पेशावर bharat Thakur द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

पेशावर

4 जनवरी, 2012
"ये वतन! हमारा है!! इस वतन को फिरकापरस्त लोगो ने कब्जाया हुआ है। मुझे अपनी अपनी कुर्बानी दो, इस वतन को जन्नत में बदलने के लिए। हम यहाँ नया जहाँ बनायेगे! तुम्हारी कुर्बानी जाया नही जाएगी। तुम्हे जन्नत में चालीस हूरे मिलेगी! मरने के बाद भी ऐशो आराम की दुनिया मिलेगी।" महमुदुल्लाह इस बार माइक पर जोर जोर से बोल रहा था। अशफाक अपने हमशक्ल भाई खालिद के संग अपने कुछ दोस्तों के साथ पहली बार इस तरह के आयोजन में आये थे। आयोजन पेशावर के सुनहरी मस्जिद स्कूल के पास एक छोटे से मैदान में हो रहा था।

"अशफाक! ये क्या बोल रहा है? जन्नत में हूर मिलेगी!" खालिद चुपके से अशफाक के कान में सुगबुगाया।

"खालिद! बात पूरी सुनो! बीच मे मत बोलो!" अशफाक ने खालिद को रोका।

"अशफाक! ये बेहूदा बाते तुम ही सुनो! मैं तो जा रहा हु।" खालिद इतना कहकर उठने को ही था कि अशफाक ने उसका हाथ खींचकर उसे नीचे बिठा लिया।

महमुदुल्लाह ने करीब एक घण्टे तक भाषण दिया। भाषण देते वक़्त उसका ध्यान इन स्कूली बच्चो पर बार बार जा रहा था। उसने अपने साथ खड़े किसी शक्श को इशारा किया।

"अशफाक! तुमने तो कहा था हम घूमने जा रहे है। पर यहाँ तो कुछ और ही चल रहा है। ये जगह ठीक नही लगती मुझको।" खालिद चिढ़ते हुए बोला।

"छोटे! हम स्कूली किताबो में झूठा ज्ञान पढ़ रहे है। इस दुनिया मे इतना कुछ गढ़ रहा है कि अब कुछ न किया तो ये दुनिया रहेगी नही। देखो! किस तरह इराक में अमेरिकियों ने मुसलमानों को चुन चुन कर मारा! उससे उसका पेट न भरा तो फिर अफ़ग़ानिस्तान की ओर रुख किया। रात दिन गोले बरसाए गए। ओसामा को भी सरे आम मार दिया। कश्मीर में भी भारत के सिपाही आये दिन मुस्लिमो पर जुल्म ढाह रहे है।"

"अशफाक पर इससे हमें क्या? अब्बा ने हमे आर्मी स्कूल भेजा है। वहां उच्च शिक्षा प्राप्त करना ही हमारा ध्येय होना चाहिए और न कि इन बेफिजूल बातों पर अपना वक़्त जाया करना!"

"तुम्हे ये बेफिजूल लगता है। तुम जैसों की वजह से कौम का ये हाल है!" अशफाक की आंखे लाल हो गयी थी।

खालिद को समझते देर न लगी कि अशफाक को जब गुस्सा आता है उसे ध्यान नही रहता कि वह क्या कर रहा है।

"अच्छा बाबा! तुम मुझसे सिर्फ 5 मिनट बढ़े हो। तुम्हारा कहना सर आंखों पर! अब चले घर!" खालिद ने अशफाक को चपत लगाई।

"हेलो! तुम्हे महमूद भाई ने बुलाया है" एक तगड़ा मोटा बन्दा अशफाक और खालिद के पास आया।

खालिद ने अशफाक को जाने से मना कर दिया। पर अशफाक ने खालिद को साथ चलने का इशारा किया।

"अस्सलाम वालेकुल!" अशफाक ने महमुदुल्लाह की तरह एहतराम किया।

"वालेकुम अस्सलाम! आओ बच्चो! हमे तुम जैसे सिपाहियों की जरूरत है। मैं देख सकता हु की तुम इस जहाँ में हमारे कौम का नाम रौशन करोगे। अल्लाह ने तुम्हे एक मकसद के लिए इस जहाँ में भेजा है।" महमुदुल्लाह ने अपनी बात रखी। अशफाक की आंखों में चमक आ गयी। खालिद के मन मे कही न कही डर बोल रहा था कि जो हो रहा है वो ठीक नही हो रहा है। उसने अशफाक की तरफ देखा पर अशफाक जैसे हिप्नोटाइज हुआ महमुदुल्लाह की बातों को गौर से सुन रहा था।

