स्टॉकर - 8 Ashish Kumar Trivedi द्वारा जासूसी कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

स्टॉकर - 8




स्टॉकर
(8)



मेघना ने जन्नत अपार्टमेंट्स में चार बेडरूम हॉल वाला एक फ्लैट खरीदा था। वहीं पर अंकित और मेघना मिलते थे।
मेघना अपने वादे के हिसाब से अंकित को उसका सपना पूरा करने के लिए हर संभव मदद करने को तैयार थी। इसी कारण एक बार अंकित ने अपने दोस्त मंजीत से कहा कि जल्द ही वह अपना जिम खोलेगा और उसे वहाँ नौकरी देगा।
अंकित का सपना तो पूरा हो रहा था। पर अब एक नई इच्छा ने उसके मन में जन्म ले लिया था।
मेघना उससे उम्र में करीब दस साल बड़ी थी। पर वह बहुत अधिक आकर्षक थी। अंकित उसके शरीर के आकर्षण में पूरी तरह डूब चुका था। वह चाहता था कि मेघना हमेशा के लिए उसकी होकर रहे।
मेघना भी उसकी दीवानगी को और हवा दे रही थी। पर अंकित उसके मन में बन रही योजना से अंजान था।
जब उन्हें मिलना होता था तब अंकित मेघना के आने से कुछ समय पहले ही पहुँच जाता था। वापसी में पहले मेघना निकलती थी और उसके कुछ देर बाद अंकित। एक दिन जब अंकित मेघना से मिलने के लिए जन्नत अपार्टमेंट्स पहुँचा तो एक शख्स ने उसे आवाज़ दी। अंकित ने मुड़ कर देखा तो तीस बत्तीस साल का एक आदमी खड़ा मुस्कुरा रहा था। वह लंबे कद का इकहरे बदन का आदमी था। अंकित उसके पास जाकर बोला।
"आपने मुझे बुलाया...."
उस आदमी ने खींस निपोरते हुए कहा।
"तो आजकल तुम मेघना की सेवा में हो।"
उसका इस तरह बात करना अंकित को अच्छा नहीं लगा।
"क्या बकवास है ? मैं किसी मेघना को नहीं जानता हूँ।"
कह कर अंकित आगे बढ़ने लगा तो उस आदमी ने फिर आवाज़ दी।
"ठहरो....मेरा नाम चेतन शेरगिल है। उसी बिल्डिंग में फिफ्त फ्लोर पर रहता हूँ जहाँ सिक्स्थ फ्लोर पर मेघना का फ्लैट है। मैं तुम दोनों पर कई दिनों से नज़र रखे हूँ।"
अंकित के बढ़ते कदम रुक गए। वह चेतन के पास जाकर बोला।
"देखो तुम जो भी हो हमारे मामले में दखल मत दो।"
"मैं तो बस तुम्हें आगाह करना चाहता था। मैंने भी मेघना की सेवा की है। बहुत चालाक औरत है।"
इस बार चेतन आगे बढ़ गया। अंकित वहीं चुपचाप खड़ा था। चेतन जाते हुए कह गया।
"मैं वित्तीय सलाहकार हूँ। शिव टंडन का पोर्टफोलियो संभालता हूँ।"

