कहानी
इंस्पेक्शन
सुरेंद्र कुमार अरोड़ा
" महेश बाबू ! निकलने की जल्दी मत करना । इस फाइल पर फिर से विचार करना होगा ।ये बंदा तो ख़ास अपना है । इस केस में नोटिंग बदलनी पड़ेगी ............।" सक्सेना साहब ने अपने चैंबर से ही हाँक लगाई ।
पांच बजने के बाद , किसी भी हालत में महेश बाबू को अपनी उस कुर्सी पर बैठना किसी जेल से कम नहीं लगता जिसे दिन भर वे अपनी राजगद्दी से कम नहीं आंकते । क्योंकि ये वही कुर्सी है जिस पर बैठते ही आफिस में आने - जाने आम जन उन्हें सलाम दर सलाम ठोकते रहते हैं और शाम आते - आते उनकी जेब में सरकारी पगार से कहीं ज्यादा रकम ठन - ठनाने लगती है ।
" बड़ा कमीन है ये सक्ससेना का बच्चा ! " महेश बाबू मन ही मन खिसियाते हैं , " इसे सारे जरूरी काम पांच बजे के बाद ही याद आते हैं । " वह कुर्सी को पीछे धकिया अनमनी मुद्रा में सक्सेना के चैंबर में आ जाते हैं ।, " ठीक है ! सर । इस फाइल को कल फिर से स्टडी कर लेते हैं।"
" कल किसने देखा है महेश बाबू , ! अभी , इसी वक्त मेरे पास बैठो । इस काम को कल पर नहीं छोड़ा जा सकता । आज की रात ये बंदा मेरे घर पर हाजिरी बजाने आएगा । केस बेहद अर्जेन्ट है । अगर आज इस काम को हमने फाइनल नहीं किया तो हो सकता है कल डाइरेक्टर इसे अपने हाथ में ले ले । उसके दबाव में करेंगें तो हमारे हाथ में बाबा जी का टुल्लू भी नहीं लगेगा ।"
सक्सेना साहब के विशवास पात्र मुँह लगे बाबुओं में महेश बाबू का नंबर सबसे ऊपर था । जब कभी महेश बाबू को इस तरह का कोई ख़ास अवसर मिलता , शेम्पेन का एक - आध पैग तो एक - दूसरे के साथ टकराता ही था , साथ ही मुर्गे की टांग भी हाथ लग जाती थी।
" सबसे पहले तो इस पुरानी नोट शीट को निकाल कर फाड़ दो और नई शीट लगाओ । "
" जी , सर !"महेश बाबू ने किसी पालतू पेट की तरह दुम हिलाते हुए सक्ससेना के हुक्म का पालन करने का मन बना लिया ।
" अब इस नई शीट पर नोटिंग दो कि इंजीनियर पुलिया के गिरने या उसके नीचे दो बच्चों के दबकर मरने का कोई केस जे।इ।। शफीक पर नहीं बनता क्योंकि जिस ठेकेदार को पुलिया बनाने का ठेका दिया गया था , बार - बार ताकीद करने के बाद भी वो स्थानीय पार्षद कि शह कि वजह से बेलगाम होकर निर्धारित गुणवत्ता के माल को दरकिनार कर , पुलिया निर्माण में घटिया सामग्री का इस्तेमाल करता रहा और आम मार्ग बंद हो जाने के कारण जन दबाव में पुलिया को यातायात के लिए समय से पहले खोल दिया गया । जबकि पुलिया अब भी कच्ची थी ।इसलिए वह एक टम्पू का बोझ बर्दाश्त नहीं कर सकी । वैसे भी टम्पू अपनी निर्धारित सीमा से अधिक माल ढो रहा था । इस कारण पुलिया गिर गयी और पास से गुजर रहे बच्चे दुर्घटनावश उसके नीचे आ गए ।
" पर सरजी इस रिपोर्ट से पार्षद का तो कुछ नहीं बिगड़ेगा पर ठेकेदार जरूर ब्लेक लिस्टेड हो जायेगा । हो सकता है उसके खिलाफ ऍफ़ ।आई ।आर । भी दर्ज करवानी पड़े और जे । ई । शफीक भी लपेटे में आ जाए । जबकि ठेकेदार को तो आज आपने अपने घर पर इन्वाइट कर रखा है ? "
