देस बिराना - 20 Suraj Prakash द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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देस बिराना - 20

देस बिराना

किस्त बीस

इन दिनों खासा परेशान चल रहा हू। न घर पर चैन मिलता है न स्टोर्स में। समझ में नहीं आता, मुझे ये क्या होता जा रहा है। अगर कोई बंबई का कोई पुराना परिचित मुझे देखे तो पहचान ही न पाये, मैं वही अनुशासित और कर्मठ गगनदीप हूं जो अपने सारे काम खुद करता था और कायदे से, सफाई से किया करता था। जब तक बंबई में था, मुझे ज़िंदगी में जरा सी भी अव्यवस्था पसंद नहीं थी और गंदगी से तो जैसे मुझे एलर्जी थी। अब यहां कितना आलसी हो गया हूं। चीजें टलती रहती हैं। अब न तो उतना चुस्त रहा हूं और न ही सफाई पसंद ही। अब तो शेव करने में भी आलस आने लगा है। कई बार एक-एक हफ्ता शेव भी नहीं करता। गौरी ने कई बार टोका तो दाढ़ी ही बढ़ानी शुरू कर दी है। मैं अब ऐसे सभी काम करता हूं जो गौरी को पसंद नहीं हैं। छुट्टी के दिन गौरी की बहुत इच्छा होती है, कहीं लम्बी ड्राइव पर चलें, किसी के घर चलें या किसी को बुला ही लें, मैं तीनों ही काम टालता हूं।

वैसे भी जब से आया हूं, गौरी पीछे पड़ी है, घर में दो गाड़ियां खड़ी हैं, कम से कम ड्राइविंग ही सीख लो। मैंने भी कसम खा रखी है कि ड्राइविंग तो नहीं ही सीखूंगा, भले ही पूरी ज़िंदगी पैदल ही चलना पड़े। अभी तक गौरी और मेरे बीच इस बात पर शीत युद्ध चल रहा है कि मै उससे पैसे मांगूंगा नहीं। वह देती नहीं और मैं मांगता नहीं। एक बार शिशिर ने कहा भी था कि तुम्हीं क्यों ये सारे त्याग करने पर तुले हो। क्यों नहीं अपनी ज़रूरत के पैसे गौरी से मांगते या गौरी के कहने पर पूल मनी से उठा लेते। आखिर कोई कब तक अपनी ज़रूरतें दबाये रह सकता है।

गौरी को जब पता चला तो उसने उंह करके मुंह बिचकाया था - अपनी गगनदीप जानें। मेरा पांच सात हज़ार पाउंड का जेब खर्च मुझे मिलना ही चाहिये।

जब शिशिर को यह बात पता चली तो वह हँसा था - यार, तुम्हें समझना बहुत मुश्किल है। भला ये सब तुम सब किस लिए कर कर रहे हो। अगर तुम एक्सपेरिमेंट कर रहे हो तो ठीक है। अगर तुम गौरी या हांडा ग्रुप को इम्प्रेस करना चाहते हो तो तुम बहुत बड़ी गलती कर रहे हो। वे तो ये मान लेंगे कि उन्हें कितना अच्छा दामाद मिल गया है जो ससुराल का एक पैसा भी लेना या खर्च करना हराम समझता है। उनके लिए इससे अच्छी और कौन सी बात हो सकती है। दूसरे वे ये भी मान कर चल सकते हैं कि वे कैसे कंगले को अपना दामाद बना कर लाये हैं जो अंडरग्राउंड के चालीस पैंस बचाने के लिए चालीस मिनट तक पैदल चलता है और ये नहीं देखता कि इन चालीस मिनटों को अपने कारोबार में लगा कर कितनी तरक्की कर सकता था। इससे तुम अपनी क्या इमेज बनाओगे, ज़रा यह भी देख लेना।

- मुझे किसी की भी परवाह नहीं है। मेरी तो आजकल ये हालत है कि मैं अपने बारे में कुछ नहीं सोच पा रहा हूं।

गुड्डी का खत आया है। सिर्फ तीन लाइन का। समझ नहीं पा रहा हं,झ जब उसके सामने खुल कर खत लिखने की आज़ादी नहीं है तो उसने ये पत्र भी क्यों लिखा! बेशक पत्र तीन ही पंक्तियों का है लेकिन मैं उन बीस पच्चीस शब्दों के पीछे छुपी पीड़ा को साफ साफ पढ़ पा रहा हूं।

