देस बिराना - 22 Suraj Prakash द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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देस बिराना - 22

देस बिराना

किस्त बाइस

लगभग छः महीने हो गये हैं सिरदर्द को झेलते हुए। इस बीच ज्यादातर अरसा आराम ही करता रहा या तरह तरह के टैस्ट ही कराता रहा। नतीजा तो क्या ही निकलना था। वैसे सिरदर्द के साथ मैं अब स्टोर्स में पूरा पूरा दिन भी बिताने लगा हूं लेकिन मैं ही जानता हूं कि मैं कितनी तकलीफ से गुज़र रहा हूं। बचपन में भी तो ऐसे ही दर्द होता था और मैं किसी से भी कुछ नहीं कह पाता था। सारा सारा दिन दर्द से छटपटाता रहता था जैसे कोई सिर में तेज छुरियां चला रहा हो। तब तो केस कटवा कर दर्द से मुक्ति पा ली थी लेकिन अब तो केस भी नहीं हैं। समझ में नहीं आता, अब इससे कैसे मुक्ति मिलेगी। यहां के अंग्रेज़ डॉक्टरों को मैंने जानबूझ कर बचपन के सिर दर्द और उसके दूर होने के उपाय के बारे में नहीं बताया है। मैं जानता हूं ये अंग्रेज तो मेरे इस अनोखे दर्द और उसके और भी अनोखे इलाज के बारे में सुन कर तो मेरा मज़ाक उड़ायेंगे ही, गौरी और उसके घर वालों की निगाह में भी मैं दकियानूसी और अंधविश्वासी ही कहलाऊंगा। मैं ऐसे ही भला। बेचारी बेबे भी नहीं है जो मेरे सिर में गर्म तेल चुपड़ दे और अपनी हथेलियों से मेरे सिर में थपकियां दे कर सुला ही दे।

अभी सो ही रहा हूं कि फोन की घंटी से नींद उचटी है। घड़ी देखता हूं, अभी सुबह के छः ही बजे हैं। गौरी बाथरूम में है। मुझे ही उठाना पड़ेगा।

- हैलो,

- नमस्ते दीप जी, सो रहे थे क्या?

एकदम परिचित सी आवाज, फिर भी लोकेट नहीं कर पा रहा हूं, कौन हैं जो इतनी बेतकल्लुफी से बात कर रही हैं।

- नमस्ते, मैं ठीक हूं लेकिन माफ कीजिये मैं पहचान नहीं पा रहा हूं आपकी आवाज....

- कोशिश कीजिये!

- पहले हमारी फोन पर बात हुई है क्या?

- हुई तो नहीं है।

- मुलाकात हुई है क्या?

- दो तीन बार तो हुई ही है।

- आप ही बता दीजिये, मैं पहचान नहीं पर रहा हूं।

- मैं मालविका हूं। मालविका ओबेराय।

- ओ हो मालविका जी। नमस्ते. आयम सौरी, मैं सचमुच ही पहचान नहीं पा रहा था, गौरी अकसर आपका ज़िक्र करती रहती है। कई बार सोचा भी कि आपकी तरफ आयें। इतने अरसे बाद भी उसका दिपदिपाता सौन्दर्य मेरी आंखों के आगे झिलमिलाने लगा है।

- लेकिन मैं शर्त लगा कर कह सकती हूं कि आपको हमारी कभी याद नहीं आयी होगी। शक्ल तो मेरी क्या ही याद होगी।

- नहीं, ऐसी बात तो नहीं है। दरअसल मुझे आपकी शक्ल बहुत अच्छी तरह से याद है, बस उस तरफ आना ही नहीं हो पाया। फिलहाल कहिये कैसे याद किया..कैसे कहूं कि जो उन्हें एक बार देख ले, ज़िदंगी भर नहीं भूल सकता।

- आपका सिरदर्द कैसा है अब?