" अरे महेश जी ! आप भी कमाल के चप्पू हैं । जब ठेकेदार की फाइल बनेगी तो उसमें जे । ई । शफीक वाली सफाई जड़ देंगें कि पुलिया गिरने में ठेकेदार साहब की कोई गलती या कमी नहीं है । उन्होंने पुलिया बनाने में माल के मामले में कोई कोताही नहीं बरती । वो बड़ा जिम्मेदार और अनुभवी ठेकेदार है । साथ ही मौसम अचानक खराब हो गया , बेहिसाब बारिश की वजह से सारे इलाके में पानी भर गया । पुलिया उसमें डूब गयी । मार्ग तो पहले ही अवरुद्ध था । जिसे खोलने के लिए जनता का दबाव इतना अधिक हो गया कि पुलिया को समय से पहले ही यातायात के लिए चालू करना पड़ा । पुलिया अभी कच्ची तो थी ही सो यातायात का दबाव नहीं झेल पायी और टम्पू के बोझ से गिर गयी ....................। साथ ही पुलिया फिर से बनवाने का एफिडेविट भी ठेकेदार से ले लेते हैं । इसीलिए तो उसे आज रात घर पर बुलाया है ।इस तरह अपनी सेफ साइड भी पक्की और शफीक पर भी आंच नहीं आएगी ।" इतना कहकर सक्सेना ने , महेश की ओर विजयी भाव से देखा और पास में रखा पानी का सारा गिलास एक ही सांस में खाली कर दिया ।
" वाह साब जी वाह । आपकी बुद्धि में तो डाइरेक्टर का वास है । लगता है ऊपरवाला जल्द ही आपको वो कुर्सी नवाजने वाला है । ऐसे कुशाग्र आइडिया तो अक्सर हलक में दो घूँट उतरने के बाद ही क्लिक करते हैं जबकि आपके सॉफ्टवेयर में तो ऐसे अचूक आइडिया बोतल के ख्याल से ही उछल आते हैं । " महेश ने सक्सेना को आसमान की ओर उछालने में कोई कमी नहीं की ।
" ओए महेश ! तूने ठीक याद दिलाया । सट्रटेजी तो बन ही चुकी है । समय भी काफी हो गया है । उसे बाद में फाइलों में डालते हैं । सब लोग जा ही चुके हैं । तू ऐसा कर कि चौकीदार को बोल दे कि हम कुछ जरूरी काम निपटा रहे हैं , हमें डिस्टर्ब न करे और फिर चैंबर को अंदर से बंद कर ले । "
" साब जी ! आज जरा जल्दी घर पहुंचना था । " महेश गिड़गड़ाया ।
" ओए , छड न यार । कभी - कभी तो मूड बनता है । आसामी मोटी है । जश्न बनता है यार । बहुत दिन हो गए बोतल का ढक्क्न ही नहीं खुला । देख ये जो जिंदगी है न , पानी का बुलबुला है । फूटते देर नहीं लगती । जब फूटती है न तो सारा घर , सारी गृहस्थी यहीं की यहीं धरी रह जाती है । बीबी - बच्चों के पास तो रोज ही जाते हैं । आ बैठ मेरे पास । थोड़ा एंज्यॉय करते हैं ।"सक्सेना के सर पर डाइरेक्टर की कुर्सी चढ़कर बोलने लगी ।
" पर साब जी ! ठेकेदार तो आपके घर आने वाला है । "
" ओह ! हाँ यार । यहएक है उसे फोन कर देते हैं कि कल सुबह - सुबह आ जाए । यार जश्न को केन्सिल करने का मूड बिलकुल नहीं है । "
" बड़ी पते की बात कही साब जी । अभी तो बटन पर हाथ गया भी नहीं और आपका लट्टू तो ट्यूब लाईट बन गया । ठीक है जो हुकुम सर जी । " महेश ने बटुए का वजन बढ़ने की उम्मीद में समर्पण कर दिया ।
" बिलकुल प्यारे । यही है जिंदगी की हकीकत । जिंदगी में जो खा लिया, वो अपना , जो पहन लिया,वो अपना । बाकी सब तो दूसरों का । ये बात मैंने नहीं कही , ये हमारे बुजुर्गों के तजुर्बों का निचोड़ है ।"
" सही कहा साब जी । "
" तो , तू ऐसा कर ! दो गिलास ले आ । "
" साब जी ! गिलास तो आ जायेंगें । पर मैं एक मामले में परेशान हूँ , समझ में नहीं आता कि क्या करूँ ? "
" अब क्या हुआ ? "
" हुआ तो कुछ नहीं ! सोचता हूँ दुनिया तो चाँद के बाद मंगल पर पहुंचने की तैयारी कर रही है और हम हैं कि हमसे अपने घर को ही रौशनी नहीं दे पा रहे । "
