योगिनी - 9 Mahesh Dewedy द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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योगिनी - 9

योगिनी

9

‘‘हाय! ह्वेयर आर यू फ्रा़म’’ दीवान मार्केट से लौटकर मीता जब अपने कमरे का ताला खोल रही थी, तभी पीछे से एक गोरी अधेड़ महिला की चहकती सी आवाज़ आई।

मीता के ‘‘आय ऐम फ्रा़म इंडिया’’ कहने पर उस महिला ने तपाक से अपना हाथ मिलाने को बढ़ाया और अपना परिचय देने लगी।

‘‘आय ऐम शेली फ्रा़म इंग्लैंड।’’

मीता के आश्रम में गोरे लोगों का आना जाना लगा रहता था और वह उनसे मिलने के तौर तरीकों से परिचित थी। उसने हाथ बढ़ाकर ‘‘हाउू डू यू डू’’ कहा और अपना परिचय दिया। भारतीय सभ्यता के अनुसार उसने शेली को अपने कमरे में चलने का आमंत्रण दिया और शेली बिना नानुकुर किये अंदर चली आई । फिर वह मीता से ऐसे बातें करने लगी जैसे पुराने मित्र आपस में बोलते- बतियाते हैं। शेली ने बताया कि वह इंग्लैंड में ही विमेंस लिबरेशन मूवमेंट की सक्रिय सदस्य बन गई थी और वहां के समाज में स्त्रियों के स्वतंत्र अस्तित्व को स्थापित करने में बहुत कुछ सफल हुई थी। विमेंस लिबरेशन मूवमेंट की ब्रिटिश शाखा द्वारा देश विदेश से चंदा इकट्ठा कर वैज्ञानिकों को प्रोजेक्टस दिये जाने पर वहां के वैज्ञानिक इस खोज में सफल हुए हैं कि बिना पुरुष के संसर्ग के स्त्री लड़कियां पैदा कर सकती है। यह कहने के पश्चात अपने स्वर में शरारत भर कर शेली बोली ‘और जब लड़की में मजा़ आने लगे तो लड़कों की आवश्यकता ही क्या है’। दो वर्ष पूर्व उसे मूवमेंट का महामंत्री चुन लिया गया था और तब वह मूवमेंट के मुख्यालय शिकागो में चली आइ्र्र थी। अमेरिका अनेक संस्कृतियों के संगम का देश है और यहां पर तीसरी दुनिया से आये हुए अनेक परिवारों में अभी भी स्त्री की स्थिति पुरुष से बहुत नीची है। अतः यहां काम बहुत है, परंतु मुझे प्रसन्न्ता है कि यहां की स्त्रियां मूवमेंट के सिद्धांतों को तेजी़ से स्वीकार कर उन पर अमल कर रहीं हंै।

मीता को शेली की बात एकतरफ़ा लगी और उसने पूछ दिया कि पुरुषों से इस प्रकार का द्वंद्व क्या सचमुच आवश्यक है। शेली ने उत्तर में कहा कि विमेंस लिबरेशन मूवमेंट का प्रारम्भ सदियों से दबी-कुचली नारी को पुरुषों के बराबर मानसिक, शारीरिक एवं लैंगिक स्वतंत्रता दिलाने के उद्देश्य से हुआ था। प्रारम्भ में पुरुषों ने कुछ तो अपनी विशालहृदयता दिखाने हेतु और कुछ महिलाओं से खुले खेल का आनंद लेने हेतु इसे बढ़ावा भी दिया था, परंतु जब पश्चिमी देशों में महिलायें हर क्षेत्र में पुरुष को पछाड़ने लगीं, तब से दोनों में वर्चस्व की लड़ाई प्रारम्भ हो गई है। इस खोज के पश्चात कि महिलायें बिना पुरुष की सहायता के लड़कियों के प्रजनन में सक्षम हैं, यह लड़ाई पुरुष के अस्तित्व की लड़ाई में परिवर्तित हो गई है। अब यहां की अनेक महिलायें महिलाओं के साथ मित्रवत व्यवहार करतीं हैं और पुरुष को हेय दृष्टि से देखतीं हैं। यहां की अधिकतर महिलायें अब प्रजनन के लिये महिलाओं के शरीर के सेल का ही उपयोग करतीं हैं जिससे पुरुषों की जन्म दर तेजी़ से घट रही है।