- अरे, आपको तो सारी खबरें मिलती रहती हैं।

- कम से कम आपकी खबर तो है मुझे, मैं आ नहीं पायी लेकिन मुझे पता चला, आप खासे परेशान हैं आजकल इस दर्द की वज़ह से।

- हां हूं तो सही, समझ में नहीं आ रहा, क्या हो गया है मुझे।

- गौरी से इतना भी न हुआ कि तुम्हें मेरे पास ही ले आती। अगर आपको योगाभ्यास में विश्वास हो तो आप हमारे यहां क्यों नहीं आते एक बार। वैसे तो आपको आराम आ जाना चाहिये, अगर न भी आये तो भी कुछ ऐसी यौगिक क्रियाएं आपको बता दूंगी कि बेहतर महसूस करेंगे। योगाभ्यास के अलावा एक्यूप्रेशर है, नेचूरोपैथी है और दूसरी भारतीय पद्धतियां हैं। जिसे भी आजमाना चाहें।

- ज़रूर आऊंगा मैं। वैसे भी पचास तरह के टेस्ट कराके और ये दवाएं खा खा कर दुखी हो गया हूं।

- अच्छा एक काम कीजिये, मैं गौरी से खुद ही बात कर लेती हूं, आपको इस संडे लेती आयेगी। गौरी से बात करायेंगे क्या?

- गौरी अभी बाथरूम में है और अभी थोड़ी देर पहले ही गयी है। उसे कम से कम आधा घंटा और लगेगा।

- खैर उसे बता दीजिये कि मैंने फोन किया था। चलो इस बहाने आप से भी बात हो गयी। आपका इंतज़ार रहेगा।

- जरूर आयेंगे। गौरी के साथ ही आऊंगा।

- ओके , थैंक्स।

मालविका से मुलाकात अब याद आ रही है। गौरी के साथ ही गया था उनके सेन्टर में। नार्थ वेम्बले की तरफ़ था कहीं। गौरी के साथ एक - आध बार ही वहां जा पाया था।

जब हम वहां पहली बार गये थे तब मालविका एक लूज़ सा ट्रैक सूट पहने अपने स्टूडेंट्स को लैसन दे रही थी।

उन्हें देखते ही मेरी आंखें चुंधियां गयी थीं। मैं ज़िंदगी में पहली बार इतना सारा सौंदर्य एक साथ देख रहा था। भरी भरी आंखें, लम्बी लहराती केशराशि। मैं संकोचवश उनकी तरफ देख भी नहीं पा रहा था। वे बेहद खूबसूरत थीं और उन्हें कहीं भी, कभी भी इग्नोर नहीं किया जा सकता था। मैं हैरान भी हुआ था कि रिसेप्शन में मैं उनकी तरफ ध्यान कैसे नहीं दे पाया था।

गौरी ने उबारा था मुझे - कहां खो गये दीप, मालविका कब से आपको हैलो कर रही है। मैं झेंप गया था।

हमने मालविका से एपाइंटमेंट ले लिया है और आज उनसे मिलने जा रहे हैं। जब मैंने गौरी को मालविका का मैसेज दिया तो वह अफसोस करने लगी थी - मैं भी कैसी पागल हूं। तुम इतने दिन से इस सिरदर्द से परेशान हो और हमने हर तरह का इलाज करके भी देख लिया लेकिन मुझे एक बार भी नहीं सूझा कि मालविका के पास ही चले चलते। आइ कैन बैट, अब तक तुम ठीक भी हो चुके होते। ऐनी आउ, अभी भी देर नहीं हुई है।

  • मालविका जी हमारा ही इंतज़ार कर रही हैं। उन्होंने उठ कर हम दोनों का स्वागत किया है। दोनों से गर्मजोशी से हाथ मिलाया है और गौरी से नाराज़गी जतलायी है - ये क्या है गौरी, आज कितने दिनों बाद दर्शन दे रही हो। तुमसे इतना भी न हुआ कि दीप जी को एक बार मेरे पास भी ला कर दिखला देती। ऐसा कौन-सा रोग है जिसका इलाज योगाभ्यास न से किया जा सकता हो। अगर मुझे शिशिर जी ने न बताया होता तो मुझे तो कभी पता ही न चलता। वे मेरी तरफ देख कर मुस्कुरायी हैं।