" तू तो फिर से टर्राने लगा ।इस वक्त छोड़ सारी बाते । वो सब बाद में । पहले तू दो गिलास लेकर आ । " सक्सेना ने , महेश की चिंता को हवा में उड़ाने की कोशिश की । पर महेश इस अवसर को हाथ से नहीं जाने देना चाहता था , सो बोला , " साब जी महीना अभी आधा ही गया है और घर - गृहस्थी के खर्चों में सेलेरी पूरी की पूरी स्वाह होने को है । हर दिन कोई न कोई नया खर्च सामने खड़ा होकर मेरे जी का जंजाल बन जाता है । कभी - कभी मुझे लगता है कि ये खर्चे मेरी जिंदगी को निगल कर ही मेरा पीछा छोड़ेंगें । इनके चककर में तो किसी दिन मेरा दम ही निकल जाएगा । कितना अच्छा होता कि इस छोटी सी नौकरी के रहते मैं घर - गृहस्थी के जंजाल में ही न पड़ता । "
" ओए महेश की दुम , बहकी - बहकी बातें करके आज की शाम खराब मत कर ! अभी दस दिन पहले ही तो तुझे ढेकेदार से पांच हजार रूपये दिलवाये हैं , वो क्या किसी मशूका पर खर्च कर आया ? "
" साब जी ! वो तो ऊठ के मुहं में जीरा ही थे । बात तो पंद्रह की हुई थी । जेब में रूपये देखते ही अगले दिन मेरी मैडम कार लेकर शॉपिंग के लिए मॉल को जा रही थी कि रास्ते में मोटर सायकिल वाले ने पीछे से टककर मार दी । बैकलाइट का भुरता बन गया और सारे के सारे पांच हजार उसकी भेंट चढ़ गए ।"
" यार तू क्लर्क बंदा है । हमारी सरकार की सीढ़ीओं का सबसे निचला पायदान । तूने अपने खर्चों को इतना ऊँचा क्यों उठा रखा है कि उनकी वजह से तेरा ब्लड - प्रेशर तेरे पैमाने से बाहर निकल जाता है । " सक्सेना ने मीठी झिड़की दी ।
" साब जी , मेरी वाइफ छोटे - मोटे परिवार को बिलांग नहीं करती । खाते - पीते घर की है । उसका फादर पुराने जमाने के डालडा घी का होलसेलर था । महीने में जब तक दस - बीस हजार की शॉपिंग न कर ले , उसे चैन नहीं पड़ती । कहती है कि हम गलियों के कीड़े नहीं हैं। जिंदगी में मौज - बहार जरूरी है । गाड़ी तो उसके फादर ने दे दी थी , अब चलाने के लिए पैसे तो मैं ही दुँगां न । "
" ठीक है महेश , मान ली तेरी बात कि जिंदगी के अरमानो का गला नहीं घोटना चाहिए । देखते हैं कि क्या किया जा सकता है । पर तू अभी मेरे अरमानों का गला घोंट कर मेरा और अपना मूड मत खराब कर । । चल ये गिलास , पानी और बोतल को टेबल पर सजा दे । "
महेश ने जिस अलमारी को कुछ देर पहले इस उम्मीद के साथ बंद किया था कि उसमें रखी फाइलों के पन्नो में अंकित रिश्वतखोरी की शिकायतें असल में वो चेक - बुकें हैं जो तब भरे जाते हैं जब वो उन शिकायतों का निपटारा करता है और उसी से वो अपनी सुमन के सारे जरूरी - गैरजरूरी खर्चों से निजात पाता है ।
उसी आलमारी के एक कोने में ही उसने सक्सेना के लिए कांच के दो गिलास भी रख रखे थे । उसने गिलासों को निकाला और मेज पर सजाने के बारे में सोचने लगा ।
इसी बीच उसकी नजर एक बार फिर फाइलों पर अटक गयी । कुछ फाइलें , अपनी कार्यवाही के अंतिम चरण में थीं । इन पर कुछ में उसने जो रिपोर्टिंग की थी , उस वजह से उसे जो राशि मिलनी तय थी उसका हिसाब - किताब उसके दिमाग के केलकुलेटर ने पहले ही केलकुलेट कर लिया था । एकाउंटेंट मिश्रा ने स्टाफ के कुछ लोगों के फर्जी मेडिकल बिलों को पास किया था , डाक्टर नकवी के पास फर्जी डिग्री थी और वह विभाग के डाक्टरों के पेनल पर था । उसने लाखों के मेडिकल बिल वेरिफाई किये थे । सेक्रेटरी जोशी ने सरकारी स्टील के कबाड़ को कौड़ियों के भाव बिकवाया था , एसिस्टेंट भटनागर ने चपरासियों की भर्ती में फर्जीवाड़ा किया था ।कुछ सिरफिरों ने इन सभी फरजीवड़ों की शिकायतें की थी और ये सब की सब महेश बाबू की प्रिय पत्नी सुमन मैडम के अनाप - शनाप खर्चों का इंतजाम करने का जरिया थी ।
