पराया कौन ??? आयुषी सिंह द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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पराया कौन ???

पुष्कर
सुबह 8 बजे

" गुड मॉर्निंग विजय सर...... कैसे हैं? "

"अरे भाई हम तो वैसे ही हैं जैसे रोज़ होते हैं आज जरा ज्यादा खुश हैं बस। "

" सर आप अपने रिटायरमेंट पर खुश हैं....... ऐसा क्यों? "

" नमन, इस शिक्षा विभाग में हमें पैंतीस साल हो गए और इतने सालों में जगह जगह भटकते रहे हैं कभी तुम्हारी आंटी और बच्चों के साथ तो कभी अकेले। उन सबको हमेशा हमसे शिकायत रही कि हमने उन्हें वक्त नहीं दिया, बच्चे तो अपनी अपनी नौकरियों में व्यस्त हैं, कम से कम उर्मी की शिकायत तो दूर होगी। "

" तो चलिए सर आपकी खुशी और आपसे बिछड़ने के हमारे गम में एक पार्टी हो जाए। "

" चलो फिर । "

जयपुर

ट्रिंग ट्रिंग..........

" हैलो "

" वैशाली यार व्हाट इज़ दिस, व्हाइ डिडन्ट यू रिसीव माए कॉल ? "

" लुक राज आए एम नॉट ए हाउसवाइफ लाइक यॉर मदर, मेरे पास इतना खाली समय नहीं होता कि उनकी तरह तुम्हारे फोन का इंतजार करती रहूँ। "

" गुस्सा छोड़ो यार पहले बात तो सुनो तुम्हें पता है दो महीने में फादर्स डे है और आज पापा का रिटायरमेंट है ऐसा करते हैं आज ही पुष्कर चलते हैं और बोल देंगे फादर्स डे पर हम दोनों बिज़ी हैं इसलिए अभी आ गए "

" तुम पागल तो नहीं हो गये आज अचानक उन बुड्ढे बुढ़िया के घर क्यों जाना है एण्ड फादर्स डे, माए फुट "

" पागल हो क्या मैं कौनसा उन बुड्ढे बुढ़िया की सेवा करने जा रहा हूँ..... तुम बहुत पागल हो जानती नहीं हो क्या आज बुड्ढे को रिटायरमेंट पर मोटी रकम मिलेगी और अगर आज नहीं गए तो उसकी लाडली बेटी सुचित्रा और दामाद आके सारे पैसे ले जाएंगे फिर बैठी रहना तुम खाली हाथ ,वैसै भी उनके शहर में रहकर उसने मेरे सारे पैसे हड़प रखे हैं। "

" अच्छा पर तुम पैसे कैसे लोगे । दोनों बहुत चालाक हैं ऐसे ही तुम्हें कुछ नहीं देने वाले। "

" भूलो मत उनके प्यारे पोते पोती कब काम आएंगे। "

" ठीक है मैं विशाल और दिया से बात करती हूँ। बाय। "

जब वैशाली ने नौ साल के विशाल और छः साल की दिया से कहा कि हम दादू और दादी के घर जा रहे हैं और आपकी पढ़ाई के लिए दादू दादी आपको गिफ्ट देंगे पर जब आप उनसे मांगोगे तब तो वे मासूम उसकी बातों में आ गए और उनसे पैसे मांगने के लिए खुशी खुशी मान गए । और पुष्कर चलने के लिए तैयारी करने लगे।

पुष्कर
सुबह 10 बजे सुचित्रा का घर

" अभिमन्यु आज पापा का रिटायरमेंट है और तुमने कितनी सारी तैयारियां कर ली है, पार्टी भी है शाम को पर यह तो बताओ मम्मी पापा को यहाँ लाओगे कैसे ? "

" सुचि वो सब तुम चिंता मत करो पर अभी उन्हें इस बारे में पता भी मत चलने देना वरना अभी मेरे पास पापा का कॉल आ जाएगा कि अभी तुमने इतना सब क्यों किया, इसकी क्या जरूरत थी पर मैं तो उन्हें अपने मम्मी पापा की तरह ही प्यार करता हूँ और पहली बार उनके लिए कुछ करने का मौका मिला है तो एक शानदार पार्टी तो बनती है न। "