    गौरी ने हार मान ली है - क्या बताऊं मालविका, इनकी ये हालत देख-देख कर मैं परेशान थी कि हम ढंग से इनके मामूली सिरदर्द का इलाज भी नहीं करवा पा रहे हैं। लेकिन बिलीव मी, मुझे एक बार भी नहीं सूझा कि इन्हें तुम्हारे पास ही ले आती।

    - कैसे लाती, जब कि तुम खुद ही साल भर से इस तरफ नहीं आयी हो। अपनी चर्बी का हाल देख रही हो, कैसे लेयर पर लेयर चढ़ी जा रही है। खैर, आइये दीप जी, हमारी ये नोक झोंक तो चलती ही रहेगी। पहले आप ही को एनरोल कर लिया जाये। वैसे तो आपको शादी के तुरंत बाद यहां आ कर एनरोल करा लेना चाहिये था।

    मैं देख रहा हूं मालविका जी अभी भी उतनी ही स्मार्ट और सुंदर नज़र आ रही हैं। स्पॉटलैस ब्यूटी। मानना पड़ेगा कि योगाभ्यास का सबसे ज्यादा फायदा उन्हीं को हुआ है।

    उन्होंने मुझे एक फार्म दिया है भरने के लिए - जब तक कॉफी आये, आप यह फार्म भर दीजिये। हमारे सभी क्लायंट्स के लिए ज़रूरी होता है यह फार्म।

    वे हँसी हैं - इससे हम कई उलटे-सीधे सवाल पूछने से बच जाते हैं। इस बीच मैं आपकी सारी मेडिकल रिपोर्ट्स देख लेती हूं। मैं फार्म भर रहा हूं। व्यक्तिगत बायोडाटा के अलावा इसमें बीमारियों, एलर्जी, ईटिंग हैबिट्स वगैरह के बारे में ढेर सारे सवाल हैं। जिन सवालों के जवाब हां या ना में देने हैं, वे तो मैंने आसानी से भर दिये हैं लेकिन बीमारी के कॉलम में मैं सिर दर्द लिख कर ठहर गया हूं। इसके अगले ही कालम में बीमारी की हिस्ट्री पूछी गयी है। समझ में नहीं आ रहा, यहां पर क्या लिखूं मैं? क्या बचपन वाले सिरदर्द का जिक्र करूं यहां पर।

    मैंने इस कालम में लिख दिया है - बचपन में बहुत दर्द होता था लेकिन केस कटाने के बाद बिलकुल ठीक हो गया था। नीचे एक रिमार्क में यह भी लिख दिया है कि इस बारे में बाकी डिटेल्स आमने सामने बात दूंगा। फार्म पूरा भर कर मैंने उसे मालविका जी को थमा दिया है। इस बीच कॉफी आ गयी है। कॉफी पीते-पीते वे मेरा भरा फार्म सरसरी निगाह से देख रही हैं।

    कॉफी खत्म करके उन्होंने गौरी से कहा है - अब तुम्हारी ड्यूटी खत्म गौरी। तुम जाओ। अब बाकी काम मेरा है। इन्हें यहां देर लगेगी। मैं बाद में तुमसे फोन पर बात कर लूंगी। चाहो तो थोड़ी देर कुछ योगासन ही कर लो। गौरी ने इनकार कर दिया है और जाते-जाते हँसते हुए कह गयी है - अपना ख्याल रखना दीप, मालविका इज वेरी स्ट्रिक्ट योगा टीचर। एक बार इनके हत्थे चढ़ गये तो ज़िंदगी भर के लिए किसी मुश्किल आसन में तुम्हारी गर्दन फंसा देगी।

