एक जिंदगी - दो चाहतें - 41 Dr Vinita Rahurikar द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 41

एक जिंदगी - दो चाहतें

विनीता राहुरीकर

अध्याय-41

शाम को भरत भाई तनु से मिलने आये। पिता को देखकर तनु शरमा गयी। भरत भाई ने तनु को सीने से लगाकर उसका माथा चूम लिया।

''तो इसलिये रसगुल्ले खाने का मन कर रहा था बिटिया का।" वह हँसते हुए बोले।

तभी ड्रायवर गाड़ी में से ढेर सारा सामान लेकर आया। ढेर सारे फूलों के सुंदर-सुंदर बुके, ढेर सारे खिलौने, मिठाई, तनु की पसंदीदा चॉकलेटें। देखते-देखते तनु का कमरा फूलों और खिलौनों से भर गया। प्यारे-प्यारे टेडी बियर, पपी, गुडिय़ा। रात का खाना खाकर और तनु को ढेर सारा प्यार करके भरत भाई घर चले गये। शारदा तनु के पास ही रही।

रात में सोते हुए तनु ने सोनोग्राफी की रिपोर्ट देखी। कोख के अंदर पलती छोटी सी नन्ही सी जान की आकृति। उसके और परम के प्यार का अंश। कितना नर्म सा, नाजुक सा प्यारा सा अहसास था। परम आज और भी ज्यादा अपना, और भी प्यारा, और भी दिल के पास लग रहा था।

तनु का मन किया। अभी परम पास होता, दोनों एक साथ अपने बच्चे का अहसास करते।

काश!

लेकिन क्या करें। कुछ छोटी-छोटी खुशियों की कुरबानियाँ तो देनी ही पड़ती हैं किसी महत्तर उद्देश्य की खातिर। बस दिल में परम से मिलने की एक तेज बेचैनी छा गयी।

उस रात परम की आँखों से नींद कोसों दूर थी। अभी तक भी सबकुछ सपने जैसा लग रहा था। हर दो मिनट बाद उसे लगता कि यह सब सचमुच मे ही सच है कि नहीं। वह फोन उठाकर तनु की रिर्पोट का फोटो देखता हर दो मिनट में। जिस दिन उसने तनु से प्यार का इजहार किया था और उसने हाँ कहा था उस रात भी उसकी ठीक यही हालत हुई थी। बार बार उसे सब सपने जैसा लग रहा था और उसे यकीन नहीं हो रहा था कि तनु ने सच में हाँ कह दिया है। जिंदगी में पहली बार ऐसा हुआ था कि उसने जो चाहा वह उसे मिल गया था। आज भी उसके दिल की हालत ठीक वैसी ही हो रही थी। उसके और तनु के प्यार का अंश।

उनका अपना बच्चा।

तनु आज और भी ज्यादा अपनी, और ज्यादा प्यारी और दिल के और भी ज्यादा करीब लग रही थी।

परम का मन किया। अभी वह तनु के पास होता तो दोनों एक साथ अपने बच्चे का अहसास करते।

काश!

लेकिन क्या करें। किसी बड़े उद्देश्य की खातिर छोटी-छोटी खुशियों की कुरबानी तो देनी ही पड़ती है। बस दिल में तनु से मिलने की एक तेज बेचैनी छा गयी।

परम सोच रहा था कैसा महसूस कर रही होगी तनु अभी।

और हजारों मील दूर अपने पलंग पर लेटी तनु सोच रही थी कि कैसा महसूस कर रहा होगा परम अभी। क्या सोच रहा होगा।

उसने अपने पिता द्वारा लाए सारे खिलौने देखे फिर एक गुडिय़ा को हाथ में उठाया और अपने सीने से लगाकर सो गयी।

दूसरे दिन की सुबह तनु के जीवन की नई सुबह थी। उठते ही अंदर से एक नया अहसास जाग उठा। हर कदम पर पहले अपने अंदर पलती एक जान का ख्याल आ जाता। सुबह छ: बजे से ही परम के फोन आने शुरू हो गये।

''क्या रहा है मेरा बच्चा"

''भूख तो नहीं लगी?"

''जल्दी से ब्रेकफास्ट कर लो।"

''दवाईयाँ ली?"

