देस बिराना - 21 Suraj Prakash द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • My Wife is Student ? - 25

    वो दोनो जैसे ही अंडर जाते हैं.. वैसे ही हैरान हो जाते है ......

  • एग्जाम ड्यूटी - 3

    दूसरे दिन की परीक्षा: जिम्मेदारी और लापरवाही का द्वंद्वपरीक्...

  • आई कैन सी यू - 52

    अब तक कहानी में हम ने देखा के लूसी को बड़ी मुश्किल से बचाया...

  • All We Imagine As Light - Film Review

                           फिल्म रिव्यु  All We Imagine As Light...

  • दर्द दिलों के - 12

    तो हमने अभी तक देखा धनंजय और शेर सिंह अपने रुतबे को बचाने के...

श्रेणी
शेयर करे

देस बिराना - 21

देस बिराना

किस्त इक्कीस

यह इन दो ढाई साल में पहली बार हो रहा है कि मैं और मेरे ससुर इस तरह अकेले और इन्फार्मली बात कर रहे हैं। उन्होंने मेरी सेहत के बारे में पूछा है। मेरी दिनचर्या के बारे में पूछा है और मेरी उदासी का कारण जानना चाहा है। पहले तो मैं टालता हूं। उनसे आंखें मिलाने से भी बचता हूं लेकिन जब उन्होंने बहुत ज़ोर दिया है तो मैं फट पड़ा हूं। इतने अरसे से मैं घुट रहा था। कितना कुछ है जो मैं किसी से कहना चाह रहा था लेकिन आज तक कह नहीं पाया हूं और न ही किसी ने मेरे कंधे पर हाथ ही रखा है। पहले तो वे चुपचाप मेरी बातें ध्यान से सुनते रहे। मैंने उन्हें विस्तार से सारी बातें बतायी हैं। बंबई में हुई पहली मुलाकात से लेकर आज तक कि किस तरह मेरे साथ एक के बाद एक झूठ बोले गये और एक तरह से झांसा दे कर मुझे यहां लाया गया है। मैंने उन्हें गौरी की पढ़ाई के बारे में बोले गये झूठ के बारे में भी बताया लेकिन उसके एबार्शन वाली बात गोल कर गया। यह एक पिता के साथ ज्यादती होती। जब उन्होंने देखा कि मैं जो कुछ कहना चाहता था, कह चुका हूं तो वे धीरे से बोले हैं

- तुम्हारे साथ बहुत जुल्म हुआ है बेटे। मुझे नहीं मालूम था कि तुम अपने सीने पर इतने दिनों से इतना बोझ लिये लिये घूम रहे हो। तुम अगर मेरे पास पहले ही आ जाते तो यहां तक नौबत ही न आती। इस तरह तो तुम्हारी सेहत खराब हो जायेगी। तुम चिंता मत करो। हमें एक मौका और दो। तुम्हें अब किसी भी बात की शिकायत नहीं रहेगी। गौरी ने भी कभी ज़िक्र नहीं किया और न ही चमन वगैरह ने ही बताया कि तुम्हारी क्या बातें हुई थीं। बल्कि हम तो शॉप में और हांडा ग्रुप में तुम्हारी दिलचस्पी देख कर बहुत खुश थे। आज तक किसी भी दामाद ने हमारे ऐस्टैब्लिशमेंट में इतनी दिलचस्पी नहीं ली थी। बेहतर यही होगा कि तुम अब इस हादसे को भूल जाओ और हमें एक मौका और दो। मैं गौरी को समझा दूंगा। तुम्हारे लिए एक अच्छी खबर है कि तुम्हारी शॉप के प्रॉफिट भी इस दौरान बहुत बढ़े हैं। सब तुम्हारी मेहनत का नतीजा है। तुम्हें इसका ईनाम मिलना ही चाहिये। एक काम करते हैं, गौरी और तुम्हारे लिए पूरे योरोप की ट्रिप एरेंज करते हैं। थोड़ा घूम फिर आओ। थकान भी दूर हो जायेगी और तुम दोनों में पैचअप भी हो जायेगा। जाओ, एंजाय करो और एक महीने से पहले अपनी शक्ल हमें मत दिखाना। जाने का सारा इंतजाम हो जायेगा। गौरी भी खुश हो जायेगी कि तुम्हारे बहाने उसे भी घूमने फिरने का मौका मिल रहा है। जाते जाते वे मेरे हाथ में फिर एक बड़ा सा लिफाफा दे गये हैं - अपने लिए शॉपिंग कर लेना। उन्होंने मेरा कंधा दबाया है - देखो इनकार मत करना। मुझे खराब लगेगा। और सुनो, ये पैसे गौरी को दिये जाने वाले पैसों से अलग हैं इसलिए इनके बारे में गौरी को बताने की जरूरत नहीं है।