मेघना महसूस कर रही थी कि अंकित का मन आज भटका हुआ है। उसने पूँछा।
"क्या बात है ? कहाँ खोए हो आज ?"
अंकित ने सीधा सवाल किया।
"तुम चेतन शेरगिल को जानती हो ?"
"हाँ....वो शिव का वित्तीय सलाहकार है।"
"बस इतना ही ?"
मेघना समझ गई कि वह क्या पूँछना चाहता है।
"वो तुमसे पहले मेरे साथ था। मैंने उसका सपना भी पूरा करने में मदद की है। शेरगिल स्टॉक ट्रेडर्स नाम से उसकी फर्म है। बड़े बड़े क्लाइंट्स हैं उसके पास। तुम भी बस अपने फायदे से मतलब रखो। मेरे अतीत में मत झांको।"
"पर तुम जानती हो कि मैं तुम्हें...."
मेघना ने बीच में ही उसकी बात काट दी।
"बचकानी बातें मत करो। जो हो नहीं सकता उसके बारे में मत सोंचो।"
"अगर तुम साथ दो तो हो सकता है।"
"हाँ क्यों नहीं ? हम लोग दूर कहीं वादियों में जाकर अपना आशियाना बनाएंगे।"
मेघना का यह तंज़ अंकित को अच्छा नहीं लगा। पर वो चुप रहा। मेघना ने आगे कहा।
"ज़िंदगी और फिल्म में फर्क होता है। असल ज़िंदगी पैसों से चलती है। मेरे पास जो है वह शिव का है।"
मेघना ने पास लेटे अंकित की तरफ देखा।
"शिव के रहते हम कभी एक नहीं हो सकते।"
यह बात मेघना ने बड़े अर्थपूर्ण ढंग से कही थी। वह उठ कर जाने की तैयारी करने लगी।
"वैसे ये चेतन शेरगिल तुम्हें कहाँ मिल गया।"
"इसी बिल्डिंग के फिफ्त फ्लोर पर उसका फ्लैट है।"
मेघना इस बात से नावाकिफ थी। वह बोली।
"तब तो सावधान रहना पड़ेगा। हो सकता है कभी शिव इस चेतन से मिलने यहाँ आ जाए।"

मेघना के जाने के बाद अंकित कुछ देर उसके उन शब्दों के बारे में सोंचता रहा।
'शिव के रहते हम कभी एक नहीं हो सकते।'
अंकित समझने का प्रयास कर रहा था कि आखिर मेघना ने ऐसा क्यों कहा ? क्या वह उसे कोई इशारा दे रही थी ?
अंकित पूरी तरह समझ नहीं पा रहा था कि मेघना उससे क्या कराना चाहती है। पर उस समय वह बस इतना जानता था कि वह मेघना को पूरी तरह से अपना बनाना चाहता है।
जब वह जन्नत अपार्टमेंट्स से निकल रहा था तो उसकी नज़र मंजीत पर पड़ी। उसने नज़रें चुराने का प्रयास किया पर मंजीत ने उसे देख लिया। मंजीत ने उससे पूँछा कि तुम यहाँ क्या कर रहे हो। इस पर अंकित ने उससे कहा कि वह किसी से मिलने आया था।

मेघना की कही बात अंकित के दिमाग में अटकी हुई थी। वह बार बार उसी के बारे में सोंच रहा था। बार बार सोंचने पर उसे भी लगने लगा था कि शिव ही उसके और मेघना के बीच सबसे बड़ी दीवार है।
इधर मेघना ने भी उससे मिलना कम कर दिया था। यह बात अंकित को बहुत अखरती थी। वह अक्सर मेघना से इस बात की शिकायत करता। मेघना का जवाब होता कि शिव उस पर नज़र रखने लगा है। अतः संभल कर रहना पड़ता है।
एक बार जब मेघना अंकित से मिलने आई तो बोली।
"अंकित यह हमारी आखिरी मुलाकात है। अब हम कभी नहीं मिलेंगे।"
"पर क्यों ? तुम जानती हो कि मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता। पहले भी तुमसे सिर्फ कुछ देर के लिए मिल पाना मुझे अखरता था। अब तो तुम बिल्कुल ही मना कर रही हो। मुझ पर ये ज्यादिती क्यों कर रही हो ?"
"मैं भला क्या ज्यादिती करूँगी। मैं तो खुद मजबूर हूँ। क्या मैं तुमसे अलग रह पाऊँगी। पर शिव मेरा पति है। उसे सब पता चल चुका है।"
"मेघना कुछ भी करो पर मुझसे दूर मत जाओ।"
"मैं कर सकती तो ज़रूर करती। मैं मजबूर हूँ।"
अंकित को मायूस छोड़ कर मेघना चली गई। उसका इस तरह चला जाना अंकित को बर्दाश्त नहीं हुआ। वह बार बार उसे फोन करने लगा। पर मेघना ने उसका फोन उठाना बंद कर दिया। मेघना जहाँ जाती थी अंकित उसके पीछे चला जाता था। मेघना इस बात के लिए उसे डांटती थी। कहती थी कि मेरा पीछा मत करो। मुझे भूल जाओ।
जिम में सबके सामने अंकित खुल कर अपनी बात नहीं कर पाता था। पर एक दिन जब मेघना वर्कआउट के बाद जा रही थी तब अंकित से नहीं रहा गया। उसने उसका हाथ पकड़ लिया। मेघना ने सबके सामने उसे चांटा मार दिया। उसने दिलशेर सिंह से उसकी शिकायत कर दी।
मेघना ने दूसरा जिम ज्वाइन कर लिया। अंकित को स्टेफिट जिम से निकाल दिया गया। वह बहुत परेशान था। मेघना को भूल नहीं पा रहा था। पर मेघना अब उससे किनारा करने लगी थी।
एक दिन जब अंकित कहीं से लौट रहा था तब कुछ लोगों ने उसकी बुरी तरह पिटाई कर दी। वह उसे कार में बेठे एक शख्स के पास ले गए। वह शिव टंडन था। उसने अंकित को धमकाया कि अगर उसने मेघना का पीछा नहीं छोड़ा तो अंजाम बहुत बुरा होगा।
घायल अंकित को सड़क पर छोड़ कर सब चले गए। वह छला हुआ सा महसूस कर रहा था। मेघना उसके साथ ऐसा करेगी यह उसने कभी नहीं सोंचा था।

