योगिनी - 8 Mahesh Dewedy द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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योगिनी - 8

योगिनी

8

उस सायं योगिनी ने माइक के प्रस्ताव का कोई सीधा उत्तर नहीं दिया था। रात्रि में वह तरह तरह के विचारों में डूबी रही थी। वह आश्चर्य में पड़कर सोचती कि क्या सचमुच ऐसा संसार सम्भव है जिसमें पौरुषेय अहम् न हो, स्त्रियों की पुरुष पर पराधीनता न हो, एवं पुरुषों के संसार की भांति मनुष्य मनुष्य में मारकाट न हो? आज उसे अपने उस पति को बैयरा के रूप में अपनी आंखों से देखने की उत्कंठा भी जाग्रत हो रही थी, जो अपने हाथ से लेकर पानी भी नहीं पीता था। दूसरी सायं योगिनी ने माइक से अमेरिका चलने की हामी भर दी और माइक उससे पासपोट्र्र व वीसा के फा़र्म भरवाने के बाद उन्हें लेकर दिल्ली चला गया। एक माह पष्चात लौटने पर माइक ने योगिनी को बताया कि अगले सोमवार को अमेरिकन एयरलाइंस की फ़्लाइट से दिल्ली से शिकागो चलना है। योगिनी ने जब यह बात योगी को बताई, तो योगी ने कोइ्र्र प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की, बस ऐसी मुद्रा बनाकर योगिनी को देखता रहा था जैसे पहले से बताई हुई्र बात के दुहराये जाने पर कोई ‘अच्छा’’ कह रहा हो।

अमेरिकन एयरलाइंस की फ़्लाइट सोमवार की रात के सवा बारह बजे दिल्ली से सीधी शिकागो के लिये चली थी और उसी दिन शिकागो में वहां के प्रातः सवा पांच बजे पहुंची थी। मीता को विंडो सीट मिली थी और माइक उसके साथ की बीच की सीट पर बैठा था। यद्यपि अभी तक योगिनी सप्रयत्न योगी को अपनी स्मृति के वितान से बाहर किये रही थी, परंतु हवाई जहाज़ के उड़ चुकने के पश्चात मीता को अकेले रह गये भुवनचंद्र की याद आने लगी थी। अतः माइक द्वारा कोई बातचीत छेडे़ जाने के प्रयत्न पर मीता नींद मे होने का बहाना बनाकर चुप हो जाती थी। माइक भी मीता को अन्यमनस्क पाकर चुप हो गया था। पूरे रास्ते घनी रात्रि बनी रहने के कारण मीता को नीचे कुछ विशेष दिखाई नहीं दिया था, बस कहीं कहीं बादल घनी रुई के गद्दे के समान बिछे हुए दिख जाते थे। परंतु हवाई जहाज़ जब ऐटलांटिक महासागर में ग्रीनलैंड के उूपर से जा रहा था, तो वहां तीन बजे रात का समय होने के बावजूद उत्तरी ध्रुव से निकटता के कारण खूब उजाला था। ग्रीनलैंड का दृश्य देखकर मीता आंखें बंद न रख सकी थी। धरती पर सर्वत्र सफे़दी की चादर तनी थी, कहीं एक इंच भी जगह ग्रीन /हरी/ नहीं थी। बर्फ़ के पहाड़ जमे हुए थे- कहीं उूंचे कहीं नीचे; न कहीं कोइ्र्र हरियाली थी और न कहीं कोई जीवन का चिन्ह। इतने लम्बे चैडे़ बर्फीले सुनसान की मीता ने कभी कल्पना भी नहीं की थी। जब ग्रीनलैंड का भूभाग समाप्त होने लगा तब पहले से भी अनोखा दृश्य दिखाई दिया- भूभाग से कटकर अनेकों पर्वताकार हिमखंड समुद्र में जाकर आइसबर्ग का रुप धारण कर बह रहे थे। भूभाग एवं समुद्र के बीच सैकडों मील तक हिम के पर्वत एवं नाले बह रहे थे। मीता को इन दृश्यों में लिप्त पाकर माइक ने प्रश्न किया था,