असल में अगर महेश जी के व्यक्तित्व का आकलन किया जाय तो वे बड़े मृदुभाषी ही नहीं साफ़ दिल वाले नरम दिल इंसान हैं ।वे कभी नहीं चाहते कि कभी किसी का बुरा हो ।जिस तरह सुमन उनकी इकलौती पत्नी है और उसकी हर सुख - सुविधा का ध्यान रखना उनका फर्ज है , उसी तरह उनके आफिस के सभी सरकारी कारिंदों के भी अपने - अपने सुख - दुःख हैं , घर - गृहस्थियां हैं , उनसे जुड़े खर्चे हैं , दुनियादारी निबाहने की मजबूरियां हैं । कोई भी इंसान सिर्फ रोटी खाकर तो जिन्दा नहीं रह सकता न । उसकी अपनी सोसायटी भी होती हैं जिसमें वो उठता - बैठता है । अब सोसायटी है तो स्टेटस भी होता है जिसे मेनटेन करना भी जरूरी है । तभी तो उसे भद्र कहा जाता है । इस भद्रता को बनाये रखने के लिए ज्यादा न सही , कुछ खर्च तो करना ही पड़ता है ....................। महेश बाबू को उपरवाले ने भले ही अपने विभाग की गैरकानूनी कारगुजारिओं पर अंकुश लगाने की जिम्मेदारी सौपीं है पर वे अपने साथियों की भद्रता पर कोई आंच आने देंगें तो क्या ऊपरवाला उनको माफ़ कर देगा , कभी नहीं । आखिर इंसानियत भी तो कोई चीज होती है ।हर एक आखिर में भगवान को मुहं दिखाना है । तब वे क्या जवाब देंगें भगवान को ? नियम - क़ानून अपनी जगह , भगवान के प्रति जवाबदेही अपनी जगह । वे किसी का बुरा नहीं कर सकते । यही तो असली वजह है जिसकी वजह से इतनी कम सरकारी पगार में भी सुमन के आगे उन्हें नीचा नहीं देखना पड़ा । जब जरूरत पड़ी , कहीं न कहीं से रुपयों का भरपूर इंतजाम हो गया । "
वे बड़ी संजीदगी से फाइलों को एक - एक करके देख रहे थे कि सक्सेना की हुंकार ने उनका ध्यान तोड़ दिया ।
" ओ फिलास्फर जी । कहाँ खो गए ? आलमारी को बंद करो । पैग बन चुके हैं , अब इधर आ जाओ । "
सक्सेना ने जल्दी - जल्दी दो पैग अपने हलक से नीचे उतार लिए । अंगूरी ने जैसे ही उसके तंत्र में प्रवेश किया , नए जमाने के अध्यात्म ने उनकी तंद्रा पर रंग जमाना शुरू कर दिया । उसने सोचा कि महेश नाम की इस छोटी सी सरकार के हिस्से में अगर प्यार वाली जादू की झप्पी ने तुरंत नहीं लपेटा तो हो सकता है कि इसकी आज की रात डिप्रेशन में गुजरे और इस चककर में अगर अगली सुबह ये दफ्तर ही न आया तो जे , ई । शफीक और ठेकेदार असलम वाली सारी योजना धरी की धरी रह जायेगी । इसलिए इसकी बीबी के बेहिसाब खर्चे वाली बदहजमी से उतपन्न गैस के पास होने का तरीका खोजना ही पड़ेगा ।
जब तीसरे पैग की आखिरी घूंट की तरावट उसके गले से होकर पेट में पहुंच गयी तो उसने हल्का सा ठहाका लगाया और फिर किसी बेहद आत्मीय दोस्त के अंदाज में कहने लगा , " महेश मेरे यार , गिलास के साइज पर न जा । आज तो तू बस इसके अंदर भरे सोमरस का मजा ले । ऐसा कर , पहले मेरे लिए एक स्माल और अपने लिए एक पटियाला पैग और बनाकर चियर्स करने के बाद अपनी देवदास वाली दिक्क्त को मेरे साथ शेयर कर । तू मुझे अपना बॉस - वास मत मान , नो फार्मेलिटी ! इस वक्त न कोई बाबू है और न ही कोई सुपरिटेंडेंट । इस वक्त हम सिर्फ हमप्याला भाई हैं । "
