाल ने मानस से पूँछा,
"अब तुम बताओ कि 'आई सैल्यूट एच.के.एफ' लिखने के पीछे क्या कारण था ? क्या सचमुच तुम कुछ ही देर के लिए संगठन के अड्डे पर गए थे ?"
श्यामलाल ने सवाल पूँछते हुए अपनी निगाहें मानस पर टिका रखी थीं। उन आँखों की तरफ देख कर मानस का आत्मविश्वास डगमगा गया। वह रुआंसा हो गया। जानकीनाथ ने उसे इशारे से हिम्मत रखने को कहा।
श्यामलाल ने फिर से पूँछा,
"बताओ तुम संगठन को सलाम क्यों करते हो ? क्या तुम उस दिन के बाद भी संगठन में गए थे ?"
मानस हिचकते हुए बोला,
"हाँ... मैं उसके बाद भी संगठन के लोगों से मिलता रहा था।"
"तुम उनकी बातों में यकीन रखते हो ?"
"पहले रखता था। मैं एक साधारण परिवार से हूँ। मेरे पिताजी बड़ी कठिनाई से मुझे लखनऊ में रख कर पढ़ा रहे थे। मैं भी पढ़ लिख कर परिवार की गरीबी दूर करना चाहता था। रसिकलाल मुझे संगठन के ठिकाने पर ले गया। वहाँ मैंने उन लोगों की बातें सुनीं। उनका कहना था कि अंग्रेज़ी हुकूमत हम पर ज़ुल्म करती है। अंग्रेज़ हमें दबा कर खुद शक्तिशाली होते जा रहे हैं। इसलिए अपना राज कायम करना बहुत ज़रूरी है। अपना राज होगा तो हम सबके दिन बदल जाएंगे। उनकी ये बातें मुझे अच्छी लगती थीं।"
मानस ने कुबूल कर लिया था कि वह संगठन से प्रभावित था। श्यामलाल ने कहा,
"तुम उनसे प्रभावित थे। इसलिए तुमने अपनी नोट बुक में उन्हें सलाम करने की बात लिखी। उनसे प्रभावित होकर ही तुमने बम फेंकने का साहस किया।"
बम फेंकने की बात सुनकर मानस फौरन बोला,
"नहीं जज साहब मैंने बम नहीं फेंका है। मैं उनसे प्रभावित था। पर बाद में मुझे पता चला कि वो लोग पिस्तौल और बम रखते हैं। लोगों को मारने की बात करते हैं तो मैं उनसे अलग हो गया। मुझे बस, पिस्तौल से बहुत डर लगता है।"
"तो फिर तुम भाग कर बिठूर में क्यों छिपे हुए थे ?"
जानकीनाथ ने बीच में बोलते हुए कहा,
"मैं पहले ही कह चुका हूँ कि मानस बिठूर अपनी बुआ के घर पारिवारिक कार्यक्रम में शामिल होने गया था।"
श्यामलाल ने जवाब दिया,
"बिल्कुल कहा था आपने। वह पारिवारिक कार्यक्रम दरअसल मानस के फुफेरे भाई का मुंडन था। लेकिन वह तो मानस को गिरफ्तार किए जाने के एक दिन पहले था। लेकिन मानस तो बम कांड वाले दिन ही लखनऊ छोड़ कर चला गया था।"
जानकीनाथ ने मानस की तरफ देखा। उसने नज़रें नीची कर लीं। श्यामलाल ने जिरह आगे बढ़ाई,
"मानस की मकान मालकिन ऊषा देवी ने बताया है कि जिस दिन शहर में बम फूटने के कारण सनसनी मची हुई थी, उसी दिन मानस बाहर जा रहा था। उनके पूँछने पर मानस ने कहा कि वह उन्नाव जा रहा है। घर में बहुत जरूरी काम आ पड़ा है।"
श्यामलाल ने जानकीनाथ की तरफ देखा।
"योर लॉर्डशिप, मानस ना तो उन्नाव गया था और ना ही बिठूर। वह कानपुर में रसिकलाल के एक दोस्त के पास ठहरा हुआ था। इस बात की प्रतीक्षा कर रहा था कि मामला शांत हो जाए। पुलिस अपनी कार्रवाही कर रही थी। उसी बीच मानस के फुफेरे भाई का मुंडन हुआ। मानस अपने परिवार से मिलने के लोभ पर काबू नहीं रख सका। अपनी बुआ के घर गया। वहाँ से इसे गिरफ्तार कर लिया गया।"
ऊषा देवी और रसिकलाल के दोस्त को गवाही के लिए पेश किया गया। उन्होंने श्यामलाल की बात पर मोहर लगा दी। मानस बुरी तरह फंस गया था। वह घबराकर बोला,
"ये सब सच है। पर मैंने बम नहीं फेंका। मैं तो सिर्फ डर कर भागा था।"
श्यामलाल ने सवाल किया,
"बिना अपराध किए तुम डर क्यों गए ?"
मानस की आँखों से आंसू बह रहे थे। उसने सफाई देते हुए बताया,
"जज साहब, संगठन में जुगल किशोर भइया से मैं बहुत प्रभावित था। वही मुझे अंग्रेज़ी सरकार के अत्याचारों के बारे में बताते थे। एक दिन उन्होंने मुझे बताया कि कैसे जॉर्ज बर्ड्सवुड ने निहत्थे लोगों पर गोलियां चलवा दीं। कई लोग घायल हुए। दो लोगों की मौत हो गई। सुनकर मुझे बड़ा गुस्सा आया। जुगल किशोर भइया ने मुझसे कहा कि वो लोग उसके इस अन्याय का बदला लेना चाहते हैं। क्या मैं उनकी मदद करूँगा। मैं समझ नहीं पाया कि मुझे क्या करना होगा ? पर जब उन्होंने काफिले पर बम फेंकने की बात की तो मैं डर गया। मैंने उन लोगों से मिलना बंद कर दिया।"
"अगर तुमने बम फेंकने से मना कर दिया था तो तुम डरे क्यों ?"
मानस ने जवाब दिया,
"पहले मुझे लगा था कि संगठन के लोग भी बम फेंकने की हिम्मत नहीं करेंगे। पर जब मुझे बम फेंके जाने की खबर मिली तो मैं डर गया कि कहीं बात मुझ पर ना आ जाए। मैं रसिकलाल से मिला। उसने मुझे भाग जाने की सलाह दी। कानपुर में अपने एक दोस्त का पता देकर भेज दिया।"
श्यामलाल ने अपना पक्ष रखते हुए कहा,

