एक जिंदगी - दो चाहतें - 34 Dr Vinita Rahurikar द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 34

एक जिंदगी - दो चाहतें

विनीता राहुरीकर

अध्याय-34

कमरे में पैर रखते ही तनु के दिल में एक हौल बहुत गहरे उतर गया। खाली घर, खाली कमरा, खाली पलंग। जिस कमरे में वह पिछले दो महीनों से परम के साथ सोती आयी थी आज वहाँ खाली सन्नाटा दीवारों पर पसरा हुआ था कटे पेड़ सी वह पलंग पर गिर पड़ी। पिछले दो महीने से तनु ने तकिया नहीं लिया था। परम रात भर उसके बालों को सहलाता अपनी बांह पर सुलाता था। आज कहाँ था उसका तकिया?

तनु पलंग पर टिक कर बैठ गयी। आँखों से आंसुओं की धाराएं बह रही थी। सिर घूम रहा था। दिल में अजीब सा दर्द हो रहा था।

परम के बिना खाली घर।

परम के बिना खाली कमरा।

परम के बिना सूना बिस्तर

परम के बिना खाली-खाली मन और जीवन।

ईधर परम की बस जैसे-जैसे सड़क पर आगे बढ़ती जा रही थी परम के दिल में तनु से दूर होने का अहसास गहराता जा रहा था। हर पल उसका मन कर रहा था कि उतरकर वापस चला जाये। बेचैनी में उसका हाथ दिल पर चला गया। देखा टी-शर्ट की जेब पर तनु की लिपस्टिक का निशान था। आते हुए जब तनु को गले लगाया था तब शायद लग गया होगा। बहुत रोकने पर भी परम की आँखों से आँसू बह निकले। उसने जल्दी से खिड़की के बाहर देखने के बहाने अपने आँसू पोंछे।

मन में एक बार फिर खयाल आया कि बस रूकवाकर उतर जाये और वापस चला जाये। जाकर अपने घर में रहे, अपने पलंग पर सो जाए।

तनु के साथ।

लेकिन पिछले ग्यारह-बाहर सालों की नौकरी में उसके रिकॉर्ड में एक भी लाल निशान नहीं था। अब भी वह नहीं चाहता था कि ऐसा कुछ हो। उसके अंदर एक पति और एक फौजी के बीच जबरदस्त जंग चल रही थी। एक तरफ तनु का प्यार था। एक ओर देश के प्रति कर्तव्य भावना।

इस समय दोनों ही भावनाएं पल-पल में एक दूसरे पर हावी हो रही थीं।

दोनों का ही आवेग उससे संभाला नहीं जा रहा था। उसने अपनी जेब से फोन बाहर निकाला। उसके कवर पर तनु के होंठ छपे थे। परम ने उस पर अपने होंठ रख दिये। बस शहर से बाहर निकल चुकी थी। परम ने सोचा तनु अब घर पहुँच गयी होगी। परम ने उसे फोन लगाया।

तनु पलंग से पीठ टिकाकर बैठी थी। उसका पलंग पर लेटने का भी मन नहीं कर रहा था। तभी परम का फोन आया तनु ने फोन उठाया। परम की आवाज सुनते ही तनु को जोर से रूलाई आ गयी।

''ऐ मेरी जान।" परम विचलित होकर बोला ''तुम ऐसी कमजोर पड़ जाओगी तो मुझे हिम्मत कौन बंधाएगा। ये दिन भी निकल जायेंगे। तुम तो इतनी हिम्मती हो।"

''अकेला घर खाली पलंग। मुझसे सहा ही नहीं जा रहा है।" तनु रोते हुए बोली

''चल पलंग पर लेट जा, चादर ओढ़ ले अपने पास एक तकिया रख ले। लाईट बंद कर दे। मैं सारी रात तुझसे बात करता रहूँगा। यही समझना कि तुम्हारे साथ हूँ। चल मेरी बच्ची लाईट बंद कर और आँखेंं बंद कर ले।" परम ने कहा।

तनु ने लाइट बंद कर दी और आँखेंं मूंद कर पलंग पर लेट गयी। परम सारी रात तनु से बातें करता रहा। तनु के दिल को थोड़ी तो तसल्ली रही। अगर मोबाइल नहीं होते तो क्या होता।

दूसरे दिन सुबह ड्रायवर के साथ शारदा तनु को अपने घर ले जाने के लिये आयी। तनु का मन नहीं था लेकिन परम ने भी उसे कहा और शारदा ने भी समझाया। दो-तीन दिनों के लिए चली चल थोड़ा मन शांत हो जाये फिर अपने घर वापस आ जाना। तनु मान गयी। बैग में उसने दो-तीन दिन के कपड़े रखे और शारदा के साथ चली आयी।

