कर्म पथ पर
Chapter 5
लखनऊ में एक केस चर्चा का विषय बना हुआ था। लखनऊ के सभी प्रमुख अखबारों में इस केस की चर्चा हो रही थी।
केस सत्रह साल के एक क्रांतिकारी युवक मानस पाठक पर चल रहा था। मानस पर आरोप था कि उसने एक अंग्रेज़ पुलिस अधिकारी जॉर्ज बर्ड्सवुड के काफिले पर बम फेंका था।
मानस उन्नाव का रहने वाला था। वह एक निर्धन किसान परिवार से ताल्लुक रखता था। वह इंटरमीडिएट की पढ़ाई करने के लिए लखनऊ में रह रहा था। इसी दौरान वह क्रांतिकारियों के संपर्क में आया था।
वह क्रांतिकारी संगठन हिंद की फौज का सदस्य था। जॉर्ज बर्ड्सवुड एक सरकारी दौरे पर झांसी से लखनऊ आए हुए थे। जॉर्ज ने झांसी में चल रहे एक अहिंसात्मक प्रदर्शन पर बर्बरता पूर्वक गोलियां चलवा दी थीं। जिसके कारण कई लोग घायल हुए थे। दो लोगों की मौत हो गई थी। उसी घटना का बदला लेने के लिए ही हिंद की फौज ने उनके काफिले पर बम फिंकवाया था।
पुलिस ने मानस को बिठूर में गिरफ्तार किया था। पुलिस ने चौक इलाके में उस कोठरी पर भी छापा मारा था जहाँ मानस पढ़ाई के सिलसिले में रह रहा था। वहाँ से पुलिस ने हिंद की फौज के कुछ पर्चों के साथ एक बुर्का भी बरामद किया था। चश्मदीदों के मुताबिक बम फेंक कर भागने वाले शख्स ने बुर्का पहना हुआ था।
अखबार की रिपोर्टिंग दो धड़ों में बंटी थी। वो अखबार जिन पर सरकार की दया दृष्टि थी केस को सरकार के दृष्टिकोण से पेश कर रहे थे। जबकी राष्ट्रवादी अखबारों का कहना था कि सही व्यक्ति को ना पकड़ पाने के कारण पुलिस ने आनन-फानन में कार्यवाही करते हुए जबरन मानस को इस मामले में फंसाया है।
पुलिस ने मानस को बिठूर में उसकी बुआ के घर से गिरफ्तार किया था। वह अपनी बुआ के घर अपने फुफेरे भाई के मुंडन के अवसर पर गया था। जबकी पुलिस का कहना था कि वह वहाँ छुपा हुआ था। पुलिस जिन वस्तुओं की बरामदगी उसकी कोठरी से होने की बात कर रही थी वे दरअसल पुलिस ने कहीं और से बरामद की थीं।
मानस का केस जानकीनाथ सहाय लड़ रहे थे। जानकीनाथ स्वदेशी विचारधारा को मानने वाले थे। वह अक्सर कम फीस में या बिना फीस के उन लोगों के लिए केस लड़ते थे जो अंग्रेज़ी हुकूमत के जुल्मों का शिकार होते थे।
सरकार की तरफ से यह केस श्यामलाल टंडन लड़ रहे थे। श्यामलाल क्रांतिकारियों के घोर विरोधी थे। उनका मानना था कि हर उस व्यक्ति को जो अंग्रेज़ी हुकूमत के खिलाफ आवाज़ उठाने का प्रयास करे, मौत की सजा मिलनी चाहिए। वह इसी सोंच के साथ मानस को भी कड़ी सजा दिलवाने के पक्ष में थे।
आज केस की सुनवाई शुरू हो रही थी। मानस के पिता बिंदेश्वरी पाठक बहुत चिंतित दिख रहे थे। जानकीनाथ ने उन्हें समझाया कि वह धैर्य रखें। उन्होंने बताया कि उसकी बात मानस से हुई थी। मानस का कहना है कि वह केवल एक बार अपने सहपाठी रसिकलाल के साथ हिंद की फौज के ठिकाने पर गया था। वह भी रसिकलाल बिना सही जानकारी दिए उसे ले गया था। लेकिन उसका उस संगठन से कोई संबंध नहीं है। क्योंकी रसिकलाल अक्सर उसकी कोठरी पर उससे मिलने के लिए आता था। इसलिए पुलिस ने उसे जबरन फंसाया है।
