कभी अलविदा न कहना - 13 Dr. Vandana Gupta द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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कभी अलविदा न कहना - 13

कभी अलविदा न कहना

डॉ वन्दना गुप्ता

13

"आंटीजी की तबियत कैसी है अब..? तुमने मुझे बस में बताया क्यों नहीं कि तुम इसलिए आयी हो आज?" सुनील ने सम्बोधित तो मुझे किया किन्तु जवाब अलका दी ने दिया.. "इसे तो यहीं आकर पता चला कि मम्मी आई सी यू में हैं.."

"अच्छा...." उसने सिर्फ एक शब्द कहा किन्तु मुझे देखते हुए उसके चेहरे ने बहुत कुछ कह दिया था। मुझे फिर आश्चर्य हुआ कि थोड़ी देर पहले जो अलका दी अपराध बोध से भरी हुई मुश्किल से बात कर पा रही थीं, वे अचानक फिर मुखर हो उठीं... इस समय उन्हें देखकर कोई नहीं कह सकता था कि उन्होंने कोई बहुत बड़ी गलती की है, जिसकी वजह से उनकी मम्मी, यानी मेरी ताईजी आई सी यू में भर्ती हैं।

"वैशाली तुम शायद सब कुछ जान चुकी हो और फिलहाल इस बात का जिक्र किसी से मत करना, सबको यही पता है कि मार्किट में अचानक ही आंटीजी की तबियत खराब हुई, मैं संयोग से वहीं था और उन्हें हॉस्पिटल ले आया... बाकी बाद में देखते हैं.." अशोक ने अलका दी की ओर देखते हुए कहा। अलका दी फिर रोने लगीं... शायद उनका गिल्ट कई गुना बढ़ गया था... ताईजी की तबियत बिगड़ने के साथ ही वे दीपक की वजह से अशोक को खो चुकी थीं और सुनील..... अभी भी एक प्रश्नचिन्ह था...!

ताईजी की तबियत में सुधार था और डॉक्टर ने उन्हें सुबह तक आई सी यू में निरीक्षण में रखने को कहा था। तय हुआ कि पापाजी और ताऊजी रात में हॉस्पिटल में रुकेंगे।

"आप लोग घर जाकर खाना वगैरह खाकर आ जाइएगा, तब तक मैं और अलका दी यहीं रुकते हैं।" मैं सोच रही थी कि अलका दी से अकेले में बात करने का मौका भी मिल जाएगा। अशोक ने गाड़ी की चाबी सुनील को देते हुए उसे अम्मा और मम्मी को घर छोड़ने के लिए कहा।

"नहीं बेटा! हम लोग चले जाएंगे, मैं छोड़ दूंगा इन्हें, तुम आलरेडी काफी समय दे चुके हो, अब मत परेशान हो.." ताऊजी की बात सुनकर फिर मैं मन ही मन ईश्वर को मनाने लगी कि काश अशोक की बात मान ली जाए और हम तीनों यहाँ रुककर इस घटना पर चर्चा कर सकें। मेरे मनोभावों की चुगली फिर मेरे चेहरे ने कर दी और सुनील समझ गया, तभी तो उसने कहा... "एक गाड़ी में आप सब नहीं आ पाओगे... दो चक्कर मत लगाइए, हमें कोई तकलीफ नहीं होगी, आपको छोड़ते हुए घर निकल जाएंगे... अशोक भाई! आप रुक रहे हो तो मैं आंटी को छोड़कर आता हूँ।" उसने बिना उत्तर की प्रतीक्षा किए चाबी ली और बाहर की ओर निकल गया।

सबके चले जाने के बाद भी मुझे विचारों में खोया देखकर अशोक ने ही बात शुरू की... "वैशाली! तुम्हें पता है, तुम्हारी दीदी ने किस मुसीबत को गले लगाया था, अच्छा हुआ जो मैं वहाँ पहुँच गया।"

"दीदी अब आप बताइए कि क्या चक्कर है ये? क्या आपको यकीन है कि ताईजी ने पूरी बात सुन ली थी और इसी वजह से उन्हें अटैक आया है, या कि......?

