सुरक्षा या बेड़ियां आयुषी सिंह द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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सुरक्षा या बेड़ियां

“ यह कैसे कपड़े पहन कर जा रही है सुरेखा ? ”
“ माँ मैं यह कपड़े अपनी मर्जी से पहन कर नहीं जा रही, मैं तो हर दिन की तरह आज भी सलवार सूट ही पहनती लेकिन आज कॉलेज में हो रहे कैम्प का ड्रेस कोड ही यह पीली टीशर्ट है। ” सुरेखा ने अपनी माँ से कहा।
“ बेटा ऐसे कपड़े पहनना एक संस्कारी लड़की को शोभा नहीं देता ” सुरेखा की माँ ने कहा।
“ माँ आज इस कैम्प में परफोर्मेंस के आधार पर ही सालाना नंबर दिए जाएंगे, और ड्रेस कोड फॉलो न करने पर हो सकता है मुझे पूरे नंबर न मिलें, यह एक प्रक्रिया है काॅलेज की , जिस तरह से यूनिफार्म कंपल्सरी होती है उसी तरह से यह टीशर्ट पहनना भी कैम्प के नियमों में से एक है ” सुरेखा ने अपनी माँ को पूरी बात समझाते हुए कहा।
“ ठीक है सुरेखा आज चली जा लेकिन इसके बाद मुझे तू ऐसे कपड़ों में नहीं दिखनी चाहिए ” सुरेखा की माँ ने थोड़ा सख्त लहजे में कहा।
यह सुनकर सुरेखा चुपचाप अपने काॅलेज चली गई।

शाम को जब सुरेखा घर आई तो आते ही अपनी माँ के गले लगकर रोने लगी। उसे इस तरह रोता देखकर उसकी माँ भी घबरा गई।
“ क्या हुआ सुरेखा ? ”
“ माँ आज जब मैं काॅलेज से आ रही थी तब दो लड़के मेरे सामने आकर खड़े हो गए और उनमें से एक ने मेरा हाथ पकड़ लिया तब मेरी एक मैडम ने ही मुझे उन लड़कों से बचाया और मुझे घर छोड़कर गईं ” सुरेखा ने रोते रोते ही पूरी बात बताई।
“ मैंने कहा था न तुझसे ऐसे कपड़े मत पहन लेकिन तू नहीं मानी अगर आज तेरी मैडम समय पर न पहुंचती तो पता नहीं क्या अनर्थ हो जाता ” सुरेखा की माँ ने उसपर चिल्लाते हुए कहा।
“ माँ वे दोनों वही लड़के थे जो सलवार सूट पहनने पर भी मेरा पीछा करते थे ” सुरेखा ने धीमी आवाज़ में कहा।
अब सुरेखा की माँ चुप थीं और सुरेखा अपने कमरे में जा चुकी थी।

कुछ समय बाद जब सुरेखा के पिता घर आए तो सुरेखा की माँ ने उन्हें पूरी बात बताते हुए चिंता जताई।
“हमने सुरेखा को बहुत आजादी देकर देख लिया, बहुत पढ़ाई हो गई, वैसे भी यह सुरेखा के कॉलेज का अंतिम वर्ष है, सयानी लड़की का ज्यादा घर से बाहर निकलना ठीक नहीं आखिर इसकी सुरक्षा की बात है। अब एक अच्छा सा लड़का देखकर इसकी शादी कर देते हैं फिर वही सबकुछ संभाल लेगा। ” सुरेखा के पिता ने अपनी पत्नी से कहा।
सुरेखा जो कि यह सब सुन रही थी वह बोल पड़ी “ नहीं पिताजी मुझे अभी शादी नहीं करनी, मैं आगे पढ़ना चाहती हूँ, कुछ बनना चाहती हूँ। बचपन से जैसा आपने और माँ ने कहा, मैंने हमेशा वैसा ही किया। आपने कहा वेस्टर्न कपड़े मत पहन, मैंने अपने पसंदीदा कपड़ों को त्याग दिया, आपने कहा प्राइवेट स्कूल की फीस बहुत है इसलिए सरकारी स्कूल में पढ़, मैंने तब भी कुछ नहीं कहा जबकि भैया हमेशा से ही प्राइवेट स्कूल में पढ़ा है, आपने कहा मुझे आईआईटी कराने के लिए आपके पास पैसे नहीं हैं जबकि आपने भैया का ऐडमिशन डोनेशन देकर कराया है , तब भी मैंने अपना सबसे बड़ा सपना छोड़कर आर्ट्स लिया, आपने कहा स्कूल कॉलेज के अलावा घर से बाहर मत निकल, मैंने अपना घूमने का शौक छोड़ दिया लेकिन अब मैं अपना नौकरी करने का सपना नहीं छोडूंगी पिताजी ”
इतना सुनना था कि सुरेखा के पिता ने उसके गाल पर एक थप्पड़ मार दिया और कहा “ तुझे ज्यादा पढ़ाने का नतीजा यह हुआ कि तू अपने माँ बाप से ही बहस कर रही है। मैंने कह दिया न कल से तू कॉलेज नहीं जाएगी मतलब नहीं जाएगी। ”
यह सुनकर सुरेखा चुपचाप अपने कमरे में चली गई, अपनों के साथ रहकर भी आज कोई उसका अपना न था।