मीता चकित होकर शेली की बात सुन रही थी और उसके मन में कई प्रश्न भी उठ रहे थे, परंतु तभी शेली की एक मित्र ने बाहर आकर कहा,

‘शेली! वी आर लेट फ़ार डिनर।’

और शेली ‘एक्सक्यूज़ मी’’ कहकर चली गई।

मीता आश्चर्यचकित थी कि क्या पुरुष के बिना भी कोई नारी अपने केा पूर्ण मान सकती है- शेली की बात एवं अपने कार्य की सफलता के वर्णन पर उसके मुख पर विकसित उल्लास से तो यही स्पष्ट हो रहा था कि शेली पुरुषविहीन मानव समाज की कल्पना से रोमांचित है और सम्भवतः उसकी सहयोगी महिलायें भी। रात में मीता घंटों इसी उूहापोह में पड़ी रही कि कैसे कोई स्त्री पुरुष के बिना अपने दैहिक एवं मानसिक अधूरेपन को शांत कर सकती है, और उसे बड़ी देर से नींद आई।

‘‘वेल्कम मीटा! माइक हैड टोल्ड ए लौट एबाउट यू, ऐंड आइ ऐम श्योर यू वुड प्रूव ऐन आउटस्टेंडिग ऐडीशन टू अवर मूवमेंट।’’

गोरी, छरहरी, अधेड़ आयु की विमेंन्स लिबरेशन मूवमेंट की प्रेसीडेंट सूजै़न ने यह कहते हुए मीता का अपने आफ़िस में स्वागत किया था। मीता प्रेसीडेंट के व्यवहार की अनौपचारिकता एवं आत्मीयता से आश्चर्यचकित थी क्योंकि उसने भारत में बौस के प्रायः नकचढे़ होने के किस्से सुन रखे थे। प्रेसीडेंट ने स्वयं मीता को अपने साथ लेकर आफ़िस की अन्य सहयोगियों से परिचय कराया था। मीता को आफ़िस का वातावरण बडा़ अपनत्व वाला लगा था। सूजै़न ने मीता को उसका कमरा भी दिखाया था जो सूजै़न के कमरे से सटा हुआ था। कमरा छोटा होते हुए भी सुरुचिपूर्ण ढंग से सजा हुआ था। अपने कमरे में जाते हुए सूजै़न ने कहा था कि अभी शेली यहां आयेगी, तुम्हें कम्प्यूटर पर काम करना सिखायेगी और तुम्हारा रोज़ का काम बतायेगी। कुछ देर में शेली आ गई और उसने मीता को उसकी मेज़्ा पर रखे कम्प्यूटर का बटन दबाने को कहा। मीता बडे़ मनोयोग से कम्पयूटर पर काम करना सीखती रही। बाद में शेली ने उससे कहा कि संस्था के उद्देश्य के विषय में तो वह मीता को पहले ही बता चुकी है। प्रेसीडेंट की अस्स्टिेंट के रूप में उसे मुख्यतः वे काम करने होंगे जो प्रेसीडेंट उसे दिन प्रतिदिन बतायेंगी। प्रेसीडेंट काम के विषय में सख़्त हैं और पूर्ण अनुशासन की अपेक्षा रखतीं हैं। शेली जाते समय मीता को एक पैम्फ़लेट देकर गई जिसमें अंग्रेजी़ में टायपिंग का अभ्यास करने की विधि लिखी थी और मीता का वह दिन मुख्यतः कम्प्यूटर पर टायपिंग सीखने के अभ्यास में बीता।