पुलिस अपनी गाड़ी में मानस को लेकर कोर्ट पहुँची। उसे देखते ही बिंदेश्वरी पाठक की आँखों से आंसू बहने लगे। मानस को आरोपी के तौर पर कटघरे में पेश किया गया।
मुकदमे में पैरवी की शुरुआत श्यामलाल टंडन ने की। वह मानस के कटघरे के पास जाकर बोले,
"योर लॉर्डशिप....ज़रा इस लड़के की तरफ देखिए। अगर यह इस कटघरे में ना खड़े होकर कहीं और होता तो इसकी मासूम सी शक्ल देख मैं, आप या यहाँ मौजूद हर शख्स सोंचता कि यह एक सीधा-सादा एक गरीब लड़का है। इसके हाथ में किताबें देख कर हम कहते कि बहुत होनहार है। एक दिन अपने परिवार और समाज के लिए उपयोगी साबित होगा।"
श्यामलाल रुके उन्होंने कोर्टरूम पर एक नज़र डाली। फिर अपनी बात आगे बढ़ाते हुए बोले,
"ऐसा हो भी सकता था। ये लड़का जो आज बम फेंकने जैसे जघन्य अपराध के लिए इस कटघरे में खड़ा है, वह सचमुच होनहार है। दसवीं की परीक्षा में इसने अपने विद्यालय में सबसे अधिक अंक प्राप्त किए थे। इसी कारण इसके गरीब किसान पिता ने इसके उज्जवल भविष्य के लिए लखनऊ पढ़ने भेजा था। पर अफसोस कि अपना भविष्य बनाने की जगह ये लड़का गलत सोहबत में पड़ गया।"
श्यामलाल अचानक ही गंभीर मुद्रा में आ गए। कुछ गुस्से से बोले,
"ऐसा हो नहीं सका क्योंकी इस समाज में कुछ लोग ऐसे हैं जिनके दिमाग में ज़हर भरा है। वो बेवजह हुकूमत के खिलाफ बातें करते हैं। खुद परदे के पीछे रह कर इसके जैसे युवकों को वरगला कर उनसे ऐसे खौफनाक काम करवाते हैं। पर इसका हरगिज़ ये मतलब नहीं निकलता है कि जो हुआ उसमें इस लड़के का दोष नहीं है। ये भी उतना ही दोषी है जितना वह है। इसलिए इस पर किसी तरह की दया ना दिखाई जाए।"
श्यामलाल अपनी जगह पर जाकर बैठ गए। बारी जानकीनाथ की थी। वह उठे और मानस का पक्ष रखते हुए बोले,
"जवाब, मेरे मुवक्किल मानस पर लगाया गया इल्ज़ाम सरासर ग़लत है। उसका इस बम कांड से कोई संबंध नहीं है। पुलिस ने उसे उसकी बुआ के घर से पकड़ा था। वह वहाँ एक पारिवारिक कार्यक्रम के लिए गया था। पुलिस ने उसके पास से कुछ भी बरामद नहीं किया। पुलिस ने कहा है कि उन्होंने मानस की कोठरी से हिंद की फौज के कुछ पर्चे और एक बुर्का बरामद किया था। जबकी सच तो यह है कि मानस बिठूर जाते समय अपनी कोठरी में जो ताला लगा कर गया था, वो जैसे का तैसा लटक रहा है। पुलिस ने वो सभी वस्तुएंं कहीं और से बरामद कीं और नाम मेरे मुवक्किल का लगा दिया। मेरे मुवक्किल का हिंद की फौज संगठन से कोई लेना देना नहीं है।"
श्यामलाल एक बार फिर अपनी जगह से उठकर बोले,
"योर लॉर्डशिप मेरे दोस्त ना जाने किस ताले में उलझे हुए हैं। पर उन्हें यह नहीं पता है कि मानस की कोठरी से पुलिस को हिंद की फौज के पर्चों और बुर्के के अलावा कुछ और भी मिला था, जो यह साबित कर देगा कि मानस का हिंद की फौज से संबंध है।"
श्यामलाल की यह बात सुनकर जानकीनाथ को आश्चर्य हुआ। कोर्ट रूम में उपस्थित लोगों में भी उत्सुकता बढ़ गई। श्यामलाल लाल मानस को एक नोट बुक दिखाते हुए बोले,
"इसे पहचानते हो ?"