"ये तो अब आंटीजी ही बता पाएंगी... उन्हें ठीक होने दो और अलका तुम उनके सामने एकदम मत जाना।" मेरी बात काटते हुए अशोक ने फिर समझदारी का परिचय दिया।

"सब मेरी गलती है, न मैं सुनीता से दोस्ती करती, न दीपक से परिचय होता, न उसके चक्कर में पड़ती... न ही अशोक से शादी के लिए मना करने का कहती और न ही ये सब होता......" वे भर्राई आवाज़ में बोलीं।

"अशोक से शादी के लिए आपने मना किया?" मैंने चौंकने का अभिनय किया, जिसमें मैं सफल रही।

"और दीपक था तो सुनील से शादी की बात.....?" मैंने अपना असमंजस जाहिर कर दिया।

"वैशाली! तुमने सफर के बाद कुछ खाया नहीं होगा, चलो कैंटीन में चलकर बात करते हैं।" अशोक का मेरे प्रति केयरिंग एटीट्यूड बरकरार था। मुझे याद आया कि सुनील और मैं साथ में ही आये थे, उसने भी कुछ नहीं खाया होगा। "सुनील भी सफर के बाद सीधा ही हॉस्पिटल आ गया है, उसे भी आ जाने दीजिए...." सुनील के प्रति मेरी परवाह से वे दोनों बेखबर रहे अथवा कुछ समझे, ये मैं नहीं जान पायी क्योंकि अशोक कैंटीन की ओर बढ़ चुका था, उसके पीछे अलका दी और सबके पीछे मैं....!

कैंटीन भरा हुआ था... गाँव से एक मरीज आता है तो पूरा कुनबा ही साथ आ जाता है.. शहर में भी एक मरीज के साथ अमूमन दो या तीन परिजन केअर टेकर के रूप में रहते ही हैं... इस हिसाब से यदि सौ बिस्तर वाला हॉस्पिटल फुल हो तो कम अज कम चार सौ व्यक्ति एक समय में कैंपस में रहते ही हैं। कैंटीन का बेतहाशा शोर भी मुझे सुनाई नहीं दे रहा था। मन के अंदर का शोर शायद अधिक तीव्र था। शोर के बावजूद एक सन्नाटा सा पसरा था हमारे बीच...

'जिसे भी देखिए... वो अपने आप में गुम है....' कैंटीन में टी वी पर चित्रहार आ रहा था... कितना सटीक था गाना वहाँ के हालात पर.. अशोक गुनगुनाने लगा था...

जहाँ उम्मीद हो इसकी.. वहाँ नहीं मिलता...."

"वाकई में कभी भी किसी को मुक्कमल जहां नहीं मिलता है... जो अपना जहां है, उसे ही मुक्कमल बना लिया जाए तो खुश रहा जा सकता है..." मैं अपनी ही धुन में बोल गयी और वे दोनों मुझे देखने लगे।

"विशु! मम्मी मुझे माफ़ कर देंगी न?" अलका दी ने बात शुरू की।

"दी आप इतनी समझदार होकर ऐसी गलती कैसे कर सकती हो.... अशोक जी इतने अच्छे हैं और आपने उस दीपक के चक्कर में इन्हें नकार दिया..?" शर्म और गुस्सा दोनों के मिले जुले भाव थे मेरी टोन में..

"जो गलती मैंने की... उसे अब तू सुधार सकती है..." ये क्या कह गयीं दी.... मैं अशोक को उस नज़र से देख ही नहीं सकती थी। उसके प्रति मेरे मन में सम्मान और श्रद्धा का भाव था... प्यार का नहीं... और प्यार के बिना शादी का क्या महत्व...?

"दीदी एक बात बताइए कि आप दीपक को कंगन देने ताईजी के साथ क्यों गयीं और अशोक जी आप मार्किट में उस समय कैसे मिल गए इन्हें? क्या यह मात्र संयोग था?" मैं सबके आने के पहले ही खुलासा कर लेना चाहती थी।

"मैं अंदर से बहुत डरी हुई थी, चोरी तो कर ली थी, पकड़ में आने का डर मन पर हावी था। मैं अकेले घर से निकली ही नहीं कहीं, और मम्मी को लेकर गयी ताकि भविष्य में कंगन चोरी का पता चले तो मुझ पर शक न हो किसी को... दीपक के बारे में तो एक न एक दिन पता चलना ही था सबको, उस समय भी कोई उस दिशा में न सोच सके... इसलिए...."

"वाह दी क्या दूर की सोच है आपकी... थोड़ी और दूर तक भी सोच लेतीं तो शायद यह नौबत ही नहीं आती..." मैंने व्यंगात्मक लहजे में कहा।

"उसे गलती का अहसास हो गया है वैशाली... अब उसे तुम्हारा साथ चाहिए, ताकि दूसरी गलती न हो... तुम इस तरह से बात करोगी अपनी दीदी से तो उन्हें बुरा लगेगा.." अशोक फिर दी का फेवर करने लगे।

"आप दोनों बस.... जरा ताईजी के बारे में भी सोचो... घर में बाकी सबको पता चलने पर कितना बुरा लगेगा सबको... एक रेपो है हमारी फैमिली की, ताऊजी की और पापाजी की कितनी इज्जत है... उसके बारे में इन्होंने नहीं सोचा... इन्हें शादी की इतनी क्या जल्दी पड़ी थी कि खुद ही चल पड़ीं दीपक के साथ ब्याह रचाने... उसके बारे में जानकारी जुटा लेतीं.. देख ही तो रहे थे उपयुक्त रिश्ता... अरे! आप थोड़ा आगे तक पढ़ लेतीं तो दिमाग में जाले नहीं लगते... ताईजी मेरी शादी तो तीन साल पहले ही करवा रही थीं... आपकी भी करवा ही देतीं..." मैं गुस्से से कांप रही थी।