परम दूसरे दिन सुबह साढ़े ग्यारह बजे अजमेर पहुँचा। अजमेर से दोपहर दो बजकर चौदह मिनट पर उसकी जम्मू जाने वाली ट्रेन थी। बस स्टेण्ड से रेलवे स्टेशन डेढ़ किलोमीटर पर ही था। परम ने ऑटो किया और उसे स्टेशन चलने को कहा। ऑटों में बैठकर उसने सिगरेट निकाली लेकिन हाथ में पकड़कर ही बैठा रहा। सिगरेट पीने का भी मन नहीं किया उसका। उसने सिगरेट वापस केस में डाल दी और केस बैग के ऊपर वाली चेन में रख दिया।

रेलवे स्टेशन पहुँचकर परम अपने प्लेटफॉर्म पर चला आया और एक खाली बैंच पर बैठ गया। सिर बहुत दर्द कर रहा था। वह उठकर चाय ले आया। लेकिन दो-तीन घूंट ही पी पाया। तनु के बिना चाय पीने का भी मन नहीं कर रहा था। उसने भरा हुआ गिलास डस्टबीन में डाल दिया।

जैसे-तैसे ट्रेन आने का समय हुआ। परम अपने कंपार्टमेंट में ऊपर अपनी बर्थ पर जाकर लेट गया। उसने थोड़ी देर तक तनु से बात की। जैसे ही ट्रेन चलने लगी परम की आँख लग गयी। दो-ढाई घंटे बाद उसकी नींद खुली। तनु का फोन गया था। तनु ने उससे बहुत जिद की कि वह चाय पीकर कुछ खा ले नहीं तो वह भी नहीं खायेगी। तब परम ने एक कप चाय ली और एक बिस्किट का पैकेट लिया।

रात में भी तनु ने अपनी कसम दी तब परम ने खाना खाया। उस रात भी परम तनु से बात करता रहा।

दूसरे दिन सुबह साढ़े ग्यारह बजे परम जम्मू पहुँचा। एक ऑटो किया हेडक्वार्टर पहुँचा वहाँ रिपोर्टिंग की और फिर बस स्टेण्ड की ओर भागा। दोपहर डेढ़ बजे उसकी बस थी। पुंछ जाने के लिये। परम बस स्टेण्ड पर पहुँचा तो बस जाने के लिये तैयार खड़ी थी। वह जल्दी से बस में चढ़ गया। दो मिनट बाद ही बस पुंछ जाने वाले रास्ते पर चल पड़ी। अब तक परम का सिर बुरी तरह से दर्द करने लगा था। साढ़े तीन घण्टे का सफर तय करके परम पुंछ सेक्टर पहुँचा तो शाम के लगभग पाँच बजने ही वाले थे। यूनीट की जीप उसे लेने के लिए पहले से ही तैयार खड़ी थी। बस स्टेण्ड पर उतरकर वह आर्मी की गाड़ी में आ बैठा। गाड़ी उसे यूनीट एरिया तक ले आयी तब शाम के पाँच बजकर पच्चीस मिनट हो रहे थे। परम अपना सामान लेकर अपने रूम की ओर बड़ा। एक बड़ा सा हॉल कहिये या छोटा सा शेल्टर। एक रूम में बारह पलंग लगे थे और हर पलंग के पास एक अलमारी।

परम का पलंग दरवाजे के ठीक सामने था। और उसी के पास अटैच बॉशरूम था। परम ने अलमारी खोलकर अपना बैग उसमें रखा, टॉवल और लॉअर-टीशर्ट निकाला और सीधे वॉशरूम में जाकर शॉवर चालू करके उसके नीचे खड़ा हो गया।

सिर पर देर तक ठण्डा पानी पडऩे के बाद परम का सिर दर्द थोड़ा कम हुआ कपड़े पहनकर वह बाहर आया और तनु को फोन लगाकर उससे थोड़ी देर ही बातें कर पाया था कि उसके यूनीट के चार-पाँच लोग चाय लेकर आ गये। आते ही सब लोग उसकी बैग खोलकर टूट पड़े कि वह घर से क्या लेकर आया है। परम ने शारदा और सावित्री के दिये डिब्बे पहले ही छुपाकर रख दिये थे और बाजार से लाया नाश्ता उन लोगों को दे दिया। आधा घण्टा गप्पबाजी करके सब लोग वॉलीबॉल खेलने चले गये। परम कमरे में अकेला रह गया। वह तकिए पर सिर टिकाकर लेट गया। फोन बाहर निकालकर उसने उसके कवर को अपने होंठों पर रख लिया और आँखेंं बंद कर लीं। परम की झपकी लग गयी थी। रात साढ़े आठ बजे यूनीट का एक जवान उसे खाना खाने के लिए उठाने आया। बेमन से परम खाना खाने गया। फूड वॉर्मर में से खाना लेकर उसने टेबल पर सबके साथ बैठकर खाना खाया। सब लोग हँसी ठहाके लगा रहे थे लेकिन परम के कान तो एक ही आवाज सुनने के लिए तरस रहे थे। उसे अभी और कोई आवाज सुनने का मन ही नहीं कर रहा था। जैसे-तैसे उसने खाना गले से नीचे उतारा और थाली रखकर कमरे में चला आया।

