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एक जिंदगी - दो चाहतें - 40

एक जिंदगी - दो चाहतें

विनीता राहुरीकर

अध्याय-40

शाम को घर जाते हुए तनु एक होम्योपैथिक डॉक्टर को दिखाकर और दवाईयाँ लेकर घर आई। परम ने दिन भर में न जाने कितने फोन लगाकर उसे बार-बार ताकीद की थी कि वो डॉक्टर को दिखाए बिना शाम को घर में नही जायेगी। उसकी तसल्ली के लिए तनु डॉक्टर को दिखा आयी।

परम रोज सुबह शाम उसे दवाईयाँ लेने की याद दिलाता रहता। तनु समय पर दवाईयाँ ले लेती लेकिन उसके सिर का भारीपन और थकान दूर नहीं हुई। पीठ भी दर्द करती रहती। एक दिन तो तनु ऑफिस भी नहीं जा पायी उसे दिन भर सुस्ति और नींद आती रही। कभी उसे भूख ही नहीं लगती तो कभी अचानक भूख के मारे पेट में गड्ढा सा पडऩे लगता। एक दिन दयाबेन की जरा जल्दी नींद खुल गयी तो वो उठकर यूं ही तनु को देखने उसके कमरे मेें चली गई। देखा तो तनु कमरे में नही थी। दयाबेन ने बाथरूम में देखा, वहाँ भी नहीं थी। गैलरी का दरवाजा अंदर से बंद था तो वहाँ भी नहीं होगी। टीवी लॉन्ज, स्टडी कहीं भी नहीं थी। दयाबेन घबरा गयी। सुबह के सवा पाँच बजे थे। बाहर अंधेरा ही था अभी। अंधेरे मे गयी भी तो कहाँ होगी दयाबेन जल्दी से नीचे गयी। देखा तो तनु किचिन में कुछ बना रही थी।

''इतनी सुबह क्या कर रही हो किचिन में?" दयाबेन ने आश्चर्य से पूछा।

''मुझे भूख लगी थी। पोहा खाने का मन कर रहा था।" तनु ने जवाब दिया।

''हे भगवान।" दयाबेन ने अपनाा माथा धर लिया। ''तुम जाओ बाहर बैठो में चाय पोहा बनाकर लाती हूँ।"

तनु जाकर डायनिंग चेयर पर बैठ गयी।

प्यार, गोभी, आलूू सब तनु काट ही चुकी थी। दयाबेन ने पाँच मिनिट में ही पोहा बनाकर तनु को दिया और जब तक वो पोहा खा पाती तब तक वो गरमा गरम चाय बनाकर ले आयी।

जब तनु पोहा और चाय खत्म कर चुकी थी तब तक सुबह के छ: बज चुके थे। दयाबेन ने उससे जाकर थोड़ी देर सोने को कहा। तनु नीचे वाले कमरे में ही सो गयी और पलंग पर लेटते ही उसे गहरी नींद आ गयी।

दयाबेन थोड़ी देर उसके पास बैठकर उसके सिर पर हाथ फेरती रही। फिर उठकर बाहर आ गयी।

सात बजे दयाबेन ने शारदा को फोन लगाकर तनु के लिए लेडी डॉक्टर से अपाईंटमेंट लेकर सुबह ही उसे चेकअप के लिये ले जाने को कहा। ''नहीं-नहीं दस पन्द्रह दिन हो गये है। उसके सारे लक्षण साफ है। देर करना ठीक नहीं है। मैं शतप्रतिशत कह सकती हूँ फिर भी चेकअप करवाना जरूरी है। और फिर आजकल में ही उसे यहाँ से वापिस ले चलिये। ठीक है। अभी डॉक्टर से अपाईंटमेंट लेकर रख लीजिए और ड्रायवर को साथ लेकर यहाँ आ जाईये हाँ-हाँ अभी ठीक है। पोहा खाकर और चाय पीकर अभी सोई है।" दयाबेन ने सात बजे शारदा को फोन लगाया।

साढ़े नौ बजे तनु की नींद खुली तो शारदा उसके सिरहाने बैठी उसके बालों में हाथ फेर रही थी और दयाबेन पलंग के दूसरी और बैठी थी।

''अरे माँ तुम कब आयी।" तनु सुबह-सुबह शारदा को अपने घर पर देखकर चौंक गयी।

''बस अभी आयी हूँ। तेरी तबीयत कैसी है?" शारदा ने प्यार से पूछा।

''ठीक है माँ। मुझे कुछ नहीं हुआ।" तनु शारदा की गोद में सिर रखकर बोली।

''ऐसे ही तुझे देखने का मन किया तो चली आयी। चल नहा-धोकर तैयार हो जा डॉक्टर के पास चलते है। एपाईंटमेंट लेकर रखा है।" शारदा ने कहा।