" साब जी ! भाई मत बनिये । मुझे भाईओं से डर लगता है । " महेश भी सुरूर में आ चुका था ।
" भाई से कैसा डर । ओये तू पागल है क्या ? "
" साब जी ! आपको पता नहीं कि सारे आतंकी खुद को भाई कहते हैं जैसे नवाज-भाई,दाऊद-भाई ! "
" सही कहा यार । ठीक है भाई नहीं दोस्त । अब बता अपनी दिक्क्त ! "
महेश बड़ी देर से इसी दोस्ताने का इन्तजार कर रहा था । उसे लगा आज सक्सेना पूरे मूड में है । आज अगर इसके सामने नहीं खुला तो तरक्की के सारे न सही कुछ रास्ते तो बंद ही रहेंगें । ये अगर आज कुछ और देना चाहता है तो इससे ले लेना चाहिए । वैसे भी अपने नोयडा वाले फ्लैट की किश्त तो इसी की इनायत की वजह से ही वह चुका पाता है ।
उसके हाथों में बगुले की गर्दन वाली फुर्ती आ गयी । उसने बोतल का ढक्क्न खोला और सक्सेना के गिलास को रंगीन करने के बाद , अपने गिलास के एक चौथाई हिस्से को भी तर कर दिया । फिर दोनों ने चियर्स किया ।
" महेश प्यारे ! आज पटियाला का दिन है इसलिए पंजाबी तड़का चलने दे । इसे कम से कम आधा तो कर ।" सक्सेना की साहबी पगड़ी अचानक कंजरी के अधोवस्त्रों में बदलने लगी ।
महेश भी और अधिक इन्तजार के मूड में नहीं था । उसने एक ही सांस में गिलास की रंगीनी को अपने हलक के हवाले किया और गिलास को फिर से आधा भर लिया ।
" ये हुई न बात । इसे कहते हैं लम्बी रेस का घोड़ा ।"
शराब के गुनगुने स्पर्श ने महेश बाबू की तंत्रिकाओं की ऐंठन को ढीला करना धुरु कर ही दिया था । इस सुरूर में कुछ पुरानी बातें वे भूलने लगे । वे भूल गए कि सामने बैठा शख्स उनका हम - प्याला नहीं, उनका बॉस है । उसकी कलम से ही महेश बाबू की नई जम रही गृहस्थी का बजट तय होता है । फिर भी उनकी तंद्रा इतनी सजग जरूर थी कि इसकी हाँ में हाँ मिलाने में ही उसका भला है ।
" देख भाई महेश ! तू भले कितना स्याना हो पर दफ्तरी फाइलों का अभी भी कच्चा खिलाड़ी है । अपनी गृहस्थी के इन
शुरूआती दिनों में एक बात समझ ले कि वक्त कि धूप - छाँव का नाम ही जिंदगी है ।और ऐसी कोई रात नहीं होती जिसके बाद दिन न निकलता हो । रात का मतलब अँधेरा ही नहीं होता , रात का मतलब आराम भी होता है । दिन भर की थकान के बाद रात को जब आराम मिलता है तो दिमाग और शरीर काम करने के लिए फिर से तरो- ताजा हो जाता है । इसलिए रात को भी उसी तरह एंज्वाय करना चाहिए जैसे कि किसी भी दिन को । "
" साब जी ! अब तो दिन हो या हो रात , आपका ही आशीर्वाद चाहिए । तभी उसका मजा ले पाउंगा "
" कैसी बातें करता है मेरे यार । आशीर्वाद तो ऊपर वाले का काम करता है । इस कुर्सी को ध्यान से देख ले , आज इस पर मैं बैठता हूँ । मेरी बात याद रखियो , एक दिन इसी कुर्सी पर तू बैठेगा । इसलिए घबरा मत , बस सबर रख , हौंसला रख । इसी तरह काम करता जा और अपने ऊपर मेरा यकीन मत टूटने दियो । साडी उमर तेरी एश की गारंटी मेरी । "
सहानुभूति के इन शब्दों ने महेश के अंतर्मन को उत्साह से इतना भर दिया कि उसने पलक झपकते ही सामने वाले अधभरे गिलास को एक ही सांस में खाली कर दिया । अब उसे लगा कि आइंस्टीन की आत्मा ने उसके अंदर प्रवेश कर लिया है । उसने मंजे हुए दार्शनिक की तरह छत की तरफ अपनी दृष्टि उठाई और गहरी साँस लेते हुए धीमी आवाज में बोलना शुरू किया , " साब जी ! कभी - कभी मुझे लगता है कि मैं चक्री कि तरह घूमते हुए छत पर टँगें इस पंखे का हिस्सा हूँ । न जाने कब इसका हुक जिसपर यह लटका हुआ है , टूट जायेगा और मैं लावारिसों की तरह धड़ाम से नीचे आ गिरूंगा । तब मेरा वजूद किसी काम का नहीं होगा ।"