मैं समझ रहा हूं कि ये रिश्वत है मुझे शांत करने की, लेकिन अब वे खुद पैच अप का प्रस्ताव ले कर आये हैं तो एक दम इनकार करना भी ठीक नहीं है।

मुझे हनीमून के बाद आज पहली बार एक साथ इतने पैसे दिये जा रहे हैं।

जब शिशिर को इस बारे में मैंने बताया तो वह खुशी से उछल पड़ा - अब आया न ऊंट पहाड़ के नीचे। ये सब मेरी ही शरारत का नतीजा है कि तुमने इतना बड़ा हाथ मारा है। अब बीच बीच में इस तरह के नाटक करते रहोगे तो सुखी रहोगे।

और इस तरह मेरे सामने ये चुग्गा डाल दिया गया है। हालांकि गौरी ने सौरी कह दिया है लेकिन मलाल की बारीक सी रेखा भी उसके चेहरे पर नहीं है। जिस तरह की बातें उसने की थीं, उससे मेरी मानसिक अशांति इतनी जल्दी दूर नहीं होगी। वैसे भी जब भी मेरे सामने पड़ती है, मुझे उसके अतीत का भूत सताने लगता है और मैं बेचैन होने लगता हूं। उसके प्रति मेरे स्नेह की बेलें सूखती चली जा रही हैं।

लेकिन मेरी ये खुशी भी कितनी अल्पजीवी है। हांडा ग्रुप से पैसे मिलने के अगले दिन ही नंदू का पत्र आ गया है। पत्र वाकई परेशानी में डालने वाला है। उसने लिखा है कि गुड्डी की ससुराल में उसे दहेज के लिए परेशान किया जा रहा है। दारजी उसके पास बहुत परेशानी में गये थे और उसे बता रहे थे कि गुड्डी की ससुराल वालों ने न तो उसे इम्तिहान देने दिये और न ही वे उसे मायके ही आने देते हैं। ऊपर से दहेज के लिए सता रहे हैं कि तुम्हारे लंदन वाले भाई का क्या फायदा हुआ। एक लाख की मांग रखी है उन्होंने।

नंदू ने लिखा है - ये पैसे तो मैं भी दे दूं लेकिन संकट ये है कि उनका मुंह एक बार खुल गया तो वे अक्सर मांग करते रहेंगे और न मिलने पर गुड्डी को सतायेंगे। बोलो, क्या करूं। हो सके तो फोन कर देना।

हमारे दारजी ने तो जैसे पूरे परिवार को ही तबाह करने की कसम खा रखी है। मुझे बेघर करके भी उन्हें चैन नहीं था, अब उस मासूम की जान ले कर ही छोड़ेंगे। उन्हें लाख कहा कि गुड्डी की शादी के मामले में जल्दीबाजी मत करो लेकिन दारजी अगर किसी की बात मान लें तो फिर बात ही क्या!! अब पैसे दे भी दें तो इस बात की क्या गारंटी कि वे लोग अब गुड्डी को सताना बंद कर देंगे। अब तो उनकी निगाह लंदन वाले भाई पर है। इतनी आसानी से थोड़े ही छोड़ेंगे। नंदू से फोन पर बात करके देखता हूं।

नंदू ने तसल्ली दी है कि वैसे घबराने की कोई जरूरत नहीं है। दारजी ने कुछ ज्यादा ही बढ़ा- चढ़ा कर बात कही थी। वैसे वे लोग गुड्डी पर दबाव बनाये हुए हैं कि कुछ तो लाओ, लेकिन दारजी के पास कुछ हो तो दें। मैं उन्हें बता दूंगा कि तुझसे बात हो गयी है। तू घबरा मत। मैं सब संभाल लूंगा।