अगले शनिवार को माइक मीता का हालचाल लेने उसके हौस्टल पर आया और मीता ने अपना प्रथम सप्ताह संतोषजनक ढंग से गुज़रना बताया। उसने यह भी कहा कि उसका काम ज्ञानवर्धक एवं एक्साइटिंग है। शेली द्वारा उसकी सहायता करने एवं उससे मित्रता का प्रारम्भ होने की बात भी बताई। माइक को यह सुनकर प्रसन्नता हुई। चलते समय माइक ने मीता को बताया कि वह अगले सप्ताह अपने शोधकार्य के सम्बंध में दक्षिणी एशिया के देशों में जायेगा और काफी़ समय पश्चात लौटेगा।

शनैः शनैः मीता की दिनचर्या एक ढर्रे पर चल पडी़ थी और उसके दिन ठीकठाक बीतने लगे थे। वह न केवल अपना काम सीख और समझ गई थी वरन् उसे दक्षता के साथ करने भी लगी थी। सूजै़न उसके काम सीखने की प्रगति पर बहुत प्रसन्न थी और मीता उसकी विश्वासपात्र बन गई थी। मीता अनुज एवं भुवनचंद्र द्वारा अपने प्रति किये गये व्यवहार से तो भरी हुई थी ही, विमेंस लिबरेशन मूवमेंट के कार्यालय की लाइब्रेरी में रखा हुआ साहित्य पढ़कर पुरुषों से उसकी वितृष्णा और बढ़ रही थी। वह सूजै़न के लिये जो भाषण तैयार करती उनमें विश्व में नारियों के प्रति किये जाने वाले अत्याचार के रोमांचकारी उदाहरण प्रस्तुत करती थी। कभी कभी तो सूजै़न उसके द्वारा तैयार किये गये भाषण से इतनी प्रभावित हो जाती थी कि उसे ही पढ़ने को कह देती थी। उन्हें पढ़ते समय मीता अपने हृदय में भरे हुए उद्गारों को निकाल कर रख देती, जिससे श्रोताओं पर गहरा प्रभाव पड़ता था।

पर फिर भी कुछ बातें ऐसी थीं जो मीता के मन में अनजाने ही आकर चुभन पैदा कर देतीं थीं। एक तो अनुज का बेयरे के रूप में दोशा की टे् लेकर चलना और दूसरे प्रातःकाल जब वह योगासन करने हेतु बैठती थी, तो उसे लगता कि योगी सदैव की भांति उसके सामने पद्मासन लगाये बैठे हैं और उनके चेहरे से विषाद का भाव परिलक्षित हो रहा है। उसको एक बात और खटकती थी- वह अपनी संस्था के गठन के कारण एवं अधिकतर उद्देश्यों से सहमत होते हुए भी कभी भी इस नीति से समझौता नहीं कर पाई थी कि नारी को अपना एकछत्र प्रभुत्व स्थापित करने के लिये मानव समाज को पुरुषविहीन कर देना चाहिये। उसकी प्रेसीडेंट इस विचार की घनघोर पक्षधर थी, अतः वह अपने द्वारा तैयार किये गये भाषणों में इस विषय पर कोई विचार रखने से कतराती थी। पहले तो प्रेसीडेंट ने इस विषय में मीता की सोच को स्वयं के अनुकूल बनाने का प्रयत्न किया, परंतु जब मीता ने इस विषय में अपनी असहमति स्पष्ट कर दी, तो मीता द्वारा तैयार भाषण में वह इस विषय पर स्वयं लिखने लगीं थीं।

