सत्या - 16 KAMAL KANT LAL द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • जंगल - भाग 1

    "चलो " राहुल ने कहा... "बैठो, अगर तुम आयी हो, तो मेमसाहब अजल...

  • दीपोत्सव

    प्रभु श्री राम,सीता जी और लक्ष्मण जी अपने वनवास में आजकल दंड...

  • बैरी पिया.... - 47

    शिविका जाने लगी तो om prakash ne उसका हाथ पकड़ लिया ।" अरे क...

  • राइज ऑफ ज्ञानम

    ज्ञानम (प्रेरणादायक एवं स्वास्थ्य ज्ञान)उपवास करने और मन्दिर...

  • नक़ल या अक्ल - 74

    74 पेपर चोरी   डॉक्टर अभी उन्हें कुछ कहना ही चाहता है कि तभी...

श्रेणी
शेयर करे

सत्या - 16

सत्या 16

रात में पढ़ाई ख़त्म होने के बाद जब बच्चे किताबें समेट रहे थे तो खुशी ने चुपके से सत्या के कान में कहा कि दो दिनों बाद रोहन का जन्मदिन है. उस दिन टॉफी लेकर जाना होता है. क्लास टीचर बच्चों के बीच टॉफी बाँटती है और सारे बच्चे हैप्पी बर्थ डे टू यू गाकर विश करते हैं. सत्या ने कहा कि वह कल टॉफी ले आएगा.

अपने जन्मदिन वाली सुबह टॉफियों के दो पैकेट लेकर रोहन जब स्कूल वैन में बैठा तो बड़ा खुश था. शाम को जब लौटा तो उसने बताया कि कुछ बच्चों को उसने घर पर पार्टी में बुलाया है. मीरा और सत्या चिंतित हो गए.

अंधेरा ढलते ही गलियों में शराबियों का नशे में अपनी औरतों के साथ गाली-गलौज शुरू हो जाता था. ऐसे माहौल में रोहन ने अच्छे घरों के बच्चों को पार्टी पर बुला लिया था. यहाँ आकर क्या सोचेंगे सभी. यही सोच-सोच कर मीरा का दिमाग ख़राब हो रहा था. उसने तो गुस्से में रोहन के कान भी मरोड़े. पार्टी का निमंत्रण दिया जा चुका था. वरना रोहन के पिता की मृत्यू की बात कहकर पार्टी टाली जा सकती थी. रोहन ने ये कैसी बचपना कर डाली थी.

समस्या गंभीर थी. सत्या ने सविता से आग्रह किया कि किसी तरह वह शंकर को शांत रखे. पूरी बस्ती में बात फैला दी गई कि कोई भी दारू पीकर गलियों में न भटके और न ही कोई लड़ाई-झगड़ा करे. बस्ती की इज्ज़त का सवाल था. सबने आश्वासन दिया कि आज की शाम पीने-पिलाने का कार्यक्रम रोहन की पार्टी खत्म होने के बाद ही शुरू किया जाएगा.

आनन-फानन में बल्ब के झालर, बैलून, मिठाईयों और केक का इंतजाम किया गया. खुशी रोहन को लेकर रतन सेठ की दुकान के आगे खड़ी हो गई ताकि बच्चों को रिसीव करके घर तक ला सके. मीरा और सविता ने जल्दी-जल्दी सत्या के कमरे को झाड़-पोंछ कर साफ किया. आस-पड़ोस से मांगकर लाई गईं भिन्न-भिन्न किस्म की कुर्सियाँ सजा दी गईं. कोल्ड ड्रिंक की बोतलें, प्लास्टिक के ग्लास और पेपर प्लेट का इंतजाम जब हो गया तो सभी खुश हो गये कि समय पर सारा कुछ संभाल लिया गया.