नंदू ने बेशक तसल्ली दे दी है लेकिन मैं ही जानता हूं कि इस वक्त गुड्डी बेचारी पर क्या गुज़र रही होगी। उसने तो मुझे पत्र लिखना भी बंद कर दिया है ताकि उसकी तकलीफों की तत्ती हवा भी मुझ तक न पहुंचे। इस बारे में शिशिर से बात करके देखनी चाहिये, वही कोई राह सुझायेगा। मेरा तो दिमाग काम नहीं कर रहा है।

शिशिर ने पूरी बात सुनी है। उसका कहना है कि वैसे तो यहां से इस तरह के नाज़ुक संबंधों का निर्वाह कर पाना बहुत मुश्किल है, क्योंकि यहां से तुम कुछ भी करो, तुम्हारे दारजी सारे कामों पर पानी फेरने के लिए वहां बैठे हुए हैं। दूसरे, तुम्हें फीडबैक आधा अधूरा और इतनी देर से मिलेगा कि तब तक वहां कोई और डेवलेपमेंट हो चुका होगा और तुम्हें पता भी नहीं चल पायेगा। फिर भी, यह बहन की ससुराल का मामला है। ज़रा संभल कर काम करना होगा और फिर गुड्डी का भी देखना होगा। उसे भी इस तरह से उन जंगलियों के बीच अकेला भी नहीं छोड़ा जा सकता। उसकी सुख शांति में तुम्हारा भी योगदान होगा ही। वैसे, थोड़ा इंतज़ार कर लेने में कोई हर्ज़ नहीं है।

उसी की सलाह पर मैं नंदू को फिर फोन करता हूं और बताता हूं कि मैं पचास हजार रुपये के बराबर पाउंड भिजवा रहा हूं। कैश कराके दारजी तक पहुंचा देना। बस दारजी ये देख लें कि वे लोग ये पैसे देख कर बार बार मांग न करने लगें और कहीं इसके लिए गुड्डी को सतायें नहीं। नंदू को यह भी बता दिया है मैंने कि मैं महीने भर की ट्रिप पर रहूंगा। वैसे मैं उससे कांटैक्ट करता रहूंगा फिर भी कोई अर्जेंट मैसेज हो तो इस नम्बर पर शिशिर को दिया जा सकता है। मुझ तक बात पहुंच जायेगी।

नंदू को बेशक मैंने तसल्ली दे दी है लेकिन मेरे ही मन को तसल्ली नहीं है, फिर भी ड्राफ्ट भेज दिया है। शायद ये पैसे ही गुड्डी की ज़िंदगी में कुछ रौनक ला पायें।

हमारी ट्रिप अच्छी रही है लेकिन मेरे दिमाग में लगातार गुड्डी ही छायी रही है। इस ट्रिप में वैसे तो हम दोनों की ही लगातार कोशिश रही कि पैच अप हो जाये और हमारे संबंधों में जो खटास आ गयी है उसे कम किया जा सके। मैं अपनी ओर से इस ट्रिप को दुखद नहीं बनाना चाहता। मैं भरसक नार्मल बना हुआ हूं। दिमाग में हर तरह की परेशानियां होते हुए भी उसके सुख और आराम का पूरा ख्याल रख रहा हूं।

गौरी ने फिर जिद की है कि मैं भी क्रेडिट कार्ड बनवा लूं या उसी के कार्ड में ऐड ऑन ले लूं लेकिन इस बार भी मैंने मना कर दिया है।

हम लौट आये हैं। हम दोनों ने हालांकि आपसी संबंध नार्मल बनाये रखे हैं लेकिन मुझे नहीं लगता, जो दरार हम दोनों के बीच एक बार आ चुकी है, उसे कोई भी सीमेंट ठीक से जोड़ पायेगा।