''ऑफिस नहीं जाना अब। रेस्ट करो।"

दुनिया भर की नसीहतें। तनु को हँसी आ जाती।

''जा बुच्ची तुझे हँसी आ रही है और यहाँ मेरा दिल जल रहा है कि मैं वहाँ क्यों नहीं हूँ। तू एक महीना पहले पे्रगनेन्ट नहीं हो सकती थी ताकि ये सब मेरे सामने होता।" परम कभी उलाहना देता।

''अरे तो इसमें मैं क्या करूँ। ये तो भगवान की मर्जी जब होना था तभी हुआ।" तनु जवाब देती।

''तु कुछ मत कर बस अपना और मेरे बच्चे का ध्यान रख।" तब परम प्यार से कहता।

रोज सुबह नहा धोकर रेडी होकर जब परम ऑफिस जाता तो भगवान के आगे अगरबत्ती लगाता, तनु के फोटो की मांग में सिंदूर लगाता और अपने बच्चे के स्वास्थ्य की प्रार्थना करता।

दो-तीन दिन बाद शारदा ने तनु को भरत विला चलने को कहा।

''पर क्यों माँ। दयाबेन है तो मेरे साथ। मैं यहीं रहूँगी।" तनु ने कहा।

''नहीं बेटा ऐसी हालत में यहाँ रहना ठीक नहीं। अभी वहाँ चलो। जब दामाद जी आ जायें तो फिर आ जाना।" शारदा ने समझाया।

''माँ ठीक कहती हैं बिटिया। अभी तुम्हारा वहीं रहना ठीक है। दयाबेन ने भी कहा।

तनु ने मान लिया। दयाबेन और शारदा के साथ वह ऊपर अपने कमरे में गयी। तनु बताती गयी और वे दोनों उसका सामान पैक करती गयीं।

नीचे आकर तनु ने अपने पिता के लाए सारे खिलौने भी गाड़ी में रखवा लिये। घर को ताला लगाते हुए तनु को बहुत बुरा लग रहा था।

तनु सुबह-सुबह ही भरत विला पहुँच गयी। यूँ तो घर के हर कमरे की रोज ही अच्छे से साफ-सफाई होती थी लेकिन दो दिन पहले एहतियात के तौर पर शारदा ने भरत भाई को बता दिया था कि तनु उधर रहने आयेगी तो उसका कमरा अपनी देख-रेख में अच्छे से साफ करवा लें।

जब शारदा और दयाबेन के साथ तनु अपने कमरे में पहुँची तो अपने कमरे को देखती रह गयी। कमरे में पलंग के पास ही एक नया सुुंदर सा पालना रखा था। ढेर सारे खिलौने तो थे ही। बच्चे का सामान रखने के लिए नयी अलमारी आ गयी थी।

''अरे यह क्या इतने पहले से यह सब लाकर नहीं रखते। अभी बहुत समय है बच्चे के आने में।" शारदा ने कमरे में पाँव रखते ही कहा।

''अरे क्यों नहीं लाकर रखते। कभी भी किसी भी चीज की जरूरत पड़ सकती है।" भरत भाई बिगड़कर बोले।

''बच्चा अभी पेट में आया है दुनिया में नहीं।" शारदा हँसते हुए बोली।

''तो क्या हुआ भरत भाई का नवासा है उसके पास सब होना चाहिए। मैं नाना बनने वाला हूँ तुम्हें क्या पता।" भरत भाई बोले।

''हाँ सही बात है मुझे क्या पता। सब कुछ तो आपको ही पता है। मैं तो कुछ बन ही नहीं रही।" शारदा मुँह बिगाड़कर बोली।

''तुम चाहे जो बन रही हो मगर नाना तो नहीं बन रही हो ना, बस।" भरत भाई बोले।

शारदा, दयाबेन और तनु तीनों ही हँस पड़ी भरत भाई की बेसब्री देखकर। तनु का सारा सामान उसकी अलमारी में जमा दिया गया। शारदा ने उसे आराम करनेे को कहा। तनु पलंग पर लेट गयी। भरत भाई कुछ देर उसके पास बैठे रहे फिर शाम को जल्दी आने का कहकर ऑफिस चले गये।