उसने सारी लाईटें बंद कर दीं और पलंग पर लेट गया। दो रातें तो बस में और ट्रेन में गुजर गयीं। लेकिन ये खाली पलंग वाली रात...

ये रात पीठ को इतनी चुभ रही थी कि परम बेचेनी से करवटें बदलता रहा।

अब उसे अहसास हो रहा था कि तनु की उस रात घर पर उस पलंग पर अकेले सोने में क्या हालत हुई होगी जिस पर वह दो महीनों से परम के साथ सो रही थी।

बड़ा अजीब सा लग रहा था। पल भर को भी मन नहीं लग रहा था। इतना थका होने के बाद भी नींद नहीं आ रही थी। ऐसा लग रहा था, जैसे तनु से बिछड़े हुए बरसों बीत गये हों। उसके साथ बिताया हुआ सारा समय एक सपने जैसा लग रहा था आज।

उसने तनु को मैसेज किया कि क्या वह अपने कमरे में है ताकि वह उसे फोन लगा सके। लेकिन वह अपने माता-पिता के पास बैठी थी। सवा दस बजे तनु का फोन आया। परम उससे बातें करने लगा। उसे तनु की आदत हो गयी थी। अब बिना उसके उसे अधूरा सा लग रहा था। ग्यारह बजते-बजते सब लोग कमरे में आ गये तो परम को पलंग से उठना पड़ा। वह बाहर आकर गाड़ी में बैठकर उससे बातें करने लगा। दो रातें और दो दिन का सफर करके शरीर पूरा दर्द के कारण टीसें मार रहा था लेकिन तनु से बात करने के सुख के सामने उसे अपने दर्द की भी याद नहीं रही। तनु की आवाज, उसकी बातें कानों में पड़ते ही एक अजीब सा सुख, एक सुकुन सा पूरे शरीर पर छा जाता था।

रात कितनी देर परम तनु से बातें करता रहा उसे पता ही नहीं चला। कब उसने फोन रखा याद नहीं। वह गाड़ी में ही सो गया था। सुबह पाँच बजे उसकी नींद खुली। वह फोन हाथ में पकड़े सीट पर आड़ी तिरछी गरदन रखे सो गया था। गरदन और कमर अकड़ गये थे। गाड़ी से नीचे उतरकर दो मिनट वह कमर पकड़कर खड़ा रह गया। फिर उसने अपनी गरदन और बॉडी को सामान्य स्थिति में लाने के लिए कुछ स्ट्रेचिंग एक्सरसाईजेस की तब शरीर को थोड़ा आराम मिला।

परम रूम में आया और वॉशरूम में चला गया उसका वॉशरूम अटैच्ड था। बाकी लोगों के रूम से थोड़ी दूरी पर जाकर बने हुए थे। परम हाथ मुँह धोकर आया शेविंग की और नहाने चला गया। आकर उसने अपनी कॉम्बेट यूनीफॉर्म पहनी और बैग में से सिंदूर की डिब्बी निकालकर जेब में रख ली और ऑफिस चला आया। रूम के सामने ही 30-40 मीटर पर ऑफिस था।

ऑफिस का रूम छोटा सा ही था दरवाजे के सामने ही परम का टेबल था। एक चेयर परम के लिए थी और दो चेयर सामने रखी थी। टेबल पर उसका कम्प्यूटर रखा था। कम्प्यूटर स्क्रीन पर वॉल पेपर मे तनु का फोटो था। सामने की दीवार से सटे तीन लॉकर रखे थे और तीन लॉकर बगल वाली दीवार के साथ थे। कम्प्यूटर की ऊपर वाली दीवार पर एक मंदिर दीवार पर टंगा हुआ था। उसमें गणेश जी और बजरंग बली जी की मूर्तियाँ रखीं थीं। परम ने भगवान के सामने अगरबत्ती जलाई और अपना पर्स निकाला। उसमें तनु का फोटो रखा था परम ने अपनी जेब से सिंदूर की डिब्बी निकाली और तनु के फोटो की मांग में लगा दिया। जब वह तनु के साथ होता था तो रोज नहा-धोकर भगवान को प्रणाम कर तनु की मांग भरता था।

