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स्टॉकर - 9



स्टॉकर
(9)



एसपी गुरुनूर ने अंकित की बात सुनने के बाद कहा।
"मिसेज़ टंडन का कहना है कि तुम उनके पीछे पड़े थे। जब मिस्टर टंडन ने तुम्हें धमकाया तो तुमने उनका खून कर दिया।"
"एसपी मैम मैंने शिव टंडन का खून नहीं किया है। जब उन्होंने मुझे धमकाया तो मैं चुप होकर बैठ गया था। मेघना ने मुझे उनका खून करने के लिए उकसाया ज़रूर था। पर सही समय पर मुझे बुद्धि आ गई।"
"तुम भागते क्यों फिर रहे थे ?"
"मैं भाग नहीं रहा था। बल्कि मैं किसी की कैद में था।"
"किसकी कैद में ?"
"एसपी मैम मैं उसको नहीं पहचानता हूँ।"
"तुम कितने दिन कैद में रहे ?"
"कोई दो हफ्ते.....आज मौका लगा तो भाग निकला।"
"तुमने इतने दिनों में उसे नहीं देखा।"
"मैंने देखा पर उसे पहचानता नहीं हूँ।"
"अच्छा तो कैसा दिखता था वो ?"
"उसके लंबे खिचड़ी बाल हैं। जिन्हें वह पोनीटेल में बांध कर रखता है। चश्मा लगाता है। रंग सावला है। मझोले कद का है।"
"तुम उसकी कैद में कैसे पहुँचे ?"
"मेघना ने ही मुझे फंसाया था।"
"तो तुम उसके बाद मेघना से मिले थे।"
"एसपी मैम मैं उससे मिला था। पर उसने ही मुझे मिलने के लिए बुलाया था।"
"क्यों ? मिस्टर टंडन ने तुम्हें मिसेज़ टंडन से मिलने को मना किया था। वह खुद तुमसे कहती थीं कि उनका पीछा मत करो। फिर उन्होंने तुम्हें मिलने के लिए क्यों बुलाया ?"
अंकित ने आगे अपनी कहानी सुनाई।

अंकित ने तय कर लिया था कि अब वह कभी मेघना से नहीं मिलेगा। वह बहुत मुश्किल में था। नौकरी छूट चुकी थी। मेघना के धोखे ने उसे तोड़ दिया था। ऐसे में अब उसका मन यहाँ नहीं लग रहा था। उसने झांसी वापस जाने का मन बना लिया था।
जिस शाम अंकित की झांसी की ट्रेन थी। उसी दिन दोपहर को मेघना ने उसे फोन किया। वह पहले ही भरा हुआ था। मेघना की आवाज़ सुनते ही गुस्से में फट पड़ा।
"क्यों फोन किया तुमने ? अपने पति के गुंडों से पिटवाया, पति से धमकी दिलवाई, मेरी नौकरी भी छूट गई। अभी भी चैन नहीं पड़ा। पहले तुमने ही मुझे अपनी खूबसूरती के जाल में फंसाया। फिर सारा इल्ज़ाम मुझ पर रख दिया कि मैं तुम्हारे पीछे पड़ा हूँ....."
कई मिनटों तक अंकित अपने मन की भड़ास निकालता रहा। मेघना चुपचाप सुनती रही। जब अंकित का गुस्सा कुछ कम हुआ तो वह बोला।
"अब चुप क्यों हो ? बोलती क्यों नहीं ?"
"मैं सोंच रही थी कि पहले तुम अपनी भड़ास निकाल लो।"
"तो और मैं कर क्या सकता हूँ।"
"बहुत कुछ....अगर तुम मेरी बात सुनो तो।"
"नहीं....अब मैं तुम्हारी किसी चाल में नहीं फंसूँगा। शाम की ट्रेन से मैं अपने घर वापस जा रहा हूँ।"
"हार कर घर चले जाओगे। क्या मुंह दिखाओगे घरवालों को।"
दरअसल यह सवाल अंकित को भी परेशान कर रहा था। जब वह हारा टूटा घर पहुँचेगा तो कैसे अपने माता पिता का सामना करेगा। जान पहचान वाले क्या कहेंगे। गया तो बड़ी शान से था। पर अब मुंह लटका कर वापस आ गया। पर उसके पास कोई और रास्ता नहीं था।
"यहाँ रह कर ही क्या करूँगा। नौकरी नहीं है मेरे पास। ना ही कोई शिव टंडन है जिसके पैसों पर ऐश कर सकूँ।"
"तंज़ कर रहे हो। बहुत दिनों तक तुमने भी शिव टंडन के पैसों पर ऐश की है। खैर अगर अपने बचपने से ऊपर उठ पाओ तो मुझे तुमसे ज़रूरी बात करनी है। इसमें तुम्हारा भी फायदा है और मेरा भी।"
"कहो क्या कहना है ?"
"फोन पर नहीं मिल कर बताऊँगी।"
"कहाँ मिलना है ? जन्नत अपार्टमेंट्स में ?"
"नहीं....मीट एंड मिंगल रेस्टोरेंट में।"
"कब मिलना है ? मुझे शाम को ट्रेन पकड़नी है।"
"मुझसे आधे घंटे में मिलो। ट्रेन पकड़ने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी।"

