कौन दिलों की जाने!
सताईस
रविवार को तो रमेश और रानी एडवोकेट खन्ना के पास तलाक सम्बन्धी कानूनी सलाह लेने के लिये गये ही थे। खन्ना साहब ने रानी से केवल पूछताछ की थी और रमेश को कानूनी पक्ष से अवगत करवाया था। सोमवार शाम को रमेश फोन करके खन्ना साहब से दुबारा मिलने गया। खन्ना साहब को धरा 13(बी)के तहत आपसी सहमति से तलाक की अर्जी लगाने से पहले एक साल या इससे अधिक समय तक अलग रहने की शर्त का स्पष्टीकरण करने को कहा। खन्ना साहब ने विस्तार से समझाते हुए कहा — ‘रमेश जी, धारा 13(बी) के तहत आपसी सहमति से तलाक की अर्जी लगाने से पहले एक साल या इससे अधिक समय तक अलग रहने की शर्त कानूनी रूप में अनिवार्य है। इसे किसी भी कोर्ट ने आज तक ‘ओवरराइड' करके कोई फैसला नहीं दिया है। हाँ, इतना जरूर है कि इसकी व्याख्या करते हुए कई ऐसे फैसले आए हैं, जिनमें कहा गया है कि एक साल की अवधि में पति—पत्नी के लिये अलग—अलग जगह रहना जरूरी नहीं है। एक ही छत के नीचे रहते हुए भी यदि उन्होंने एक साल या इससे अधिक समय तक पति—पत्नी के सम्बन्ध नहीं बनाये हैं तो भी कोर्ट मानती है कि वे आपसी सहमति से तलाक की अर्जी लगा सकते हैं।'
‘खन्ना साहब, कृपया थोड़ा और विस्तार से बताने का कष्ट करें कि आपसी सहमति से तलाक की अर्जी लगाने के लिये और क्या कुछ करना पड़ता है?'
‘रमेश जी, सबसे पहले तो पति और पत्नी में सहमति बननी चाहिये कि वे एक—दूसरे से अलग होना चाहते हैं। दो और बातें तय करनी होती हैं — एक, पत्नी के निर्वाह का गुज़ारा भत्ता क्या होगा? कानून में ऊपरी अथवा निचली किसी सीमा का प्रावधान नहीं है, यह कुछ भी हो सकता है। यह शून्य भी हो सकता है। लेकिन इसके लिये आपसी सहमति होना जरूरी है। दो, बच्चों की कस्टडी। दूसरी स्थिति आपके केस में नहीं आती। आपकी दोनों बेटियाँ विवाहित हैं। एक—बार पति—पत्नी आपस में तलाक के लिये सहमत हो जाते हैं तो इसके बाद जिले की फैमिली कोर्ट में एक अर्जी देनी पड़ती है, जिसके साथ पति तथा पत्नी के शपथ—पत्र लगाने होते हैं, और दोनों पक्षों का साँझा बयान होता है, जिसमें कहा जाता है कि वे अलग हो रहे हैं, क्योंकि उनके लिये साथ—साथ जीवन बिताना सम्भव नहीं है। इस प्रकार आपसी सहमति से तलाक की अर्ज़ी स्वीकार करने की प्रार्थना की जाती है। इस प्रकार की अर्जी दाखिल होने के छः महीने बाद उन्हें पुनः कोर्ट में पेश होकर अपने पहले बयान की पुष्टि करनी होती है। तत्पश्चात् कोर्ट तलाक की अर्जी पर फैसला करके तलाक को कानूनी मान्यता प्रदान करती है। छः महीने की अवधि इसलिये दी जाती है ताकि पति और पत्नी अपने विवाह सम्बन्ध—विच्छेद करने के निर्णय पर पुनःविचार कर सकें। इस अवधि के दौरान दोनों या कोई एक पक्ष अपनी सहमति वापस भी ले सकता है। ऐसी स्थिति में कोर्ट तलाक की अर्जी खारिज़ कर देती है। रमेश जी, मैंने आपसी सहमति से तलाक सम्बन्धी कानून के सारे प्रावधान सरल भाषा में आपके समक्ष प्रस्तुत कर दिये हैं। घर जाकर मैडम से इत्मीनान से विचार—विमर्श करने के उपरान्त ही आगे का कदम उठाना।'
‘धन्यवाद खन्ना साहब। मैं जल्दी ही फैसला करके आपको बताता हूँ।'
रात को खाना खाने तथा रसोई समेटने के बाद रानी जब अपने कमरे में जाने लगी तो रमेश ने उसे अपने बेडरूम में बुलाया। रानी आकर खड़ी हो गई। रमेश ने पैर सिकोड़ते हुए बेड पर रानी के बैठने के लिये जगह बनाई और कहा — ‘बैठो, तुम से कुछ जरूरी बातें करनी हैं।'
किन्तु रानी बेड पर न बैठकर ‘सैटी' पर बैठ गई, बोली कुछ नहीं। रमेश क्या कहना चाहता है, सुनने के लिये उसके कान प्रतीक्षा में थे। थोड़ा रुककर रमेश ने ही बात आगे बढ़ाते हुए बताया कि शाम को वह खन्ना साहब के ऑफिस गया था। जो—जो बातें उनमें हुई थीं, सारी की सारी रानी को बताने के बाद पूछा — ‘बताओ, तुम क्या चाहती हो?'
‘जब आप फैसला ले ही चुके हैं तो मेरे चाहने ना—चाहने का सवाल ही कहाँ रह जाता है?'
रानी के उत्तर से रमेश को कुछ तिलमिलाहट हुई, किन्तु उसे प्रकट न करके उसने कहा — ‘मैंने फैसला अलग होने का लिया है। अलग होने के दो कानूनी रास्ते हैं। पहला है, मैं आलोक के साथ तुम्हारे सम्बन्धों को लेकर कोर्ट में तुम्हारे विरुद्ध दोषारोपण करूँ और कोर्ट में मुकद्दमा चले। लेकिन मैं यह रास्ता इख्तियार नहीं करना चाहता। दूसरा है, आपसी सहमति से अलग होना, जिसके बारे में अभी मैंने विस्तार से सारी बातें तुम्हें बताई हैं।'
‘धन्यवाद कि आपने मेरे विरुद्ध आरोप लगाकर मुकद्दमा न करने का फैसला लिया है। दूसरे विकल्प के बारे में आप जो उचित समझते हैं, वही करें। मुझे जो भी करने को कहेंगे, मैं बिना किसी शिकवे व शिकायत या शर्त के करने को तैयार हूँ।'
इतना कहकर रानी उठकर अपने कमरे की ओर जाने लगी। बात पूरी हो चुकी थी, इसलिये रमेश ने भी रोका नहीं।
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