Unique journey to my diamond planet - 4 books and stories free download online pdf in Hindi

मेरी डायमंड ग्रह की अनोखी यात्रा - 4

मैं उनके ऑफिस गया वहां पर जब मैं पहुंचा तो सबसे पहले मुझे अंकल ही मिले। उनका नाम समीर चौहान था। समीर अंकल मेरे पास आए और मुझसे कहा कि-" बेटा उस दिन के लिए सॉरी , मुझे पता नहीं था कि सच में तुम्हें इसके बारे में पता है।" मैंने बोला कोई बात नहीं अंकल यही चक्रवात अभी 4 बार और आयेगा। आप फिर से इसपर रिसर्च कर सकते हो । फिर समीर अंकल मुझे अपनी रिसर्च टीम के पास लेकर गये । उनके हैड-सर ने सबसे पहला सवाल मुझसे ये पूंछा कि बेटा आपको इस चक्रवात के बारे में कहां से पता चला? मैंने उनको सब पार्ट-1 से पार्ट-3 तक जो भी हुआ सब बताया। लेकिन उन्हें मुझपर फिर भी विश्वास नहीं हुआ। और उनकी बात भी ठीक थी क्योंकि मैंने सिर्फ सपने में ही ये सब देखा था। मेरे पास अपने सपने के अलावा कोई और सबूत नहीं था अपनी बात सिद्ध करने के लिए। लेकिन फिर भी उन्होंने मुझसे पूछा कि अच्छा हम इसे तो इत्तेफ़ाक मान सकते हैं लेकिन अभी आपने बोला कि 4 बार और भी ये चक्रवात आयेगा। तो अगला चक्रवात कब आयेगा ये बता दो मैं आपकी बात का विश्वास कर लुंगा। मैंने कहा अंकल अब अगली बार चक्रवात 4 दिन बाद फिर से बनेगा। उन्होंने कहा कि ठीक है हम अगले चक्रवात का इंतजार करते हैं अगर तुम्हारा कहना ठीक हुआ तो हम आपको फिर से बुलायेंगे। ठीक है। मैंने भी कह दिया कि ठीक है। फिर मैं वहां से वापस लौटकर घर आ गया। आप तो जानते ही हो हम छोटी से छोटी बात भी करें तो हमारी मम्मी को टैन्शन हो जाती है यहां तो मैं एक अलग और अद्रश्य दुनिया के बारे में बता रहा था। तो मेरी मम्मी तो मेरे घर आते ही, मुझे लगे हाथों ले लिया और मुझसे गुस्से में कहा कि बेटा तू इस झन्झट से दूर रह । तू इस झन्झट में मत पड। मैंने बड़ी मुश्किल से उन्हें समझा-बुझाकर शांत किया। लेकिन सभी को झटका तो तब लगा जब 4 दिन बाद एक बार फिर से वही चक्रवात बना। मैं घर पर अपने स्कूल का होमवर्क कर रहा था तभी समीर अंकल घर आये और पापा से पूछा कि भाई साहब हरीश कहां है? पापा ने मुझे आवाज देकर मुझे कमरे से बुलाया। मैं जैसे ही बाहर आया अंकल ने तुरंत मुझसे बिना कुछ कहे ही मेरा हाथ पकड़ा और अपने साथ अपने ऑफिस ले गए। मैंने उनसे कई बार पूछा कि अंकल क्या हुआ? लेकिन उन्होनें मुझे कुछ नहीं बताया बस ये कहा कि तुम्हे सर ने‌ ऑफिस बुलाया है। मैं उनके साथ उनके ऑफिस चला गया। मैं भूल गया था कि आज वो चक्रवात फिर से बना होगा। मैं उनके ऑफिस में पहुंचा और वहां पहुंचते ही उनके हैंड सर ने मुझे कहा कि बेटा आज फिर से वही चक्रवात बना था। अब हमें आप पर विश्वास हो चुका है। आप हमें प्लीज़ फिर से इस चक्रवात के बारे में बताइए। मैंने उन्हें फिर से पार्ट-1 से पार्ट-3 तक जो भी हुआ था सारा कुछ बताया। उनके मन में तुरंत उस ग्रह को खोजने की बात आयी। उन्होंने मुझसे कहा कि ठीक है, बेटा आप अभी घर जाओ अगर हमें कुछ जानकारी लेनी होगी तो आपको हम फिर से बुला लेंगे, ठीक है। मैंने कहा कि ठीक है, और यह कहकर मैं वहां से चला गया। शाम को जब मैं अपने परिवार के साथ खाना खा रहा था तभी मेरे घर के बाहर 3-4 गाडियां आकर रुकीं। हम सभी खाने से उठे, और बाहर जाकर देखा तो वहां समीर अंकल और उनके हैड सर आये थे। पापा ने उन्हें अंदर बुलाया और बैठाया। हैड सर पापा से कहने लगे कि सर हमें आपकी एक मदद की ज़रूरत है। पापा ने उनसे पूछा कि आप बताइए जो भी मैं मदद कर सकता हूं ज़रुर करुंगा। उन्होंने पापा को बताया कि हम एक अंतरिक्ष मिशन लॉन्च कर रहे हैं, और