दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें - 21 Pranava Bharti द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें - 21

दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें

(लघु कथा-संग्रह )

21-इत्तफ़ाकन

आरती के जीवन में ऐसे बहुत से रिश्ते बने जो इत्तिफ़ाक़न बने लेकिन ताउम्र उनसे वैसी ही मुहब्बत, स्नेह व ट्यूनिंग बनी रही |इनमें से ही एक जापानी लड़का शीनोदा भी है -तकाशी शिनोदा !

यह अंतर्राष्ट्रीय मुहब्बत, विश्वास व स्नेह-बंधन की ऎसी मिसाल है जो चालीसियों बरसों से एक कोमल डोर से बंधी हुई है |

उन दिनों आरती पी. एच. डी कर रही थी जब इस लंबे, गोरे लड़के से उसका परिचय हुआ था | अपने पूरे ग्रुप में आरती सबसे बड़ी थी, विवाहिता थी, माँ थी, सो सबके साथ उसका एक अलग रिश्ता बन गया था, सम्मान का, स्नेह का रिश्ता !

सब ही उन दिनों अविवाहित थे, कोई पी. एच. डी कर रहा था तो कोई एम.फिल, कोई एम.ए भी कर रहा था | सब घर पर आते, आरती के पति कान्त भी बड़े उदार ह्रदय के व्यक्ति थे अत: उन्होंने सबको परिवार का अंग ही स्वीकार कर लिया था | ऐसा बहुत कम देखने में आता है, रिश्ते बनते हैं किन्तु किसी न किसी कारणवश कुछ समय बाद दूरी होने लगती है | यह आरती का सौभाग्य ही था कि अपने कोई सगे भाई-बहन न होने पर भी उसे ऐसे कितने रिश्ते मिल गए थे जो उसे दीदी पुकारते और दीदी लगी रहतीं उनकी पसंद का नाश्ता तैयार करने में | कान्त भी बहुत खुश होते | उसका नाम ही 'जगत दीदी ' पड़ गया था |

आरती की नानी का देहांत हुआ, समझ नहीं आ रहा था क्या किया जाए ? बच्चे छटी-सातवीं में पढ़ रहे थे | उनकी मिड टर्म परीक्षाएँ थीं | प्रश्न था क्या किया जाए ?

"आई विल स्टे विद चिल्ड्रन, डोंट वरी ----" शीनोदा ने बड़े अपनत्व से कहा | पशोपेश में पड़े थे दोनों | घर में एक आया और शीनोदा ! जब अपने परिवार के लोग खुराफ़ातें कर जाते हैं ऐसे में बाहरी आदमी पर भरोसा करना बहुत मुश्किल हो जाता है | फिर भी दिल कड़ा करके उस पर बच्चों को छोड़ दिया गया था |

आरती और कान्त बच्चों को शीनोदा के पास छोड़ गए | घर पर सबको बहुत आश्चर्य हुआ | कैसे एक अजनबी पर बच्चों को छोड़ दिया?जिस ज़माने में लोग अपने सगे-संबंधियों पर विश्वास करने में घबराते थे, ये लोग एक अजनबी, उस पर भी एक विदेशी बंदे पर छोड़कर आ गए थे अपने बच्चों को ! परिवार के सब लोग उन्हें ऐसे देखते रहे जैसे उन्होंने कुछ अजूबा कर दिया था | दूसरी संस्कृति, सभ्यता व देश के शीनोदा ने बच्चों का इतना अधिक ध्यान रखा जिसका सबको आश्चर्य ही हुआ |

वैसे तो विश्वविद्यालय से आरती के बहुत से मित्र घर पर आते थे किन्तु शीनोदा ने अपने कुशल व्यवहार व विश्वास से परिवार में अपनी एक अलग जगह बना ली थी |

"मुझे इंडियन लड़की से शादी करनी है |" शिनोदा ने उसे उन लड़कियों से मिलवाना शुरू किया जो उसमें इंटरेस्ट ले रही थीं | इत्तिफ़ाक़ था, एक लड़की पसंद आई और इत्तिफ़ाक़ यह भी हुआ कि भारतीय रीति से शादी भी आरती और कान्त के घर से हुई |

चलते रहे रिश्ते एक खूबसूरत डोरी में बँधे, चालीस वर्ष हो गए रिश्तों को खूबसूरती में बंधे| शीनोदा जापान में विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर था |उसने इण्डिया में एक घर भी ख़रीद लिया था सो, उसका आना प्रति वर्ष होता | संबंधों में वैसी ही मिठास बनी रही |

कुछ दिन अस्पताल में रहने के बाद छोटी सी बीमारी में अचानक कान्त की जीवन-यात्रा समाप्त हो गई | इत्तिफ़ाक यह हुआ कि शीनोदा सपत्नीक आरती के साथ खड़ा था, इस समय आरती मानसिक रूप से अपने आपको बहुत कमज़ोर महसूस कर रही थी व उसे कुछ अपनों की बड़ी शिद्द्त से ज़रुरत थी | इत्तफ़ाकन बने रिश्तों की रेशमी डोर आज तक वैसी ही संवेदनशील बनी हुई थी जबकि बहुत से ऐसे रिश्ते जो बहुत अपने थे वो टूटकर बिखर चुके थे |

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