लिखा है उसने

- वीर जी,

इस वैसाखी के दिन मेरी डोली विदा होने के साथ ही मेरी ज़िंदगी में कई नये रिश्ते जुड़ गये हैं। ये सारे रिश्ते ही अब मेरा वर्तमान और भविष्य होंगे। मुझे अफ़सोस है कि मैं आपको दिये कई वचन पूरे न कर सकी। मैं अपने घर, नये माहौल और नये रिश्तों की गहमागहमी में बहुत खुश हूं। मेरा दुर्भाग्य कि मैं आपको अपनी शादी में भी न बुला सकी। मेरे और उनके लिए भेजे गये गिफ्ट हमें मिल गये थे और हमें बहुत पसंद आये हैं।

मेरी तरफ से किसी भी किस्म की चिंता न करें।

आपकी छोटी बहन,

हरप्रीत कौर

(अब नये घर में यही मेरा नया नाम है।)

इस पत्र से तो यही लगता है कि गुड्डी ने खुद को हालात के सामने पूरी तरह सरंडर कर दिया है नहीं तो भला ऐसे कैसे हो सकता था कि वह इतना फार्मल और शुष्क खबर देने वाला ऐसा खत लिखती और अपना पता भी न लिखती।

मैं भी क्या करूं गुड्डी! एक बार फिर तुझसे भी माफी मांग लेता हूं कि मैं तेरे लिए इस जनम में कुछ भी नहीं कर पाया। वो जो तू अपने बड़े भाई की कद काठी, पर्सनैलिटी और लाइफ स्टाइल देख कर मुग्ध हो गयी थी और लगे हाथों मुझे अपना आदर्श बना लिया था, मैं तुझे कैसे बताऊं गुड्डी कि मैं एक बार फिर यहां अपनी लड़ाई हार चुका हूं। अब तो मेरी खुद ही की जीने की इच्छा ही मर गयी है। तुझे मैं बता नहीं सकता कि मैं यहां अपने दिन कैसे काट रहा हूं। तेरे पास फिर भी सगे लोग तो हैं, बेशक उनसे अपनापन न मिले, मैं तो कितना अकेला हूं यहां और खालीपन की ज़िंदगी किसी तरह जी रहा हूं। मैं ये बातें गुड्डी को लिख भी तो नहीं सकता।

कल रात गौरी से तीखी नोंक झोंक हो गयी थी। बात वही थी। न मैं पैसे मांगूंगा और न उसे इस बात का ख्याल आयेगा। हम दोनों को एक शादी में जाना था। गौरी ने मुझे सुबह बता दिया था कि शादी में जाना है। कोई अच्छा सा गिफ्ट ले कर रख लेना। मैं वहीं तुम्हारे पास आ जाऊंगी। सीधे चले चलेंगे। जब गौरी ने यह बात कही थी तो उसे चाहिये था कि मेरे स्वभाव और मेरी जेब के मिज़ाज को जानते हुए बता भी देती कि कितने तक का गिफ्ट खरीदना है और कहती - ये रहे पैसे। उसने दोनों ही काम नहीं किये थे। अब मुझे क्या पड़ी थी कि उससे पैसे मांगता कि गिफ्ट के लिए पैसे दे दो। जब हांडा ग्रुप घर खर्च के सारे पैसे तुम्हें ही देता है तो तुम्हीं संभालो ये सारे मामले। फिलहाल तो मैं ठनठन गोपाल हूं और मैं किसी को गिफ्ट देने के लिए गौरी से पैसे मांगने से रहा।

शाप बंद हो जाने के बाद गौरी जब शादी के रिसेप्शन में जाने के लिए आयी तो कार में मेरे बैठने के साथ ही उसने पूछा - तुम्हारे हाथ खाली हैं, गिफ्ट कहां है?

- नहीं ले पाया।

- क्यों, कहा तो था मैंने, उसने गाड़ी बीच में ही रोक दी है।

- बताया न, नहीं ले पाया, बस।

- लेकिन कोई वज़ह तो होगी, न लेने की। अब सारी शॉप्स बंद हो गयी हैं। क्या शादी में खाली हाथ जायेंगे। दीप, तुम भी कई बार .. वह झल्ला रही है।

- गौरी, इस तरह से नाराज़ होने की कोई ज़रूरत नहीं है। न चाहते हुए भी मेरा पारा गर्म होने लगा है। तुम्हें अच्छी तरह से पता है, मेरे पास पैसों का कोई इंतज़ाम नहीं है। और तुम्हें यह भी पता है कि न मैं घर से बिना तुम्हारे कहे पैसे उठाता हूं और न ही स्टोर्स में से अपने पर्सनल काम के लिए कैशियर से वाउचर ही बनवाता हूं। गिफ्ट के लिए कहते समय तुम्हें इस बात का ख्याल रखना चाहिये था।

