दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें
(लघु कथा-संग्रह )
15-नंदू
"ओय ---देख दीदी आ गईं ---" नंदू ने रिक्शा देखते ही चिल्लाकर अपने नौकर हेमू को आवाज़ दी |
"दीदी ! नमस्ते ----" नंदू और हेमू दोनों के चेहरे खुशी के मारे खिल आए |
दुकान पर खड़े सारे ग्राहक उस पैडल-रिक्शा की ओर घूमकर देखने लगे जिसे देखते ही दुकान-मालिक और उसका मुँहलगा सेवक फुदकने लगे थे |
रात होते ही कुल्हड़ों की सौंधी सुगंध में सराबोर मोटी मलाई वाला दूध हाज़िर !नंदू खुद दूध लेकर आता और जब तक चीं -चपड़ करते बच्चे पी न लेते, वह उन्हें कहानियाँ सुनाता रहता |
"अरे नंदू ! दुकान बढ़ा दी क्या ?" नानी माँ पूछतीं |
"माँ जी ! वो हेमू है न ---देख लेगा ---"
यह कार्यक्रम तब तक रहता जब तक मणि माँ के घर रहती | मणि कितनी बार कहती कि नंदू चाचा उसे दीदी क्यों कहते हैं ? कितने बड़े हैं वो उससे !पर नंदू मानता ही न था, उसका कहना था कि मणि दीदी ने ही तो पढ़ाई करके सबको 'थैंक्यू 'और 'सॉरी ' कहना सिखाया है तो वो या तो बहन जी हुई या फिर दीदी | बात दीदी पर आकर सिमट गई थी |
इस सबको देखते, महसूस करते, आनंद करते मणि के दोनों बच्चे बड़े हो गए थे और उनका अब अपनी पढ़ाइयों के कारण नानी के घर जाना भी कम हो गया था |
नंदू हलवाई के यहाँ का दूध पीकर ही मणि भी बड़ी हुई थी और अब बंबई से हर साल नानी के पास आने पर बच्चों के मुँह पर भी वह कुल्हड़ वाला दूध लग गया था |
इस बार मणि दो वर्ष बाद अकेली ही माँ से मिलने आई | शहर में कोई विशेष बदलाव नहीं था | वही दुकानें, सड़कों पर वही गड्ढे, वैसे ही लोग ----
नंदू की दुकान आते ही उसकी ऑंखें स्वत: ही दुकान की ओर घूम गईं | अभी नंदू चाचा का चेहरा दिखाई देखा और हमेशा की तरह वो चिल्लाएंगे ---
"देख हेमू, दीदी आ गईं ---"
पर वहाँ तो एक बड़ा सा बोर्ड था, बड़ी सजी हुई दुकान थी --
बैस्ट स्वीट्स
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हेमू ने उसे देखा, उसने हेमू को !जैसे बूढा हो गया था, दो साल में ही |
"हेमू---अच्छा --नंदू चाचा ने दूकान का नक्शा बदल दिया ---तुम्हें क्या हो गया ? " उसने मुस्कुराकर पूछा |
हेमू के चेहरे पर आँसू फिसलने लगे, वह क्षितिज की ओर देखते हुए काँपकर ज़ोर से रो पड़ा, मणि के स्वागत-द्वार पर जैसे किसी ने ताला जड़ दिया था |
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