''दिखाकर तो आयी हूँ माँ दवाईयाँ भी ले रही हूँ। अब क्या जरूरत है।" तनु आलस से बोली।

''जरूरत है बिटिया चल ग्यारह बजे का टाईम है। पहुँचने में भी समय लगेगा। चल तैयार हो जा।" शारदा ने दयाबेन की ओर मुस्कुराकर देखा और तनु को उठाया।

तनु उठकर तैयार होने चली गयी। जब तक वह तैयार होकर आई तब तक दयाबेन ने उसके लिए कुछ खाने-पीने का सामान रख लिया था साथ में और पानी की बोतल। सवा दस बजे तनु ने घर में ताला लगाया और तीनों ड्रायवर के साथ क्लीनिक की ओर चल दी। ठीक ग्यारह बजे दयाबेन और शारदा के साथ तनु डॉक्टर के केबिन के अंदर थी। डॉक्टर ने तनु से कुछ सवाल पूछे और मुस्कुराकर शारदा और दयाबेन की ओर देखा। दयाबेन हाथ जोड़े लगातार भगवान से प्रार्थना कर रही थी।

डॉक्टर तनु को अंदर वाले कमरे में ले गयी अल्ट्रासाउण्ड के लिये। तनु के फोन पर परम का कॉल आया। शारदा ने फोन रिसीव करके कहा कि थोड़ी देर बाद लगाती हूँ। तनु के फोन पर शारदा की आवाज सुनकर वो भी इस समय परम घबरा गया। तनु ऑफिस नहीं गयी क्या। शारदा इस समय तनु के साथ कैसे है। तनु कहाँ है। सब ठीक तो है।

शारदा ने उसे कहा कि सब ठीक है और थोड़ी ही देर में वह तनु से बात करवायेगी। लेकिन परम को चैन कहाँ था वह हर दो मिनिट में फोन लगा रहा था। शारदा को हँसी आ गयी। परम मन ही मन जल भुन कर चिढ़ गया।

''यहाँ मेरी जान सांसत में पड़ी है और इन्हे हँसी आ रही है।" उसने चिढ़कर फोन रख दिया। पन्द्रह मिनट बाद ही डॉक्टर बाहर आयी।

''बधाई हो। सब ठीक-ठाक है। छ: हफ्ते हो चुके हैं।" डॉक्टर ने शारदा को बधाई दी" पाँच मिनट में ही मैं अपको सोनोग्राफी की भी रिपोर्ट दे देती हूँ।"

दयाबेन ने शारदा की ओर देखा फिर हाथ जोड़कर भगवान को प्रणाम किया ''देखा मैंने कहा था न इसके लक्षण बिलकुल स्पष्ट हैं।"

तभी तनु बाहर आयी। उसका चेहरा शरम से लाल हो गया था

''ओह मेरी बच्ची।" शारदा ने उठकर उसे गले लगा लिया।

तनु शारदा के पास वाली कुर्सी पर बैठ गयी।

''सीढिय़ाँ नही चढऩा-उतरना है अभी। ड्रायविंग नहीं करनी है। खाने-पीने का खास ध्यान रखें...।" डॉक्टन तनु और शारदा को लम्बी-चौड़ी हिदायतें दे रही थीं। फिर उसने कुछ दवाइयाँ लिखकर और रिपोर्ट शारदा को दे दी। शारदा और तनु ने समझ लिया कि दवाइयाँ कैसी और कब लेनी हैं। फिर डॉक्टर से विदा लेकर वे घर आ गये।

परम के तब तक पाँच-छह फोन आ गये। तनु ने रिसीव नहीं किये। अब कार में ड्रायवर, दयाबेन और माँ के साथ बैठकर वह परम से क्या बात करे।

घर आकर शारदा ने उसे नीचे वाले कमरे में ही आराम करने को कहा और खुद दयाबेन के साथ बाहर आ गयीं ताकि तनु परम से बात कर सके।

तनु पलंग पर लेटी ही थी कि परम का फोन आया। तनु को एक अजीब सा अहसास हुआ। आज तक परम उसका पे्रमी था, पति था और अब...