आप तो जानते ही हो कि इस चक्रवात के बारे में बस हरीश को ही पता है। तो हम चाह रहे हैं कि आपका बेटा इस मिशन में अंतरिक्ष में जाए। पहले तो पापा ने कुछ आना-कानी की लेकिन फिर वो मान गये। जब हैड सर को पापा की परमीशन मिल गई तो वो वहां से चले गए। फिर पापा ने ये बात आकर मुझे बताई, मैं तो तुरंत मान गया इस मिशन के लिए क्योंकि मैं तो सारे मिशन के बारे पहले से ही अच्छी तरह जानता था। लेकिन अभी मम्मी को मनाना बाकी था। फिर मैं और पापा दोनों ही मम्मी को मनाने में जुट गए। हम दोनों को मम्मी को मनाते-मनाते रात से सुबह हो गई, लेकिन आखिरकार हमारी मेहनत रंग लाई और मम्मी इस बात के लिए तैयार हो गयी। अगले दिन सुबह 10 बजें मुझे अपने साथ ले जाने के लिए कुछ लोग आए और मुझे अपने साथ ट्रेनिंग सेंटर ले गए जहां मेरी 3 दिन की ट्रेनिंग होनी थी। जब मैं ट्रेनिंग सेंटर पहुंचा तो मैं थोड़ा सा नर्वस हो गया क्योंकि मेरे वहां पहुंचते ही वहां के साइंटिस्टों ने मुझपर अजीब से प्रयोग शुरू कर दिये। पहले दिन तो मेरे ब्रेन टैस्ट और फिज़ीकल टैस्ट हुए। लेकिन भाई ये टैस्ट बहुत कठिन थे। फिर दूसरे दिन मुझे अंतरिक्ष यान के बारे में जानकारी दी गई क्योंकि अगर रास्ते में अंतरिक्ष यान में कुछ खराबी हो जाए, तो मैं उसे ठीक कर पाऊं। और आखिरी दिन यानी तीसरे दिन मुझे अंतरिक्ष में कैसे रहना है इन सभी बातों के बारे में जानकारी दी गई। अब अगले दिन दोपहर से मैं अंतरिक्ष यान में बैठने वाला था। हम काउन्ट डाउन नहीं कर सकते थे क्योंकि वो चक्रवात हर पांचवें दिन कभी भी बन सकता था। फिर अगले दिन सुबह में एक मीटिंग के बाद मुझे लॉन्च पैड पर लाया गया। पहले थोड़ी देर में पूजा अर्चना के बाद मुझे अंतरिक्ष यान में सवार कराया गया। अब मैं और सभी अंतरिक्ष की तरफ देख रहे थे कि कब वो चक्रवात बने और कब मुझे अंतरिक्ष में भेजा जाये। फिर पांचवें दिन वो चक्रवात फिर से बना और तुरंत मुझे उस चक्रवात की दिशा में प्रक्षेपित किया गया। मैं थोड़ी ही देर में उस चक्रवात के बिल्कुल पास पहुंच चुका था। लेकिन अब मेरे दिल की धड़कन तेज होना शुरू हो गई थी। फिर भी मैंने हिम्मत करके उस चक्रवात में अंदर चला गया। जैसे ही मैं चक्रवात में अंदर गया तुरंत चारों तरफ अंधेरा छा गया और तभी अंतरिक्ष यान मेरे कावु से बाहर हो गया। थोड़ा डर गया लेकिन ये सोचकर हिम्मत आ गई कि, "यार पहले भी तो ऐसे ही हुआ था अब थोड़ी ही देर में मैं वहां पहुंच जाऊंगा।" और ऐसा ही हुआ मैं थोड़ी ही देर में डायमंड ग्रह पर पहुंच गया था। मैंने वहां सुरक्षित लैंडिंग की। मैंने खिड़की से बाहर झांककर बाहर का नजारा देखा तो सब कुछ पहले जैसा ही था। डायमंड की बनी हुई धरती और सीसे जैसी चमक। मैं तुरंत भागकर अंतरिक्ष यान से बाहर निकला। जब मैं बाहर आया तो मैंने देखा कि सेना पहले की तरह वहीं पर खड़ी हुई है। और सबसे आगे सेनापति जी ही थे। मैं आगे बढ़ा और सेनापति जी से गले मिलकर कहा चलो अब महल घूमकर आते हैं। और मैं वहां से महल की तरफ चल दिया। मैं आगे-आगे चल रहा था और मेरे पीछे-पीछे सेना। मैं जैसे ही ‌‌‌‌‌‌महल पहुंचा तो मैं ये देखकर दंग रह गया कि महल के दरवाज़े आटोमेटिक डोर थे। मुझे ये देखकर कुछ गडबड लगी लेकिन मैंने सोचा कि क्या पता इन्होंने टैक्नोलॉजी में तरक्की कर ली हो। मैं फिर अंदर गया तो वहां पर नौकरों की जगह रोबोट काम कर रहे थे। अब यार मेरे दिमाग में डर का कीड़ा उठ रहा था कि यार एकदम से इतनी टैक्नोलॉजी कहां से आ गई यहां। मैं फिर भी आगे बढ़ रहा था। जब मैं राजा जॉजफ के सामने पहुंचा तो मैंने राजा जॉजफ को नमस्कार किया लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। फिर मुझे याद आया कि ये लोग मुझे नहीं जानते मैं तो यहां पहली बार आया हूं। मैं तो इन्हें इसलिए जानता हूं क्योंकि मैंने इन सभी को सपने में देखा था। लेकिन राजा जॉजफ ने गुस्से वाली आवाज में कुछ कहा, पर क्या कहा मैं नहीं समझ पाया क्योंकि उन्होंने पता नहीं कौन-सी भाषा में बोला था? यार अब डर के कारण मेरी सांस अटक रही थी कि यहां तो सब गडबड है। पीछे से सेनापति जी ने भी कुछ कहा फिर इसी तरह उन लोगों की बात थोड़ी देर तक चलती रही। लेकिन मेरी समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था, मैं तो बस चुपचाप खड़ा हुआ उन लोगों के गुस्से भरे चहरे देख रहा था। मैं धीरे से बोला कि यार यहां चल क्या रहा है? कोई मुझे भी बता दो। पर वहां कोई भी मेरी बात सुन ही नहीं रहा था। फिर राजा जॉजफ ने सैनिकों को कुछ कहा और सैनिकों ने सर झुकाकर हां का इशारा किया। 2 सैनिक मेरे पास आये और मुझे बहुत ही आसानी से कंधे पर रखकर वहां से कैदखाने की ओर चल दिए। मैं समझ गया कि जो भी मैंने सपने में देखा था यहां सबकुछ उसका उल्टा है। वो लोग तो बहुत ताकतवर और निर्दई थे। जब वो लोग मुझे वहां से लेकर जा रहे थे मैं जल्दी से उन्हें धक्का देकर वहां से भाग निकला। मैं वहां से भागकर सीधा अपने अंतरिक्ष यान पर पहुंचा और वहां से मैंने उड़ान भरकर वहां से बहुत दूर जाकर रुका। फिर तो मैं अपने अंतरिक्ष यान से बाहर भी नहीं निकला क्योंकि मैंने जैसा सपने में देखा था वहां पर वैसा कुछ भी नहीं था। आज मेरा उस ग्रह पर पहला दिन था अभी तो मुझे उसी ग्रह पर 4 दिन और बाकी थे। लेकिन अब तो मैं एक ऐसी जगह पर जाकर रुका था जहां ना तो खाना था और ना ही पानी। मैं थोड़ी देर बाद इस उम्मीद में अपने अंतरिक्ष यान से बाहर निकला कि शायद यहां आस-पास कुछ खाने लायक मिल जाए। लेकिन मुझे इस बात का बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था, कि इस सुमसान जगह पर भी मुझपर कोई नजर रख रहा था। मैं थोड़ा डरा हुआ था लेकिन फिर भी मैं खाने की तलाश में निकल पड़ा। मैं उस दिन शाम तक खाना खोजता रहा लेकिन मुझे कहीं भी खाना नहीं मिला। अब भूख के कारण मेरी हालत खराब होने लगी थी। मुझमें और चलने की हिम्मत नहीं थी। तो मैं एक जगह पर लेट गया और थोड़ी ही देर में मुझे वहीं पर नींद भी आ गई। जो लोग मुझपर नजर रख रहे थे शायद उन्हें इसी समय का इंतजार था । क्योंकि जैसे ही मैं सोया वो लोग तुरंत मुझे उठाकर किसी डायमंड गुफ़ा में ले गए। मैं इतनी गहरी नींद में सो रहा था कि वो लोग मुझे अपने साथ ले गए और मुझे पता भी नहीं लगा। अगले दिन सुबह में उन लोगों में से एक ने मेरे मुंह पर पानी के छींटें लगाये। मेरी नींद खुल गई और मैंने देखा कि कुछ आदिवासी लोग मुझे चारों ओर से घेरे हुए खड़े थे। मैं हड़बड़ाकर जल्दी से उठा लेकिन उन लोगों ने मुझे एक कांच की रस्सी से बांध दिया था। मैं खड़ा ही नहीं हो पा रहा था। मैं खड़ा होने के लिए झटपटा रहा था, और वो सभी आदिवासी लोग जोर-जोर से दहाके मारकर हस रहे थे। मैं अपने मन में सोच रहा था कि बेटा अगर तू यहां से बचकर नहीं भागा तो पक्का ये लोग मुझे खा जायेंगे। फिर थोड़ी देर बाद एक को छोड़कर सारे आदिवासी वहां से चले गए।


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अब आगे क्या हुआ? क्या वो आदिवासी लोग मुझे खा गये? या मैं वहां से भाग निकला? ये सारी बातें जानेंगे पार्ट-5 में। तो अभी के लिए नमस्कार।

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©Hareesh Kumar Sharma

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