कुछ समय बाद सुरेखा के माता पिता ने अपनी समझ से एक अच्छा लड़का देखकर उससे सुरेखा का रिश्ता तय कर दिया।

राहुल ( सुरेखा का होने वाला पति ) सुरेखा से अक्सर ही फोन पर बात कर लेता था और उससे बातें करके सुरेखा को भी भरोसा होने लगा था कि राहुल उसके आगे पढ़ने के, नौकरी करने के सपने को पूरा करने में उसका साथ देगा।

एक दिन सुरेखा घर पर अकेली थी, उसके माता पिता को किसी काम से बाहर जाना पड़ा था। उस दिन राहुल अपने दो दोस्तों के साथ उसके घर आ गया। सुरेखा को राहुल का दोस्तों के साथ यूँ घर आना, वह भी तब जब घर पर कोई नहीं था, कुछ ठीक नहीं लगा लेकिन यह सोचकर कि राहुल खुले विचारों का है, सुरेखा ने इस बात को नज़रंदाज कर दिया और सबसे बैठने का कहकर वह खुद चाय बनाने लगी कि तभी उसे लगा कोई उसके पीछे खड़ा है, जब उसने पलटकर देखा तो पाया कि राहुल अपने दोनों दोस्तों के साथ खड़ा हुआ है........

शाम को जब सुरेखा के माता पिता घर आए तो ज़मीन पर बेहोश गिरी हुई सुरेखा को देखकर उनका हृदय काँप गया।सुरेखा के माता पिता तुरंत उसे लेकर अस्पताल पहुंचे।

जब सुरेखा को होश आया तो उसने अपने माता पिता से कहा “ सुरक्षा के नाम पर एक लड़की को बेड़ियों में जकड़ने के बाद भी वह सुरक्षित नहीं है, बाहर तो क्या एक लड़की अपने घर पर भी सुरक्षित नहीं है....... देखा न आपने मुझे घर में कैद करने के बाद भी मेरे साथ यह सब हो गया और माँ , पिताजी आज भी मैंने सलवार सूट ही पहना था....... बेटी को सुरक्षा के नाम पर आधुनिक होने से रोकने की जगह, उसकी पढ़ाई छुड़वाने की जगह, बंदी बनाने की जगह, उसे आत्मनिर्भर बनाना चाहिए, लक्ष्मी ही नहीं उसे चंडी के रूप से भी अवगत कराना चाहिए, बेटों को औरतों की इज्ज़त करना सिखाना चाहिए क्योंकि जब तक एक पुरुष न ठान ले, एक औरत कहीं भी सुरक्षित नहीं है....... जिसे आपने मेरा रक्षक समझा था वही भक्षक बन गया....... राहुल और उसके दोस्तों ने....... ” कहकर सुरेखा ने हमेशा हमेशा के लिए अपनी आँखें बंद कर लीं।

सुरेखा तो चली गई, लेकिन पीछे रह गए रोते हुए सुरेखा के माता पिता और सुरक्षा के नाम पर बनाई गईं बेड़ियां जिनमें अब किसी और सुरेखा को जकड़ा जाना था.......

© आयुषी सिंह