बस्ती के सारे बच्चे साफ-सुथरे कपड़ों में आ जुटे थे. लेकिन जब काफी देर के बाद भी रोहन और खुशी बच्चों को लेकर नहीं लौटे तो सविता थोड़ी चिंतित हो गई. रतन सेठ की दुकान के आगे जाकर उसने देखा कि दोनों बच्चे वहीं खड़े थे. एक बच्चा रोहन के हाथ में गिफ्ट थमाकर अपनी कार मैं बैठ रहा था. कार स्टार्ट हुई. बच्चे ने हाथ हिलाया. कार चली गई.

रोहन के हाथ में गिफ्ट के कई पैकेट थे. रंग-बिरंगे कागज़ों में लिपटे गिफ्ट्स पाकर वह फूला नहीं समा रहा था. सविता ने जब पूछा तो खुशी ने बताया, “आँटी, कई लोग आए थे. लेकिन हर किसी के पेरेंट्स को कोई-न-कोई ज़रूरी काम निकल आया. इसलिए सब हैप्पी बर्थ डे बोलकर बच्चों को साथ ले गए.”

सुनकर सविता की आँखें डबडबा गईं. दोनों बच्चों को लेकर वह घर की ओर चल पड़ी. सत्या और मीरा ने जब सुना तो दोनों उदास हो गए. मीरा ने ताना कसा, “और पढ़ाईये अच्छे स्कूल में. जब उन्होंने देखा कि हम कहाँ रहते हैं तो उन्हें काम निकल आया. सारे पेरेंट्स हमारी माली हालत का उपहास कर गए.”

सत्या ने स्थिति को संभाला, “कोई बात नहीं. पार्टी तो हम ज़रूर करेंगे. आओ बच्चों. चलो अब रोहन केक काटेगा. सभी पास आ जाओ.”

सत्या ने बस्ती के बच्चों के साथ पार्टी का ऐसा आनंद उठाया, जैसे कुछ हुआ ही न हो. मीरा ने पार्टी में हिस्सा नहीं लिया. मुँह फुलाकर वह अपने कमरे में चली गई. सविता ने सारा कुछ संभाला.

जब रमेश को पता चला कि पार्टी खत्म हो गई है तो उसने ऐलान किया, “चलो भाई लोग. लाईन किलियर है. अब हमारा पार्टी शुरू.”

उस रात दारू पीकर बस्ती के पियक्कड़ों ने बॉक्स-ऐम्लीफायर पर तेज गाना लगाया और देर रात तक जमकर रोहन का जन्मदिन मनाया. बस्ती में आज तक किसी बच्चे का जन्मदिन इतनी धूम-धाम से नहीं मना था. बस्तीवालों ने एक मत से यह निर्णय लिया कि अब आगे से बस्ती के हर बच्चे के जन्मदिन का जश्न इसी तरह मनाया जाएगा.

दूसरे दिन जब रोहन ने स्कूल से आकर माँ को अपनी स्कूल-डायरी दिखाई तो उसने गुस्से में सत्या के सामने डायरी पटक दी. सत्या ने पढ़ा. रोहन के गार्जियन का प्रिंसीपल ऑफिस से बुलावा आया था. मीरा बड़बड़ा रही थी, “ज़रूर दूसरे बच्चों के पेरेंट्स ने शिकायत की होगी कि उनके बच्चे मतालों के बच्चों के साथ कैसे पढेंगे?”

सत्या ने कहा, “आप इसकी चिंता न करें. मैं सब संभाल लूँगा. हर स्कूल में गरीब बच्चों का कोटा होता है. वे हमारे बच्चों को स्कूल से नहीं निकाल पाएँगे. और फिर हमारे साहब हैं न. हमारे बच्चों कि लिए चिंतित न हों.”

प्रिंसिपल से मिलकर लौटने के बाद सत्या ने मीरा और सविता को मंत्रणा के लिए

बुलाया. सत्या ने बताया, “प्रिंसिपल मैडम कह रही थीं कि ऐसी गंदी बस्ती में रहने से बच्चों के व्यक्तित्व में निखार नहीं आ पाएगा. वे रिक्वेस्ट कर रही थीं कि हमें अपना घर बदल लेना चाहिए. क्या कहती हैं, मेरे सरकारी क्वार्टर में चला जाय?”