आठ दस दिन परम के बिलकुल आराम से निकल गये। वह चैन से दिन में कई बार देर-देर तक तनु से बातें करता था। घड़ी के कांटे आगे सरकते थे और दिन आगे बढ़ता। सुबह से दोपहर होती, दोपहर से शाम, शाम से रात होती और रात बीतती सुबह होती। कैलेण्डर पर एक-एक करके तारीखें आगे बढ़ रही थी और परम के छुट्टी पर जाने के दिन करीब आते जा रहे थे। तनु के मिलने के बाद से परम को हर बार ही छुट्टी पर जाने की जल्दि रहती थी लेकिन इस बार तो उसे बहुत ही ज्यादा बेचैनी हो रही थी। एक-एक दिन इतना लम्बा लग रहा था जैसे पहले कभी नहीं लगा था।

इन दिनों तुन को रात में देर तक नींद नहीं आती थी। दिन तो फिर भी कट जाते थे लेकिन रात भर वह बेचैनी से करवटें बदलती रहती। परम ने अपनी रात की ड्यूटी लगवा ली वह रोज रात को ग्यारह बजे से ढाई बजे तक या तीन बजे तक ड्यूटी करता। और पूरी ड्यूटी के दौरान तनु से बातें करता रहता। वह रोज तनु का फोटो व्हाट्सअप पर मंगवाता और देखता कि आज वह कैसी लग रही है। उससे रोज पूछता कि आज वह कैसा महसूस कर रही है। दवाइयाँ ली कि नहीं। डॉक्टर के यहाँ कब जाना है। अगली सोनोग्राफी कब है।

बेटी होगी तो ऐसा करूँगा।

बेटा होगा तो ऐसा करूँगा।

हर दस पन्द्रह मिनट पर वह सीटी बजाकर अगली पोस्ट पर अपने इधर बस कुछ ठीक होने की सूचना देता और ऊपर से जवाब आ जाता तो फिर तनु से बातें करने लगता।

तीन बजे परम रूम में आता। हाथ-मुँह धोता, कपड़े बदलता औैर मुश्किल से डेढ़-दो घण्टा सो पाता कि सुबह उठकर रेडी होकर ऑफिस जाने का समय हो जाता। फिर सारे दिन काम की भागादौड़ी। अर्जुन उसकी दीवानगी देखकर उस पर हँसता लेकिन मन ही मन तनु के प्रति उसके गहरे प्यार और समर्पण की सराहना भी करता। कभी शाम को खाली समय में परम अर्जुन को तनु के बारे में ढेर सारी बातें बताता और अर्जुन से उसके और नकुल के बचपन के किस्से सुनता।

दो-तीन एनकाउन्टरों में मिलिटेंट्स के मारे जाने के बाद से पूरे सेक्टर में एक खामोशी सी छायी हुई थी। शायद उस इलाके में नकुल मानसिंग राठौर के छोटे भाई अर्जुन मानसिंग राठौर के होने की वजह से भी ये हो सकता है।

लेकिन परम और अर्जुन के दिलों में हमेशा जोरदार खटका लगा रहता। ये खामोशी और शांती किसी जोरदार धमाके के पहले की शांती हो सकती है। हो सकता है परम और अर्जुन के खिलाफ कहीं बहुत तगड़ी मोर्चाबंदी की तैयारी चल रही हो। लम्बी शांती के बाद कभी अचानक से जबरदस्त हमले से सामना करना पड़े।

परम अपनी तरफ से पूरे समय चौकन्ना रहता। अपने सोर्सेस से आस-पास की सारी गतिविधियों की खबरें लेता रहता। अपने सिक्योरिटी नेटवर्क को हमेशा अपडेट रखता। अर्जुन को कभी किसी काम से अकेला नहीं भेजता। उसके साथ हमेशा चार-छह बन्दे भेजता। अर्जुन हँसता कि उसे किसी की सुरक्षा की आवश्यकता नहीं है वह स्वयं अपनी रक्षा करने में हर तरह से सक्षम है लेकिन परम उसकी एक नहीं सुनता। वह उसकी सुरक्षा और अपनी तसल्ली के लिये उसके साथ हमेशा बुलेटप्रुफ गाड़ी और कुछ जवानों को भेजता।