" अभी आइ एम सो लकी टू हैव यू। हमारी शादी को एक साल भी नहीं हुआ और तुम मम्मी पापा का इतना ध्यान रखते हो ऐसा लगता है तुम उनके दामाद नहीं बेटे हो। "

" सुचि तुम ऐसे मत बोलो यह तो मेरा फर्ज है और यह तो हम जॉब की वजह से यहाँ रह रहे हैं वरना अगर तुम मेरे मम्मी पापा के साथ रहती तो तुम भी तो उनका ऐसे ही ध्यान रखती न फिर?? "

शाम को अभिमन्यु और सुचित्रा अपने मम्मी पापा को अपने घर ले आते हैं और फिर पार्टी के बाद सुचित्रा और अभी भी विजय कुमार के घर चले जाते हैं ताकि कुछ और देर सब साथ वक्त बिता सकें।

" सुचि बेटा तुमने कभी हमें अकेला नहीं छोड़ा हमेशा मुझे अपनी माँ से ज्यादा प्यार किया है, बड़ी अच्छी किस्मत है मेरी जो तुम्हारी जैसी बेटी मिली और अभी जैसा दामाद जो सिर्फ रिश्ते का दामाद है पर प्यार ऐसे करता है कि बेटा भी नहीं कर सकता। "
कहकर विजय कुमार की आँखों में नमी आ गई।

" पापा आप भी न.......आपने भी तो कभी मुझे रोने तक नहीं दिया फिर मैं क्यों अपने मम्मी पापा को प्यार नहीं करूँ। "

सुचि ने एक बच्चे की तरह मुँह बनाते हुए कहा तो सभी
हँस जाते हैं ।

इतने में राज और वैशाली विशाल और दिया के साथ आते हैं और उनको देखकर सुचित्रा और सभी खुश हो जाते हैं।
राज, विशाल और वैशाली विजय कुमार और उर्मी से आशीर्वाद लेते हैं । सभी बातें करते हैं तब तक सुचित्रा अपने भैया, भाभी और बच्चो के लिए खाना बनाने जाती है।

" पापा आप खुश हैं न आज हम सब यहाँ साथ हैं " राज ने कहा।

" हाँ बेटा मैं बहुत खुश हूं और अब तो मेरा सारा वक्त तुम सब लोगों के लिए ही है। "

" पापा यह छोटा सा उपहार है आपके लिए, फादर्स डे आने वाला है न और तब हम आ नहीं पाएंगे क्योंकि तब मेरी कुछ इंपॉर्टेंट मीटिंग्स हैं। "

" कोई बात नहीं बेटा तुम सब आए यही बहुत है और इस गिफ्ट की क्या जरूरत थी। "

तभी वैशाली किचन में आकर बोलती है " अरे वाह सुचित्रा तुम और अभी तो बहुत देर पहले ही पैसे ले अ....... मेरा मतलब मज़े ले रहे हो "

" हाँ जी भाभी असली मजा तो मम्मी पापा के साथ ही आता है। "
ऐसा नहीं था कि सुचित्रा ने पैसा ठीक से सुना नहीं था बस उसके मम्मी पापा का दिल न टूटे इसलिए अनसुना कर दिया उसे अपने मम्मी पापा के पैसे नहीं बल्कि उनका प्यार चाहिए था।
सुचित्रा अपने भैया भाभी के मन में अपने लिए चल रही
नफरत को जानती थी इसलिए वह अपने पापा से इजाजत लेकर अपने घर लौट गई ताकि बात का बतंगड़ न बन जाए और उसके मम्मी पापा को दुख न पहुंचे कि उनके बच्चो में अब वो बचपन जैसा प्यार नहीं रहा।

अगले दिन विजय कुमार अपने कमरे में उर्मी से बातें करने लगते हैं।

" उर्मी आज कितना अच्छा दिन है न सारे बच्चे हमारे साथ हैं। "

