5 दिसंबर 1975 को जन्मी थी हमारी नायिका....... हाँ शायद नायिका कहना ही ठीक होगा क्योंकि उसके माता पिता ने जो खूबसूरत नाम "राधिका" उसे दिया था उस नाम को उसके माता पिता के अलावा शायद सब भूल चुके थे ।
जब वो जन्मी थी तो सच में अपने नाम राधिका के अनुरूप ही दिखती थी बड़ी बड़ी काली आँखें, छोटी पर तीखी नाक, छोटे घुंघराले काले बाल, बस उसकी रंगत राधा पर न जाकर श्याम पर चली गई थी। यदि कोई चाहता तो बिना गौर किए ही उसके चेहरे पर मासूमियत देख सकता था।
दो भाइयों की इकलौती बहन थी राधिका और सबसे छोटी भी, तो सबका लाड़ प्यार भी उसके हिस्से में ही था। उसकी दादी, बुआ, ताऊ, ताई सब उसकी दबी हुई रंगत का मज़ाक बनाते पर उसके माता पिता और भाइयों पर किसी की बात का कोई फर्क नहीं पड़ा, वे उसे हमेशा से ही अपनी जान से ज्यादा प्यार करते थे।
" मम्मी आज मेरे स्कूल का पहला दिन है मैं आपके और पापा के बिना कैसे रह पाउंगी " मासूमियत के साथ राधिका ने कहा।
" बेटा पहले दिन तो सब परेशान होते हैं पर बाद में बहुत सारे दोस्त बनते हैं, पढ़ते हैं, नयी नयी बातें सीखते हैं ,सब अच्छा लगता है फिर, पता है मेरी बिटिया " राधिका के पिता राम ने कहा ।
" सच में पापा........ फिर तो मैं रोज स्कूल जाउंगी " कहकर राधिका चहकते हुए स्कूल चली गई।
उसकी मासूमियत और खुशी को देख उसकी माँ सिया भी खुशी से फूली नहीं समाती थी।
इसी तरह राधिका को स्कूल जाते जाते एक साल बीत गया और आज उसका और उसके भाइयों का परीक्षा परिणाम था, अब राधिका दूसरी और उसके भाई छठी और सातवीं कक्षा में पहुँच गए थे ।
राधिका अपनी कक्षा में प्रथम आई थी। राम और सिया तो अपनी बेटी की तारीफें करते न थक रहे थे और राधिका के भाई...... उनकी तो खुशी का ठिकाना ही न था।
सिया बरामदे में खड़ी हुई थी और अपनी सास की तरफ देखते हुए अपनी बेटी की कामयाबी पर खुश हो रही थी, खुशी की वजह भी थी क्योंकि राम की माँ, भाई, भाभी कोई भी राधिका को पढ़ाने के पक्ष में न था। एक तो राधिका अपने घर में इकलौती लड़की और वह भी दबे रंग की इसलिए उसे सबसे सिर्फ उपेक्षा ही मिली।
उसकी दादी अक्सर कहा करती " राम इसे इतनो पढ़ा के के करेगो कल को तो वैसे भी ब्याह के पराए घर जानो है फिर वोई चूल्हा जलानो है के कर लेगी पढ़ के "
और राम का भी हमेशा की तरह वही जवाब होता " क्या माँ सा हमारी राधिका थोड़ी न चूल्हा जलाएगी वो तो खूब पढ़ लिखकर अध्यापिका बनेगी "
और राम की माँ चुप रह जाती।
तभी राम की आवाज़ से सिया की तंद्रा टूटी और वह वर्तमान में आ गई, राम अपनी माँ से बात कर रहा था " देख रही हो माँ सा हमारी राधिका पूरी कक्षा में प्रथम आई है "
" हाँ रे छोरे प्रथम तो आई है पर मैं तो अब भी कहूँ हूँ कोई फायदा कोनी इसने पढ़ा के " राम की माँ ने कहा।