" ओये मेरे शेर , ये कैसी बहकी - बहकी बाते करने लगा यार । वजूद खतम हो तेरे दुश्मनो का । तेरा हुक तेरे सामने बैठा है । ये बेहद मजबूत और पुख्ता है । महेश नाम का पंखा कोई चक्री नहीं है । ये तो सारी दुनिया के लिए ठंडी हवा का झोंका है जो सिर्फ चलना जानता है । रुकना इसकी फितरत नहीं। "
" साब जी ! अगर किसी ने खटका बंद कर दिया तब तो पंखे को रुकना ही पड़ेगा न । "
" ओये ! चुप कर अब । लगता है अंगूरी ने तुझ पर कुछ ज्यादा ही असर कर दिया है । अब तू पीना बंद कर और बंद कर अपनी नेगेटिव बाते । सबर रख , मेरे रहते तेरा कोई बाल - बांका नहीं कर सकता ! तू ठीक फील करे तो नोटिंग वाला काम अभी कर लेते हैं।"
" साब जी आप चाहते हैं कि पुलिया वाले मामले में ठेकेदार को फांस कर इंजीनियर शफीक को क्लीन चिट दे दी जाए । " महेश फिर से उसी मुद्दे पर अटक गया ।
" ओये तू तो फिर से गड़े मुर्दे उखाड़ने लगा । तुझे सारी स्ट्रेटेजी क्लियर करने के बाद भी तेरे सर से ठेकेदार का भूत नहीं निकल रहा । तुझे पता नहीं कि शफीक सिर्फ इंजीनियर ही नहीं ,हमारी तरह सरकारी बंदा भी है । ये ठीक है कि उसकी ऊपर की आमदनी हमसे कई गुना ज्यादा है पर आज की तारीख में ये कोई क्राइम नहीं है , ये तो नए जमाने का दस्तूर है और हरेक का अपना - अपना नसीब भी है । बंदा सरकारी है , इसलिए उसे फंदे से निकालना हमारा फर्ज बनता है । "
" साब जी आपका दिल बहुत बड़ा है और इसीलिए आपकी बात में दम होता है । पर साब जी ये भी तो सोचो कि ठेकेदार की ठेकेदारी की वजह से ही मेरी मैडम की कार में पेट्रोल भरा जाता है , मेरे फ्लेट की किश्त चुकता होती है और सोसायटी में मेरी इज्जत बनती है । "
" तेरा टेपरिकार्डर तो फिर शुरू हो गया यार ।अच्छा ये बता तूने फ्लैट कब लिया था ? "
अंगूरी ने महेश के दिमागी परिवेश को पूरी तरह ख्यालों के कोहरे में धकेल दिया ।एक निश्चित सीमा से बाहर उसकी सोचने समझने की शक्ति कुंद हो गयी ।उसने गिलास में बची हुई अंगूरी को एक ही झटके में अपने हलक में उड़ेलते हुए कहा ," कार तो मेरी माँ ने , मेरी शादी के समय सुमन के बाप से हथिया ली थी । जहां तक फ्लैट का सवाल है , वह मुझे मेरे ससुर ने बाद में तब दिया जब उसकी आधी किस्तें बाकी थीं । बाकी की आधी में भर रहा हूँ । "
" भई वाह ! बड़ा किस्मत वाला तू । हमें देख , अपने पास कुर्सी भले ही तेरे से बड़ी है पर बीबी के बाप ने आज तक फूटी कौड़ी भी नहीं दी । " इतना कहकर सक्सेना को उबकाई सी होने लगी क्योंकि अब तक इतनी अंगूरी उसके पेट में समा चुकी थी कि उसका हाजमा बिगाड़ सके । उसने अपनी बदहजमी को दिमाग के हवाले कर दिया और अब तक महेश के प्रति पल रहा दया भाव द्वेष और ईर्ष्या में बदल गया । उसने सर को हल्का सा झटका दिया और सोचने लगा ," दो कोड़ी का अदना सा बाबू , दहेज में कार ही नहीं ससुर को ब्लेकमेल करके बाद में फ्लैट भी घसीट लाया और अब कातिल ठेकेदार की ठेकेदारी को बचाने की चिंता में दुबला हो रहा है । क्या सरकार इस तरह चल सकती है ? नियमों को मारो गोली और अपने लिए पैसे की भूख के चलते इंसानियत के सारे उसूलों को किसी मुर्दघाट में गहरे दफन कर दो । कायदे से तो सबसे पहले इसी की फाइल खुलनी चाहिए ।"