    मालविका जी ने नहले पर दहला मारा है - शायद इसीलिए तुम महीनों तक अपना चेहरा नहीं दिखातीं।

    गौरी के जाने के बाद मालविका जी इत्मिनान के साथ मेरे सामने बैठ गयी हैं। मैं उनकी आंखों का तेज सहन करने में अपने आपको असमर्थ पा रहा हूं। मैं बहुत कम ऐसी लड़कियों के सम्पर्क में आया हूं जो सीधे आंखें मिला कर बात करें।

    वे मेरे सामने तन कर बैठी है।

    पूछ रही हैं मुझसे - देखिये दीप जी, नैचुरोपैथी वगैरह में इलाज करने का हमारा तरीका थोड़ा अलग होता है। जब तक हमें रोग के कारण, उसकी मीयाद, उसके लक्षण वगैरह के बारे में पूरी जानकारी न मिल जाये, हम इलाज नहीं कर सकते। इसके अलावा रोगी का टेम्परामेंट, उसकी मनस्थिति, रोग और उसके इलाज के प्रति उसके दृष्टिकोण के बारे में भी जानना हमारे लिए और रोगी के लिए भी फायदेमंद होता है। तो जनाब, अब मामला यह बनता है कि आपने फार्म में बचपन में होने वाले दर्द का जिक्र किया है और ये केस कटाने वाला मामला। आप उसके बारे में तो बतायेंगे ही, आप यह समझ लीजिये कि आप मालविका के सामने अपने-आपको पूरी तरह खोल कर रख देंगे। यह आप ही के हित में होगा। आप निश्चिंत रहें। आप का कहा गया एक-एक शब्द सिर्फ मुझ तक रहेगा और उसे मैं सिर्फ आपकी बेहतरी के लिए ही इस्तेमाल करूंगी।

    मैं मंत्रमुग्ध सा उनके चेहरे पर आंखें गड़ाये उनका कहा गया एक एक शब्द सुन रहा हूं। वे धाराप्रवाह बोले जा रही हैं। उनके बोलने में भी सामने वाले को मंत्र मुग्ध करने का ताकत है। मैं हैरान हूं, यहां लंदन में भी इतनी अच्छी हिन्दी बोलने वाले लोग रहते हैं।

    वे कह रही हैं - दीप जी, अब आप बिलकुल नःसंकोच अपने बारे में जितना कुछ अभी बताना चाहें, बतायें। अगर अभी मन न हो, पहली ही मुलाकात में मेरे सामने इस तरह से खुल कर बात करने का, तो कल, या किसी और दिन के लिए रख लेते है। यहां इस माहौल में बात न करना चाहें तो बाहर चलते हैं। लेकिन एक बात आप जान लें, आप के भले के लिए ही कह रही हूं आप मुझ से कुछ भी छुपायेंगे नहीं। तो ठीक है?

  • ठीक है।
  • मैं समझ रहा हूं, इन अनुभवी और अपनत्व से भरी आंखों के आगे न तो कुछ छुपाया जा सकेगा और न ही झूठ ही बोला जा सकेगा।

    - गुड। उन्होंने मेरी तरफ हाथ बढ़ाया है।

    - समझ नहीं पा रहा हूं मालविका जी कि मैं अपनी बात किस तरह से शुरू करूं। दरअसल...

    - ठहरिये, हम दूसरे कमरे में चलते हैं। वहीं आराम से बैठ कर बात करेंगे। ¸ú ›¸ ž¸ú ›¸­ì ˆÅजूस, बीयर वगैरह हैं वहां फ्रिज में। किसी किस्म के तकल्लुफ की ज़रूरत नहीं है।

    हम दूसरे कमरे में आ गये हैं और आरामदायक सोफों पर बैठ गये हैं। उन्होंने मुझे बोलने के लिए इशारा किया है।

    ***