कौन दिलों की जाने!
तेंतीस
घर पहुँच कर रानी ने रमेश को फोन मिला कर अपने पहुँचने की सूचना दी। रमेश ने कहा — ‘तुम्हारे जाने के बाद मैंने नन्दू ड्राईवर को खाना बनाने के लिये सहमत कर लिया है। वह मेरे साथ आकर खाना बना लेगा।'
‘मेरी गैर—हाज़िरी में तो ठीक था। आज तो मैं स्वयं खाना बनाऊँगी।'
रमेश ने बात को और न बढ़ाते हुए इतना ही कहा — ‘रखता हूँ। बाकी बातें बैठकर करेंगे।'
रात को रोज़ की भाँति रमेश साढ़े आठ बजे घर पहुँचा। रानी ने ‘राम—राम' की। थोड़ी देर बाद रानी ने रमेश के लिये खाना परोस दिया। खाना खाने के बाद रमेश ने ही बात चलाई — ‘मैंने तुम्हारे लिये जो फ्लैट किराये पर लिया है, की फोटो व्हॉट्सएप्प की थी, तुमने देख ली होंगी। उसका किराया शुरू हुए पन्द्रह दिन हो गये हैं। माँ के स्वर्गवास होने के कारण मैं नहीं चाहता कि तुम्हें कल से ही उस फ्लैट में शिफ्ट होने के लिये कहूँ। लेकिन, अब जब हम अलग होने पर एकमत हो चुके हैं और उसके लिये व्यवस्था भी हो चुकी है तो अब तुम्हें देखना है कि तुमने वहाँ कब जाना है?'
‘अपनी बच्चों से सलाह करने की बात हुई थी, उनसे पूछ लेते। वैसे पूछना तो अब क्या है, उन्हें बता ही देते!'
‘ओह, मैं तुम्हें बताना भूल गया। तुम्हारे बठिण्डा जाने के बाद मेरे बुलाने पर अंजनि और संजना यहाँ आई थीं। मैंने उनको सारी बातें बताईं। उनकी इतनी ही प्रतिक्रिया थी कि — पापा, अच्छा होता यदि आप हमें मम्मी की उपस्थिति में बुलाते! मम्मी से बात किये बिना हम क्या कह सकती हैं? हमारे लिये तो आप और मम्मी बराबर हैं। दूसरे, पहले आपने मामा जी को विश्वास में लिया था, इसलिये अच्छा होगा कि इस विषय में कोई भी फैसला लेने से पहले उनसे भी विचार—विमर्श कर लें — बठिण्डा रहते हुए तुम्हारी विनय से तो इस विषय में कोई बात नहीं हुई होगी?'
‘नहीं, विनय से तो इस विषय में कोई बात नहीं हुई। अंजनि और संजना को आप बता ही चुके हैं। मुझे नहीं लगता कि उन्हें दुबारा बुलाने की जरूरत है। रही बात विनय की, तो उससे भी अब विचार—विमर्श क्या करेंगे? उसे भी और हफ्ते—दस दिन में सूचित कर देंगे। रही बात मेरी शिफ्टिंग की, जैसे आप ठीक समझें, मैं आपको और स्ट्रेस में नहीं रखना चाहती।'
‘मेरे स्ट्रेस की बात नहीं है। आने वाले शनिवार तक शिफ्टिंग प्लान कर लो। इस दौरान जो कुछ तुम्हें चाहिये, उसकी लिस्ट बना लो। दूसरे, एक—आध दिन में वकील साहब के पास जाकर पेपर्स भी साईन कर देते हैं।'
‘ठीक है। मुझे जैसे कहोगे, मैं तैयार हूँ।'
इसके बाद और कोई बात करने को नहीं रही तो रानी ‘गुड़ नाईट' करके अपने कमरे में चली गई।
