निर्णय bharat Thakur द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

निर्णय

"जिंदगी से अक्सर मैं रूठा रूठा सा था,
फिर तुम मिली,
जैसे जिंदगी के साज एक साथ मिल गए।"

अनीश ने रुखसाना कि ओर प्यार भरी नजरों से कहा।

रुखसाना का ध्यान अनीश की बातों पर कम और लहरों पर ज्यादा था। लहरें एक एक कर किनारे पर खड़े बड़े-बड़े पत्थरो पर चोट कर रही थी। आज वह यहाँ क्यो है उसे खुद भी नही पता! बात ज्यादा पुरानी नही है जब पहली बार अनीश से मिली थी। अनीश का मजाकिया अंदाज और चुलबुलापन उसे भा गया था। पर रुखसाना के जीवन मे पहले से कोई और ही था। उसकी तस्वीर जैसे रुखसाना के मन मे उतर चुकी थी। रुखसाना को एक ही नाम और एक ही शक्श पसंद था,,,, आफताब!

आफताब की बात ही कुछ और थी। जैसा नाम वैसा ही काम था। मस्तमौलापण और हाजिरजवाबी उसकी बहुत सारी खूबियों में वो खूबी थी जो सबसे ज्यादा रुखसाना को पसंद थी। आफताब एयर फोर्स में काम करता था। उसकी हर तीन साल में पोस्टिंग बदलती रहती। इस बार उसकी पोस्टिंग बीकानेर में थी। वो, रुखसाना के ही घर के ऊपरी मंजिल पर रहने आया था। रुखसाना जैसे उसे पहली नजर में देखते ही मंत्रमुग्ध हो गयी थी। आफताब का शरीर सुडौल और उसका चेहरा किसी फिल्मी हीरो से कम न था, शायद रितिक रौशन जैसा ही लगता था। आफताब को पहली ही नज़र में पता चल गया था कि रुखसाना की आंखों की चमक उसी के लिए थी।

कुछ दिन बाते हुई, फिर मुलाकातें हुई और जल्द ही दोनों के होठो पर एक दूजे के लिए इकरार भी हुआ। रुखसाना जितनी खुश थी उतना ही आफताब भी फुला न समा रहा था। घर मे किसी को पता नही था इनके प्रेम संबंधों के बारे में। रुखसाना हर कोई छोटे बहाने से छत पर जाती और आफताब उसके लिए कोई न कोई चिट्ठी छोड़ जाता। चिट्ठी का पता वो व्हाट्स एप्प के माध्यम से रुखसाना को देता और रुखसाना पहेली को हल कर चिट्ठी पा लेती। कभी फ्रीजर में तो कभी किचन की अलमारी में तो कभी तकिए के नीचे तो कभी डोर मैट के नीचे,, आफताब हर उस जगह रुखसाना के लिए प्यार भरी चिट्ठियां लिखता। पर रुखसाना के लिए एक एक क्लू के साथ सवाल छोड़ जाता। जिसे हल करने पर ही अगली चिट्ठी का पता मिलता।

ये लुका छिपी कई दिन चली। एक दिन, मानो वक़्त ठहर गया हो। इंद्रधनुष दोनों के प्यार के रंगों को समाए गगन में अठखेलियाँ करता। बादल रह रह कर दोनों के प्यार का इजहार करते न थकते। बादलों की गड़गड़ाहट और बिजली की चमक जैसे आकाशीय वरदान मिला उन दोनों को एक होने का। एक दूजे के आघोश में लगभग कही खो चुके थे। इस दुनिया के नियम कानून सब भुलाकर एक हो गए थे। वो पल ही ऐसा था जब दोनों के शरीर एक दूजे में पूर्णतया लिप्त हो गए थे।