" जी आपने सही कहा अच्छा हुआ कि राज, वैशाली और बच्चे आ गए आज यह मकान घर लग रहा है वरना रोज तो मन भी नहीं लगता है। "

" क्यों अभी और सुचि भी तो रोज आते हैं फिर ऐसा क्यों सोचती हो कि यह मकान है घर नहीं "

" क्योंकि अब सुचि का भी अपना घर है और बेटियाँ तो होती ही पराई हैं सुचि यहाँ रोज आती है यह अच्छा तो नहीं है न पता नहीं लोग क्या क्या कहते होंगे। मैंने बचपन से इन दोनों बच्चों में कोई फर्क नहीं किया पर शादी होने के बाद तो बेटियां अपनी नहीं रहती न तब तो बहू बेटे ही सेवा करते हैं ।"
ऐसा नहीं था कि उर्मी सुचित्रा या राज में कोई फर्क करती थीं बस समाज से डरती थीं कि कहीं कोई बातें न बनाने लगे और सुचित्रा का वैवाहिक जीवन खराब न हो।

" कैसी बातें करती हो तुम भी बेटा बहू और पोते पोती तो अब आए हैं पर हमेशा से तो सुचि ने ही हमारा ध्यान रखा है और वैसे भी........ "

इससे पहले विजय कुमार कुछ और कह पाते तभी उन्हें एक आवाज सुनाई देती है, यह आवाज़ उनके पोते विशाल की थी वह बोला " दादू मम्मा कह रही थीं आप मुझे और दिया को कोई गिफ्ट देने वाले हैं दादू जल्दी दीजिए न आप हमारी पढ़ाई के लिए क्या दे रहे हैं? "

कहकर विशाल तो चुप हो गया पर विजय कुमार अब सब समझ चुके थे कि क्यों राज गिफ्ट लेकर आया, उन्हें याद आया वे बचपन में चूहे पकड़ने के लिए चूहे के पिंजरे में रोटी का एक छोटा सा टुकड़ा लगाते थे और चूहे पिंजरे में फंस जाते थे। इस वक्त उन्हें राज का दिया वह गिफ्ट रोटी का छोटा सा टुकड़ा लग रहा था और अपने आप में उन्हें चूहा नजर आ रहा था। वे समझ गए थे एक बार फिर बेटे बहू का लालच उन्हें उनके पास लाया है न कि उनका प्यार।

" दादू क्या सोच रहे हैं आप, जल्दी गिफ्ट दीजिए न "
विशाल को खुद भी नहीं पता था कि वह क्या कह रहा है। पर उसका मासूम चेहरा देखकर विजय कुमार ने सोचा इसका क्या दोष है और उन्होने राज को बुलाकर दस हजार रुपये देते हुए कहा " ये विशाल और दिया के लिए हैं मेरी तरफ से "

" पर पापा हमें यह सब नहीं चाहिए आप यह सब क्यों कर रहे हैं और वैसे भी पापा आज कल दस हजार रुपये में शहर का खर्चा कहाँ तक चल पाता है "
राज ने कुछ इस तरह से कहा जैसे ये दस हजार रुपये लेकर उसने विजय कुमार पर कोई एहसान किया हो।

इस सब से परे विशाल और दिया तो अपने लिए कुछ और गिफ्ट की उम्मीद करे हुए थे तो दिया ने कहा " दादू हमें ये सब नहीं कपड़े चाहिए " और विजय कुमार बच्चों की फरमाइश पर उन्हें कपड़े भी दिला लाए फिर कुछ उदास होकर अपने कमरे में चले गए।

शाम होते ही वैशाली विजय कुमार के कमरे में आई और कहने लगी " पापा अब हमें चलना चाहिए कल से मुझे भी आॅफिस जोइन करना है, ज्यादा छुट्टियाँ नहीं मिल पाई "

" ठीक है कोई बात नहीं बेटा " अब तक विजय कुमार समझ गए थे कि जो उनके बेटे बहू उनसे लेना चाहते थे वह उनको मिल गया अब यहाँ रुककर क्या होगा।