" हाँ देवर सा के फायदा आखिर राधिका है तो छोरी ही और म्हारी तरह थारे भी तीन छोरे होते तो थारो भी नाम रोशन करते पर चालो...... के हुओ जो थारे दो छोरे और एक छोरी हैं, भले ही छोरी सासरे चली जावेगी पर थारे दोनों छोरे तो थारो नाम रोशन करेंगे। मैं तो कहूँ हूँ के कर लेगी राधिका पढ़ के और वैसे भी आपणे गाँव मां कोई छोरी सकूल कोनी जावे " अपनी सास के साथ हाँ में हाँ मिलाते हुए राम की भाभी ने कहा।
" भाभी सा आप तो न पढ़ीं तो आप के चाहो हो म्हारी छोरी भी न पढ़े और किसी के इशारों पर चाले जैसे आप माँ सा के इशारों पर चालो हो। कल को पढ़ लिख जावेगी म्हारी छोरी तो अपना कमा तो खावेगी, किसी के मोहताज कोनी रहवेगी । और अगर मैं खुद थाणेदार होके आपणी छोरी ने न पढ़ाऊँ तो के फायदा म्हारी पढ़ाई और नौकरी को "
इस बार साल भर से यह सब चुप चाप सुनने वाले राम ने गुस्से में कहा तो उसकी माँ और भाभी चुप चाप वहाँ से मुँह बनाते हुए चले गए।
इसी तरह राम और सिया अपने घरवालों से लड़ते रहे और राधिका को पढ़ाते रहे और राधिका जो अब आठवीं कक्षा में आ गई थी अपने माता पिता के संघर्ष को समझते हुए पूरी मेहनत करती और हर साल प्रथम आती।
राधिका की दादी ने अपने पाँचो पोतों को पढ़ने शहर भेज दिया था और अब एक बार फिर राधिका की पढ़ाई छुड़वाने के लिए राम पर जोर डाल रही थी पर हमेशा की तरह इस बार भी राम कहाँ मानने वाला था।
आज राधिका के घर में पूजा थी और उसकी दादी ने कह दिया था " इस पूजा को सारो काम राधिका ही करेगी, कम से कम कुछ सीख तो जावे, न तो खाना बनानो जाने, न सिलाई और न ही घर को और कोई काम बस पढ़ाई पढ़ाई करे सारे दिन, म्हारे टापरां ने तो अकल कोनी। सुन लियो न राधिका आज पूजा की सारी तैयारियां थारे को ही करनी हैं।"
राधिका ने भी अपनी दादी की बात का मान रखते हुए हाँ कह दिया। सारी तैयारी अच्छे से हो गई। अभी पूजा खत्म ही हुई थी कि राधिका की दादी अचानक बेहोश हो गई। जब उनको हॉस्पीटल ले गए तो पता चला माइनर हार्ट अटैक था और दवाइयाँ लेकर सब घर आ गए।
राधिका की दादी को देखने गाँव की कुछ महिलाएं आई थी और
राधिका की दादी ने उनको देख कर कहा " म्हारे को पता था ये छोरी शुभ कोनी आज घर में पहली बार काम पे हाथ लगायो और मन्ने बीमार कर दियो।"
" हाँ माँ सा मैं तो शुरू से ही देवर सा से कहती रही इस काली छोरी को इतनी छूट न देवें, जल्दी इसका ब्याह करा देवें, इतनी काली है छोटी थी तब ब्याह हो जातो अब तो न जाने कितनो दहेज लागेगो, ये तो है ही अशुभ पर देवर सा न माने। अब देखो ना इसने पूजा में हाथ लगायो तो भगवान भी रूठ गे और आपने बीमार कर दियो इस काली छोरी की पूजा तो भगवान ने भी चोखी कोनी लागी ।"
" बस करो जीजी मैं कुछ कह नहीं रही तो क्या आप मेरी बेटी से कुछ भी कह लोगी। माँ सा की बीमारी और राधिका की पूजा का कोई संबंध नहीं है और मैं थोड़ी बहुत पढ़ी लिखी तो हूँ न तो अपनी बेटी को क्यों न पढ़ाऊँ.....और रही बात इसके दबे रंग की तो काली माँ को तो दुनिया पूजती है........मेरी बेटी काली है तो उसे क्यों अशुभ समझा जाए।और दहेज देने की नौबत नहीं आएगी, मेरी बेटी इतनी बड़ी बनेगी के लोग खुद मेरी बेटी से अपने बेटों की शादी कराना चाहेंगे। "