लौटने के बाद भी स्थितियों में कोई खास परिवर्तन नहीं हुआ है। सिर्फ बोलचाल हो रही है और हम जाहिर तौर पर किसी को भनक नहीं लगने देते कि हममें डिफरेंसेस चल रहे हैं। जो पैसे मुझे दिये गये थे, उसमें से जो बचे हैं वे मेरे ही पास हैं। वे भी इतने हैं कि मेरे जैसे कंजूस आदमी के लिए तो महीनों काफी रहेंगे।

मेरी गैरहाजरी में सिर्फ अलका दीदी और देवेद्र जी का ही पत्र आया हुआ है। एक तरह से तसल्ली भी हुई है कि घर से कोई पत्र नहीं आया है, इसलिए मैं मान कर चल रहा हूं कि वहां सब ठीक ही होगा। फिर भी शिशिर से पूछ लेता हूं कि नंदू का कोई फोन वगैरह तो नहीं आया था। वह इनकार करता है - नहीं, कोई संदेश नहीं आया तो सब ठीक ही होना चाहिये। वैसे तुम भी एक बार नंदू को फोन करके हाल चाल ले ही लो।

मैं भी यही सोच कर नंदू से ही बात करता हूं। वह जो कुछ बताता है वह मुझे परेशान करने के लिए काफी है। नंदू ने जब ये बताया कि उसे तो आज ही मेरा भेजा एक हज़ार पाउंड का दूसरा ड्राफ्ट भी मिल गया है तो मैं हैरान हो गया हूं। ज़रूर दूसरा ड्राफ्ट शिशिर ने ही भेजा होगा जबकि मुझे मना कर रहा था कि नंदू का कोई फोन नहीं आया।

मैं नंदू से ही पूछता हूं - तूने शिशिर को फोन किया था क्या?

बताता है वह - हां, किया तो था लेकिन पैसों के लाए नहीं बल्कि यह बताने के लिए कि तुझ तक यह संदेश पहुंचा दे कि ड्राफ्ट मिल गया है और कि गुड्डी की परेशानी में कोई कमी नहीं आयी है। बेशक वह ससुराल की कोई शिकायत नहीं करती और उनके संदेशे हम तक पहुंचाती भी नहीं, लेकिन कुल मिला कर वह तकलीफ में है।

बता रहा है कि दारजी आये थे और रो रहे थे कि किन भुक्खे लोगों के घर अपनी लड़की दे दी है। बेचारी को घर भी नहीं आने देते। वही बता रहे थे किसी तरह पचास हज़ार का इंतज़ाम हो जाता तो उनका मुंह बंद कर देते। बहुत सोचने विचारने के बाद मैंने तेरे भेजे ड्राफ्ट में से दारजी को पचास हज़ार रुपये दिये थे ताकि उनका मुंह बंद कर सकें। मैंने तो खाली शिशिर को यही कहा था कि तुझे खबर कर दे कि पैसों को ले कर परेशान होने की जरूरत नहीं है।

पूछता हूं मैं - और पैसे भेजूं क्या?

- नहीं ज़रूरत नहीं है। ये दो हज़ार पाउंड भी तो एक लाख रुपये से ऊपर ही होते हैं। तू फिकर मत कर.. मैं हूं न....।

मैं दोहरी चिंता में पड़ गया हूं। उधर गुड्डी की परेशानी और इधर अपने आप आगे बढ़ कर शिशिर ने इतनी बड़ी रकम भेज दी है। पचास हजार की रकम कोई मामूली रकम नहीं होती और जब मैंने पूछा तो साफ मुकर गया कि कोई फोन ही नहीं आया था। उससे इन पैसों के बारे में कुछ कह कर उसे छोटा बना सकता हूं और न ही चुप ही रह सकता हूं। उसने इधर उधर से इंतज़ाम किया होगा। शायद अपने घर भेजे जाने वाले पैसों में ही कुछ कमी कटौती की हो उसने। उधर नंदू अपने आप मेरी जगह मेरे घर की सारी जिम्मेवारी उठा रहा है और बिना एक भी शब्द बोले दारजी को पचास हजार थमा आता है कि उनकी लड़की को ससुराल में कोई परेशानी न हो। ये वही दारजी है जिन्होंने गुड्डी की सिफारिश लाने पर उससे कह दिया था कि ये हमारा घरेलू मामला है, और मैं यहां अपने घर से सात समंदर पार सारी जिम्मेवारियों से मुक्त बैठा हुआ हूं। उनके लिए न कुछ कर पा रहा हूं और न उनके सुख दुख में शामिल हो पा रहा हूं।