कॉलबेल बजने से अंकित के विचारों में व्यवधान पड़ा। वह सतर्क हो गया। आखिर कौन उससे मिलने आया होगा। उसने घड़ी पर निगाह डाली। सवा नौ बज रहे थे।
दरवाज़ा ना खुलने पर दोबारा कॉलबेल बजी। अंकित परेशान था। समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे। कहीं वही बदमाश ना हो जिसने उसे कैद कर रखा था। उसने कॉलबेल अनसुनी करने का फैसला किया। पर वह हर कुछ पलों के बाद बज रही थी।
अंकित ने पीपहोल से झांक कर देखा। किसी औरत का चेहरा नज़र आया। उसने ध्यान से देखा तो वह पुलिस की वर्दी में थी। इस बार कॉलबेल बजाने की जगह उसने आवाज़ दी।
"दरवाज़ा खोलो अंकित....मैं सब इंस्पेक्टर गीता हूँ। तुम्हारी मदद के लिए आई हूँ। भागने से कोई लाभ नहीं है।"
अंकित ने भी विचार किया कि भटकते रहने का कोई लाभ नहीं। पुलिस ही उसकी सहायता कर सकती है। उसने दरवाज़ा खोल दिया। सब इंस्पेक्टर गीता भीतर आ गई।
सब इंस्पेक्टर गीता को यह अंदेसा था कि अंकित अपने फ्लैट में लौटेगा। उसने बिल्डिंग के गार्ड से कह दिया था कि अगर अंकित वापस आए तो उसे खबर कर दे।
जब अंकित आया था तब गार्ड उसे देख नहीं पाया। लेकिन कुछ समय के बाद जब उसने ऊपर देखा तो उसे अंकित के फ्लैट की बत्ती जलती दिखी। वह समझ गया कि वह अंकित ही होगा।
उसने सब इंस्पेक्टर गीता को फोन कर दिया। सब इंस्पेक्टर गीता फौरन दो हवलदारों के साथ उसे गिरफ्तार करने पहुँच गई।
अंकित सब इंस्पेक्टर गीता को समझा रहा था कि वह बेकसूर है। उस पर झूठा इल्ज़ाम लगाया गया है। उसने शिव टंडन को नहीं मारा है। सब इंस्पेक्टर गीता ने उसे समझाया।
"देखो अंकित अगर तुम बेकसूर हो तो डरो नहीं। हम तुम्हारी मदद करेंगे। तुम शांति से मेरे साथ चलो। वहाँ एसपी गुरुनूर को सब सच सच बता देना। यही खुद को बेकसूर साबित करने का एकमात्र रास्ता है।"
अंकित सब इंस्पेक्टर गीता की बात मान गया। वह चुपचाप उसके साथ पुलिस स्टेशन चला गया।