" सही कहा सिया ने। खबरदार जो किसी ने मेरी बेटी से फिर से अशुभ कहा या उसके ब्यह की बात करी तो......" राम ने गुस्से में कहा और वह और सिया रोती हुई राधिका को अपने साथ कमरे में ले गए।
" मैं सच में अशुभ हूँ मम्मी पापा आप लोग मेरे साथ मत रहा करो कहीं आपको कुछ....... " कहकर राधिका रोने लगी, उसके मम्मी पापा ने उसे बहुत समझाया पर उसके मन को गहरी चोट पहुंची थी।
कुछ दिन बाद राधिका स्कूल जा रही थी तभी उसे कुछ महिलाओं की आवाज सुनाई दी " वो देखो काली मनहूस सकूल जावे है अपनी दादी ने तो बीमार कर ही दियो अब के सकूल ने गिरावेगी "
यह सब सुनकर एक बार फिर राधिका के मन पर आघात हुआ पर वह मुश्किल से आगे बढ़ गई । अभी कुछ दूर आई ही थी कि गाँव के बच्चे उसे मनहूस मनहूस कहकर चिढ़ाने लगे ।
यह सब अब राधिका की जिंदगी का हिस्सा बन चुका था।हमेशा खुश रहने वाली राधिका अब चुप हो गई थी, स्कूल जाने से कतराने लगी उसके मम्मी पापा ने बहुत समझाया पर वह फिर से संभल न सकी ।
इस सब बेइज्जती को चलते अब एक साल हो चुका था और अब तक राधिका ने घर से निकलना लगभग बंद कर दिया था। आज राधिका की आठवीं कक्षा का परिणाम था और वह बमुश्किल उत्तीर्ण हुई थी। पर उसके मम्मी पापा समझ रहे थे इसमें राधिका की कोई गलती नहीं है यह सब तो लोगों की बातों का ही नतीजा है।
" के हो गया छोरे आज अपनी छोरी को परीक्षा परिणाम कोनी बतावेगो, देख ले कितनी अशुभ है अब तो पढ़ाई भी कोनी साथ देवे। " एक बार फिर राम की माँ ने कटाक्ष किया पर इस बार राधिका ने अपने मम्मी पापा को कुछ भी बोलने के लिए मना कर दिया।
इसी तरह राधिका के तीन साल और काली, मनहूस और अशुभ सुनते सुनते निकल गए और वह नवीं में मुश्किल से उत्तीर्ण हुई और दो बार दसवीं की परीक्षा दी पर दोनों बार वह अनुत्तीर्ण हुई।
हमेशा खुश रहने वाली राधिका अब चुप हो गई थी कभी किसी से कुछ न कहती, न ही ढंग से खाना खाती, न घर से बाहर जाती, सारा दिन बस उदास रहती, रोती रहती। अब उसके मम्मी पापा के समझाने का भी कोई असर न होता।
एक दिन उसकी बुआ आई और राम से बोली " भाई सा मैं के कहूँ हूँ के छोरी का ब्याह करा दो अब सत्रह की हो गी है और सासरे जावेगी तो माहौल बदलेगो और मन भी ठीक हो जावेगो। "
बेटी सही हो जाएगी यह सोचकर राम और सिया भी अपने सपनों का गला घोंटकर राधिका की शादी के लिए मान गए और एक दिन राधिका की बुआ लड़के वालों को लेकर आई।
काफी देर तक बातें हुई पर अंत में लड़के वाले यह कहकर चले गए कि लड़की बहुत काली है और यहाँ आकर हमने यह भी सुना कि वह अशुभ है तो ऐसी लड़की से हम अपने बेटे की शादी नहीं करा सकते।
यह सब सुनकर राधिका बिल्कुल टूट गई।