दारजी, नंदू, गुड्डी और अलका दीदी को लम्बे लम्बे पत्र लिखता हूं। मन पर इतना बोझ है कि जीने ही नहीं दे रहा है। गौरी अपनी दुनिया में मस्त है और मै अपने संसार में। द बिजी कार्नर ठीक ठाक चल रहा है और अब उसमें ऐसा कुछ भी नहीं बचा जिसे चैलेंज की तरह लिया जा सके। सब कुछ रूटीन हो चला है। अब तो दिल करता है, यहां से भी भाग जाऊं। कहीं भी दूर चला जाऊं। जहां कुछ करने के लिए नया हो, कुछ चुनौतीपूर्ण हो और जिसे करने में मज़ा आये। अलबत्ता कम्प्यूटर से ही नाता बना हुआ है और मैं कुछ न कुछ नया करता रहता हूं।

शिशिर के लिए तो पैकेज बना कर दिये ही हैं, सुशांत की बुक शॉप्स के लिए भी प्रोग्रामिंग करके कुछ नये पैकेज बना दिये हैं जिससे उसका काम आसान हो गया है। अब वह भी शिशिर की तरह मेरे काफी नज़दीक आ गया है और हम सुख दुख की बातें करने लगे हैं।

नंदू का फोन आया है। उसने जो खबर सुनाई है उससे मैं एकदम अवाक् रह गया हूं। नंदू ने यह क्या बता दिया है मुझे! गुड्डी की मौत की खबर सुनने से पहले मैं मर क्यों नहीं गया! मैंने उससे दो तीन बार पूछा - क्या वह गुड्डी की ही बात कर रहा है ना? तो नंदू ने जवाब दिया है - हां, दीप, मैं अभागा नंदू तुझे गुड्डी की ही मौत की खबर दे रहा हूं। उन लुटेरों ने हमारी प्यारी बहन को हमसे छीन लिया है। उसे दहेज का दानव खा गया और हम कुछ भी नहीं कर सके। यह समाचार देते समय नंदू ज़ार ज़ार रो रहा था।

मैं हक्का बक्का बैठा रह गया हूं। यह क्या हो गया मेरी बेबे!! मेरे दारजी!! आपने तो उसके लिए रजेया कजेया घर देखा था और ये क्या हो गया। इतना दहेज देने के बाद भी स्टोव उसी के लिए क्यों फटा ओ मेरे रब्बा!! लिखा भी तो था गुड्डी ने कि अगर पैसों का इंतजाम न हो पाया तो स्टोव तो उसी के लिए फटेगा। दारजी ने तो ठोक बजा कर दामाद खोजा था, वह कसाई कैसे निकल गया।

गुड्डी के बारे में सोच सोच कर दिमाग की नसें फटने लगी हैं। नंदू बताते समय हिचकियां ले ले कर रो रहा था - मुझे माफ कर देना दीप, मैं तेरी बहन को उन राक्षसों के हाथ से नहीं बचा पाया मेरे दोस्त, बेशक गुड्डी की ससुराल वालों को पुलिस ने पकड़ लिया है लेकिन उनकी गिरफ्तारी से गुड्डी तो वापिस नहीं आ जायेगी। तू धीरज धर।

नंदू मेरे यार, मैं तुझे तो माफ कर दूं, लेकिन मुझे कौन माफ करेगा। तू मेरी जगह मेरे घर की सारी जिम्मेवारियां निभाता रहा और मैं सिर्फ अपने स्वार्थ की खातिर यहां परदेस मैं बैठा अपने घर के ही सपने देखता रहा। न मैं अपना घर बना पाया, न गुड्डी का घर बसता देख पाया। अब तो वही नहीं रही, मैं माफी भी किससे मांगूं। वह कितना कहती थी कि मैं आगे पढ़ना चाहती हूं, कुछ बन के दिखाना चाहती हूं, और मिला क्या उस बेचारी को!! आखिर दारजी की जिद ने उस मासूम की जान ले ही ली। मेरा जाना तो नहीं हो पायेगा। जा कर होगा भी क्या। मैं किस की सुनूंगा और किसको जवाब दूंगा। दोनों ही काम मुझसे नहीं हो पायेंगे।