" अरे ऐसे कैसे जा रहे हो अभी से, कल तो आए ही हो और इतनी जल्दी क्या है छुट्टियाँ बढ़वा लो न वैशाली "
यह उर्मी की आवाज़ थी जो राज और वैशाली के जाने से उदास हो गई थीं और लगभग प्रार्थना भरे स्वर में वैशाली से रुकने के लिए कहने लगीं।
पर विजय कुमार ने उन्हें आँखें दिखा दीं क्योंकि वे एक स्वाभिमानी व्यक्ति थे और उन्हें पसंद नहीं था कि उनकी पत्नी किसी के आगे प्रार्थना करें चाहे वे उनके बच्चे ही क्यों न हो और कारण भी था क्योंकि उनका बेटा, उनकी बहू, उनसे प्यार नहीं करते थे उन्हें तो उनके पैसों से प्यार था।

राज वैशाली विशाल और दिया वापस जयपुर चले गए और पीछे रह गए विजय कुमार और उर्मी, उनकी टूटी हुई उम्मीदें और उनके टूटे हुए दिल।

अगले दिन अपने आॅफिस से लौटते ही सुचित्रा विजय कुमार और उर्मी से मिलने गई ।

" कैसे हो पापा, आज तो आपने एक बार भी फोन नहीं किया और मम्मी कहाँ हैं और भैया भाभी चले गए क्या, पापा मैं कितना बोल रही हूँ और आप चुप चाप बैठे हो बताओ तो क्या हुआ, आप उदास हो न पापा "

" तुम्हारी माँ मंदिर गई है बेटा और हाँ बेटा मुझे पता है तुम्हें इस बारे में सब पता है मैं और तुम्हारी माँ दुखी न हो इसीलिए चुप रहती हो, जानती हो राज और वैशाली यहाँ मुझसे पैसे लेने आए थे और जब मैंने उन्हें पैसे दे दिए तो वो थोड़ी देर में ही चले गए पर तुम्हारी माँ को तो उनके सामने कुछ सही या गलत दिखता ही नहीं है पर इसमें उनका भी क्या दोष आखिर माँ हैं वो तुम दोनों की तो तुम दोनों की परवाह भी बराबर करती है। "

" हाँ पापा आप चिंता मत किया करो मैं तो हमेशा आपके और मम्मी के साथ हूँ, पता नहीं भैया को पैसों के अलावा कुछ क्यों नहीं दिखता है पर आप परेशान मत रहो पापा "

" बेटा मैं परेशान नहीं हूँ और राज मेरा बेटा है तो मैं उसे उतना ही प्यार करता हूँ जितना तुम्हें पर वह मुझसे नहीं मेरे पैसों से प्यार करता है कभी इतना तो सोचता कि अगर अपनी सारी जमा पूँजी उसे दे दूँगा तो मेरा और तुम्हारी माँ का यह बुढ़ापा कैसे कटेगा, उसे तो लगता है जैसे मेरे पास पैसे ही पैसे हैं कभी यहाँ रहकर तो देखता कि हम कैसे अपना गुजारा चला रहे हैं और कभी ऐसा तो नहीं हो पाएगा कि मैं अपना स्वाभिमान उस जैसे लालची के लिए त्याग दूँ, मेरे दरवाजे हमेशा उन सबके लिए खुले हैं पर मैं कभी अपने आपको बोझ बनाकर उनके दर नहीं जाउंगा "