एक बात और थी जो मीता को उद्विग्न करती थी और वह थी शेली द्वारा अति-आत्मीयता का प्रदर्शन। प्रायः भोजनोपरांत रात में वह मीता के कमरे में गपशड़ाके लड़ाने के बहाने आ जाती थी और उसके कमरेेे में घुसतेे ही मीता को कसकर चिपका लेती थी। मीता द्वारा कसमसाने पर ही कठिनाई से उसे अपने आलिंगन से दूर करती थी। फिर बातचीत के दौरान भी शेली प्रायः अपना हाथ मीता के किसी न किसी अंग पर रख देती थी और जब तक मीता की आपत्ति स्पष्ट न लगने लगे, वहां से नहीं हटाती थी। शेली के इन अतिरेकों को मीता उसके व्यवहार की अति आत्मीयता मानकर देखा अनदेखा करती रहती थी। विमेंस हौस्टल में शेली न केवल उससे स्वतः सप्रेम मिलने वाली प्रथम महिला थी, वरन् शनैः शनैः उसकी अंतरंग भी बन गई थी। संस्था का काम सिखाने एवं कार्यालय में मीता की स्थिति को सुदृढ़ करने में शेली ने उसकी भरपूर सहायता की थी। परंतु एक रात्रि ऐसी घटना घटित हो गई कि मीता का धैर्य चुक गया। उस रात्रि शेली जब मीता के कमरे में आई, तब उसकी जु़बान लड़खड़ा रही थी। उसने मीता के कमरे में घुसने पर उसे न केवल अपने आलिंगन में दबोच लिया, वरन् मीता के प्रतिरोध के बावजूद उसे पलंग पर गिराकर उसके अंगों से खेलने लगी। मीता से सहन न हुआ और उसने शेली का झोंटा पकड़कर उसको धक्का मारकर पलंग से नीचे गिरा दिया। शेली अब क्रोघ से बिफ़र उठी और मीता को गाली देती हुई कमरे के बाहर निकल गई। उसके जाते जाते मीता ने चिल्लाकर कहा, ‘नेवर डेयर टु एंटर माइ रूम अगेन’।

इस अकथनीय घटना को मीता शिव द्वारा गरलपान के समान अपने कंठ में दबा गई और फिर शेली ने भी उसके कमरे में आने का प्रयत्न नहीं किया। शेली कार्यालय में भी उससे बचकर ही रहने लगी। मीता को शेली की यह प्रतिक्रिया तो स्वाभाविक लगी, परंतु इसके अतिरिक्त उसेे ऐसा भी लगा कि उसके प्रति सूजै़न के व्यवहार में भी रूखापन आ गया है।

एक दिन सूज़ैन ने उसे बुलाकर कहा कि अगले शुक्रवार को लास वेगस में कान्फ़रेंस है और मीता को भी उसके साथ चलना है। शिकागो से लास वेगस जाने वाले प्लेन में चढ़ने पर मीता ने पाया कि सूजै़न के साथ शेली भी लास वेगस चल रही थी। मीता को शेली प्रारम्भ से ही अच्छी लगी थी ओर उसके मन में विचार आया कि चलो अच्छा ही है, इस बहाने शेली से मनमुटाव समाप्त हो जायेगा और पूर्ववत सम्बंध स्थापित हो जायेंगे, परंतु रास्ते में दोनों के बीच चुप्पी ही रही।

