आघात - 22 Dr kavita Tyagi द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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आघात - 22

आघात

डॉ. कविता त्यागी

22

ससुराल पहुँचकर पूजा को पता चला कि रणवीर अपनी माँ की आज्ञा लिए बिना ही उसको लेने के लिए गया था । माँ को रणवीर का यह निर्णय अच्छा नहीं लगा। अपनी आज्ञा के बिना उन्हें बहू का घर में आना इतना अप्रिय लगा कि इस घटना को वे अपने मान-अपमान से जोड़कर देखने लगी । अपने इस कथित अपमान की उत्तरदायी वे पूजा को ठहरा रही थी । उनके अनुसार पहले कभी उनके बेटे ने माँ की आज्ञा का उल्लंघन नहीं किया था, न ही माँ की अनुमति लिये बिना कभी कोई कार्य किया था। अपनी असंतोष को रणवीर की माँ ने उस दिन सबके समक्ष खुलकर अभिव्यक्त किया । उस दिन से पहले उन्होंने ऐसा कभी नहीं किया था। रणवीर को यह सहन नहीं हुआ कि उसकी माँ उसके किसी कृत्य पर उँगली उठाए ! यद्यपि रणवीर की माँ अपने बेटे के प्रति अप्रसन्नता को व्यक्त करने के लिए भी पूजा को खरी-खोटी सुना रही थी, बेटे को उन्होंने कुछ भी नहीं कहा था । पूजा उनसे अनुनय-विनय करती हुई बार-बार क्षमा याचना कर रही थी और रणवीर की माँ के व्यवहार में कोई सकारात्मक परिवर्तन नहीं हो रहा था । तथापि आज पहली बार रणवीर को अपनी माँ का यह व्यवहार अच्छा नहीं लगा था। शायद उसने आज पहली बार माँ को पूजा के लिए प्रत्यक्षतः खरी-खोटी बातें कहते सुना था। आज से पहले माँ सदैव रणवीर से पूजा की शिकायत करती रही थी और साथ ही अपनी सहनशीलता और क्षमाशीलता की लम्बी-लम्बी कथाएँ सुनाकर उसको यह आभास कराती रही थी कि पूजा द्वारा इतनी गलतियाँ करने के बावजूद वे उसके साथ अपनी बेटी-सा व्यवहार करती हैं। या शायद आज पहली बार ऐसा अवसर था, जबकि पूजा के समक्ष ही रणवीर के किये गये किसी कार्य पर उसकी माँ ने प्रश्न-चिह्न लगाया था। पूजा ने अनुभव किया था कि जब कभी उसके विषय में कोई बात होती थी, तो रणवीर माँ की अनुमति लेना आवश्यक समझता था, अन्य किसी कार्य के लिए नहीं। जो भी हो, इस बार रणवीर ने पूजा को उसके मायके से वापिस लाने के लिए माँ की अनुमति नहीं ली थी, यह माँ को अच्छा नहीं लगा और अपने ऊपर उठता हुआ माँ का प्रश्न रणवीर को रास नहीं आया। परिणामस्वरूप रणवीर ने तत्काल माँ का घर छोड़कर अलग मकान में रहने का निर्णय ले डाला।

अगले दिन रणवीर ने एक अलग घर का प्रबन्ध कर लिया और अपनी पत्नी पूजा को लेकर वहाँ रहने लगा। यद्यपि सास का घर छोड़कर रणवीर के साथ चलते समय पूजा पति का विरोध नहीं कर सकी थी ! वह ऐसा करके पति से मतभेद नहीं बढ़ाना चाहती थी, किन्तु उसके मन में एक अज्ञात-भय और तनाव भरा हुआ था । वह निरन्तर अलग घर में रहने के औचित्य- अनौचित्य पर विचार-मन्थन करके बार-बार अपने अस्तित्व को नकारात्मक दृष्टिकोण से आँक रही थी। शीघ्र ही उसको आभास हुआ कि वह गलत सोच रही थी। लगभग एक सप्ताह पश्चात् ही उसको ज्ञात हो गया कि रणवीर के अलग रहने के निर्णय का उसकी माँ पर अनुकूल प्रभाव पडा है। उन्हें अनुभव हो चुका है कि बहू को दूर करने के प्रयास में वे अपने बेटे को दूर कर रही हैं। अपनी उस भूल को सुधरने के लिए उन्होंने अपने बेटे-बहू के पास एक सप्ताह के अन्दर ही यह प्रस्ताव भेज दिया कि अपना घर होते हुए किराये का मकान लेकर रहने की आवश्यकता नहीं है, इसलिए शीघ्र ही अपने घर वापिस लौट आएँ !

