सुपर हैप्पी के एपिसोड-8 में आपका स्वागत है।
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एक दिन मैं ललित, राजा और नीलम हम चारों स्कूल गये थे। लेकिन वास्तव में तो उस दिन हम चारों में से किसी का भी मन स्कूल जाने का नहीं था। पर फिर भी हमारे घर वालों ने हमें जबरन स्कूल भेज दिया तो हम कर ही क्या सकते थे। हमें मजबूरन स्कूल जाना पड़ गया। लेकिन जब हम चारों स्कूल पहुंचे तो राजा ने हमारे चारों से कहा-
राजा- ओए, तीनों यहां आओ मेरे पास स्कूल से बचने का एक आइडिया आया है।
ललित- हां बता क्या आइडिया है?
राजा- आज हम चारों में से किसी का भी मन आज स्कूल जाने का नहीं है।
मैं- हां यार, और मैं तो आज बिल्कुल भी जाना नहीं चाहता हूं, क्योंकि आज मेरा होमवर्क नहीं हुआ है।
नीलम- तेरा होमवर्क वैसे भी महिने में 4 या 5 बार ही होता है। बाकी टाइम तो तू क्लास में कोई ना कोई बहाना ही बनाता है।
राजा- अरे तुम दोनों चुप रहो और पहले मेरी सुनो।
मैं- हां तो सुना तो सही।
राजा- क्यों न आज हम चारों बंक मारें।
नीलम- पागल है क्या? मैं कोई बंक-वंक नहीं मारने वाली।
ललित- बेटा अगर घर पर पता चल गया ना कि हम आज स्कूल में नहीं थे। तो हमें पिटाई से कोई नहीं बचा सकता है।
राजा- अरे तुम लोग डरो मत। घर कुछ भी पता नहीं चलेगा। क्योंकि हम चारों में से तो कोई घर पे बताएगा ही नहीं, तो घर पर किसी को पता कहां से चलेगा।
मैं- हां यार ये बात भी ठीक है।
नीलम- यार मैं नहीं कर पाऊंगी ये सब।
मैं- अरे डर मत कुछ नहीं होगा। तू बस हमारे साथ चल।
नीलम- पर यार……..
राजा- इसको यहीं छोड़ो हम तीनों चलते हैं। चलो।
नीलम- नहीं-नहीं रुको मैं भी चलती हूं।
मैं- और मैं इतनी देर से क्या बोल रहा था।
ललित- चलना है तो चलो यार नहीं तो कोई देख लेगा फिर।
मैं- हां चलो जल्दी।
नीलम- पहले ये तो बताओ कि चलना कहां है?
ललित- हां यार ये बताओ कि चलें कहां?
राजा- शहर के पास वाला जंगल है ना। वहीं पिकनिक मनाने के लिए चलते हैं।
मैं- ओ भाईसाहब वहां जंगली जानवर रहते हैं। बेटा चारों को खा जाएंगे।
राजा- अरे वहां कुछ नहीं है ये बस अफवाह फैलाई हुई है। मेरे मामा के ताऊ के लड़के ने मुझे बताया था कि पिछले महीने वो भी गया था वहां पर। और उसे वहां कुछ भी नहीं मिला था।
ललित- तो चलो, चलकर देख ही लेते हैं आज।
मैं- चलो तो भैया।
फिर हम चारों चुपचाप अपने स्कूल के पीछे वाले टूटे हुए दरवाजे से निकल गये। और चल दिए हम उस जंगल की ओर। लेकिन मुसीबतें इतनी आसानी से हमें कहां छोडतीं हैं। जब हम रास्ते में जा रहे थे तभी ललित के पापा अपने आफिस के लिए जा रहे थे और उन्होंने ललित को हमारे साथ देख लिया। उन्होंने तुरंत अपनी गाड़ी रोकी और हमारे पास आ गये । लेकिन तब तक हमने उन्हें नहीं देखा था। लेकिन जब उन्होंने