शुक्रवार को प्रातः 3 बजे उनका जहाज़ लास वेगस पहुंचा। मीता ने हवाई जहाज़ के उतरते हुए देखा कि लास वेगस नगर मनुष्यकृत वृहत् सुंदरता की पराकाष्ठा है। कहते हैं कि लास वेगस में कभी रात्रि नहीं होती है और सचमुच उसकी सड़कों एवं दी वेनेशियन होटल, जिसमें इन सबके कमरे रिज़र्व थे, में ऐसी गहमागहमी थी जैसे दिन के चार बजे हों। लगभग आधा फर्लांग लम्बे, रंग-बिरंगे जुआ खेलने के हाल में सैकडो़ं स्लौट मशीनों की झनक, ताश खेलने वालों एवं रूले में पैसा लगाने वालों की बकुलदृष्टि, तथा अप्सरा समान सुंदरियों द्वारा अदा से जुआड़ियों को मद्य पेश करने का दृश्य स्वर्गलोक मंे लगे किसी मेले जैसा लग रहा था। होटल मंे चेक करने के पश्चात सूजै़न, शेली और मीता अपने अपने कमरे में सोने चले गये और घडी़ में भरे हुए अलार्म के बजने पर सुबह सात बजे जागे। तैयार होकर ब्रेकफ़ास्ट के लिये एस्केलेटर से प्रथम तल पर बने फु़डकोर्ट में गये। वहां सूजै़न और शेली ने हैम्बर्गर खाये और मीता ने वेजीटेरियन सबवे लिया। फिर होटल के विशाल कान्फ़रेंस हाल को चल दिये। लंच ब्रेक के अतिरिक्त लगभग चार बजे तक कान्फ़रेंस चलती रही। आज का सूजै़न का भाषण बहुत ओजपूर्ण था। समाप्ति पर यह घोषणा हुइ्र्र कि रात्रि में 10 बजे से एम. जी. एम. ग्रैंड होटल मंे एक विशेष शो का आयोजन होगा, जिसमें सभी प्रत्रिभागी आमंत्रित हैं।

अपने कमरों में लौटने पर सूजै़न ने कहा कि चाय पीने के उपरांत हम लोग लास वेगस के प्रमुख होटलों को देखेंगे। कमरे से निकलकर मीता अपने दी वेनेशियन होटल में ही भ्रमण करने लगी तब उसकी भव्यता एवं सुंदरता को देखकर आश्चर्यचकित रह गई। जुआ खेलने वाला हाल तो उस होटल का एक भाग मात्र था। उसमें ऐसे अनेक विंग थे। उसके एक विंग में जाते हुए मीता को लगा कि अचानक सायं की वेला घिर आई है, आकाश में तारे निकल आये हैं और कहीं कहीं बादल छा रहे हैं। इस अकस्मात वातावरण परिवर्तन से मीता चकित हो रही थी कि सूजै़न ने बताया कि होटल का यह भाग वेनिस शहर के समान बनाया गया है। वहां न केवल वेनिस नगर के समरूप भवन, बाजा़र, मूर्तियां, नगर के अंदर बहने वाली नहरें, उनमें चलाये जाने वाले गोंडोला और उनको चलाने वाले प्रेम-गीत गाते हुए नाविक थे, वरन् आकाश को भी वेनिस में सामान्यतः पाये जाने वाले आकाश के अनुरूप बना दिया गया था। यद्यपि यह आकाश एक-डेढ़ फ़र्लांग लम्बे क्षेत्रफल में बने बाजा़र एवं नहर आदि के उूपर ही था परंतु उूपर देखने में उसका कोई ओर छोर नहीं दिखाई देता था और वह अनंत लगता था। दी वेनेशियन होटल देखने के पश्चात तीनों लोग मोनोरेल से पैरिस, मांडले बे, दी स्टे्टोस्फियर, एक्स-कैलिबर, दी सीज़र, अलादीन आदि होटलों को देखने गये। सब अपने में निराले थे। अंत में नौ बजे रात में ये लोग एम. जी. एम. ग्रैंड होटल में आ गये। वहां चायनीज़ रेस्ट्ां में भोजन खाकर ये लोग शो देखने हेतु जिस हाल मंे घुसे, वह अपने आकार एवं भव्यता में मीता के लिये कल्पनातीत था। गेट पर एक अर्ध्रनग्न सुंदरी ने मुस्कराते हुए उनका स्वागत किया। हाल में हल्का प्रकाश था और उसकी उूंचाई कम से कम पचास फीट रही होगी। सामने का स्टेज का भाग खाली था और उसमें नीचे से कभी आग के भभोके, कभी पानी की बौछार और कभी शीत बयार उठने लगती थी। शो प्रारम्भ होने से पूर्व हाल में अंधेरा हो गया और तभी एक वस्त्र-विहीन सी दिखने वाली लड़की पीने हेतु पेय पदार्थ लाई। टे् में तरह तरह के रंगों के पेय पदार्थ रखे थे। उस लड़की के निकट की सीट पर शेली सबसे पहले बैठी थी, उसके बाद सूज़ैन और उसके बाद मीता थी। अतः शेली ने सूजै़न को एक ड्ंिक उठाकर देने के बाद उस लड़की से पूछा कि नौन अल्कोहलिक ड्ंिक कैान सा है और उस लड़की के बताने पर एक गिलास उठा लिया। फिर मीता को उसे लेने केा कहकर दे दिया। उसके बाद अपना अल्कोहलिक ड्ंिक लिया। उनके ड्ंिक लेना प्रारम्भ करते ही सामने स्टेज तिरछा सा उठता दिखाई दिया और नाटक प्रारम्भ हो गया। कुछ देर बाद मीता का सिर कुछ भारी सा होने लगा था और नाटक की कहानी एवं पात्रों द्वारा बोली जाने वाली अंग्रेज़ी मीता की बिल्कुल समझ में नहीं आ रही थी। नाटक की कहानी मीता को एक लड़की से दूसरी लड़की के प्रेम की कहानी जैसी लग रही थी। नाटक में कोई्र पुरूष पात्र नहीं था। नंगी दिखने वालीं लड़कियां अपने अभिनय के दौरान नटी के समान करतब दिखा रहीं थीं। नाटक का अंत कई लड़कियों के बीच खुली प्रेम-क्रिया के प्रदर्शन से हुआ। मीता का सिर पहले से दुखने लगा था और अंतिम दृश्य देखकर मन वितृष्णा से भर गया था।