माँ का सन्देश पाकर रणवीर मन-ही-मन मुस्कराया -

‘‘यह तो होना ही था, पर अब...!’’

पूजा ने रणवीर की मनः स्थिति को परखते हुए कहा -

‘‘मम्मी जी ने घर वापिस बुलाया है, हमें वहाँ चले जाना चाहिए !’’

रणवीर ने पूजा की बात सुनकर एक बार प्रेमपूर्ण दृष्टि से उसकी ओर देखा, मुस्कराया, और फिर किसी कार्य का बहाना करके बाहर निकल गया। जब रणवीर लौटकर आया, पूजा ने पुनः वहीं प्रसंग आरम्भ किया और भविष्य का कार्यक्रम जानने का प्रयास किया। रणवीर ने स्पष्ट शब्दों में पूजा को बताया कि उसने माँ का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया है, क्योंकि माँ का घर आॅफिस से बहु दूर है । जबकि किराये का नया घर उसके आॅफिस के निकट है। रणवीर ने पूजा से कहा कि वह घर से अलग रहकर भी निरन्तर उन सबका ध्यान रखेगा और उनका भरण-पोषण करता रहेगा ! माँ भी बहुत समय तक उससे नाराज नहीं रह सकती है ! पूजा को इसमें कोई आपत्ति नहीं थी, बल्कि उसने रणवीर की बातें सुनकर एक प्रकार से राहत भरी साँस ली थी। अब तक उसके मस्तिष्क में भविष्य को लेकर जो अज्ञात भय तथा अपने प्रति नकारात्मक विचार भरे हुए थे, रणवीर ने उनका निराकरण कर दिया था।

वह मकान, जिसमें पूजा रह रही थी, अपना नहीं था। लेकिन, उसने अनुभव किया था कि निस्सन्देह मकान किराये का है, पर घर शुद्ध रूप से अपना और बिल्कुल अपना है। विवाह के पश्चात् यह प्रथम अवसर था, जब पूजा और रणवीर अपने वैवाहिक जीवन का पूर्ण आनन्द ले रहे थे। ऐसा अवसर, जब पति-पत्नी अपने जीवन के कुछ क्षण किसी संकोच तथा प्रतिबन्ध के बिना एक-साथ जी सकते थे ! सास के घर रहते हुए पूजा पर अनेक प्रकार के प्रतिबन्ध होते थे, जिन्हें बडी आसानी से सास द्वारा मर्यादा का नाम दे दिया जाता था । उन प्रतिबन्धों को तोड़ने का पूजा में साहस नहीं था, और रणवीर की उन्हें तोड़ने में रुचि नहीं थी ! अब परिस्थिति-प्रदत्त अलग घर में इस अवसर का दम्पति-युगल भरपूर लाभ उठाकर स्वर्गिक आनन्द ले रहा था ।

किन्तु उसका यह आनन्द अधिक समय तक स्थिर न रह सका। कुछ दिन बाद ही रणवीर की माँ ने उस घर में आना-जाना आरम्भ कर दिया और महीने में कम से कम दस दिन बहू पर नियन्त्रण रखने के उद्देश्य से उनके पास रहने लगी। पूजा पर पुनः मर्यादा का बाना धरण किये प्रतिबन्ध लगने लगे और उसी क्रम में रणवीर तथा पूजा के बीच दूरी बनने लगी। पूजा की सुखी गृहस्थी पर ग्रहण पड़ता दिखाई देने लगा। आर्थिक समृद्धि और सम्बन्धों में मधुरता होते हुए भी घर में सुख के क्षण दुर्लभ हो गये और रणवीर अचानक पूजा के साथ-साथ दोनों बेटों के प्रति अपने पारिवारिक दायित्वों का निर्वहन करने में उदासीन रहने लगा था।

रणवीर की उदासीनता से पूजा को जितना मानसिक कष्ट होता था, पूजा की दशा देखकर उसकी सास के चेहरे पर उतनी ही चमक आती थी । ऐसा लगता था, मानो उनके मन की मुराद पूरी हो गयी थी। कई बार उन्होंने पूजा से कहा भी था -

‘‘देख लिया ना ! भगवान के घर देर है, अंधेर नहीं ! तूने मेरे बेटे को मुझसे दूर करने की कोशिश की थी ना, आज देख, वह किससे दूर जा रहा है ?’’