कुछ देर बाद दोनों अपने घर की ओर रवाना हो गए।

"अशफाक! ये बन्दा ठीक नही है। अब्बा हमे चाहते तो मदरसा में पढ़ाते और इन जैसे बना देते। पर अपने अब्बा ने हमसे ज्यादा दुनिया देखी है। ये जो दुनिया हमे दिखाना चाहते है उसमें सिवाय हिंसा के और कुछ नही है। इनकी दुनिया मे खून खराबे के अलावा और कुछ नही है।" खालिद को बीच में ही टोकते हुए अशफाक बोल पड़ा।

"तुम नही समझते हो छोटे! तुम्हारी सोच संकीर्ण हो गयी है। खुद तक ही सीमित है। महमुदुल्लाह जैसे लोगो को अमिरिकियो, पाक आर्मी और तुम जैसों से भी लड़ना पड़ता है। मैं अब और कोई बकवास नही सुनना चाहता।" इतना सुनकर खालिद चुप हो गया।

खालिद ने पूरी बात अपने अब्बा असलम को बताई। उसने अशफाक के रुझान के बारे में भी बताया। असलम ने न आव देखा न ताव देखा। अशफाक के गाल पर एक थप्पड़ झड़ दी।

"बेटों! इन बदमाशो से दूर ही रहना। पहले ही मेरा परिवार लील लिया है उन्होंने। मैं तुम्हे पढा लिखाकर अच्छा इंसान बनाना चाहता हु। इन सबमे कुछ नही रखा है।" अशफाक ने गुस्से से खालिद की ओर देखा। खालिद ने अपनी आंखें नीचे कर दी।

पर दूसरे दिन भी अशफाक स्कूल से बंक कर महमुदुल्लाह का भाषण सुनने पहुंच गया। खालिद ने इस बार अपने अब्बा असलम को बात न बताई।

अशफाक लगातार स्कूल से गायब होने लगा। कुछ दिनों बाद खालिद से रहा न गया और उसने अपने अब्बा असलम को सारी बात बता दी।

असलम का गुस्सा सातवें आसमान पर था। उसने अशफाक की बुरी तरह पिटाई कर दी। अशफाक को कुछ समझ नही आ रहा था कि उसके साथ हो क्या रहा है?

"किसने कहा था उस महमुदुल्लाह की रैली अटेंड करने? तेरे भेजे में मेरी बात नही जाती?" असलम चिल्लाता जा रहा था और अशफाक को पीटते जा रहा था। खालिद भी डर गया था। अशफाक ने गुस्से से खालिद की तरफ देखा जैसे कह रहा हो कि 'चुगली कर दी तूने'

असलम जब थक गया, तब रुक गया। पर अशफाक के आंखों में आसूं का एक कतरा न था। वह उठा अपने कमरे में गया और दरवाजे को अंदर से बन्द कर दिया। असलम काफी देर तक अपने आप को कोसते रहा। कुछ सोच कर उसने अशफाक का दरवाजा खटखटाया पर अंदर से कोई आवाज नही आई। असलम के काफी देर तक खटखटाने के बाद भी जब अशफाक ने दरवाजा नही खोला तब असलम डर गया और उसने दरवाजा तोड़ दिया। कमरे की खिड़की खुली हुई थी और अलमारी का सामान बिखरा हुआ था। अशफाक अपने कपड़े किसी झोले में ले घर से भाग निकला था।

असलम पुलिसों के खूब चक्कर लगाए पर अशफाक का कोई पता नही चला। वह महमुदुल्लाह के पास भी गया पर वहां भी उसे निराशा ही हाथ लगी। खालिद को पता था कि हो न हो अशफाक महमुदुल्लाह के पास ही था। पर लोकल पुलिस और सभी नेतागण महमुदुल्लाह से डरते थे। किसी की हिम्मत नही थी कि उसके यहाँ छान बिन की जाए। आईएसआई की भी उस पर छत्रछाया बनी हुई थी।

***********

तीन वर्ष बाद,,

खालिद अपनी पढ़ाई में व्यस्त था। अशफाक का कोई अता पता नही चला था। खालिद को अशफाक की याद आती रहती पर चाहकर भी वो कुछ न कर सका। अपने अब्बा का सपना पूरा करने का जिम्मा अब उसके कंधों पर ही था। आर्मी स्कूल में आज का दिन खास था। आज इस्लामाबाद से बड़े नेतागण आने वाले है। स्कूल में खास तरह की सजावटें की गई थी। सारे लोग व्यस्त थे अपने अपने कामो में। खालिद हमेशा की तरह लाइब्रेरी में अपना समय व्यतीत कर रहा था। लाइब्रेरी से स्कूल का फाटक आसानी से दिख रहा था। खालिद फाटक की ओर देख ही रहा था तभी एक पिकअप गाड़ी उतरी कुछ पांच छः नौजवान मास्क पहने हुए अपने हाथों में कुछ सामान लिए गार्ड से बाते कर रहे थे। अचानक एक नौजवान ने गार्ड की तरफ एक साइलेंसर पिस्तौल से हमला किया। गार्ड वही ढेर हो गया। गार्ड को केबिन के पीछे ले जाकर लिटा दिया। खालिद के होश फाख्ता रह गए।