‘‘आप जानतीं हैं कि पूरे ग्रीनलैंड में ग्रीन कुछ भी नहीं है, फिर भी इसे ग्रीनलैंड क्यों कहते हैं।’’

मीता द्वारा उत्तर जानने की उत्सुकता दिखाने पर वह आगे कहने लगा था,

‘‘सबसे पहले कुछ यूरोपियन्स आइसलैंड पहुंचे थे, जो उन्हें बहुत हरा भरा और सुंदर लगा था तथा उन्होने उस पूरे द्वीप पर अपना आधिपत्य स्थापित करने का मन बना लिया था। फिर वे वहां से चलकर ग्रीनलैंड गये और इसे पूर्णतः बर्फ़ से आच्छादित पाकर उल्टे मुंह लौट आये थे। उन्होंने पूरे आइसलैंड पर अपना आधिपत्य बनाये रखने के उद्देश्य से यूरोप वापस लौटने पर हरियाली से भरे द्वीप का नाम आइसलैंड और बर्फ़ से ढंके द्वीप का नाम ग्रीनलैंड बता दिया था। इसके कारण बहुत दिनों तक अन्य यूरोपीय आइसलैंड जाने से कतराते रहे थे और सीधे ग्रीनलैंड को चल देते थे जहंा से बचकर वापस आना कठिन होता था। तभी से ये उल्टे नाम प्रचलित हो गये हैं।’’

लगभग पौने पांच बजे जब हवाई जहाज़ मिशिगन झील के उूपर पहुंच गया था, तब माइक ने बताया था कि यह लेक 300 मील लम्बी और औसतन 100 से अधिक मील चैडी़ है और मीठे पानी का संसार का सबसे बडा़ भंडार इसी में है। उषा की किरणें झील पर स्वर्णिम छटा बिखेर रहीं थीं, और उनके प्रकाश में झील पर चलने वाले पानी के जहाज़ रेगिस्तान में खडे़ पिरामिड सम दिखाई दे रहे थे। जब मीता ने लेक के किनारे खडे़ शिकागो नगर के बहुमंज़िली भवनों की ऊंची ऊंची अट्टालिकायें देखीं तो उसे मानिला के ऊंचे ऊंचे पहाड़ी वृक्षों की याद आ गई और उसके मन में योगी के लिये पुनः एक टीस उभरी थी। तभी प्लेन की लैंडिंग का उद्घोष होने लगा और मीता परियों के लोक में उतरने को तैयारी करने लगी थी।

एयरपोर्ट से टैक्सी लेकर माइक मीता को अपने फ़्लैट पर लाया था। यह एक बहुत उूंचे भवन की नवीं मंज़िल पर था। माइक ने उसे वहां से पश्चिम में दीवान मार्केट की दूकानें और पूर्व में 105 मंज़िला सियर्स टावर दिखाई थी। सामने मिशिगन लेक अपनी विशालता में खोई सी निद्र्वंद्व हरहरा रही थी। सूर्य चढ़ आया था और सड़कों पर अनवरत चलनंे वाली कारें शिकागो की व्यस्तता को मूर्त रूप प्रदान कर रहीं थीं। माइक ने मीता को अपना फ़्लैट दिखाया और फिर किचन में जाकर चाय बना लाया। चाय पीते पीते मीता ने पूछा,

‘‘मेरे रहने को कहां जगह मिलेगी।’’

इस पर माइक ने एक आंख झपकाते हुए उत्तर दिया,

‘‘माई फ़्लैट इज़ बिग एनफ़। हम दोनों इसमें साथ रह सकते हैं।’’

माइक की भाषा एवं भाव दोनों में साथ रहने से कहीं अधिक अर्थ छिपा हुआ था। मीता को पुरुष की इस हर जगह लार टपकाने वाली प्रवृत्ति पर क्रोध आ गया और उसने दृढ़ता से कहा,

‘‘नो आई वुड लाइक टु लिव एलोन।’’