और जब ड्यूटी पर होता था तो रोज फोटो में उसकी मांग भरता था। भगवान जी की मूर्ति को प्रणाम करके परम ने एक लॉकर खोला। उसमें कई सारे डॉक्यूमेंट्स और फाईलें रखीं थी। परम ने कुछ फाईलें उलट-पुलट कर देखीं और अकाउन्ट्स की एक फाईल निकालकर काम करने बैठ गया। वह पिछले दो महीनों का हिसाब किताब जाँचने बैठ गया। यूनिट के बाकी लोग भी अपनी-अपनी ड्यूटी पर पहुँच गये थे। आस-पास मैदान में चहल-पहल शुरू हो गयी थी। गाडिय़ाँ आ जा रही थी। बीच में से कोई बंदा किसी काम से आ जाता तो परम का ध्यान भटक जाता। उसके जाने के बाद वह फिर काम में लग जाता।

दस बजे उसका एक कलीग चाय लेकर आ गया चाय देखकर परम को फिर तनु की याद आ गयी। मन नही हुआ पीने का लेकिन उसने चाय का कप ले लिया। परम को वैसे भी चाय पीने की खास आदत नहीं थी वो तो बस तनु का साथ देने के लिए पीता था। हाँ तनु को जरूर चाय पीने की बुरी लत थी। लिखते हुए वह दिन भर में एक के बाद एक पता नहीं कितने कप चाय पी जाती थी। बड़ी मुश्किल से परम ने उसका चाय पीना कम करवाया था।

चाय पीते हुए परम ने फाईल एक ओर रख दी और अखबार की खबरें पढऩे लग गया। थोड़ी देर बातें करने के बाद उसका कलीग चला गया। परम फिर अपनी फाईलों में खो गया। काम करते-करते दोपहर का एक बज गया।

काम बंद करके परम रूम में आ गया। हाथ-मुँह धोकर उसने यूनीफॉर्म बदलकर लॉअर और टी-शर्ट पहना और पलंग पर लम्बे पैर करके बैठ गया। उसने तनु को फोन लगाया और उससे बाते करने लगा। तनु आज भी ऑफिस नहीं गयी थी। परम ने उसे कहा कि यह ऑफिस जाना शुरू करे ताकि काम में उसका मन बहल जाये और वह थोड़ा व्यस्त हो जाये तो कम से कम उसका दिन तो कट जायेगा। तनु ने वादा किया कि वह कल से ऑफिस जाने लगेगी।

देा बजे तक वह तनु से बातें करता रहा। तभी एक बंदा उसे खाना खाने चलने को कहने आया। तनु ने परम से खाना खाने जाने को कहा। उसे बाय कहकर परम खाना खाने मेस में चला गया। यूनिट के सारे लोग या तो खाना खाकर जा चुके थे या बैठे खा रहे थे। परम ने भी अपने लिए एक थाली में फूड वॉर्मर में से खाना निकाला और सबके साथ बैठ गया। सब लोग खाना खाते हुए हँसी मजाक कर रहे थे। परम भी थोड़ी देर तक सबसे बाते करता रहा फिर तीन बजे अपने रूम में वापस आकर पलंग पर लेट कर मोबाइल पर तनु के फोटो देखने लगा। फोटो देखते-देखते उसे नींद लग गयी। फोन सीने पर रखे-रखे वह सो गया।

छ: बजे एक कलीग ने उसे उठाया। परम ड्रेस चेंज करके सबके साथ वॉलीबॉल खेलने चला गया। सात बजे तक सब गेम खेलते रहे। गेम खत्म होने के बाद सब रूम में वापस आए। हाथ - मुँह धोकर कपड़े बदल कर परम बाहर आया तब तक बलविंदर व्हीस्की की बॉटल और ग्लास ले आया था। परम ने अपने साथ लाया नमकीन निकाला तब तक बलविंदर और राजपाल ने सबके लिये ग्लास भर दिये थे। दो घन्टे तक पीना-पिलाना हँसी-मस्ती चलती रही। नौ बजे सब खाना खाने गये और दस बजे कमरे में वापस आकर न्यूज देखने लगे। उस दिन पेट्रोलिंग ड्यूटी पर परम नहीं गया। यूनीट के दूसरे बंदे चले गये थे। परम उस दिन सोने से पहले दो पैग और पीकर सो गया।

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