अपने और पति के बीच बढ़ती हुई अप्रत्याशित दूरी से पूजा पहले ही चिन्तित और व्यथित रहती थी, सास के तानों को सुनकर उसका हृदय छलनी- छलनी हो जाता था। अपनी इस दशा से मुक्ति पाने के लिए उसने सामर्थ्य-भर प्रयास करना आरम्भ किया कि रणवीर और उसके बीच की दूरी कम होकर धीरे-धीरे समाप्त हो जाए ! अपने इस प्रयास की सफलता के लिए उसने अपने दोनों बच्चों की अपेक्षा पति को अधिक समय देने का निश्चय किया। पूजा ने दृढ़तापूर्वक अपने इस निश्चय को कार्यरूप देना आरम्भ किया, तो उसकी सास उसके निश्चय को भाँपकर उसकी राह में बाधा डालने लगी। सास के इस व्यवहार से पूजा को विश्वास होने लगा कि उसके पति की अपने बच्चों और पत्नी के प्रति उदासीनता का कारण कुछ और नहीं है, केवल उसकी सास है ! इसी विचार से प्रेरित पूजा का निश्चय अपेक्षाकृत अधिक दृढ़ हो गया -

कुछ भी हो जाए, मैं अपने प्रति रणवीर की उदासीनता और परस्पर दोनों के बीच आयी हुई दूरी को समाप्त करके ही चैन से बैठूँगी !"

दूसरी ओर, पूजा की सास ने भी निश्चय किया कि इस बार वह बहू को उसके इरादों में सफल नहीं होने देगी ! बहू चाहती है कि माँ से उसके बेटे को दूर कर दे ! परन्तु वह ऐसा कर सकती है, यह उसकी भूल है !

रणवीर को अपने निकट लाने के लिए सास-बहू में प्रतिस्पर्धा आरम्भ हो गयी। घर में आते ही रणवीर को अपनी पत्नी और माँ की ओर से भरपूर प्रेम और स्नेह मिलता था, फिर भी रणवीर में घर के प्रति आकर्षण नहीं बढ़ पा रहा था। प्रयास के अनुरूप तथा अपनी आशानुरूप परिणाम न मिल पाने से पूजा अत्यन्त दुःखी थी, जबकि अपने घर से तथा अपनी पत्नी से रणवीर का आकर्षण कम होने पर उसकी सास को कोई कष्ट नहीं था, बल्कि शान्ति थी । उनकी स्पर्धा का एकमात्र बिन्दु यह ही तो था कि रणवीर और उसकी पत्नी के बीच प्रेम-माधुर्य न बढ़े ! उनके मन में यही भय तो व्याप्त था कि पत्नी के साथ प्रेम और घनिष्ठता बढ़ने पर उनका बेटा उन्हें यथोचित मान-सम्मान नहीं देगा और गृहस्वामिनी के सारे अधिकार अपनी पत्नी को हस्तान्तरित कर देगा। एक ओर अपने प्रयास में अपनी आशा के प्रतिकूल परिणाम प्राप्त होने से पूजा का हृदय अत्यन्त व्यथित था, तो दूसरी ओर उसकी सास के चेहरे पर सन्तोष का भाव स्पष्ट दिखाई दे रहा था। परन्तु, अब पूजा के मन में सास के प्रति पहले जैसी कटुता नहीं थी । अब उसको अनुभव होने लगा था कि उसके प्रति पति की उदासीनता का और दाम्पत्य-सम्बन्ध में दूरी का कारण एकमात्र उसकी सास नहीं है, कुछ और भी है। उस कुछ और कारण को जानने का पूजा ने हर संभव प्रयत्न भी किया था, किन्तु वह अपने प्रयत्न में विफल रही।