पीछे से आकर ललित के कंधे पर हाथ रखा, सच में ललित की तो जान ही निकल गई। लेकिन उन्होंने ललित से पुछा कि बेटा तुम यहां क्या कर रहे हो? तुम तो स्कूल गये थे ना तो यहां कैसे? लेकिन सही समय पर ललित ने अपने पापा से झूठ बोल दिया कि पापा हम तो कुछ सामान लेने के लिए स्कूल से बाहर आए हैं। लेकिन उसके पापा ने उसका विश्वास भी कर लिया और हमसे कहा कि ठीक है जल्दी ही सामान लेकर सीधे ही स्कूल जाना और रास्ते में कहीं मत रुकना, ओके? हमने भी बोल दिया -" जी ओके अंकल।" फिर ललित के पापा अपने आफिस के लिए चले गए। हमें थोड़ा डर बढ़ गया कि कहीं ललित के पापा स्कूल में फोन करके पूंछ न लें। लेकिन अब तो हम वापस स्कूल भी नहीं जा सकते थे। फिर हमने हिम्मत करके जंगल जाने का फैसला लिया। हमने रास्ते में से पिकनिक के लिए कुछ फल लिए और कुछ खाने का और भी सामान खरीदा। और टाइम पास के लिए मेरे पास मेरा लैपटॉप था ही। हम थोड़ी ही देर में उस जंगल में पहुंच गए। जब हम जंगल में घुस रहे थे तभी वहां एक पुराना सा बोर्ड पड़ा हुआ था। जिसपर लिखा था-" जंगल आगमन निषेध । जंगल में जंगली जानवरों से जान को खतरा हो सकता है। " लेकिन हमने उसपर ध्यान नहीं दिया और सीधे बिना कुछ सोचे-समझे ही जंगल में चले गए। हमने लगभग बीच जंगल में जाकर अपना मैट ( चटाई ) बिछाया। तभी राजा ने कहा कि अब पहले कुछ खा लेते हैं फिर आगे कुछ सोचेंग। हमने भी कहा कि चलो ठीक है कुछ खा लेते हैं। फिर हमने अपना-अपना लंचबॉक्स निकाला और जो भी हम खाने का सामान लाए थे वो सारा निकाल लिया। हम चारों ने मिलकर पहले खाना खाया और फिर कुछ देर आराम किया। बाद में ललित ने कहा कि यार ये जंगल कितना घना है और लोग यूूंही इस जगह पर जंगली जानवर बताकर डराते रहते हैं। तुरंत मैं बोला चलो कुछ खेलते हैं।
राजा- पर क्या खेलें?
ललित- चलो रेस लगाते हैं।
मैं- नहीं यार अभी तो खाना खाया था। अब मुझसे तो दौड़ा नहीं जाएगा।
नीलम- चलो तो लुकाछिपी ( Hide and seek ) खेलते हैं।
राजा- हां ये ठीक रहेगा।
मैं- चलो तो तुम लोग छुपो मैं तुम्हें ढूढूंगा।
नीलम- चल तो तू यहीं पर आंख बंद करके 20 तक गिन तब तक हम छुप जाते हैं।
मैं- ठीक है तुम जाओ छुपो।
फिर मैं वहां पर खड़ा होकर 20 तक गिनती गिनने लगा। तब तक वो तीनों कहीं छुप गए। फिर मैं अपनी गिनती पूरी करके उन्हें ढूंढने लगा। मुझे एक पेड़ के पीछे ललित का पैर दिख गया। मैंने तुरंत ललित को ढूंढ लिया। फिर थोड़ी ही देर में मैंने नीलम को भी ढूंढ लिया। लेकिन अभी तक मुझे राजा नहीं मिला। मुझे राजा को ढूंढते हुए बहुत देर हो गई लेकिन उनका कोई अता-पता ही नहीं था। लेकिन थोड़ी देर बाद कुछ दूर से बचाओ-बचाओ की आवाज आई और ये आवाज़ किसी और की नहीं बल्कि राजा की ही आवाज थी। हम तीनों तुरंत उस तरफ भागे