दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें - 8 Pranava Bharti द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें - 8

दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें

(लघु कथा-संग्रह )

8-दावत

कितना बड़ा जश्न हुआ अनिरुद्ध के बेटा होने पर ! सभी के मुख पर मुस्कान और देह पर सिल्क के लिबास सजे थे | बहू के साथ कूँआ पूजने पर बाजा-गाजा साथ चला |

"बड़ी किस्मत वाली है बहू ---पहले साल में ही बेटा पैदा करके सबके जी में उतर गई --"

" यार, ये सब क्या है माँ ?" अनिरुद्ध बहुत असहज था |

बेटा हुआ है तो छोटी-मोटी पार्टी कर लो, इतना दिखावा करने की आखिर क्या ज़रुरत?उसकी पत्नी स्मिता के भी विचार अपने पति जैसे ही थे पर परिवार के बुज़ुर्ग सदस्यों पर दोनों में से किसी की न चली |

अनिरुद्ध के पिता ने पहले ही उसे कहा था कि बेटा होने पर अच्छे-ख़ासे पैसे का इंतज़ाम करके लाना होगा | अनिरुद्ध की नौकरी को अभी कुछ ज़्यादा समय तो हुआ नहीं था | दोनों पति-पत्नी दिल्ली में काम करते और कोशिश करते कि कुछ पैसा बचा सकें जिससे जो अपार्टमेंट उन्होंने अभी छह माह पहले लिया है, उसका धीरे-धीरे लोन चुका सकें | लेकिन यह भी दोनों जानते थे कि उसके माता-पिता को बच्चा भी जल्दी चाहिए, उसे यह मालूम नहीं था कि केवल बच्चा होना ही पर्याप्त नहीं था, उसके साथ जो दूसरे लटके लगे होंगे उन्हें पूरा करने में तो उनका सारा बज़ट ही तहस नहस हो जाएगा |

स्मिता और वह एक ही फ़र्म में काम कर रहे थे और यह एक प्रेम-विवाह था |लड़की परिवार को पसंद आ गई और सब उसके लिए राज़ी थे, इससे उसे तसल्ली मिली थी | वे दोनों ही अभी विवाह नहीं चाहते थे, कुछ कमा-बचा तो लें, फिर सोचें शादी की | लेकिन परिवार वैसे ही प्रेशर कर रहा था, दादी की उम्र व उनको सोने की सीढ़ी चढ़ाने के लिए एक परपोते की भयंकर ज़रुरत थी |

शादी करनी पड़ी और गर्भ भी धारण करना पड़ा |अब बेटे की दावत भी करनी ज़रूरी थी | माँ, बहनों व अन्य रिश्तेदारों को बुलाकर जमघट करना भी ज़रूरी था |दादी निहाल थीं अपने काँपते हाथों में पड़पोते को लेकर | सर्दी के मौसम में रात को जन्मते पोते को खिलाने अस्पताल पहुँचना और आकर मल-मलकर स्नान भी ज़रूरी था | अगले दिन सुबह वो बुखार में काँप रही थीं |

स्मिता घर आ गई थी, सब मेहमान सारी रस्मों में शामिल होने के लिए अपने बोरी-बिस्तरे समेत पधार चुके थे | बैंड़ -बाजे से कुँआ पूजन हुआ, दादी उसमें भी शामिल होना चाहती थी, दष्टोन के दिन खूब लेन-देन हो गए | अनिरुद्ध और उसकी बहू तो इतना कमाते हैं, खूब जोरदार मीनू बनाया गया, बहनों को सोने के कड़े से कम तो क्या देने |

"अनिरुद्ध, बज़ट सारा ठप्प हो गया है ----" स्मिता ने अपनी माँ के यहाँ के दो अच्छे भारी कड़े दोनों बहनों को दे दिए, जिन पर उनकी नज़र पहले से थी |

अनिरुद्ध के सर्दी में भी पसीने छूट रहे थे, बेटे के जन्म की ख़ुशी की जगह फ़्लैट का इंस्टॉलमेंट उसके चेहरे पर पसरा हुआ था |

"अरे दादी को आज वो भारी वाली साड़ी पहनाओ न जो स्मिता के मायके से आई है ---" बुखार में तपती दादी हिलती-डुलती, काँपती -थरथराती सुंदर श्वेत-धवल साड़ी में सज गईं, बुखार उतर ही नहीं रहा था | नाच-गाना हो रहा था, दादी भी ठुमका मारना चाहती थीं पर उनसे उठा ही नहीं गया | अनिरुद्ध की माँ ने हाथ लगाया तो वो लुढ़क गईं | रंग में भंग हो गया था | अब सबका मन भटक गया था |

"चलो, पड़पोते को देख तो लिया "अनिरुद्ध के पिता की ऑंखें अपनी माँ के खोने से बरस रहीं थी |" "बेटा, जल्दी जाओ | कन्हैया लाल सरार्फ के यहाँ से सोने की सीढ़ी का इंतजाम करो ---"

"और हाँ, कम से कम ढाई तोले से कम की न बनवाइयो, कभी बिरादरी में नाक ही काट जाए |"

अनिरुद्ध और स्मिता की आँखों में आँसू तैर रहे थे, नन्हा बच्चा अपनी माँ की गोदी में नींद में मुस्कुरा रहा था और दादी साड़ी में सजी ज़मीन पर लेटी थीं, उनके मुख पर पड़पोते को देख लेने की एक संतोषी मुस्कान पसरी हुई थी |

***