लेकिन पूरा महीना शांती से गुजर गया। परम की छुट्टी सेंक्शन हो गयी थी। छुट्टी सेंक्शन होने के बाद उसकी बेचैनी और ज्यादा बढ़ गयी थी। अब तो दिन और नहीं कटता था। जाने से पाँच दिन पहले ही परम किसी काम से ऊपर हेडक्वार्टर पर गया था तो तभी अपना इंटरव्यू करवा आया था कि दुबारा न आना पड़े। जैसे-तैसे चार दिन दिन और कटे और परम अपना सामान बंाध कर जम्मू के लिये निकलने को तैयार हो गया। अर्जुन भी किसी काम से जम्मू जा रहा था। जम्मू तक दोनों का साथ हो गया तो सफर मजे में कट गया। जम्मू हेडक्वार्टर में रिपोर्टिंग करके परम ने अर्जुन से विदा ली और अजमेर जाने के लिये रेल्वे स्टेशन चला आया। ट्रेन आने में पन्द्रह मिनट थे। अब एक-एक मिनट भी परम को जानलेवा लग रहा था। अभी भी तनु से मिल पाने में दो दिन थे।

जम्मू से अजमेर।

अजमेर से अहमदाबाद।

रात साढ़े ग्यारह बजे परम अहमदाबाद बस स्टैण्ड पर पहुँचा भरत भाई ड्रायवर के साथ खुद आये थे उसे लेने। परम ने उन्हे देखते ही उनके पैर छुए।

''जीते रहो बेटा! बहुत-बहुत बधाई हो।" भरत भाई ने उसे गले लगाते हुए कहा।

''जी आपको भी पापा।" परम ने शरमाते हुए कहा।

दोनों कार में बैठ गये। ड्रायवर कार घर की ओर ड्राईव करने लगा। एक-एक मोड़ पर परम का दिल रोमांच और खुशी से धड़कने लगता।

बस अब कुछ ही मिनट और।

और वह तनु के सामने होगा।

उसके रोम-रोम से खुशी छलक रही थी। भरत भाई उससे बातें कर रहे थे। वह ऊपर से अपने आपको संयत और सामान्य बनाए रखने की कोशिश करते हुए उनसे बातें कर रहा था लेकिन अंदर से उसका दिल बड़े जोरों से धड़क रहा था।

शहर की कई सारी सड़कों को पार करते हुए आखीर में कार शानदार भरत विला के आगे रूकी। परम का दिल रोमांच से भर आया। तनु और शारदा दरवाजे पर ही आ गयी थी कार की आवाज सुनकर। परम और भरत भाई कार से उतरे। ड्रयवर कार गैराज में ले गया। परम ने एक उड़ती नजर तनु पर डाली। भरत भाई और शारदा के सामने वह तनु को भरपूर नजर से देख भी तो नहीं सकता था। घर के अंदर आते ही उसने शारदा के पैर छुए।

"जीते रहो बेटा, खुश रहो। तमे बहुत-बहुत बधाई छे।" शारदा ने उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा।

"आपको भी माँ।" परम ने शरमाते हुए कहा।

दो मिनट बैठकर परम ने बातें की फिर नहाने चला गया। नौकर उसका सामान कमरे में रख आया। पाँच-दस मिनट में ही परम नहा-धोकर फ्रेश होकर आ गया। उसका खाना डायनिंग टेबल पर लग चुका था। बाकी लोगों का खाना हो चुका था। परम भरत भाई और शारदा से बातें करते हुए खाना खाता रहा। रात बहुत हो चुकी थी भूख तो उसे वैसे भी ज्यादा नहीं थी। उसने जल्दी से खाना खत्म किया। शारदा और भरत भाई अपने कमरे में चले गये। परम और तनु अपने कमरे में आ गये।

कमरे में आते ही परम ने तनु का चेहरा अपने दोनों हाथों में थामकर उसका माथा चूम लिया।

''मेरा सोना।"

दो मिनट तक वह उसे एकटक देखता रहा। उसका प्यारा चेहरा देखकर परम की पिछले तीन महीनों की सारी थकान दूर हो गयी। सारा तनाव खत्म हो गया।

जिंदगी एक बार फिर से प्यार भरी थी, खुशनुमा थी।

तनु के साथ।

तनु को पाँच मिनट तक सीने से लगाकर आँखें बंद करके खड़ा रहा, फिर उसने कमरे में नजर दौड़ाई-