दारजी, बेबे, नंदू और अलका दीदी को भी लम्बे पत्र लिखता हूं ताकि सीने पर जमी यह शिला कुछ तो खिसके। गौरी भी इस खबर से भौंचकी रह गयी है। उसे विश्वास ही नहीं हो रहा है कि मात्र एक दो लाख रुपये के दहेज के लिए किसी जीते जाने इंसान को यूं जलाया भी जा सकता है।

बताता हूं उसे - गुड्डी बेचारी दहेज की आग में जलने वाली अकेली लड़की नहीं है। वहां तो घर-घर में यह आग सुलगती रहती है और हर दिन वहां दहेज कम लाने वाली या न लाने वाली मासूम लड़कियों को यूं ही जलाया जाता है।

पूछ रही है वह - इंडिया में हवस और लालच इतने ज्यादा बढ़ गये हैं और आपका कानून कुछ नहीं करता?

- अब कैसा कानून और किसका कानून, मैं उसे भरे मन से बताता हूं - जहां देश का राजकाज चलाने वाले आइएएस अधिकारी का दहेज के मार्केट में सबसे ज्यादा रेट चलता हो, वहां का कानून कितना लचर होगा, तुम कल्पना कर सकती हो। बेशक गौरी ने गुड्डी की सिर्फ तस्वीर ही देखी है फिर भी वह डिस्टर्ब हो गयी है। दुख की इस घड़ी में वह मेरा पूरा साथ दे रही है।

शिशिर भी इस हादसे से सन्न रह गया है। वह बराबर मेरे साथ ही बना हुआ है। उसी ने सबसे पहले हमारी ससुराल में खबर दी थी। मेरे ससुर और दूसरे कई लोग तुरंत अफसोस करने आये थे। हांडा साहब ने पूछा भी था - अगर जाना चाहो इंडिया, तो इंतज़ाम कर देते हैं, लेकिन मैंने ही मना कर दिया था। अब जा कर भी क्या करूंगा।

गौरी और शिशिर के लगातार मेरे साथ बने रहने और मेरा हौसला बढ़ाये रखने के बावजूद मैं खुद को एकदम अकेला महसूस कर रहा हूं। अब तो स्टोर्स में जाने की भी इच्छा नहीं होती। थोड़ी देर के लिए चला जाता हूं। सारा दिन गुड्डी के लिए मेरा दिल रोता रहता है। कभी किसी के लिए इतना अफसोस नहीं मनाया। अपने दुख किसी के सामने आने नहीं दिये लेकिन गुड्डी का यूं चले जाना मुझे बुरी तरह तोड़ गया है, बार बार उसका आंखें बड़ी बड़ी करके मेरी बात सुनना, वीर जी ये और वीर जी वो कहना, बार बार याद आते हैं। कितने कम समय के लिए मिली थी और कितना कुछ दे गयी थी मुझे और कितनी जल्दी मुझे छोड़ कर चली भी गयी।

जब से गुड्डी का यह दुखद समाचार मिला है, मैं महसूस कर रहा हूं कि मेरा सिर फिर से दर्द करने लगा है। ये दर्द भी वैसा ही है जैसा बचपन में हुआ करता था। मैं इसे वहम मान कर भूल जाना चाहता हूं लेकिन सिर दर्द है कि दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। पता नहीं, उस दर्द के अंश बाकी कैसे रह गये हैं। हालांकि इलाज तो तब भी नहीं हुआ था लेकिन दर्द तो ठीक हो ही गया था। गौरी को मैं बता भी नहीं सकता, मेरा क्या छिन गया है।