अपने पति के साथ घनिष्ठता, मधुरता और निकटता बनाये रखने के पर्याप्त प्रयत्नों के बावजूद पूजा की गृहस्थी दौड़ने के बजाय घिसटकर चल रही थी । रणवीर कई-कई दिन घर से बाहर रहने लगा था । पूजा के टोकने पर वह सरलता से कहता था कि आॅफिस के महत्वपूर्ण कार्यों हेतु उसको शहर से बाहर जाना आवश्यक होता है । वहाँ न जाने पर उसे बड़ा घाटा वहन करना पड़ सकता है। चूँकि रणवीर के प्रति पूजा पूूर्णतः समर्पित थी और उस पर विश्वास करती थी, इसलिए उसके साथ वाद-प्रतिवाद करके न तो उसकी समस्याओं को बढाना चाहती थी, न ही ऐसा करके दोनों के बीच की दूरी को और अधिक बढ़ाना चाहती थी। वह यह भी सोचती थी कि पति की समस्याएँ कम नहीं कर सकती तो कम-से-कम उसकी समस्याओं को बढ़ाने का कारण न बनें। पूजा की इस प्रकार की सोच को रणवीर मूर्खता की संज्ञा प्रदान करते हुए अनेक बार उससे कहता था -

‘‘वही आदमी बुद्धिमान होता है, जो केवल अपने सुख-दुख की चिन्ता करता है !’’

रणवीर को तुरन्त उत्तर देते हुए पूजा रटे हुए अंदाज में कहती थी -

‘‘अपने लिए तो पशु भी जीते है, इंसान को दूसरों के सुख-दुख के विषय में भी सोचना चाहिए।’’

सतही तौर पर किया जाने वाला यह क्षणिक वार्तालाप उनके एक और मतभेद का कारण बनकर दोनों की बीच की दूरी को बढ़ाने में पर्याप्त सहयोग करता था। अनेक बार यह दूरी बढ़ते-बढ़ते इतनी बढ़ जाती थी कि रणवीर कई-कई दिन बाद जब घर लौटकर आता, तब शराब के नशें में आत्मनियन्त्रण खोकर पूजा के साथ मारपीट और गाली-गलौच करता था। पूजा ऐसी स्थिति न आने देने के लिए भरसक प्रयास करती थी, लेकिन कोई न कोई बात ऐसी हो ही जाती थी कि रणवीर स्वयं पर से नियन्त्रण खो देता था, जिसके परिणामस्वरूप न चाहते हुए भी परिवार का वातावरण बोझिल और अशान्त हो जाता था ।

उन्हीं दिनों तनावपूर्ण और विषम परिस्थितियों के बीच संयोगवश एक दुर्घटना घटी। सुधांशु अपने छोटे-छोटे पैरों से डग भरने सीख रहा था। एक दिन वह पूजा की दृष्टि से बचकर सीढ़ियों तक जा पहुँचा और दुर्भाग्यवश सीढ़ियों से लुढकते हुए नीचे आ गिरा और उसे अत्यध्कि चोट आ गयी। उस दुर्घटना का तत्काल प्रभाव नकारात्मक ही था। रणवीर ने पूजा को खूब भला-बुरा कहा था, किन्तु बेटे की चोट ने धीरे-धीरे दोनों को निकट ला दिया। पति-पत्नी के बीच बनी हुई जिस दूरी को पूजा अनेक बार प्रयास करके भी कम नहीं कर पायी थी, अब वह अनायास ही समाप्त हो गयी थी। दोनों एक साथ बेटे के स्वास्थ्य-लाभ की कामना करते हुए उसको अस्पताल में ले गये और बीती-बातों को भुलाकर भावात्मक रूप से एकाकार हो गये। डाॅक्टर ने पूजा और रणवीर को सचेत किया कि सुधांशु के मस्तिष्क पर चोट आयी है, इसलिए कोई भी कार्य ऐसा नहीं होना चाहिए, जो इसे कष्टकारक हो। डाॅक्टर की इस चेतावनी के कारण दोनों अतिरिक्त सावधनी बरत रहे थे, ताकि उनका बेटा माता-पिता दोनों का प्यार पाकर शीघ्र स्वस्थ हो सके।

डॉ. कविता त्यागी

tyagi.kavita1972@gmail.com