" पापा आप इतनी चिंता मत करो मैं तो आपके साथ ही हूँ न और मुझे आपके आशीर्वाद के अलावा कुछ नहीं चाहिए "
सुचित्रा अपने मम्मी पापा का हमेशा ध्यान रखती और इसी तरह सोलह बीत गए। दो तीन बार राज और वैशाली आए भी थे अपने लालच के साथ पर अब विजय कुमार ने अपने बुढ़ापे और उनके बदले व्यवहार के चलते उन्हें कुछ न दिया और उसके बाद एक बार भी राज और वैशाली नहीं आए।
राज विशाल, दिया और वैशाली, वैशाली के माँ बाप के घर अक्सर जाते पर राज शायद अपने मम्मी पापा को और विशाल और दिया अपने दादी दादा को भूल चुके थे।
अब तक विशाल भी एक प्रतिष्ठित कंपनी में मैनेजर बन चुका था जिसके एमबीए के लिए दो लाख रुपए का खर्च विजय कुमार ने ही दिया था और दिया का ग्रैजुएशन का अंतिम वर्ष चल रहा था।
यहाँ सुचित्रा का भी एक बेटा था अहान जो दसवीं में पढ़ रहा था जहाँ एक तरफ विशाल और दिया अपने मम्मी पापा की बातों में आकर अपने दादी दादा से नफरत करने लगे थे वहीं अहान अपने नाना नानी पर जान छिड़कता था और सारा दिन उनके साथ ही रहता था बस स्कूल के समय स्कूल में रहता और रात को अपने घर सोने जाता बाकी सारा दिन बस विजय कुमार और उर्मी के साथ रहता और उनसे ऐसे प्यार करता जैसे वे ही उसके मम्मी पापा हों और विजय कुमार और उर्मी भी उसे सबसे ज्यादा प्यार करते, उसकी हर फरमाइश पूरी करते इसका सीधा सा कारण बस प्यार के बदले प्यार था।

राज, वैशाली और उनके बच्चे हमेशा सुचित्रा और उसके परिवार से जलते रहे, उसे नीचा दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी, उन्हें जलन थी अहान से कि क्यों वह विजय कुमार और उर्मी के साथ रहता है और उनका प्यार उसे मिलता है, विशाल और दिया को नहीं पर उन्हें कोई यह समझाने वाला न था कि विशाल और दिया भी तो अपने नाना नानी के साथ हमेशा रहे हैं तो अहान कहाँ गलत है, क्या कभी विशाल और दिया ने विजय कुमार और उर्मी की उतनी परवाह की जितनी अहान ने की, तो उनका प्यार भी तो अहान के हिस्से में ही होता।

पुष्कर

" हाँ अहान क्या कर रहे हो "

" मम्मा आप और डैड जल्दी आओ मम्मी ( नानी ) की तबियत खराब है, मैं और पापा उन्हें हॉस्पीटल ले आए हैं बस आप दोनों जल्दी आओ "

" ठीक है हम अभी आते हैं तुम भैया को भी बता दो "

अहान जानता था कि राज और उसके परिवार ने उसके मम्मी पापा , मम्मा और डैड को नीचा दिखाने में कोई कमी नही छोड़ी इसलिए वह नफरत करता था उन सब से पर अपनी मम्मा की बात टाल नहीं सकता था इसलिए फोन कर दिया।

" मामा मम्मी की तबियत खराब है आप आ जाओ "

" मैं कोई पुष्कर में थोडे हूँ ,मैं नहीं आ सकता "
फोन डिसकनेक्ट हो चुका था।

खैर सुचित्रा और अभिमन्यु आए और उर्मी जब तक ठीक न हो गई तब तक उनके पास रहकर उनकी सेवा करते रहे।

पर शायद यह वक्त ही खराब था, अभी उर्मी को ठीक हुए कुछ हफ्ते ही हुए थे कि इतने में विजय कुमार को एक दुर्घटना में काफी चोट आई और उस वक्त घर पर सुचित्रा थी तो उर्मी तुरन्त सुचित्रा के साथ गई और विजय कुमार को हॉस्पीटल ले गयी और फिर घर लेकर आई।
जिस वक्त विजय कुमार को सबसे ज्यादा अपने बेटे की जरूरत थी उस वक्त भी वह उनके पास नहीं था और एक बार फिर अभिमन्यु ने एक बेटे की कमी पूरी करते हुए दिन रात विजय कुमार की सेवा की।
राज को जब एक रिश्तेदार से विजय कुमार की दुर्घटना के बारे मे पता चला तो वह आया यह साबित करने कि वह अपने माता पिता की कितनी परवाह करता है और आते ही वह अपने खर्चों की बात करने लगा पर अपनी दाल न गलती देख एक घंटे में ही वापस लौट गया।

