हॉंटेल होन्टेड - भाग - 1 Prem Rathod द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

हॉंटेल होन्टेड - भाग - 1

रात का खामोशी से भरा अंधेरा काला साया, हल्की हल्की गिरती बारिश की बूंदे ,एक पतली सी सड़क और उसके दोनों तरफ घना जंगल।बारिश की वजह से सड़क गीली हो चुकी थी,तभी उस सुनसान सड़क पर एक इंसान नजर आया जो धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था।

उसने काले रंग का लंबा सा कोट पहना हुआ था, गर्दन में मोटा सा मफलर और हाथों में ब्लैक कलर के ग्लव्ज पहन रखे थे, उसने बारिश से बचने केेेेे लिए छाता ले रखा था,उसके चलने की वजह से अजीब सी आवाज आ रही थी और उस जगह पर इतनी शांति थी की वह उस आवाज को सााफ-सफ सुन सकताा था।

बारिश अब काफी धीमी हो चुकी थी और ठंडी हवाएं भी धीरे धीरे-धीरे चलने लगी थी।वह आदमी चलते चलतेे कभी अपने दाएं देखता तो कभी बाएं। तभी अचानक उसने अपनी गर्दन पीछे घुमाई पर पीछेेेे उसे अंधेरे के सिवा कुछ नहीं दिखाई दिया। उसके चेहरे पर हल्की सी घबराहट दिखाई देे रही थी।

काली रात घना अंधेरा सुनसान जगह तेज चल रही हवाई और बारिश, ऊपर से इस सड़क पर ना ही कोई स्ट्रीट लाइट थी और ना ही कोई गाड़ियों की चहल-पहल। ऐसेेे डरावने माहौल में किसी भी इंसान का डर जाना जायस होता है।

अचानक तभी कुछ आहट हुई वह चलते-चलते रुक गया और उसने घबराकर अपनी दाईं तरफ देखा पर वहां उसे झाड़ियों के अलावा कुछ नहीं दिखाई दिया हवाएं चलने की वजह से झाड़ियां हिल रही थी और झाड़ियां हिलने की वजह से अजीब सी आवाज आ रही थी।

'क्या हो गया है मुझे?' बोलकर उसने अपनी कलाई पर बंधी हुई कड़ी देखी तो उसमें 11:00 बजे थे। वह फिर आगे देख कर चलने लगा।

दूसरी तरफ....

एक हॉल में बहुत से आदमी जमीन पर बिछी चादर पर बैठे हुए थे और आपस में बातें कर रहे थे,उनकी आवाज की वजह से पूरा हॉल गूंज रहा था कि तभी....
'अरे साहब आप आ गए' बोलते हुए एक आदमी हाथ जोड़कर खड़े होते हुए बोला और उसके साथ सभी आदमी खड़े हो गए।
उन सबके सामने एक आदमी खड़ा था जो देखने में करीब 30 35 साल का नार्मल सा इंसान लग रहा था, उसने गर्म कपड़े पहन रखे थे और वह चलता हुआ कुर्सी पर आकर बैठ गया, 'छोटू जरा आग को और ज्यादा बढ़ा दे ठंड कुछ ज्यादा ही बढ़ गई है।'
'जी साहब लकड़िया पीछे वाले कमरे में है मैं अभी लेकर आता हूं' कहकर निकल गया।
'अरे आप लोग खड़े क्यों है बैठ जाइए' उसने सामने खड़े हुए सभी लोगों से कहा और सब लोग बैठ गए।
'कहिए ऐसी क्या जरूरी बात करनी थी आप लोगों को जो बात करने आप लोग इतनी ठंड और बारिश में यहां आए हैं?'
'हम वहां काम नहीं कर सकते' गुस्से में बोलते हुए एक आदमी खड़ा हुआ।
'काम नहीं कर सकते पर क्यों? क्या वजह है?'
'वजह नहीं पता आपको..... पिछले दो दिनों में क्या-क्या हुआ है पता नहीं आपको या फिर पता होते हुए भी छुपाने का नाटक कर रहे हैं' वह आदमी थोड़ी ऊंची आवाज में बोला।
'देखो मुझे नहीं पता कि तुम क्या कहना चाहते हो साफ-साफ बताओ'
'अरे तू चुप हो जा बड़े साहब से बात करने की तुझे तमीज नहीं है' एक आदमी ने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा।
'माफ करना साहब जवान खून है जोश में थोड़ा ऊंचा बोल गया इसे पता नहीं है कि मालिक और मजदूर ने क्या फर्क होता है।'
'कोई बात नहीं तुम बताओ कि वहां पर क्या हुआ है और यह सब लोग वहां पर काम करने को क्यों क्यूं मना कर रहे हैं?'
'साहब बात ही कुछ ऐसी है कि जिसकी वजह से हम लोग डरे हुए हैं जिस जगह हम लोग काम कर रहे हैं वहां कुछ बहुत गलत चीज है कोई है जो हमें वहां काम करने नहीं देना चाहता जो हमें वहां से चले जाने की चेतावनी दे रहा है।'
'देखो मुझे समझ में नहीं आ रहा कि तुम क्या कहना चाहते हो मुझे थोड़ा साफ-साफ बताओ।'
'कोई आत्मा है साहब बहुत बुरी आत्मा क्योंकि ऐसे काम कोई आत्मा ही कर सकती है या फिर आत्मा के रूप में एक शैतान'
'आत्मा शैतान तुम क्या बकवास कर रहे हो मुझे या कुछ समझ में नहीं आ रहा देखो ऐसे बात करने से ना ही तुम्हारी मुश्किल का समाधान होगा और ना ही इन मजदूरों की मुश्किलों का तुम जो भी कहना चाहते हो वह साफ-साफ कहो।'
'साहब वहां पर मौत हुई है.......... और वह भी कोई आम मौत नहीं बल्कि एक दर्दनाक मौत।'

To be continued......