एक दिन राधिका छत पर कपड़े लाने गई थी और सिया नीचे बैठकर खाना बना रही थी, और राम अखबार पढ़ रहा था, तभी कुछ गिरने की बहुत तेज आवाज आई और जब सभी लोग बाहर गए तो राम और सिया बुत बनकर रह गए......... उनकी लाडली राधिका जमीन पर निष्प्राण पड़ी हुई थी।
इतने पर भी लोगों को चैन न मिला तो कोई उसे पागल कहने लगा, कोई उसपर भूत प्रेत बताने लगा, कोई उसके माता पिता को उसका चरित्र प्रमाणपत्र देने लगा, तो किसी ने कहा " ऐसी काली थी जरूर डायन होगी, कालो जादू करती होगी, वोई उल्टो पाड़ गयो। "
राधिका का अंतिम संस्कार हुआ और राम, सिया और राधिका के दोनों भाई बिलख बिलख कर रो रहे थे।
राम एक थानेदार था इसलिए पुलिस ने भी ज्यादा बात नहीं बढ़ाई और एक सुसाइड केस कहकर बंद कर दिया ताकि राम को ज्यादा परेशानी न हो।
राधिका की मौत के कुछ समय बाद राम और सिया अपने दोनों बेटों को लेकर शहर चले गए ।
" ठाकुर सा हमारी राधिका तो चली गई पर मेरे मन में कई सवाल छोड़ गई । क्या लड़की होना अभिशाप है, क्या घर में कुछ भी गलत हो तो सबकी जिम्मेदार वही होती है, अगर कोई माँ बाप अपनी बेटी को पढ़ाएं तो क्या फायदे या नुकसान के बारे में सोचना चाहिए न कि उसकी आत्मनिर्भरता के बारे में, जब काली माँ की पूजा की जा सकती है तो एक काली लड़की को उपेक्षा क्यों मिलती है और क्यों माँ बाप को दहेज देकर अपनी बेटी की खुशियां खरीदनी पड़ती हैं, क्यों एक लड़की को पढ़ते, आगे बढ़ते समाज नहीं देख सकता? "
कहकर राधिका की माँ शून्य में देखने लगी।
" नहीं सिया, बदलाव तो आएगा, रंगभेद जैसी कुरीतियां भी खत्म होंगी और शुभ अशुभ का अंधविश्वास भी। हम लाएंगे बदलाव याद करो हमारी राधिका ही गाँव की पहली बेटी थी जो स्कूल गई थी और हम अपने बेटों की शादी में भी कोई दहेज नहीं लेंगे क्योंकि जो लोग दहेज लेते हैं वे यह तो सोचते हैं कि हमारा घर बहुत काबिल है इसलिए हमें दहेज मिल रहा है पर यह नहीं सोचते कि उन्होने अपने बेटों को चंद पैसों के लालच में शादी के बाजार में नीलाम किया है.......... हमारी राधिका की रंगत सबने देखी पर उसकी कुशाग्र बुद्धि किसी ने नहीं देखी, उसकी मासूमियत किसी ने नहीं देखी।
नहीं सिया हमारी राधिका ने आत्महत्या नहीं की....... बल्कि उसकी हत्या की है मेरी माँ ने, मेरे भाई भाभी ने, गाँव वालो ने और उनके तानों ने, रंगभेद और अंधविश्वास जैसी कुरीतियों ने। " कहकर राम की आँखों से आँसू गिरने लगे।
कुछ सालों बाद राधिका के भाई की शादी हो गई और बड़े भाई आकाश की एक बेटी।
" आकाश तू खुश तो है न तेरी बेटी हुई है या तू भी बेटा चाहता था " उदास होकर राम ने अपने बेटे से पूछा।
" आप कैसी बात कर रहे हैं पापा आपकी परवरिश ने हमें बेटा बेटी में फर्क करना नहीं सिखाया है। मैं जो राधिका के लिए न कर सका, वो सब कुछ इस राधिका के लिए करूंगा। " आकाश ने कहा तो सबको बहुत खुशी हुई और राम और सिया को अपने बच्चों को दिए हुए संस्कारों पर फक्र हो रहा था।
तो यह थी राधिका की कहानी जो शुभ अशुभ, मनहूसियत और रंगभेद जैसी कुरीतियों की बलि चढ़ गई।