विजय कुमार बैड पर लेटे हुए सोच रहे थे छः भाई बहनों में तीसरे नंबर के थे वे। एक बड़ी बहन की शादी हो चुकी थी और सबसे पहले नौकरी लगने के कारण एक बड़े भाई, दो छोटे भाई और एक छोटी बहन की जिम्मेदारी उन पर ही थी और गाँव में रह रहे अपने माता पिता को भी आर्थिक मदद भेजते थे इसलिए बमुश्किल गुजारा हो पाता था पर फिर भी उन्होने अपने बच्चों को कभी कोई कमी महसूस नहीं होने दी , उनको अच्छी तरह से पढ़ाया और अपने पैरों पर खड़े होने के काबिल बनाया और तो और उन्होने न सिर्फ अपने बच्चों बल्कि बहन भाइयों को भी पढ़ाया व उनकी शादियां करवाई पर आज जब उन्हें जरूरत थी तो सिवाय सुचित्रा के कोई उनके व उर्मी के साथ नही था। उन्हें याद आया एक बार वे और उर्मी राज के घर कुछ दिन रहने गए थे और वहाँ विजय कुमार का ब्लड प्रैशर बढ़ गया था और राज यह बात जानता था पर फिर भी उसने विजय कुमार को डॉक्टर के पास ले जाने के लिए पूछा तक नहीं। ठीक इसी तरह एक बार अपने घर पर उनका बी. पी. बढ़ा था तो सुचित्रा भागी भागी आई और उसी वक्त उन्हें अस्पताल ले गयी, दवा दिलाकर लाई और छोटे से अहान को अभिमन्यु के साथ छोड़कर उसकी परवाह न करते हुए सारी रात अपने पापा के पास बैठी रही थी । कितना फर्क है दोनों में विजय कुमार ने सोचा।
एक महीने बाद विजय कुमार बिल्कुल ठीक हो गए और एक फैसला लिया कि अब से वे कभी किसी के आगे नहीं झुकेंगे चाहे वह उनका बेटा ही क्यों न हो, और यह फैसला सही भी था क्योंकि जिस बेटे ने वक्त पर कभी बूढ़े माँ बाप का हाथ नहीं थामा अब वह उनके लिए क्या कर देता। यह कहने वाले बहुत थे कि पिता ने अपने बेटे के लिए कुछ नहीं किया पर यह कहने वाला कोई नहीं था कि बेटे ने पिता की कब सेवा की।

अब विजय कुमार और उर्मी सुचित्रा, अभिमन्यु और अहान के साथ ही खुश रहने लगे और उन्होने भी कभी विजय कुमार और उर्मी को कभी राज और उसके बच्चों की कमी नहीं महसूस होने दी। इसी तरह कुछ साल और बीत गए और अब अहान कॉलेज में आ चुका था। अहान के काफी दोस्त थे पर उसके बेस्ट फ्रैंड उसके पापा विजय कुमार ही थे हमेशा से। बाजार में कोई भी नयी चीज आती तो विजय कुमार सबसे पहले अहान को लेने को कहते, अहान कुछ भी नयी डिश बनाता तो सबसे पहले अपने पापा को टेस्ट कराता, दोनों में लड़ाई झगड़े भी ऐसे होते जैसे भाई भाई हों पर एक दूसरे से बात किए बिना एक घंटे भी नहीं रह पाते और एक दूसरे को फटाफट मना लेते।