अस्पताल में दस दिन काटने के बाद आज ही घर वापिस आया हूं। इनमें से तीन दिन तो आइसीयू में ही रहा। बाद में पचास तरह के टेस्ट चलते रहे और बीसियों तरह की रिपोर्टें तैयार की गयीं, निष्कर्ष निकाले गये लेकिन नतीजा ज़ीरो रहा। डॉक्टर मेरे सिर दर्द का कारण तलाशने में असमर्थ रहे और मैं जिस दर्द के साथ आधी रात को अस्पताल ले जाया गया था उसी दर्द के साथ दस दिन बाद लौट आया हूं। गौरी बता रही थी, एक रात मैं सिर दर्द से बुरी तरह से छटपटाने लगा था। वह मेरी हालत देख कर एकदम घबरा गयी थी। उसने तुरंत डॉक्टर को फोन किया था। उसने मुझे कभी एक दिन के लिए भी बीमार पड़ते नहीं देखा था और उसे मेरी इस या किसी भी बीमारी के बारे में कुछ भी पता नहीं था इसलिए वह डॉक्टर को इस बारे में कुछ भी नहीं बता पायी थी। डॉक्टर ने बेशक दर्द दूर करने का इंजेक्शन दे दिया था लेकिन जब वह कुछ भी डायग्नोस नहीं कर पाया तो उसने अस्पताल ले जाने की सलाह दी थी। गौरी ने तब अपने घर पापा वगैरह को फोन किया और मेरी हालत के बारे में बताया था। सभी लपके हुए आये थे और इस तरह मैं अस्पताल में पहुंचा दिया गया था।

अब बिस्तर पर लेटे हुए और इस समय भी दर्द से कराहते हुए मुझे हॅसी आ रही है - क्या पता चला होगा डॉक्टरों को मेरे दर्द के बारे में। कोई शारीरिक वज़ह हो भी तो वे पता लगा सकते। रिपोर्टें इस बारे में बिलकुल मौन हैं।

इस बीच कई बार पूछ चुकी है गौरी - अचानक ये तुम्हें क्या हो गया था दीप? क्या पहले भी कभी.. .. ..?

- नहीं गौरी, ऐसा तो कभी नहीं हुआ था। तुमने तो देखा ही है कि मुझे कभी जुकाम भी नहीं होता। मैं उसे आश्वस्त करता हूं। बचपन के बारे में मैं थोड़ा-सा झूठ बोल गया हूं। वैसे भी वह मेरे केसों के मामले और दर्द के संबंध और अब गुड्डी की मौत के लिंक तो क्या ही जोड़ पायेगी। कुछ बताऊं भी तो पूरी बात बतानी पड़ेगी और वह दस तरह के सवाल पूछेगी। यही सवाल उसके घर के सभी लोग अलग-अलग तरीके ये पूछ चुके हैं। मेरा जवाब सबके लिए वही रहा है।

शिशिर भी पूछ रहा था। मैं क्या जवाब देता। मुझे पता होता तो क्या ससुराल के इतने अहसान लेता कि इतना महंगा इलाज कराता!! वैसे दवाएं अभी भी खा रहा हूं और डॉक्टर के बताये अनुसार कम्पलीट रेस्ट भी कर ही रहा हूं, लेकिन सारा दिन बिस्तर पर लेटे-लेटे रह-रह के गुड्डी की यादें परेशान करने लगती हैं। आखिर उस मासूम का कुसूर क्या था। जो दहेज हमने गुड्डी को देना था या दिया था वो हमारी जिम्मेवारी थी। हम पूरी कर ही रहे थे। ज़िंदगी भर करते ही रहते।

सारा दिन बिस्तर पर लेटा रहता हूं और ऐसे ही उलटे-सीधे ख्याल आते रहते हैं। अपनी याद में यह पहली बार हो रहा है कि मैं बीमार होने की वज़ह से इतने दिनों से बिस्तर पर लेटा हूं और कोई काम नहीं कर रहा हूं। बीच-बीच में सबके फोन भी आते रहते हैं। गौरी दिन में कई बार फोन कर लेती है।

लेटे लेटे संगीत सुनता रहता हूं। इधर शास्त्रीय संगीत की तरफ रुझान शुरू हुआ है। गौरी ने एक नया डिस्कमैन दिया है और शिशिर इंडियन क्लासिकल संगीत की कई सीडी दे गया है। शिल्पा भी कुछ किताबें छोड़ गयी थी। और भी सब कुछ न कुछ दे गये हैं ताकि मैं लेटे लेटे बोर न होऊं।

***