अब उसके बच्चे का पिता भी है। एक और नया रिश्ता एक और नयी डोर जुड़ गयी थी आज उसके और परम के बीच।

''हेलो।" तनु ने कहा।

''तनु तुम कहाँ हो? मायड़ा मैं कब से फोन कर रहा हूँ। उठा ही नहीं रही हो तुम। इसके पहले मम्मी ने फोन उठाया था। आज इस समय मम्मी तुम्हारे साथ कैसे हैं।" परम के स्वर में व्यंग्रता थी।

''हाँ मैं थोड़ा मम्मी के साथ बाहर गयी थी।" तनु ने जवाब दिया।

''कहाँ गयी थीं? और अभी कहाँ हो? तुम्हारा फोन मम्मी के पास क्यों था?" परम ने एक के बाद एक कई सवाल कर दिये।

''अभी मैं घर पर हूँ जी। मैं डॉक्टर के पास अंदर थी इसलिये मेरा फोन मम्मी के पास था।" तनु प्यार से बोली।

''तू आज फिर डॉक्टर के पास गयी थी? तुमने मुझे बताया भी नहीं तनु प्लीज मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है। तुझे आखिर हुआ क्या है जो आज मम्मी आकर डॉक्टर के यहाँ ले गयी थी। मुझे बता नहीं तो टेंशन से मेरा सिर फट जायेगा।" परम बेचैनी से बोला।

''हाँ कुछ तो हुआ है जी।"

''अरे पर हुआ क्या है।"

''उम्र भर के लिये है।"

''अरे मेरा बीपी मत बढ़ा तू। प्लीज बता। तुझे पता है ना कि तुझे इतनी सी भी तकलीफ में नहीं देख सकता मैं।"

''नहीं देख सकते तो दी क्यों?"

''क्या? मैंने क्या तकलीफ दी?"

''आपने ही तो दी। सब आपकी ही वजह से हुआ है। अब सारी उम्र...।"

''ऐ मेरी जान! मेरे सब्र का इंम्तिहान मत ले और मुझे बता प्लीज।" परम गिड़गिड़ाया।

''मेजर साहब।" तनु बहुत ज्यादा लाड़ से बोली ''कोई तकलीफ नहीं जी आपने तो मुझे जिंदगी की दूसरी सबसे बड़ी खुशी दी है।"

''क्या?" परम आश्चर्य से बोला।

''हाँ जी आप बाप बनने वाले हो और मैं माँ। हमारे घर हमारे प्यार की निशानी आने वाली है।" तनु ने बताया।

''ऐ मेरी जान ऽऽऽऽ।" परम खुशी से किलक कर बोला ''सच"

''हाँ जी बस दयाबेन को शक हो गया था तो आज सुबह उन्होंने फोन पर मम्मी को बताया और तुरंत मुझे डॉक्टर के यहाँ ले गयी। बस अभी अल्ट्रासाउण्ड करवाकर पक्का हुआ है।" तनु ने अब पूरी बातें विस्तार से बताईं।

''ओह मेरा बच्चा, मेरे दो-दो बच्चे, मेरा सोना।" खुशी के मारे परम का गला भर्रा गया। उसे अफसोस हो रहा था कि अभी वह इन पलों में तनु के साथ नहीं है। ढेर सारे इंस्ट्रक्शन दे डाले, यह नहीं करना, वो नहीं करना, ऐसे मत चलना बाथरूम में संभल कर जाना। खुशी के मारे उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या कहे क्या करे। बहुत देर तक बात करने के बाद वह बोला-

''ऐ तनु अपने फोटो भेज ना तुझे देखने को बहुत मन कर रहा है रे।"

तनु ने व्हाट्स अप पर अपने फोटो भेज दिये। उधर से परम ने भी अपना एक फोटो भेजा। खुशी से उसकी आँखें भरी हुई थीं।

दोनों एक दूसरे के पास तो नहीं थे लेकिन एक दूसरे के अभी के ही फोटो देखकर साथ होने का अहसास जीने की कोशिश कर रहे थे।

थोड़ी देर बाद शारदा कमरे में आयी। उन्होंने परम से बात करके उसे बधाई दी। और कहा कि वह बिलकुल नि:श्चिंत रहे। उसके आने तक वह तनु का पूरा ख्याल रखेंगी।

परम का मन ही नहीं कर रहा था आज फोन रखने का। लेकिन तनु के आराम का भी ख्याल रखना था। उसने थोड़ी देर बाद फोन करने का कहकर बेमन से फोन रखा।

शारदा ने तब तक भरत भाई को नाना बनने की खुशखबरी दे दी थी।

दयाबेन ने सारा खाना तनु की पसंद पूछ-पूछ कर बनाया। परम ने दिन भर में न जाने कितने फोन कर डाले। शाम को मेस में जाकर परम ने अपने हाथ से सबके लिये सेवईयों की खीर बनाई और सबको खिलाई। बहुत दिनों बाद यूनीट में खुशी के जाम टकराए। जश्न मना।

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