" अच्छा तो ये दिक्क्त है तेरे साथ । ओये जिस नौकरी के बूते तेरे घर - परिवार की नींव रखी गयी , उसी की जड़ों में तू मट्ठा डालने की बात करता है । हत्यारा ठेकेदार तेरे लिए तेरा अन्नदाता हो गया । उसकी इतनी चिंता कर रहा है । यह ठीक नहीं है बेटे महेश । इस ठेकेदार ने ही तुझे शराब की बोतल का दीवाना भी बनाया है । कुछ दिन बाद तू फ्लैट की क़िस्त और कार के पेट्रोल को भूलकर सिर्फऔर सिर्फ शराब के लिए असलम का ही नहीं , हर ठेकेदार का गुलाम बन जायेगा और फिर उनके लिए न जाने कितनी - कितनी फाइलों में कितनी - कितनी हेरफेरियाँ करता फिरेगा । अब तेरा भला इसी में है कि तुझे ठेकेदारों की गुलामी से मुक्त करवाया जाए ।"
" ये क्या कह रहे हैं साब जी ? "
महेश को लगा उसके बदन पर ढेर सारे काक्रोच छोड़ दिए गए हैं।
" ओये पुत्तर ! मैं वही कह रहा हूँ , जो तू सुन रहा है । बाद में तेरी जिंदगी में कोई ऐसा बड़ा झटका आये जो तू संभल ही न पाए तो उससे पहले ही तू छोटा सा झटका सहना सीख ले । जिन - जिन फाइलों में तूने ठेकेदारों की मद्द्त की है , वो सारी फाइलें स्कूटनी के लिए भेज देता हूँ । ये न हो कि कभी बाद में ये फाइलें खुलें और उनसे निकले झटके तेरी जिंदगी का इतना घना जंजाल बन जाए कि तेरी गर्दन उनका दबाव झेल ही न सके । " सक्सेना के सर पर अंगूरी अब देसी ठर्रा बन कर थिरक रही थी ।
महेश का शराबी नशा , हवा में रखे पेट्रोल की तरह उड़न - छू हो गया । उसे लगा किसी ने उसके कानो में शीशा पिघला कर भर दिया है । सक्सेना नाम का यह सरकारी कारिंदा तो असल में किसी भेड़िये की नई नसल निकला । ये तो पागल हो गया लगता है ।
उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि इस पागल को काटने से कैसे रोका जाए । वह असहाय होकर उसे देखने लगा ।उसकी आँखे फ़टी हुई थीं ।उसे याद आया कि ऐसी दयनीय अवस्था में हर कोई ईश्वर की शरण में ही जाता है । उसे भी जाना चाहिए । इस भेड़िये के वार से
ईश्वर ही बचा सकता है । किसी असहाय दार्शनिक की तरह उसकी आँखे ऊपर छत की तरफ उठ गयी । छत के उस पार अनंत आकाश में विराज रहा परमेश्वर जरूर उसकी मद्द्त करेगा और सक्सेना की भ्र्ष्ट हुई बुद्धि को सही रास्ते पर ले आएगा ।
उसने देखा , ऊपर अनंत आकाश नहीं है । वहां तो दफ्तर की धूल से सना हुआ पंखा है जो घूम कम रहा है और खटर - खटर की आवाज ज्यादा कर रहा है । पंखें की खटर - खटर , दहशत बनकर उसकी रगों में समाने लगी ।उसे लगा पुलिस के डंडे उसके घर की चौखट को पीट रहे हैं । उसकी हिम्मत जवाब दे रही है और वह सुमन को यह बताने की हालत में नहीं है कि पुलिस उसके दरवाजे को क्यों तोडना चाहती है ..............। उसका गला चोक होने को है । वह कहना चाहता है कि उसने कोई अपराध नहीं किया है । सरकारी फाइलों को निपटाने का जो सलीका उसने शुरू से सीखा है , उसी तरीके से उसने उन फाइलों को निपटाया है । दुनियादारी और अपने लोगों को फायदा पहुंचाना , सरकारी कामकाज के परम्परावादी तरीके हैं , यहाँ सभी ऐसा करते हैं , इसमें गलत क्या है । क्या सबकी चौखट पर पुलिस डंडे बजाती है । " सोचते - सोचते वह रुआंसा हो आया ।