"बस करो वैशाली...." दीदी की आँखों में लालिमा भी थी और नमी भी... "तुम क्या समझ पाओगी जब बात बात में मेरी तुलना तुमसे की जाती थी। अम्मा हमेशा तुम्हारी तारीफ करतीं और मुझे हमेशा अपमान का घूँट पीना पड़ता था... तुम्हें रंजन ने एक शादी में देखकर खुद पसन्द किया था और तुमने इनकार कर दिया... मेरे लिए आए रिश्तों ने भी मेरे रंग की वजह से नापसन्द किया... क्या काली चमड़ी वालों की भावनाएं नहीं होतीं... पढ़ाई में मैं तुम्हें बीट नहीं कर सकती थी, शादी में तो कर सकती थी.... मैं नहीं जानती किस तरह तुम्हारे प्रति ईर्ष्याभाव पनपने लगा.... मैं गलत थी विशु... मुझे माफ़ कर दो..." दी रोने लगीं।

"और फिर सुनील कैसे बीच में आया... उससे शादी की बात क्यों की...?"

"मैं समझ गयी थी कि सुनील मुझसे शादी की हाँ नहीं करेगा... अशोक की मनाही आ चुकी थी... और यदि तुम्हारी शादी अशोक से तय हो जाती तो मैं दीपक को सामने ले आती... उसकी नौकरी लग जाती तो शायद घर वाले उससे मेरी शादी के लिए तैयार हो जाते...."

"सुनील यदि हाँ कर देता तो....?" अशोक भी उनकी बात ध्यान से सुन रहे थे।

"वह नहीं करता... क्योंकि वह.... " अलका दी ने एक पल के लिए मुझे देखा और फिर बोलीं... "वह किसी और को पसन्द करता है..." अलका दी ने बात घुमा दी... क्या इन्हें सच पता था? वे अशोक के अहसान तले दबीं थीं और शायद उसका दिल नहीं तोड़ना चाहती थीं।

"किसे? और तुम्हें कैसे पता..." अशोक के प्रश्न का उत्तर मिले उसके पहले ही मैंने प्रश्न दाग दिया... "आपने बताया नहीं कि आप वहाँ कैसे पहुँचे?"

"मैंने कॉलेज कैंपस में दीपक को बात करते सुना था... वह परीक्षा फॉर्म जमा करने की लाइन में था और अपने दोस्त से बोला कि 'यार मेरा फॉर्म तू जमा कर दे, आज अलका मुझे कंगन देने आने वाली है, चौथमल जी की दुकान तक पहुँचने में टाइम लगेगा, उसके घर के पास है' बस मेरे मन में शंका की सुई घूमकर तुम तक पहुँच गयी, वह पुर्जा याद आया और चौथमल की दुकान भी.... मैं मन में सोच रहा था कि काश मेरी शंका गलत निकले... लेकिन........ हाँ तुम बताओ सुनील का क्या चक्कर है..? आज उसकी खबर लेता हूँ।"

तभी सुनील भी वापस आ गया। अशोक ने उसे देखा और फिर बोले कि... "खैर! जो हुआ सो हुआ... अब जब तक आंटी बात करने की स्थिति में नहीं आतीं हैं, तब तक सब नॉर्मल रहने की कोशिश करो... इस बात का जिक्र किसी से मत करना... और वैशाली ये कंगन लो... वापिस जगह पर रखवा देना अलका से...."

हमने इडली सांभर खाया... कॉफी पी और पुनः आई सी यू के बाहर आकर बैठ गए।

सूचना मिली कि ताईजी को होश आ गया है और परिवारजन मिल सकते हैं। हम चारों एक दूसरे का मुँह देखने लगे... इस परिस्थिति में हम उनका सामना नहीं कर सकते थे... कौन जाएगा पहले..? इसी पशोपेश में थे... अलका दी की सच्चाई यदि पता चल गयी होगी तो उनका जाना ठीक नहीं, और मुझसे तो वे वैसे ही नाराज सी रहती थीं.... एक बुरी घड़ी टल गयी थी और दूसरी आने को तैयार थी.... तभी पापाजी और ताऊजी ने आकर इस संकट से उबार लिया। ताऊजी आई सी यू में मिलने गए और हम सब ईश्वर को हमारे सारे पुण्य याद दिलाकर भविष्य में गलती नहीं करने का खुद से वादा करने लगे....!

क्रमशः....14