दूसरे दिन ऑफिस से रमेश ने खन्ना साहब को फोन किया और पूछा कि तलाक के कागज़ात पूरे करने के लिये कब आयें तो उसने कहा, शाम को जब चाहे आ जाओ। साथ ही कहा कि अकेले ही आ जाना, मैडम के हस्ताक्षर तो घर से करवा लेंगे। शाम को जाकर रमेश तलाक के कागज़ात तैयार करवा लाया। रात को जब ये कागज़ात रानी को हस्ताक्षर करने के लिये दिये तो इन्हें पढ़ने तथा इनपर हस्ताक्षर करने के पश्चात् वह बोली — ‘रमेश जी, बठिण्डा जाने से पहले आपने जो बातें मेरे सामने रखी थीं, उनसे कहीं अधिक देने की बात लिख दी है। मैं आपकी उदारता के लिये आभारी हूँ तथा रहूँगी।'
‘कल मैं एफ.डी. करवा दूँगा और एफ.डी.आर. का नम्बर लिखकर पेपर्स वकील साहब को दे आऊँगा। उम्मीद है कि इन पेपर्स के सब्मिट होने के छः महीने में कोर्ट का फैसला आ जायेगा। मैं तुम्हें एक ही बात कहना चाहूँगा कि इस दौरान ऐसा कोई काम मत करना, जिससे मेरी सामाजिक प्रतिश्ठा को धक्का लगे और मुझे मेरे प्रस्ताव पर पुनःविचार के लिये विवश होना पड़े।'
‘रमेश जी देखिये, जब मैं अकेली अलग रहूँगी तो एक—न—एक दिन लोगों के मन में प्रश्न तो उठेगा और कोई—न—कोई पूछ भी सकता है। रिश्तेदारी में भी देर—सबेर पता तो चलेगा ही। आपकी आशंका शायद आलोक को लेकर है। मैं आपको विश्वास दिलाती हूँ कि हम अगर मिलेंगे तो ऐसे मिलेंगे कि लोगों को सन्देह करने का अवसर न मिले।'
‘बस इतना ही मैं चाहता हूँ। यह तो मुझे भी पता है कि जब आलोक के लिये तुमने बसी—बसायी गुहस्थी त्याग दी है, तो तुम लोग मिले बिना तो रहोगे नहीं।'
रमेश की इतनी स्पष्टवादिता के बाद रानी कुछ न बोली, चुप रही और उठकर अपने कमरे में चली गयी।
अगले दिन रमेश सायं होने पर सारे कागज़ात खन्ना साहब को दे आया। रमेश ने अंजनि, संजना और विनय को फोन करके अपने फैसले से अवगत करवा दिया और साथ ही बता दिया कि रानी आने वाले शनिवार तक फ्लैट में शिफ्ट कर रही है। सूचना पाते ही सबसे पहले विनय मिलने आया। आते ही उसने रानी से पूछा — ‘दीदी, आप इतने दिन बठिण्डा रहीं, लेकिन आपने इस सम्बन्ध में कोई बात नहीं की। मैंने जानबूझ कर नहीं पूछा। मैंने सोचा, सब ठीक ही होगा, तभी आपने कोई बात नहीं की।'
‘भइया, वहाँ जाने से पहले सारी बातें तय हो चुकी थीं। मैंने तुम्हें इसलिये नहीं बताया कि इससे माँ को कष्ट होता! भगवान् उनकी आत्मा को शान्ति दें! अच्छा हुआ कि यह सब देखने—सुनने के लिये वे हमारे बीच नहीं रहीं। तुम्हारी नज़रों में मैं दोषी हूँ, मुझे क्षमा करना। लेकिन मेरी एक छोटी—सी चाह रमेश जी को स्वीकार न होने के कारण उनके अलग होने के फैसले को मानने के सिवाय मेरे पास कोई विकल्प नहीं रह गया था।'
‘इसका मतलब हुआ कि तलाक मंजूर हो जाने के बाद तुम आलोक के साथ रहोगी! उससे तुमने खुलकर बात कर ली है या नहीं? कहीं तुम अधर में लटक जाओ, न घर की रहो न घाट की!'