पर शायद किस्मत को कुछ और ही मंजूर था और एक बार अहान, सुचित्रा और अभिमन्यु विजय कुमार और उर्मी के साथ घूमने जयपुर गए और वहीं पर विजय कुमार की तबियत खराब हो गई, नया शहर होने के कारण उन्होंने राज को बुलाकर उन्हें एक अच्छे अस्पताल में भर्ती कराया। एक दिन तो सब ठीक रहा पर अगले दिन वे कोमा में चले गए। इधर उर्मी, अभिमन्यु, सुचित्रा और अहान को कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था वे अपनी नौकरी, अपनी पढ़ाई की परवाह न करते हुए हर वक्त अस्पताल में ही रहते और उन्हें इस बात से कोई फर्क भी नहीं था वे तो बस इतना चाहते थे कि उनके पापा ठीक हो जाएं। वहीं दूसरी तरफ राज के बेटे विशाल की शादी होने वाली थी और उसकी सगाई में कुछ ही समय बचा था तो वह बस कुछ समय अस्पताल में रुकता और बाकी समय अपने बेटे की सगाई की खरीदारी करता रहता । और एक दिन जिंदगी और मौत की जंग में विजय कुमार हार गए और सबको जिंदगी के बीच रास्ते में अकेला छोड़ कर चले गए।
सुचित्रा, अभिमन्यु और अहान के ऊपर तो दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था पर उर्मी की हालत कोई भी नहीं समझ सकता था उनका तो पूरा संसार ही उजड़ चुका था। इस सब से भी राज और उसके परिवार को कोई फर्क नहीं पड़ा बल्कि उसने तो यहाँ तक कह दिया कि मेरे हिस्से के पैसे सुचित्रा हड़प गई और इसीलिए पापा को सदमा लग गया, उनकी मौत की वजह ही सुचित्रा है।

इस हादसे को तीन दिन हो गए और एक तरफ विजय कुमार के तीये की बैठक थी तो वही दूसरी तरफ उनके पोते ने उसी दिन सगाई कर ली।इस सब से उर्मी को गहरा सदमा लगा। इतना सब भी राज को कम न लगा तो अपनी माँ को इतने दुखी हालात में अकेला छोड़ कर चला गया। सुचित्रा ने उर्मी कहा " मम्मी आप अब हमारे साथ चलो यहाँ अकेली मत रहो और हम सब साथ होंगे तो यह दुख का समय भी कट जाएगा। " पर उर्मी सुचित्रा के साथ नहीं गयी और बोलीं " बेटा यहाँ तेरे पापा की यादें हैं मैं उनके सहारे ही जी लूँगी। "
उर्मी तो सुचित्रा के साथ नहीं गयी पर वह, अभिमन्यु और अहान उनके घर हर रोज जाते और ज्यादा से ज्यादा वक्त उनके साथ ही रहते ताकि उन्हें यह न लगे कि वे अकेली हैं।

आज विजय कुमार को इस दुनिया से गए हुए आठ साल हो चुके हैं पर इन आठ सालों में एक बार भी राज को या किसी भी रिश्तेदार को उर्मी और सुचित्रा की याद भी नहीं आई पर अब उर्मी संभल चुकी हैं और उन्होने अभिमन्यु, अहान और सुचित्रा में ही अपनी खुशियां ढूँढ ली हैं और वे भी उन्हें कोई कमी नही होने देते, उन्हें दुनिया की सारी खुशियां देते हैं बस कुछ नहीं दे सकते तो वह है विजय कुमार का साथ ।
आज उर्मी अहान और सभी के लिए खाना बना रही हैं और खाना बनाते हुए सोच रही हैं कि अहान उन्हें अब और ज्यादा प्यार करने लगा है, अभिमन्यु उनकी और ज्यादा सेवा करने लगा है और सुचित्रा, उस पर तो अब उर्मी गर्व करती हैं और जिस समाज की बातों से डरकर उन्होने सुचित्रा को कितनी ही बार समझाया था कि तू मेरी बेटी है और हमेशा मेरी बेटी ही रहेगी, हमारा प्यार कभी कम नहीं होगा पर समाज की नजरों में अब तू पराई हो गई है ,आज सुचित्रा और अभिमन्यु उस समाज की परवाह न करते हुए उनके साथ खड़े हुए हैं और वे जानती हैं कि ये तीनों हमेशा उनके साथ ही खड़े रहेंगे पर आज उन्होने एक बात जरूर सोची कि आखिर पराया कौन जिस बेटी को समाज पराया कर दे वह या वह बेटा जो अपने लालच में माँ बाप को पराया कर दे।
यही सब सोचकर उर्मी मुस्कुराने लगीं शायद उन्हें उनका जवाब मिल गया था।