पाश्चात्य सभ्यता में वैयक्तिक स्वतंत्रता को इतना महत्व दिया जाता है कि किसी महिला द्वारा इस प्रकार अपने मन की बात स्पष्ट कह देने पर पुरुष बुरा नहीं मानते हैं और न अपने अहम् पर ठेस आने की बात सोचते हैं, अतः माइक बोला,

‘‘ओ. के., आइ शैल लुक फा़र सम विमेन्स हौस्टल।’’

फिर माइक ने विमेन्स लिबरेशन मूवमेंट की कुछ सदस्याओं के फोन खटखटाये और एक विमेन्स हौस्टल में एक कमरा मीता के नाम रिज़र्व करा लिया। माइक ने जब विमेंस लिबरेशन मूवमेंट की अध्यक्ष को फोन पर मीता का भारत की प्रसिद्ध योगिनी होने के रूप में परिचय दिया, तो उसकी रुचि मीता में बढ़ गई और माइक की संस्तुति पर उसने मीता को अपने सहायक के रूप में कार्य करने की जौब दे दी।

खाना बनाकर खाने-खिलाने के बाद माइक मीता को हौस्टल में भेज आया। चलते चलते माइक ने बताया कि यह हौस्टल दीवान मार्केट से मुश्

िकल से आधा मील दूर है और मीता जब चाहे दीवान मार्केट जाकर भारतीय शहर के बाजा़र जैसे दृश्य का आनंद ले सकती है।

मीता दीवान मार्केट जाने को बेचैन थी- वहां ‘अनुज, दी हेड बेयरा’’ जो था।

मीता ने हौस्टल के कमरे में दोपहर में आराम से सोकर लम्बी यात्रा की थकान निकाली। जब उसकी आंख खुली तो घडी़ में देखने पर ज्ञात हुआ कि सायंकाल के साढे़ छः बज रहे थे। परंतु उसे बाहर यह देखकर आश्चर्य हुआ कि तब भी सूरज अपनी पूरी तेजी़ से आकाश में चमक रहा था और ऐसा लग रहा था जैसे चार बजे हों। उसने किचन में चाय बनाकर पी। बाहर हवा में ठंडक थी, अतः मीता ने शाल डाल लिया और दीवान मार्केट की ओर चल दी। रास्ते में फुटपाथ के दोनों ओर बने हुए मकान ऐसे लग रहे थे जैसे किसी चित्रकार द्वारा कैनवैस पर चित्रित किये गये हांे, परंतु दीवान मार्केट पहुंचने पर मीता ने पाया कि वहां के भवन, दूकानदार व ग्राहक सब ऐसे थे जैसे दिल्ली के करोलबाग में मिलते हैं। वहां उसे ऐसा लग ही नहीं रहा था कि वह भारत में न होकर अमेरिका में हो। फुटपाथ पर कुछ दूर पैदल चलने पर उसे बाईं ओर गांधी इंडियन रेस्टोरेंट दिखाई दिया। वह उसी के सामने आस पास इस आशा से टहलने लगी कि अनुज यदि काम पर आया होगा, तो रेस्टोरेंट के अंदर शीशे की दीवाल के पार दिख जायेगा। उसे अधिक प्रतीक्षा नहीं करनी पडी़ क्योंकि तभी अनुज दोनों हाथों में एक एक फुल-प्लेट में दोशा लेकर जाता हुआ दिखाई दिया। फिर एक मेज़ पर उन्हें रखने के पश्चात अनुज ने बगल की मेज़ से जूठी प्लेटें उठाईं और उन्हें ले जाकर सिंक पर रखने लगा। मीता की आंखों में आंसू छलकने को हो आये। उसने निश्चय किया कि अनुज ने उसके साथ चाहे जैसा भी व्यवहार किया हो, वह अनुज के निकलने पर उससे बात करेगी। वह देर तक रेस्ट्ंा के बाहर अनुज की प्रतीक्षा करती रही। परंतु अनुज जब बाहर निकला, तब एक गोरी महिला की कमर उसकी बाॅह में थी।

मीता का मन असहनीय क्षोभ से भर गया।

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