कुछ दिनों बाद, न जाने किसकी नज़र लग गयी। आफताब का लौटते वक्त एक्सीडेंट हो गया। उसकी लाश ही रुखसाना के दर पर पहुंची। रुखसाना अपने होशो हवाश खो बैठी थी। पवन के झोंके बार बार कफ़न पर चोट कर रहे थे जैसे कह रहे हो आफताब से के एक बार उठ जा! रुखसाना के बिल्कुल सामने कफ़न में लिपटे आफताब को उठा ले गए। जैसे रुखसाना भी आफताब के साथ इस दुनिया से रुखसत लेने आमादा हो चुकी थी। रुखसाना का दिल बार बार कह रहा था कि वो जिंदा है। पर दिमाग ये मानने को बिल्कुल तैयार नही था। अजीब से खामोशी पसरी हुई थी रुखसाना के मन मे। अपनी जीवन लीला समाप्त करने का निश्चय कर लिया था। आफताब के शरीर को सपुर्द ए खाक किया जा चुका था।

रुखसाना ऊपर छत की ओर गयी। उसे लगा मानो आफताब की रूह उसके पास ही खड़ी कुछ कहने की कोशिश कर रही थी। उसका दुप्पट्टा हवा में लहरा रहा था। पर रुखसाना को तो जैसे आफताब के साथ ही इस हवा में घुलकर रह जाना था। रुखसाना के हाथ मे रस्सी थी। बार बार खिड़कियां रह रह कर हवा को रोकने की नाकाम कोशिश कर रही थी। रुखसाना खिड़कियों को अच्छे से बन्द करने झुकी ही थी के मोबाइल पर एक मैसेज आया!

ये मेसेज आफताब का था!!

रुखसाना को कुछ समझ नही आया कि आखिर हो क्या रहा है? तभी उसे मेसेज आया। मेसेज में एक नाम उभरा, आफताब! उसमें एक पहेली थी। शायद आखिरी पहेली थी। रुखसाना दौड़ कर वो मेसेज आफताब के अब्बा अम्मा को दिखाना चाहती थी। वो चीख कर कहना चाहती थी कि आफताब जिंदा है। वो दौड़ कर नीचे गयी। आफताब के अब्बा के हाथ मे आफताब का फ़ोन था जो उन्होंने अभी अभी स्टार्ट किया था। रुखसाना को समझने में देर न लगी कि शायद आफताब का ये आखिरी मेसेज था जिसे टाइप करते करते हादसा घटित हुआ हो! उसने अपने मोबाइल की ओर देखा। वो पहेली शायद आखिरी थी।

"दौड़ कर देखना उस ओर जहां से हम सब आये है,
वही गर्भ में छिपा में है, जहाँ सभी को जाना है। "

आफताब के कमरे में एक छोटा सा लकड़ी का गुम्बन्द नुमा मंदिर था, उसमें मक्का - मदीना की तस्वीर थी। तस्वीर के नीचे कुरान रखी हुई थी। रुखसाना ने कुरान उठाई और उसे अपनी आंखों से लगाया। कुरान रखते ही नीचे टेबल के दराज पर रुखसाना की नज़र गयी। वहां उसके लिए एक चिट्ठी थी।

"गर मैं चला जाऊं,
गर मैं बुझ जाऊ,
तुझे दिया बनना है,
अपने जहाँ को रौशन करना है,,
मेरी फिक्र में अपनी जान न देना,
तेरी इसी फिक्र में शकुन से सो न पाऊंगा!
तुम्हारा - आफताब"

ये आखिरी चिट्ठी रुखसाना के दिलो दिमाग पर चोट करने के लिए काफी थे। रुखसाना को विश्वास नही हो पा रहा था कि जो अभी अभी घटा क्या वो सच था। रुखसाना जैसे निर्जीव हो कमरे में ही बेहोश हो गयी।

कुछ देर बाद रुखसाना को होश आया। रुखसाना के ख्वाब जैसे आधे अधूरे रह गए। वो पागल सी हो गयी थी। रह रह कर मोबाइल देखती पर कोई मेसेज नही था। सारे पुरानी चिट्ठियों को बार बार पढ़ती। अपने होश हवाश खो बैठी थी। उसे एहसास था कि उसकी अंतिम वार्तालाप रह रह कर आंखों के सामने गुजर जाता,,