मीता बडी़ कठिनाई से होटल वापस आ सकी थी। वहां आकर लड़खडा़ते कदमों से जब उसने अपने कमरे का दरवाजा़ खोला, तो उसको सम्हालते हुए शेली और सूजै़न उसके साथ कमरे में अंदर आ गईं थीं। पलंग पर गिरने के बाद मीता को कुछ पता नहीं कि आगे क्या हुआ, परंतु आंख खुलने के पश्चात सब कुछ देखकर वह अपना सामान लेकर सीधे एयरपोर्ट चली आई थी और दिल्ली का टिकट कटा लिया था।

मीता की बस जब मानिला पहुंची थी तब रात्रि हो चुकी थी। मीता के मन में एक अपराधबोध था जिसके कारण वह दिन के उजाले में मानिला जाना भी नहीं चाहती थी। मंदिर में पहुंचने पर योगी ने ही दरवाजा़ खोला था। योगी को देखकर मीता किंकर्तव्यविमूढ़ सी खडी़ हो गई थी। योगी कुछ क्षण तक मीता को ऐसे देखता रहा था जैसे वह उससे पूछकर बाजा़र तक गई हो और वहंा से लौटकर आ रही हो। फिर योगी सहज भाव से बोला था, ‘‘अंदर आ जाओ मीता, बाहर बडी़ ठंड है।’’ उसके शब्दों में वही पुराना अपनत्व पाकर मीता उसके कंधे पर सिर रखकर सिसकने लगी थी। जब मीता देर तक अपने आंसू न रोक सकी थी, तो योगी उसे चुप कराते हुए बोला था,‘‘तुम मुझसे दूर गईं ही कहां थीं; ऐसा कोई दिन नहीं आया जब तुम्हें अपने समक्ष बिठाये बिना मैं योगसाधना कर पाया हूं।’’

हेमंत चायवाला मीता के वापस आ जाने से अब फिर मगन रहने लगा है। उसने निश्चय किया है कि वह यह बात किसी को नहीं- मीता को भी नहीं- बतायेगा कि सायं के धुंधलके में उसने अनेक बार योगी को ऊंचे ऊंचे वृक्षों की आड़ में आंसू बहाते देखा है।

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