" ओये फलूदे ! किस चिंता में डूब गया । " सक्सेना उसकी तड़प को भी शराब के पैग की तरह पीकर आनंद लेने के मूड में आ गया ।
" साब जी ! चिंता क्या करनी । ऐसा करो आप सारी की सारी फाइलें खोल ही दो । मैं मरूं या मर कर जी जाऊं पर इस बहाने दफ्तर के काम - काज का ढंग तो सबकी समझ में आ जायेगा और क्या पता इसी बहाने हमेशा के लिए कुछ बदलाव भी आ जाए । " महेश को लगा वह नहीं बोल रहा बल्कि , छत के ऊपर बैठे अनंत से अचानक कोई आवाज आयी है जो उसकी जबान में बैठ गयी है और वही बोल भी रही है ।
" इसका मतलब तू तैयार है । "
" हाँ साब जी ! मैं हर अनहोनी के लिए तैयार हूँ । "
" वाह ! नशा हो तो ऐसा जो कुछ नया करने की हिम्मत से सराबोर कर दे । मुर्ख हैं वो लोग जो शराब को भला - बुरा कहते हैं । इसके तो दो पैगो ने ही मेरे गीदड़ को शेर बना दिया । शेर भी ऐसा जो अपनी जान पर खेलने के लिए तैयार है । "
" साब जी ! ये मत भूलिए कि हमारे अंदर धरती के सारे जीवों का अंश विराजता है । हम सब अगर मक्कार नेता की फितरत रखते हैं तो कहीं न कहीं किसी शहीद का दिल भी लिए फिरते हैं । मौका मिलना चाहिए कब कौन सी फितरत रंग जमा जाए , इसका कुछ भी अंदाजा किसी को नहीं है । अगर मेरी कुर्बानी से हमारे दफ्तर के काम करने का सलीका बदल जाए तो मैं समझूंगा कि मैंने भी जिंदगी में कुछ कमाया है । मुझे पता है साब जी मेरी शहादत से पहले पूरा मुकदमा चलेगा .........।हर लेवल कि इंक्वायरी होगी । बहुत सारी कमेटियां बनेगीं । न जाने कितने ब्यान दर्ज होंगें और न जाने कितनो की फाइलें खुलेंगीं । आप ये भी मत भूलो कि शहीद भगत सिंह को अकेले फांसी नहीं दी गयी थी । "
महेश, बाबू ने अपना सारा अनुभव सक्सेना के सामने उड़ेल दिया ।
" ओये महेश ! ............।बस ..........। अब बस भी कर यार । मेरे नशेड़ी दिमाग ने इतनी दूर की तो सोची ही नहीं थी पुत्तर । मैं भूल गया था कि किसी जमाने में शराब के नशे में तवायफों के मुजरे हुआ करते थे पर अब तो ये कपड़े भी उघड़वा देती है प्यारे । "
" साब जी जब कपड़े उतरने शुरू हो ही गए हैं तो पूरे उतर जाने दीजिये । "
" चुप कर मेरे बाप ! मान लिया कि तूने इस दफ्तर के सारे रंग - ढंग सीख लिए हैं । माफ़ कर दे मुझे और ऐसा कर तू एक आखरी पैग मेरे नाम का और ले और मस्त होकर घर जा । गोली मार फाइलों को । छोड़ उनको अपने हाल पर । अब किसी बात की कोई टेंसन नहीं । जैसा कहेगा , कल वैसा ही करेंगे । तेरी बीबी की कार में पेट्रोल वैसे ही भरा जायेगा और तेरे फ्लेट की क़िस्त भी टाइम से जमा होगी .............। सक्सेना को ऐसे कागजी खतरों से निपटना बखूबी आता है । " सक्सेना ने नशे में भी हालात को बिगड़ने नहीं दिया ।
" साब जी ! इस अजनबी शहर में एक आप ही तो हो जिसके सहारे मेरी जिंदगी फर्राटे भर सकती है । किरपा बनाये रखिये । "
महेश जान चुका था कि ऐसे मौकों पर क्या कहा जाता है ।
" जा ! एश कर । कल मिलते हैं पर जरा जल्दी आ जइयो । डाइरेक्टर के आने से पहले नोटिंग पूरी करनी है । "
दोनों के कदम लड़खड़ा रहे थे पर चलने से पहले एक दूसरे के गले से लिपटना नहीं भूले । अगले दिन उन्हें पुलिया गिरने की रिपोर्ट को अंतिम रूप देना था ।
सुरेंद्र कुमार अरोड़ा
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दिनांक : 24 / 03 / 2020