"तुम मेरे बिना जी लोगी?"
"रब्बा! ऐसी बात क्यो करते हो आफताब? तुम्हे पता है न मैं तुमसे अलग नही रह सकती!"
"पर जीवन तो अल्लाह की देन है। उसे यू ही बेवजह जाया नही करते! अल्लाह जो करता है सही करता है।"
"हा! वही तो कह रही हु! वो जो करता है सही करता है। तुम न रहे तो मैं कैसे जीवित रह सकती हूं? ये उसका ही फरमान होगा!"
"तुमसे बहस बेकार है!"
"तो क्यो करते हो बहस! जाओ अब काम पर जाओ!"

रुखसाना बार बार अपने आप को कोस रही थी। आंखे पथराई सी हो गयी थी। उसके अब्बा को समझते देर न लगी। उसने जल्द से मामू के पोते अनीश को घर बुला लिया था। अनीश को रुखसाना बचपन से ही जानती थी। अनीश मजाकिया किस्म का आदमी है। हरदम लोगो को हँसाता पर अंदर से उतना ही गंभीर और सुलझा हुआ इंसान है। अनीश रुखसाना का दिल बहलाने की लाख कोशिश करता पर असफल रहा। रुखसाना के पापा ने अनीश से रुखसाना का निकाह तय कर दिया। रुखसाना की आंखों में ना को जैसे अनीश के साथ साथ बाकी घरवालों ने भी भांप लिया।

*******

"बेटी, तुम माँ बनने वाली हो! अनीश से शादी कर लो तो इस घर की लाज इस समाज मे बच जाए!" रुखसाना की माँ ने कहा।

"अम्मा! क्या बाते कर रहे हो! आप क्या कह रही है अम्मी!"

"जब तुम बेहोश हुई थी तब पड़ोस की बीजी ने तुझे देखते ही समझ गयी थी। ये बात सिर्फ हम तीनों के बीच ही है। अनीश से निकाह कर लो बाकी सब हम सम्हाल लेगें! अब्बा को भी बात पता न चलेगी।"

"अम्मा! मैं अनीश से शादी नही...!"

"बेटी! तुम्हारे अब्बा को पता चलेगा तो पता नही कयामत आ जायेगी! मार डालेंगे तुझे! रहम कर दे इस बूढ़ी अम्मा पर!" रुखसाना की अम्मा हाथ जोड़ने लग गयी। रुखसाना को अम्मा को बात का विश्वास नही हुआ। उसने बाजार से प्रेगनेंसी टेस्ट किट मंगवाया और चेक किया। रिजल्ट पोसिटिव था। रुखसाना की आंखे नम थी। उसने अपने पेट पर हाथ रखा, उसे आफताब की याद आ गयी। आंखे गीली कर अम्मा से लिपट गयी। अम्मा ने रुखसाना को अनीश से निकाह करने के लिए मना ही लिया था।

निकाह की खबर अनीश तक पहुंच गई। इस बार रुखसाना के मोबाइल में एक मैसेज आया,

"गर खबर रखनी मेरी, गर ढूंढना है मुझे,
देख तेरे आँचल में, देख तेरी आँखों मे,
मैं ही हु! मैं ही हु! मैं ही हु!!"