जिस तरफ से राजा की आवाज आ रही थी। जब हम वहां पहुंचे तो वहां पर राजा एक पेड़ की शाखा पर लटका हुआ था और नीचे कुछ जंगली कुत्ते खड़े हुए थे। हम सभी ये देखकर बहुत डर गये थे क्योंकि अगर राजा के हाथ पेड़ की शाखा से छूट जाते तो जंगली कुत्ते उसका लंच बनाने में थोडी सी भी देर नहीं करते। तभी मैंने पीछे से उन जंगली कुत्तों को भगाने के लिए पत्थर, मिट्टी, लकड़ी मतलब जो भी मेरे हाथ में आ रहा था मैं सारी चीज़ें उठाकर उनकी तरफ फेंककर मारने लगा। लेकिन कुत्तों पर मेरी किसी भी चीज का कोई असर नहीं हुआ। तभी ललित ने मेरे सर में एक थप्पड़ मारकर कहा अबे तू कुछ कर ना, तेरे पास तो शक्तियां हैं। ये क्या ईंट पत्थर फेंक रहा है।
मैं- ओह , शॉरी यार मैं तो भूल ही गया था कि मैं अब सुपर हैप्पी हूं।
ललित ने तुरंत मुझे पीछे से धक्का देकर आगे कर दिया। लेकिन तभी मेरी ठोकर लग गई लेकिन मैं गिरा ही नहीं मैं हवा में तैर गया। तब मुझे मेरी एक और शक्ति के बारे में पता चला कि मैं उड़ भी सकता हूं। मैं खुशी में जोर से बोला-" अरे वाह, मैं उड़ भी सकता हूं।" लेकिन तभी कुत्तों की नज़र मुझपर पड़ गई। पर अब मैं डर नहीं रहा था क्योंकि मैं उड़कर उन कुत्तों से बच जाऊंगा। उनमें से 2 कुत्ते मेरी तरफ आने लगे। मैं भी उड़ने के लिए तैयार था। लेकिन मुझे अभी सिर्फ ये पता था कि मैं उड़ सकता हूं पर मुझे उड़ना नहीं आता था। मैं उड़ने की कोशिश करने लगा लेकिन मैं उड़ ही नहीं पा रहा था। कुत्ते तेजी से मेरी तरफ आने लगे। पर मुझपर तो उड़ा ही नहीं जा रहा था। मेरी सारी हवा निकल गई कि अगर मैं नहीं उड़ पाया तो ये कुत्ते मेरी यहीं पर छुट्टी कर देंगे। लेकिन जैसे ही कुत्ते मेरे पास आए मैं तुरंत उड़ गया । जब मैं उड़ गया तब जाकर मुझे कहीं सांस आई। फिर तो मैंने कुत्तों को इतना परेशान किया कि वो खुद ही वहां से भागने पर मजबूर हो गए। जब वो कुत्ते वहां से चले गए तो मैं राजा को पेड़ से नीचे उतार कर लाया।
राजा- थैंक्स यार , आज तो तुने बचा ही लिया नहीं तो आज मेरा तो वो कुत्ते लंच बनाकर खा लेते।
ललित- अरे तेरे मामा के ताऊ के लड़के ने तुझसे कहा था कि यहां कुछ नहीं है।
राजा- मैं पक्का घर जाके उसे इतना मारुंगा कि आगे से वो कभी भी झूठ नहीं बोलेगा।
नीलम- अब ज्यादा बातें मत करो। इससे पहले कि कोई और जंगली जानवर यहां आ जाये यहां से भागो जल्दी से।
मैं- कोई ना सुपर हैप्पी के होते हुए तुममें से किसी को भी डरने की कोई जरूरत नहीं है।
राजा- अब ये सुपर हैप्पी किस जानवर का नाम है।
मैं- अबे ओए तुझे ले जाकर वापस से कुत्तों के पास छोड़ आऊंगा। तमीज से नाम ले मेरा।
ललित- तुने नाम कब बदला बे, हरीश से सीधा सुपर हैप्पी हमसे पुुंछा भी नहीं।
मैं- ये नाम मैंने नहीं रखा है।
नीलम- फिर किसने रखा है?