- यू आर ए लिमिट! गौरी ज़ोर से चीखी है। मैं तो तंग आ गयी हूं तुम्हारे इन कानूनों से। मैं ये नहीं करूंगा और मैं वो नहीं करूंगा। आखिर तुम्हें हर बार ये जतलाने की ज़रूरत क्यों पड़ती है कि तुम्हारे पास पैसे नहीं हैं। क्यों बार-बार तुम यही टॉपिक छेड़ देते हो। आखिर मैं भी क्या करूं? क्रेडिट कार्ड तुम्हें चाहिये नहीं, कैश तुम उठाओगे नहीं और मांगोगे भी नहीं, बस, ताने मारने का कोई मौका छोड़ोगे नहीं।

- देखो गौरी, इस तरह से शोर मचाने की ज़रूरत नहीं है। मैं फिर भी खुद को शांत रखे हुए हूं - जहां तक पैसों या किसी भी चीज को लेकर मेरे प्रिंसिपल्स की बात है, तुम कई बार मेरे मुंह से सुन चुकी हो कि मैं अपने आप कहीं से भी पैसे नहीं लूंगा। काम होता है या नहीं होता, मेरी जिम्मेवारी नहीं है।

- मैं तुमसे कितनी बार कह चुकी हूं, डीयर कि हमें जो पैसे दिये जाते हैं वे हम दोनों के लिए हैं और सांझे हैं। हम दोनों के कॉमन पूल में रखे रहते हैं। तुम उसमें से लेते क्यों नहीं हो। अब तो तुम नये नहीं हो। न हमारे रिश्ते इतने फार्मल हैं कि आपस में एक दूसरे से पूछना पड़े कि ये करना है और वो करना हैं। अब तुम्हारी ज़रा सी जिद की वज़ह से गिफ्ट रह गया न.. अब जा कर अपनी शॉप से कोई बुके ही ले जाना पड़ेगा।

- हमारे आपसी रिश्तों की बात रहने दो, बाकी, जहां तक पैसों की बात है तो मैं अभी भी अपनी बात पर टिका हुआ हूं कि मैं आज तक हांडा ग्रुप का सिस्टम समझ नहीं पाया कि मेरी हैसियत क्या है इस घर में!!

- अब फिर लगे कोसने तुम हांडा ग्रुप को। इसी ग्रुप की वजह से तुम...।

- डोंट क्रॉस यूअर लिमिट गौरी। मुझे भी गुस्सा आ गया है - पहली बात तो यह कि मैं वहां सड़क पर नहीं बैठा था कि मेरे पास यहां रहने खाने को नहीं है, कोई मुझे शरण दे दे और दूसरी बात कि बंबई में पहली ही मुलाकात में ही तुम्हारे सामने ही मुझसे दस तरह के झूठ बोले गये थे। मुझे पता होता कि यहां आ कर मुझे मुफ्त की सैल्समैनी ही करनी है तो मैं दस बार सोचता।

- दीप, तुम ये सारी बातें मुझसे क्यों कर रहे हो। आखिर क्या कमी है तुम्हें यहां..मजे से रह रहे हो और शानदार स्टोर्स के अकेले कर्त्ताधर्त्ता हो। अब तुम्हीं पैसे न लेना चाहो तो कोई क्या करे!!

- पैसे देने का कोई तरीका भी होता है। अब मैं रहूं यहां और पैसे इंडिया में अपने घर से मंगाऊं, ये तो नहीं हो सकता।

- तुम्हें किसने मना किया है पैसे लेने से। सारे दामाद कॉमन पूल से ले ही रहे हैं और क्रेडिट कार्ड से भी खूब खर्च करते रहते हैं। कैश भी उठाते रहते हैं। कभी कोई उनसे पूछता भी नहीं कि कहां खर्च किये और क्यों किये। किसी को खराब नहीं लगता। तुम्हारी समझ में ही यह बात नहीं आती। तुम्हें किसने मना किया है पैसे लेने से।

- मेरे अपने कुछ उसूल हैं।

- तो उन्हीं उसूलों का ड्रिंक बना कर दिन रात पीते रहो। सारा मूड ही चौपट कर दिया। गौरी झल्लाई है।