‘मैंने आलोक से कभी खुलकर बात नहीं की है, किन्तु मुझे पूर्ण विश्वास है कि वे मुझे बीच मँझदार में अकेला नहीं छोड़ेंगे।'
‘फिर भी, दीदी, मैं उसकी तरफ से आश्वस्त होना चाहता हूँ। मुझे आलोक का नम्बर दो। मैं जाते हुए उससे मिलते हुए जाऊँगा।'
विनय आलोक से मिला। अपने संशय उसके सामने रखे। काफी देर तक बातचीत करने के बाद विनय ने सन्तुष्ट व आश्वस्त होकर आलोक से विदा ली। अंजनि और संजना आपस में बात करके दो दिन बाद मम्मी से मिलने आईं। जब वे पहुँचीं तब रमेश ऑफिस में था। माँ—बेटियों के बीच खुलकर बातचीत हुई। बेटियों ने अपने पापा से सुनी बातें रानी को बताकर उसका पक्ष भी जानना चाहा तो रानी ने उन्हें समझाया — ‘मैंने तो ज़िन्दगी में कभी कोई माँग नहीं की, कभी किसी तरह की शिकायत नहीं की। तुम्हारे पापा के पास बिज़नेस और अपनी मित्र—मंडली के साथ मौज़—मस्ती के लिये तो समय की कमी कभी रही नहीं, लेकिन मैं अपना समय कैसे बिताती हूँ, इसकी परवाह उन्होंने कभी की नहीं। तुम दोनों के इस घर से जाने के बाद से तो अकेलापन और अधिक सताने लगा था। अब जब मुझे आलोक के रूप में बचपन का दोस्त मिला है तो मैंने अपने अकेलेपन को दूर करने के लिये कभी—कभार उससे मिलने—जुलने की चाह रखी तो तुम्हारे पापा को यही बर्दाश्त नहीं हुआ। रिश्तों के बन्धनों में बँधी ज़िन्दगी में पर्याप्त ऑक्सीजन न मिल पाने के कारण कई बार साँस लेना दूभर हो जाता है, इसलिये रिश्तों से बाहर भी हर व्यक्ति को ‘स्पेस' की जरूरत होती है और तुम्हारे पापा यही ‘स्पेस' देने को तैयार नहीं थे। अलग होने का भी उन्हीं का फैसला है, जिसे मानने के सिवाय मेरे पास कोई चारा नहीं था।'
अंजनि — ‘मम्मा, आप बड़ी हैं। हमसे अधिक दुनियादारी देखी और निभायी है। समाज और परिवार में पुरुष और स्त्री का कभी भी बराबर का स्थान नहीं रहा। परिवार को बचाये रखने के लिये हमेशा स्त्री को ही अपनी इच्छाएँ दबाकर समझौते करने पड़ते हैं, उसे ही झुकना पड़ता है।'
‘अंजनि, तुम मेरी बेटी हो, लेकिन बात बुजुर्गों जैसी कर रही हो। कहते हैं, लड़की का अधिक लगाव अपने पापा के साथ होता है, किन्तु यह भी सत्य है कि लड़की ही अपनी माँ की स्थिति को बेहतर समझती है। तुम लोगों ने तो देखा है कि तुम्हारे पापा ने भौतिक सुख—सुविधाओं की तो कभी कमी नहीं रहने दी, किन्तु भावना के स्तर पर उनकी ओर से जो अपेक्षित था, वह मुझे कभी मिला नहीं। फिर भी मैंने तुम्हारे पापा से कभी कोई गिला—शिकवा नहीं किया। आलोक और मैं बचपन में दोस्त थे। एक—दूसरे के घर आना—जाना, इकट्ठे खाना—पीना, खेलना—कूदना था हमारा। हम पाँच—छः बच्चों का ग्रुप था। तुम्हारे मामा जी भी इस ग्रुप में थे। इतने सालों बाद मुझे आलोक के रूप में एक ऐसा दोस्त मिला है, जिसके साथ होने पर मुझे लगता है, मेरा भी अपना निजी व्यक्तित्व है।'
अंजनि व संजना के पास इसका कोई जवाब नहीं था। इस विषय पर और कोई बात नहीं हुई।
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