मैं- जिसने मुझे ये सारी शक्तियां दीं हैं। उसी ने मेरा नाम सुपर हैप्पी रखा है।
ललित- वैसे तुने बताया नहीं ये सारी शक्तियां तुझे किसने दीं हैं?
मैं- ये मैं अभी नहीं बताऊंगा बल्कि किसी दिन तुम लोगों को वहां पर घुमाने के लिए लेकर जाऊंगा।
नीलम- फिर कभी की बाद में देखेंगे अभी बस तुम लोग यहां से भागो।
राजा- हां यार इस बार तो मैं बच गया बट अगली बार कौन सा जानवर आये कुछ पता नहीं है। तो अभी यहां से भागो बस।
फिर हम चारों वहां से भागकर सीधा अपने-अपने घर पहुंचे। लेकिन वहां भी एक मुसीबत हमारा इंतजार कर रही थी।जब हम स्कूल से बंक के लिए भागे थे। तो उस समय मौन्टी ने हम चारों को वहां से भागते हुए देख लिया था। उसने तुरंत हमारी शिकायत प्रिंसीपल सर से कर दी। और प्रिंसीपल सर ने हम चारों के घर पर फोन कर दिया। एक मुसीबत से पीछा छुटा नहीं था कि दूसरी मुसीबत आ पड़ी। उस दिन मेरी बहुत ही भयंकर वाली पिटाई हुई। फिर पापा ने मुझसे पूछा कि तुम जब स्कूल में नहीं थे तो गये कहां थे? जब मैंने उन्हें बताया कि हम शहर के पास वाले जंगल में गये थे और वहां हमारे साथ ऐसा हुआ तो पापा ने मेरी और भी ज्यादा पिटाई की। मैं अच्छी तरह से समझ रहा था कि जब मेरी इतनी पिटाई हुई है तो उन तीनों की भी कम नहीं हुई होगी। और राजा के पापा तो बहुत ख़तरनाक हैं तो उसका क्या हाल हुआ होगा मुझे भी अंदाजा नहीं है। लेकिन मौन्टी ने तो प्रिंसीपल सर से भी हमारी शिकायत की थी तो हम जब अगले दिन स्कूल गये तो प्रिंसीपल सर ने हमें पूरे 2 घंटों तक क्लास से बाहर खड़ा किया था। मौन्टी ये सब देखकर बहुत खुश हो रहा था, और मन में सोच रहा था कि-" मौन्टी से पंगा लेकर तुम लोगों ने अच्छा नहीं किया। अभी आगे और देखो मैं तुम्हारा क्या हाल करता हूं।" फिर हमने तो सोच लिया कि भाई कुछ भी हो जाये चाहे क्लास में पनिशमेंट ले-लेगें पर कभी बंक नहीं मारेंगे।
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Note- अगर इस कहानी को कोई स्टूडेंट पढ़ रहा है तो मैं उसे एक सलाह देना चाहुंगा कि कभी भी कुछ भी मारना पर बंक मत मारना ये तो एक कहानी थी। बाकी मैंने भी एक बार बंक मारी थी तो घर आकर मेरी बहुत पिटाई हुई थी। उसके बाद मैंने आज तक दोबारा कभी बंक नहीं मारी।तो मजे से रोज स्कूल जाओ पढ़ाई करो और आगे बढ़ो ।
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फिर जल्दी ही मिलेंगे सुपर हैप्पी की एक नई कहानी के साथ। अपना कीमती समय देकर कहानी को पढ़ने के लिए आपका धन्यवाद। तो अभी के लिए नमस्कार 🙏।
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# मेरी डायमंड ग्रह की अनोखी यात्रा ( सुपर हैप्पी )
© Hareesh Kumar Sharma✒️