- कभी मेरे मूड की भी परवाह कर लिया करो। मैंने भी कह ही दिया है।

- तुमसे तो बात करना भी मुश्किल है।

कार में हुई इस नोंक-झोंक का असर पूरे रास्ते में और बाद में पार्टी में भी रहा है। शिशिर ने एक किनारे ले जा कर पूछा है - आज तो दोनों तरफ ही फुटबाल फूले हुए हैं। लगता है, काफी लम्बा मैच खेला गया है।

मैं भरा पड़ा हूं। हालांकि मुझे अफसोस भी हो रहा है कि मैं पहली बार गौरी से इतने ज़ोर से बोला और उससे ऐसी बातें कीं जो मुझे ही छोटा बनाती हैं। लेकिन मैं जानता हूं, मेरी ये झल्लाहट सिर्फ पैसों के लिए या गिफ्ट के लिए नहीं है। इसके पीछे मुझसे बोले गये सारे झूठ ही काम कर रहे हैं। जब से शिशिर ने मुझे गौरी के अबॉर्शन के बारे में बताया है, मैं तब से भरा पड़ा था। आज गुस्सा निकला भी तो कितनी मामूली बात पर। हालांकि मैं शिशिर के सामने मैं खुद को खोलना नहीं चाहता लेकिन उसके सामने कुछ भी छुपाना मेरे लिए बहुत मुश्किल हो जाता है।

मैंने उसे पूरा किस्सा सुना दिया है। शिशिर ने फिर मुझे ही डांटा है

- तुम्हें मैं कितनी बार समझा चुका हूं कि अब तो तुम्हें यहां रहते इतना अरसा हो गया है। अब तक तो तुम्हें हांडा ग्रुप से अपने लायक एक आध लाख पाउंड अलग कर ही लेने चाहिये थे। इतना बड़ा स्टोर्स संभालते हो और तुम्हारी जेब में दस पेंस का सिक्का भी खोजे नहीं मिलेगा। मेरी मानो, इन बातों की वजह से गौरी से लड़ने झगड़ने की ज़रूरत नहीं है। थोड़ी डिप्लोमेसी भी सीखो। चोट कहीं और करनी चाहिये तुम्हें और एनर्जी यहां वेस्ट कर रहे हो। खैर, ये भी ठीक हुआ कि तुमने गौरी से ही सही, अपने मन की बात कही तो सही। अब देखें, ये बातें कितनी दूर तक जाती हैं।

इस बीच मेरी छटपटाहट बहुत बढ़ चुकी है। गौरी से अबोला चल रहा है। न वह अपने किये के लिए शर्मिंदा है, न मैं यह मानने के लिए तैयार हूं कि मैं गलत हूं। अब तो वह भी बिना सैक्स के सो रही है और मैं भी, जो भी मिलता है, खा लेता हूं। दोनों ही एक दूसरे से काफी दूर होते जा रहे हैं। मैं भी अब चाहने लगा हूं, ये सब यहीं खत्म हो जाये तो पिंड छूटे। किसी तरह वापिस लौटा जा सकता तो ठीक रहता। काम की तरफ ध्यान देना मैंने कब से छोड़ दिया है। भाड़ में जायें सब। मैं ही हांडा परिवार की दौलत बढ़ाने के लिए क्यों दिन रात खटता रहूं। मेरी सेहत भी आजकल खराब चल रही है। मैं बेशक इस बाबत किसी से बात नहीं करता और किसी से कोई शिकायत भी नहीं करता लेकिन बात अब हांडा परिवार के मुखिया तक पहुंच ही गयी है।

उन तक बात पहुंचाने के पीछे गौरी का नहीं, शिशिर का ही हाथ लगता है।

शिशिर ने शिल्पा से कहा होगा और शिल्पा ने अपने पापा तक बात पहुंचायी होगी कि ज़रा ज़रा सी बात पर गौरी दीप से लड़ पड़ती है और बार बार उस बेचारे का अपमान करती रहती है। उसी ने पापा से कहा होगा कि आप लोग बीच में पड़ कर मामले को सुलझायें वरना अच्छा खासा दामाद अपना दिमाग खराब कर बैठेगा। शायद उसने उन्हें पैसे न लेने के बारे में मेरी ज़िद के बारे में भी कहा हो। बताया होगा - अगर यही हाल रहा तो आप लोग एक अच्छे भले आदमी को इस तरह से मार डालेंगे। इसमें नुक्सान आपका और गौरी का ही है। पता नहीं, उन्हें ये बात क्लिक कर गयी होगी, इसीलिए गौरी के शॉप पर जाने के बाद पापा मुझसे मिलने आये हैं।

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