"ये लड़का सरासर झूठ बोल रहा है। बम इसी ने फेंका था। रसिकलाल को पुलिस ने गिरफ्तार किया तो उसने बताया कि बम फेंकने के बाद ये लड़का घबरा गया। उससे एक सुरक्षित जगह छिपने की बात करने लगा। तब रसिकलाल ने उसे कानपुर में रहने वाले एक दोस्त के पास भेज दिया।"
जानकीनाथ समझ गए कि सब कुछ खत्म हो गया। मानस रोए जा रहा था। श्यामलाल ने जिरह समाप्त करने के लिए कहा,
"योर लॉर्डशिप, ये लड़का कटघरे में खड़ा आंसू बहा कर कोर्ट को गुमराह करने का प्रयास कर रहा है। इस पर किसी तरह की रियायत ना की जाए। बहुत आवश्यक है ऐसे लोगों को सज़ा देकर समाज में एक उदाहरण पेश किया जाए। ताकि आने वाले समय में कोई इस तरह का कांड करने की सोंचे भी ना। इसके साथ मैं अपनी जिरह समाप्त करता हूँ।"
मानस चिल्लाने लगा,
"सच मानिए मैंने कुछ नहीं किया है। मैं सिर्फ डर कर भागा था। मैं किसी पर बम नहीं फेंक सकता हूँ।"
जज पर उसके रोनॅ का कोई असर नहीं हुआ। उन्होंने उसे दोषी करार दिया।

जानकीनाथ इस हार पर कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं थे। बिंदेश्वरी पाठक का रो रो कर बुरा हाल था। अपने होनहार बेटे के सुनहरे भविष्य में वह अपने परिवार की खुशियां तलाश रहे थे। पर अब वह एक जघन्य अपराध के लिए दोषी करार दिया गया था।
श्यामलाल के चेहरे पर विजय का दर्प था। वो मानस को इस तरह देख रहे थे जैसे वह इंसान ना होकर कोई बीमारी फैलाने वाला कीड़ा हो।
शहर के वे सभी अखबार जो सरकार का पक्ष लेते थे, श्यामलाल की तारीफ करते नहीं अघा रहे थे। जबकी सरकार के विरुद्ध दृष्टिकोण रखने वाले अखबार कई तरह के सवाल उठा रहे थे।
उनका ‌कहना था कि जब मानस की कोठरी से मिले सामान में नोट बुक का ज़िक्र ही नहीं था, तो वह श्यामलाल टंडन के पास कैसे आई‌ ?
रसिकलाल का नाम तो कई बार लिया गया पर उसे कोर्ट में पेश क्यों नहीं किया गया ?
पर सब जानते थे कि इन सवालों के जवाब नहीं मिलेंगे। सत्रह साल का मानस जेल की सलाखों के पीछे एड़ियां रगड़ता रह जाएगा।

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