Dil ki zameen par thuki kile - 3 books and stories free download online pdf in Hindi

दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें - 3

दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें

(लघु कथा-संग्रह )

3-अचानक

अचानक उन्हें टी वी पर देखा, संगीत पर कुछ चर्चा चल रही थी।थोड़ा सा समय लगा पृष्ठ पलटने में लेकिन लगभग तीस वर्ष पूर्व की प्रथम कक्ष की रेलगाड़ी की यात्रा ने उनके दिल के द्वारा पर दस्तक दी और चरर्र करते हुए पट खुल गए |

उन्हें भली प्रकार याद है वे तीन कवियों व एक कवयित्री बहन के साथ सूरत से कवि-सम्मेलन पढ़कर आ रहे थे | उनका बड़ा रसूख था, न जाने कितने विद्यार्थी उनके साहित्य पर शोध कर रहे थे, सबसे बुज़ुर्ग भी थे वो | कवयित्री बहन की आवाज़ बहुत कोमल व गहन थी, अपनी मधुर आवाज़ से वे सम्मेलन लूट लेतीं | बड़ा सुखद रिश्ता था सबके बीच ! अक़्सर ऐसे कार्यक्रमों में सब साथ जाते और वापिस लौटते हुए ठेठ साहित्य से निकल बच्चों की तरह फ़िल्मी संगीत में उतर जाते |सभीको सेमी -क्लासिकल गीत व भजन पसंद थे | पता ही नहीं चलता, कैसे लंबी यात्राएं तय हो जातीं |

इस बार रेलगाड़ी में सुबह के पाँच बजे की बुकिंग कराई गई थी |व्यवस्थित होते ही सबकी इच्छानुसार प्रार्थना 'हमको मन की शक्ति देना ' कंपार्टमेंट में गूँजने लगी | बहुत ही मधुर वातावरण बन गया | जैसे ही प्रार्थना समाप्त हुई वंदना बहन से किसी सेमी-क्लासिकल गीत की फरमाइश की गई | वह अभी कुछ शुरू करतीं कि अचानक धप्प से ऊपरी बर्थ से दो लोग कूद पड़े | अचानक सब चौंक पड़े और गला खँखारती वंदना बहन का सुर जैसे गले में ही बंद हो गया, इतना अप्रत्याशित था उनका ऊपरी बर्थ से कूदना !सबकी आँखों में प्रश्न चिन्ह उभर आए |

"अगर आप लोग बुरा न मानें तो हम भी सम्मिलित हो जाएँ ?" यह एक बहुत ही प्यारा, अधेड़ उम्र का युगल था जिसका किसीको पता ही नहीं था कि ऊपरी बर्थ पर बैठा है |

" अवश्य ---अरे वाह ! यह तो बड़े आनंद की बात है ---"

उस युगल ने जो बिना किसी संकोच के प्रात:कालीन राग-रागिनियों की धुन छोड़ी कि पता ही नहीं चला कब बरोड़ा आ गया और सबके बिछुड़ने का समय भी |

सबने एक-दूसरे के पते लिए किन्तु कभी किसीका किसी से मिलना न हो पाया | रेल-यात्रियों की तरह सब एक-दूसरे को भूल -भुला गए |

" आज अचानक इतने वर्षों के बाद डॉ. ब्रह्मदेव ने उस ट्रेन वाली महिला को टी वी पर देखा और अपने पुराने बैग्स निकालकर उनका पता तलाशने लगे | अचानक पति-पत्नी की सुमधुर आवाज़ बरसों की दूरियाँ तय करके उनके कर्णपुटों में कोमल संगीत की लहरी बन समाने लगी थी |

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