उन नौजवानों ने बड़ी मुस्तैदी और फुर्ती से पिकअप को स्कूल के प्रांगण तक ले आये और एक एक कर बैक पैक सहित अलग अलग दिशाओं में चले गए। कुछ ही देर में गोलियों की आवाज पूरे स्कूल में गूंजने सी लगी। उन नौजवानों ने स्कूल की क्लासरुमो में जा जाकर बच्चो को निशाना बनाया। खालिद झट से लाइब्रेरी के मैन डोर तक पहुंचने ही वाला था कि एक मास्क वाला नौजवान लाइब्रेरी के गेट के पास खड़ा हुआ था। उसकी बंदूक का निशाना लाइब्रेरियन की तरफ ही था उसका ध्यान खालिद की तरफ गया। खालिद ने अपने हाथ खड़े किए और टेबल की तरफ झुक गया था। मास्क वाला नौजवान काफी देर तक खालिद कि तरफ देख रहा था। वह अपने आसपास गोलियों की आवाज के साथ चीखे- चिल्लाने की आवाज बखूभी सुन रहा था। वह नौजवान लाइब्रेरी के अंदर आया। उस वक़्त लाइब्रेरी में करीब 8 से 10 लोग थे। उसने लाइब्रेरी का दरवाजा अंदर से बन्द किया। खालिद को अपने सामने मौत दिख रही थी। उसने मन ही मन अपने खुदा को याद किया।

वह नौजवान हाथ मे बंदुक लिए खालिद के पास गया।

"छोटे! मैं अशफाक!" उस नौजवान ने अपना मास्क उतारा। सामने हूबहू शक्ल वाला इंसान और कोई नही बल्कि अशफाक ही था।

इतना सुन खालिद को अपनी आंखों पर विश्वास नही हो रहा था की अशफाक से मुलाकात होगी और वो भी इस कदर।

"छोटे! लाइब्रेरी की खिड़की से कूद कर पीछे के गेट से भाग जा। नही तो मारा जाएगा।"

"अशफाक! तुम! यहाँ ! क्या...क्या हमें मारने आये हो?"

"छोटे! ज्यादा टेम नही है। भाग जाओ यहाँ से, मैं इन्हें सम्हाल लूंगा।"

"तुम ऐसे क्यो बने अशफाक?" खालिद की आंखे रुआंसी हो गयी थी।

"छोटे! बात न कर! अपना टेम न खराब कर! मैं तो अब्बा के ख्वाब पूरा न कर सका! पर तुम्हे करना है! मुझे इन लोगो ने बहका दिया। मुझे बताया गया कि यहां अमिरिकी आएंगे आज और इस्लामाबाद से कुछ नेता भी आएंगे उन्हें निशाना बनाना है। पर ये तो मासूम बच्चो को शिकार बना रहे है। मुझे नही पता ये ऐसा क्यो कर रहे है? अब तू भाग यहां से!"

खालिद खिड़की की तरफ बढ़ने लगा। उसने अशफाक को भी साथ चलने के लिए कहा। पर अशफाक ने मना कर दिया। खालिद के साथ बाकी के स्टूडेंट भी उस खिड़की से कूद कर पीछे के गेट से स्कूल से बाहर आ गए।

अशफाक ने खिड़की से खालिद को हाथ दिखाया। दोनों की आंखे नम थी। अशफाक तुरंत दौड़कर अपने साथी के पास गया। अशफाक ने उसकी ओर बंदूक तान कर ट्रिगर दबा दी। पहला साथी वही ढेर हो गया था। दूसरा साथी जब तक कुछ समझता अशफाक ने उस पर भी गोली चला दी। दूसरा साथी भी ढेर हो गया था।

तीसरा साथी दौड़कर आया और उसने अशफाक को पीछे से धक्का दिया। अशफाक फर्श पर गिर गया और उसकी बंदूक नीचे गिर गयी।

"हरामजादे! अपने ही साथी पर गोली चलाता है।" उसने बंदूक की नोंक अशफाक के सीने पर रख दी।

"तो तुम लोग क्या कर रहे हो! इन बच्चो को क्यो मार रहे हो? ये भी तो अपने ही है।" अशफाक चिल्लाया।