ये मेसेज और किसी का नही बल्कि अनीश ने किया था। अनीश जल्द ही रुखसाना के पास पहुंच गया था। अनीश रुखसाना के बेहद करीब खड़ा था। रुखसाना को असहज महसूस हो रहा था। पर अम्मा की नज़र रुखसाना पर थी। वो जैसे कह रही हो सब ठीक है। अनीश की आंखे बार बार रुखसाना से उसके आँचल की ओर इशारा कर रही थी। रुखसाना ने अपने आँचल की ओर देखा। एक गांठ लगी हुई थी। रुखसाना ने उस गांठ को खोला, उसमें एक कागज का टुकड़ा था।

"मेरी साँझ बन जा, मुझमें तू समा जा,
तेरे हर आंसू को बहने से रोक दूंगा,
तेरे हर गम को अपनी हंसी में पिरो दूंगा,

तुम्हारा- अनीश"

रुखसाना की आंखों में बेहतरतिब आंसू आ गिरे थे। सामने अनीश तो अतीत में आफताब के प्यार और पेट मे पलता नया जीवन, इन सब के के बीच भँवर में फँसा हुआ महसूस कर रही थी। मंझधार में खुद को असहाय महसूस कर रही थी। अपनी आंखों से आंसुओ को मिटाया, नए कल में आनेवाले नन्हे के लिए अनीश का हाथ पकड़ उसके साथ निकाह कर लिया।

गोआ में हनीमून मनाने गए थे। रुखसाना ने बस पहली रात को ही अनीश को छूने दिया था। गोआ में रुखसाना का ध्यान अनीश की बातों पर कम और अतीत की यादों में घूम ज्यादा था। अनीश हर सम्भव कोशिश करता पर रुखसाना की फीकी मुस्कान उसे आहत करती। उसे विश्वास था कि एक दिन रुखसाना का प्यार वो पाकर रहेगा।

"ख्वाब में ही मैं और तुम एक थे, हकीकत में कोसों का फासला भी तेरे मेरे दरम्यान सिसकने लगे है"

अनीश का एक और मैसेज जैसे रुखसाना को झकझोर कर रख दिया। अनीश पास न था, पर उसका अधूरा मेसेज दराज पर चिट्ठी की शक्ल में रखा हुआ था। अनीश मार्किट निकला हुआ था।

रुखसाना को अपनी गलती का एहसास होता है। वो अनीश को सब सच बताना चाहती थी। अनीश से अब ज्यादा दिन और झूठ न बोल सकती थी। रुखसाना अबॉर्शन तक करवाने के द्वंद में फंस गई थी। क्या पता अनीश क्या सोचेगा? क्या बच्चे को अपना पा पायेगा? या बच्चे को अबॉर्शन करना पड़ेगा। न जाने कितने अनगिनत सवाल के घेरे में रुखसाना पहुंच गई थी। वो बेसब्री से अनीश का इंतज़ार कर रही थी। जैसे अनीश आये और वो उसे सारा सच बता दे। रुखसाना अनीश की जिंदगी को खराब नही करना चाहती थी। चाहे उसके लिए रुखसाना कोई भी कीमत चुकाये।

दरवाजे पर दस्तक होती है। रुखसाना दौड़ कर जाती है और दरवाजा खोलती है। दरवाजे पर खड़ा वो शक्श और कोई नही बल्कि आफताब था। आफताब रुखसाना को देख रहा था। रुखसाना जैसे बदहवास सी आफताब को देख रही थी। उसे अपनी आंखों पर यकीन ही नही हो रहा था। क्या ये वही आफताब है जिसकी कुछ दिनों पहले मौत की खबर सुनी थी?

'मेरी आँखें खुली थी,
हर पल सांसे गिनता रहा,
खुदा से भी तकरार की थी मैंने,
एक बार देख लू, तो फिर जिंदा हो जाऊं,
कुछ पलों के लिए!!'

आफताब चुपचाप खड़ा था। पर जैसे उसकी आँखें बोल रही थी। आफताब का मुँह बन्द था पर न जाने कैसे रुखसाना के कानों तक आफताब की आवाज पहुंच रही थी। वो आफताब को छूना चाहती थी पर छूने में एक झिझक थी, एक डर भी था। आफताब से गले लिपटना चाहती थी पर लिपटने में भी एक झिझक थी। अनीश की अमानत बन गयी थी रुखसाना! आज सामने खड़ा शक्श वही आफताब है कि नही!