मीरा ने सख़्ति से ना कहा और पैर पटक कर कमरे से चली गई. सत्या ने सविता की ओर देखा, “अगर हम घर नहीं बदल सकते तो क्या हुआ, बस्ती को तो बदल ही सकते हैं. क्या कहती हो?”

सविता ने पूछा, “क्या मतलब है आपका? बस्ती के लोगों का स्वभाव कैसे बदलेंगे?”

“कुछ न कुछ तो करना पड़ेगा,” सत्या ने चिंतित होकर कहा, “बच्चों की पढ़ाई में सबसे ज़्यादा डिस्टरबेंस शंकर और तुम्हारी लड़ाई के कारण होती है. रोज़-रोज़ तुमलोग किस बात पर लड़ते हो? आपस में मिल बैठ कर सुलह क्यों नहीं कर लेते हो.”

“कोई बात हो तो आदमी हल ढूंढे,” सविता ने लंबी सांस छोड़ते हुए कहा, “सारा दिन उसकी ज़ुबान से एक शब्द नहीं फूटता है. मगर रात को जब पी कर लौटता है, उसका रंग-ढंग ही बदल जाता है.”

सत्या ने जानना चाहा, “आख़िर लड़ाई होती किस बात पर है?”

“बात क्या होगी? बस शराब पिया नहीं कि उसपर शैतान सवार हो जाता है. पिछले तीन सालों का किस्सा लेकर बैठ जाता है. कहता है हम उसके साथ ढंग से बात नहीं करते हैं. उसको हमेशा नेग्लेक्ट करते हैं. हम उसके साथ खुश नहीं हैं.....हम कहते हैं अगर हम खुश नहीं हैं तो मर्द हो, खुश करो अपनी बीबी को. बस चिढ़ जाता है. गाली-गलौज और कभी-कभी तो मारपीट तक की नौबत आ जाती है. उसका रोज़-रोज़ के ऐसे रवैया से हम भी अज़ीज आ गए हैं.”

“तुम जब जानती हो कि वह शराब पीकर बकबक करता है तो तुम उसकी बात का जवाब ही मत दो. उसको और मत उकसाओ. अपने-आप थक कर सो जाएगा,” सत्या ने सलाह दी.

सविता ज़ोर से मुस्कुराई. बोली, “आप कहते हैं तो कोशिश करके देख लेते हैं. लेकिन उसका लड़ना-झगड़ना तभी बंद होगा जब वह शराब पीनी छोड़ देगा.”

“शंकर ही क्यों, हम तो कहते हैं पूरी बस्ती के लोगों को शराब से तौबा कर लेनी चाहिए. और अगर शराब पीनी ही है तो हंगामा करने की जगह पीकर चुप-चाप सो जाएँ तब भी चलेगा. हमको बच्चों की पढ़ाई में कोई व्यवधान नहीं चाहिए, बस,”

सत्या ने अपने विचार रखे.

सविता ने उल्टा सवाल किया, “आप इतने आत्म-केंद्रित कैसे हो सकते हैं? इनकी शराब की आदतों का बुरा प्रभाव यहाँ की औरतें जो झेल रही हैं, उनसे आपका कोई मतलब नहीं है? इनकी गरीबी और अशिक्षा के मूल में यह शराब ही तो है.”

सविता के तमतमाए चेहरे का ताब सत्या झेल न पाया. उसने अपना पक्ष सामने रखते हुए कहा, “तुम जो भी कह रही हो, उससे हम सहमत हैं. लेकिन हम समाज-सुधारक के रूप में अपने को नहीं देख पा रहे हैं. मुझमें कोई लीडरशिप क्वालिटी नहीं है. तुम अगर इस संबंध में कुछ करना चाहो तो हम इतना वादा करते हैं कि जितना हो सकेगा, तुम्हारा साथ देने से पीछे नहीं हटेंगे.