"ये काफिरों के बच्चे है। इनका मरना तय है। तुम्हे ये बोलकर ही यहाँ भेजा गया था कि तुम इस स्कूल के चप्पे चप्पे की मालूमात थी। वो महमूद भाई के सामने तुमने जिद कर दी यहां आने की वरना मास्टर प्लान में तो तुम यहाँ थे ही नही। तुमसे झूठ बोला गया कि अमरीकी आ रहे है यहाँ। हमारा असली मकसद इस सरकार की कान में गर्म गर्म खौलता हुआ इन बच्चो का खून डालना है। ताकि उसकी नींद खुले और इन अमिरिकियो के उकसावे में हमारे लोगो का कत्ल न करे। आज उनके बच्चो पर हमला किया है कल इनके घरों पर धावा बोलेंगे।"

"तुम... तुम.... लोग शैतान हो!" अशफाक चीख पड़ा।

"हा,, हम शैतान है। पर अल्लाह के चाहनेवाले है। उसकी दिखाई गई राह पर तो नही चल सके पर ऐसी राह पर चल रहे है कि उस तक हम जल्द पहुंच जाए और उसकी हुकूमत चारो ओर फैल जाए।"

इतना कहते ही एक गोली चली और वो तीसरा शक्श वही ढेर हो गया। उस तीसरे शक्श के खून के छींटे अशफाक के चेहरे पर उड़े। आर्मी के कुछ लोग स्कूल के प्रांगण में आ धमके थे और उन्होंने भी गोलियां बरसाना शुरू कर दिया था। अशफाक पेट के बल सरकते सरकते एक कोने तक पहुंचा। उसके हाथ मे बंदूक थी। उसे अब सारी बाते याद आ रही थी। खालिद की कही हुई बात, 'ये जो दुनिया हमे दिखाना चाहते है उसमें सिवाय हिंसा के और कुछ नही है। इनकी दुनिया मे खून खराबे के अलावा और कुछ नही है।' और अपने अब्बा की कही हुई बात,'बेटों! इन बदमाशो से दूर ही रहना। पहले ही मेरा परिवार लील लिया है उन्होंने। मैं तुम्हे पढा लिखाकर अच्छा इंसान बनाना चाहता हु। इन सबमे कुछ नही रखा है।' जैसे अशफाक के कानों में गूंज रही थी।

आर्मी के जूतों की आवाजें भी अब करीब से आ रही थी। उसके दो और साथी उन पर गोली बरसा रहे थे। वे हारी हुई जंग लड़ रहे थे। अशफाक धीरे धीरे पास ही में क्लास रूम में चला गया। चारो ओर खून बिखरा हुआ था। बच्चो की लाशें बिखरी पड़ी हुई थी। मासूम बच्चो के चेहरे पर 'आतंक का साया' साफ साफ दिख रहा था। अशफाक की आंखों में आसुंओ की धार बह चली थी। वो नमाज की मुद्रा में आ गया। बंदूक को एक ओर रख दी। अशफाक ने आखिरी बार वही फर्श पर नमाज अदा करने की मुद्रा में बैठ गया था। उसने अपनी गलतियों की माफी मांगनी चाही अल्लाह से। पर, आज जैसे कानो में चीखे - चिल्लाने और गोलियों के अलावा और कोई आवाज गूंज नही रही थी। मन में जैसे एक पीड़ा उत्पन्न हुई और वह अपने आप को कोसता जा रहा था। अशफाक का रोम रोम उसे धिक्कार रहा था। पर उसके पास समय कम बचा था। अल्लाह से माफी मांगने के उपरांत उसने बन्दकु उठाई और उसकी नोंक अपनी ठुड्डी पर लगा दी। वो ट्रिगर दबाने ही वाला था कि आर्मी के एक नौजवान ने अपनी गोली सीधे उसकी खोपड़ी में डाल दी। अशफाक वही ढेर हो गया।

**********

खालिद की हिम्मत न थी अपने अब्बा से बात करने की। असलम ने खालिद को देखते ही उसे गले लगा दिया। "शुक्र है खुदा की तुम सही सलामत हो! मेरी सांस ही अटक गई थी। कहाँ कहाँ नही ढूंढा तुम्हे इस भीड़ में?"

"अब्बा! वो अशफाक!..." खालिद रुकते रुकते हुए सारी बात बता दी।

"या अल्लाह!" कहकर असलम ने अपना सिर पिट दिया।

"ऐसी औलाद होने से तो बेहतर था, मैं बेऔलाद ही रहता।" असलम फूटफूट कर रोने लगा।

खालिद ने असलम को सम्हाला और पेशावर स्टेशन पर गाड़ी में बैठकर किसी अनजानी जगह पर गुमनामी में जीने चले गए। उसकी शक्ल टीवी और अखबारों की सुर्खियों में छा चुकी थी। मासूम बच्चो के परिवार का रो रो कर बुरा हाल था। वे जी भर कर उन दहशतगर्दो को कोस रहे थे। खालिद अपने अब्बा के साथ दूर दराज इलाके में चला गया। वहाँ उन्हें कोई न जानता।

******समाप्त******

भरत ठाकुर

7354102410

© Copyright reserved