"अ... आ...आ..आफताब!" रुखसाना की जुबान को जैसे लकवा मार गया था।

आफताब की आंखों ने जैसे रुखसाना से कहा,
"कभी कभी सच पर्दे में ही रहे तो बेहतर है,,
मैं फिर न मिलु अब, पर मेरा अंश ही पलेगा!"

आफताब आंखों से ओझल हो गया जैसे वो एक धुँआ था और वायु के संग ओझल हो गया। रुखसाना की डर के मारे चीख निकल गयी और बेहोश हो गयी। इतने में अनीश ने आकर रुखसाना को पकड़ लिया उसे गिरते गिरते बचा लिया।

रुखसाना होश में आई। आफताब पास न था।

"क्या हुआ? अब ठीक लग रहा है " अनीश ने रुखसाना से पूछा।

रुखसाना का ध्यान दरवाजे पर ही लगा हुआ था जैसे वो एक सपना था क्या? कुछ सचमुच आफताब आया था? या वो सिर्फ उसका वहम था?'

रुखसाना की आंखो में आँसू थे। अनीश किचन से गरमागरम चाय ले आया था। आंखों में आंसू देख वो रुखसाना को सम्हालने लगा। रुखसाना को अनीश का छुना नागवार नही लगा। रुखसाना ने भी अपने आपको उसकी बांहों में न्योछावर कर दिया।

कुछ पलो बाद मोबाइल पर रुखसाना को अनजाने नंबर से मेसेज आया,

'आखिरी बार का मेसेज है,
तुमसे गुफ्तगू पूरी न हो पाई,
दर पर आया था तेरे,
डराने नही अपितु कुछ सन्देश लाया था,'

रुखसाना को देर न लगी, वह जट से दरवाजे पर गयी, वहां एक चिट्ठी पड़ी मिली,

"मैं आफताब! आखिरी बार मिलने आये था।
खुदा से कुछ मोहलत मांग आया था।
तुम्हे देखना था एक बार,
तुम्हे जीना समझाना था एक बार,
जिंदगी किसी के जाने से नही रुकती,
यादों में खो जाने से जिंदगी नही कटती,
कई रंग है इस जहाँ के,
एक बार फिर जी उठूंगा मैं तेरे अंग से,
दुनिया में बाटूंगा हर खुशी के रंग!
बन जा मेरी तकदीर, मेरी सुनहरी आनेवाली तकदीर!! ,,"

रुखसाना की आंखों में आंसू फिर गिर आये थे। अनीश का ध्यान रुखसाना की ओर जाता है। अनीश रुखसाना को देख कुछ बोल पड़ता है,
"हर पल कीमती है, हर आंसू कीमती है,
बेवजह न खर्चो इन पलो और आंसुओ को,
जिंदगी लम्बी पड़ी है,
खुशियों को बाटो और गम को भुलाओ"

अनीश को गले लगा लेती है रुखसाना! चिट्टी को अपने हाथों से मरोड़कर फेक देती है। अतीत की यादों को भुला देती है रुखसाना!!

अनीश उस कागज की ओर देखता है। रुखसाना को कमरे में लिटा कर आता है। अनीश उस कागज को खोलने पर पाता है कि वो कागज कोरा था। अनीश कुछ अचरज महसूस करता है पर जल्द ही भुला देता है इस वाकये को। रुखसाना के साथ आगे का स्वस्थ जीवन यापन करता है। दोनों को एक सुंदर बच्चा होता है उसका नाम रुखसाना आफताब रखती है।

रुखसाना अनीश से बात छुपा कर रखती है जिंदगी भर की ये बच्चा अनीश का नही है। अनीश अंधेरे में तो रहता पर आफताब पर खूब नाज़ करता। रुखसाना के साथ अपने आपको बेहद खुश पाता।

*****समाप्त*****

भरत ठाकुर
7354102410