कौन दिलों की जाने!
पैंतीस
रानी दिनभर फ्लैट पर ही रहती थी। खाना बनाया, खाया, टी.वी. देख लिया या कोई किताब अथवा मैग्ज़ीन पढ़ ली, किन्तु शाम को सोसाइटी लॉन में घंटे—दो घंटे जरूर बैठती—घूमती थी। प्रायः पुरुष महीनों—सालों तक एक ही मुहल्ले—गली में रहते, रोज़ एक—दूसरे के पास से गुज़रते हुए भी अपरिचय की सीमा नहीं लाँघते, जबकि स्त्रियों का स्वभाव ठीक इसके विपरीत होता है। उन्हें नितान्त अपरिचित होते हुए भी एक—दूसरे से राह—रस्म पैदा करने में देर नहीं लगती। कुछ ही दिनों में रानी का काफी स्त्रियों से परिचय हो गया। अब जब परिचय होगा, बातचीत होगी तो घर—बार की जानकारी भी देनी पड़ती है। न चाहते हुए भी रानी को बताना ही पड़ा कि उसके पति इम्पोर्ट—एक्सपोर्ट के बिज़नेस में हैं। अधिकतर बाहर रहते हैं। हफ्ते में एक—आध दिन के लिये आते हैं। घर पर होते हैं तो आराम करना ही पसन्द करते हैं। इतना बताना चाहे आध सच ही था, किन्तु इतनी जानकारी दिये बिना गुज़ारा न था।
करवा—चौथ से दो दिन पूर्व रानी से फ्लैट नम्बर 301 वाली महिला ने पूछा — ‘क्यों बहन, करवा—चौथ पर तो आपके हस्बैंड यहाँ आते होंगे?'
‘नहीं, इस बार वे दिल्ली में बिजी हैं। इसलिये मुझे ही वहीं बुलाया है। कल मैं जा रही हूँ।'
फ्लैट में आकर रानी ने आलोक को फोन मिलाया। हैलो—शैलो के बाद कहा — ‘परसों करवा चौथ है। आपकी लम्बी आयु के लिये व्रत रखने के लिये मैं कल आ रही हूँ।'
‘रानी, यह जानकर बड़ा अच्छा लग रहा है कि तुम आ रही हो। करवा—चौथ एक पर्व है और पर्व आनन्द प्रदान करते हैं। आनन्द अकेले में नहीं, समूह में आता है। समूह यानी एक से अधिक होने पर ‘मैं' की व्यक्तिगत चेतना ‘हम' की सामूहिकता में समा जाती है और साहचर्य तथा परस्पर पूरकता का हर्षोल्लास जीवन को निराशाओं के अँधेरे गर्त से बाहर निकालकर लय प्रदान करता है। दूसरे, मेरा मानना है कि गाड़ी दो पहियों से चलती है। दोनों पहिये ठीक हों तभी गाड़ी चल पाती है। एक पहिये में मामूली गड़बड़ी हुई नहीं कि गाड़ी अव्वल तो रुक ही जायेगी और अगर चलती भी रही तो लगातार झटके लगते रहेंगे, सफर का मज़ा किरकिरा हो जायेगा। इसलिये एक की लम्बी आयु के लिये व्रत रखा जाये और दूसरे के लिये नहीं तो मामला गड़बड़ा सकता है। आ जाओ, हम दोनों एक—दूसरे की लम्बी आयु नहीं, बल्कि स्वस्थ जीवन के लिये व्रत रखेंगे। कितने वर्ष जीवन जीया, नहीं, अपितु कैसा जीवन जीया अधिक मायने रखता है।'
जैसा रमेश के साथ वायदा किया था और खुद आलोक और रानी ने परस्पर तय किया था, करवा—चौथ के व्रत और दिवाली को छोड़कर वे रात को इकट्ठे नहीं रहे, फ्लैट पर तो कभी नहीं। करवा चौथ का व्रत तथा दिवाली का त्यौहार जरूर उन्होंने पटियाला में इकट्ठे रहकर मनाये। इसके पश्चात् आया एक अवसर एकान्त में एक—साथ समय बिताने तथा मन बहलाने का....
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