मानस ने नोट बुक को ध्यान से देखा। फिर कुछ संकोच के साथ बोला,
"ये पुस्तिका मेरी है।"
"सही कहा। इसके पहले पन्ने पर तुम्हारा नाम लिखा है। यह तुम्हारे अंग्रेज़ी विषय की नोट बुक है। इससे तुमने कुछ पाठों के नोट्स बना रखे हैं।"
"जी...."
श्यामलाल ने नोट बुक खोल कर उसका एक पृष्ठ दिखाते हुए पूँछा,
"ध्यान से देख कर बताओ। इस पन्ने के सबसे ऊपर जो लिखा है, वह तुम्हारी लिखाई है।"
मानस ने उस पर नज़र डाली। वह परेशान हो गया। धीरे से बोला,
"जी....मेरी ही लिखाई है।"
श्यामलाल ने नोट बुक जज के अवलोकन के लिए देते हुए कहा,
"योर लॉर्डशिप, मानस मान रहा है कि पन्ने के सबसे ऊपर जो लिखा है, वह उसकी लिखाई है। पन्ने पर उसने लिखा है 'आई सैल्यूट एच.के.एफ'। यह एच.के.एफ हिंद की फौज का संक्षिप्त रूप है।"
जानकीनाथ इस बात से नावाकिफ थे। मानस ने उन्हें ना तो नोट बुक के बारे में बताया था। ना ही उसने यह बताया था कि वह हिंद की फौज संगठन से प्रभावित है। इस बात ने अचानक ही उनका पक्ष कमज़ोर कर दिया था।
श्यामलाल मानस से मुखातिब होते हुए बोले,
"तुम संगठन से कोई वास्ता नहीं रखते हो। तो फिर जो तुमने लिखा उसका क्या मतलब है। किसी को हम तभी सलाम करते हैं जब हम उससे प्रभावित हों। तो तुम अगर संगठन से कोई वास्ता नहीं रखते हो तो फिर उन्हें सलाम क्यों कर रहे हो।"
मानस बुरी तरह से घबरा गया था। श्यामलाल ने मौका देख कर बात आगे बढ़ाई,
"रसिकलाल तुम्हारा सहपाठी है। वह अक्सर तुमसे मिलने तुम्हारी कोठरी पर आता था। ये सच है ?"
"जी....सच है।"
"रसिकलाल का संबंध हिंद की फौज से है। उसने खुद कबूल किया है। उसने बताया कि तुम भी उसके साथ हिंद की फौज के अड्डे पर जाते थे।"
मौके की नज़ाकत देखते हुए जानकीनाथ बचाव में आए।
"जनाब, रसिकलाल एक सहपाठी के तौर पर पढ़ाई के बारे में बात करने के लिए मानस से मिलता था। उनके बीच कोई और बात नहीं होती थी। एक बार रसिकलाल मानस को सही बात बताए बिना संगठन के ठिकाने पर ले गया था। लेकिन मानस को वह जगह ठीक नहीं लगी तो वह फौरन ही वहाँ से लौट आया।"
श्यामलाल ने मुस्कुराते हुए कहा।
"आपके मुवक्किल को वह जगह पसंद नहीं आई। वह फौरन वहाँ से लौट आया। लेकिन फिर भी उनसे इतना प्रभावित है कि अपनी नोट बुक में लिख दिया 'आई सैल्यूट एच.के.एफ'।"
श्यामलाल के इस तर्क का जानकीनाथ को कोई उपाय नहीं सूझा।