''ओहो साहबजादे के लिए इतना कुछ आ गया है।" परम कमरे में घूम-घूम कर पालने को, हर एक खिलौने को कौतुहल से देखता रहा।

''कैसी है मेरी जान?" परम ने तनु को पलंग पर बिठा कर उसके पास बैठते हुए पुछा।

''मैं ठीक हूँ।" तनु ने अपना सिर परम के सीने पर रखते हुए कहा।

परम उसके बालों में हाथ फेरने लग गया। देर रात तक दोनों बातें करते रहे। दो-ढाई बजे तनु को नींद लग गयी। परम उसके सिर पर हाथ फेरते हुए उसे देखता रहा।

तनु पहले भी बहुत खूबसूरत थी लेकिन आज वो परम को और भी ज्यादा सुंदर लग रही थी। तनु का रंग और ज्यादा निखर आया था। चेहरा भरा-भरा सा और भी प्यारा हो गया था। चेहरे पर एक नयी चमक, रौनक आ गयी थी। देर रात तक परम कभी तनु को देखता, कभी पालने को और कभी खिलौंनों को, फिर कल्पना में खो जाता -

कुछ महीनों बाद उसके और तनु के बीच एक छोटी-सी नन्ही सी जान भी होगी।

परम को अचानक सिगरेट पीने की बेतरह इच्छा होने लगी। उसने उठकर अपन बेग में से सिगरेट का पैकेट और लाईटर निकाला लेकिन तभी उसका ध्यान तनु पर गया। परम के हाथ ठिठक गये।

नहीं पहले की बात अलग थी अब ऐसी हालत में वह तनु के सामने सिगरेट नहीं पियेगा। धुँए से उसको नुकसान होगा। उसने सिगरेट का पैकेट वापस बैग के अंदर रख दिया। परम के होंठों पर एक प्यारी सी मुस्कुराहट छा गयी। किसी का प्यार इंसान को कितना बदल देता है। कितना जिम्मेदार बना देता है जिस परम को तनु को मना करना पड़ता था सिगरेट पीने से आज वही परम तनु की खातिर सिगरेट से परहेज कर रहा है। परम फिर से आकर पलंग पर लेट गया।

सुबह के साढ़े चार बजे जाकर परम को नींद आयी तो वह देर तक सोता रहा। जब उसकी नींद खुली नौ बज चुके थे। वह हडबडाकर उठा। तनु कमरे में नहीं थी। परम फटाफट उठा और वॉशरूम में घुस गया। पंद्रह मिनट में ही वह नहाकर रेडी होकर बाहर अया। डायनिंग टेबल पर भरत देसाई ब्रेकफास्ट के लिए उसका इंतजार कर रहे थे। परम उनके पास वाली कुर्सि पर बैठ गया। सामने तनु और शारदा बैठे थे। नौकरों ने टेबल पर नाश्ता लगा दिया। नाश्ते की टेबल पर अनौपचारिक बातें चलती रही। परम उसी दिन अपने घर जाना चाहता था। लेकिन भरत भाई ने आग्रह किया कि दो-एक दिन यहीं रह जाओं तो परम मना नहीं कर सका।

ब्रेकफास्ट करके भरत भाई ऑफिस चले गये तो परम तनु और शारदा के साथ बातें करने लगा। शारदा ने बताया कि परम के चाचा-चाची कई बार आकर तनु से मिल गये है। यह भी बताया कि दूसरे दिन तनु का अल्ट्रासाउण्ड होना है। परम ने कहा कि वह ले आयेगा तनु को डॉक्टर के पास।

फिर परम और तनु बाहर बगीचे में झूले पर बैठ कर बातें करने लगे। ग्यारह बजे तनु की मामी का फोन आया। जब उनके द्वारा आशीष को पता चला कि उसके परम जीजू अहमदाबाद आ गये है तो वह जिद करने लगा कि उनसे मिलने जाना है। अभी और इसी वक्त। बड़ी मुश्किल से उसे समझाया कि जीजू अभी थके हुए है उनसे मिलने बाद में जायेगें। तब उसने देर तक परम से फोन पर बात करने के बाद ही पीछा छोड़ा।

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