अंकित सही समय पर रेस्टोरेंट पहुँच गया। मेघना पहले ही वहाँ मौजूद थी। एक वेटर उसे केबिन बॉक्स में ले गया। आज मेघना का पहनावा अलग था। उसने शलवार कमीज़ पहनी थी। दुपट्टे को सर पर रखा हुआ था। बड़े गॉगल्स लगाए थे। पहले तो अंकित उसे पहचान नहीं पाया। पर मेघना ने उसे इशारा कर बैठने को कहा। अंकित समझ गया कि यह पहनावा खुद की पहचान छिपाने के लिए है।
अंकित ने मेघना से पूँछा।
"बोलो क्या कहने के लिए बुलाया है।"
मेघना ने अपने गॉगल्स उतार कर सामने टेबल पर रख दिए।
"मेरे पास एक प्लान है। अगर तुम मेरा साथ दो तो हम एक हो सकते हैं। तुम्हारा अपना जिम खोलने का सपना भी पूरा हो सकता है।"
"ऐसा कौन सा प्लान है ?"
"बताती हूँ।"
मेघना ने इधर उधर देखा। फिर थोड़ा आगे को झुक कर बोली।
"तुम शिव को रास्ते से हटाने में मेरी मदद करो। एक बार अगर शिव का कांटा हट गया तो उसका सब कुछ मेरा हो जाएगा। फिर हमें एक होने से कोई नहीं रोक सकता है।"
मेघना की बात सुन कर अंकित सकते में आ गया।
"क्या बकवास कर रही हो ? क्या समझा है तुमने मुझे ? मैं क्या कोई सुपारी किलर हूँ ?"
अंकित चुप हो गया। मेघना भी कुछ देर उसे घूरती रही। फिर तल्ख लहज़े में बोली।
"अच्छा.... पहले तो बहुत बड़ी बड़ी बातें करते थे। कहते थे कि तुम्हारे बिना नहीं रह सकता। तुम्हें पाने के लिए कुछ भी कर सकता हूँ। आज जब करने को कहा तो डर कर बातें बनाने लगे।"
अंकित कुछ नहीं बोला। चुपचाप बैठा रहा। मेघना आगे बोली।
"दरअसल सही यह है कि तुम सब बैठे बिठाए चाहते हो।"
मेघना की यह बात अंकित को बहुत बुरी लगी।
"मैंने आज तक क्या बैठे बिठाए लिया है। तुम ही कहती हो ना कि गिव एंड टेक। तो अगर तुमने मुझे कुछ दिया है तो लिया भी है।"
अंकित जाने के लिए उठ खड़ा हुआ। मेघना ने उसे बैठने का इशारा करते हुए कहा।
"ठीक है.... तुम सही कह रहे हो। अब तक हमारे बीच गिव एंड टेक की पॉलिसी रही है। तो दिक्कत क्या है। इसे आगे बढ़ाते हैं। तुम शिव को हटा दो। मैं तुम्हारी इच्छा पूरी कर दूँगी।"
अंकित के चेहरे पर वक्र मुस्कान आ गई।
"मेघना दिक्कत है....तुम मच्छर मारने को नहीं कह रही हो। शिव टंडन शहर का जाना पहचाना व्यक्ति है। तुम मुझे खतरे में डाल कर अपना उल्लू सीधा कर रही हो।"
उसकी बात सुन कर मेघना उत्तेजित हो गई।
"बेहूदा बात मत करो। इसमें मेरा उल्लू सीधा करने वाली क्या बात है ?"
"वो ये है कि शिव को मार कर अपराध मैं करूँगा। तुम उसकी करोड़ों की संपत्ति की मालकिन बन जाओगी। बदले में मेरे सामने चंद टुकड़े फेंक दोगी।"
"मैं और तुम साथ रहेंगे। और क्या चाहिए तुम्हें।"
"तुम पर और अधिक यकीन नहीं कर सकता हूँ मैं। तुम्हारा साथ नहीं चाहिए मुझे।"
"फिर क्या चाहिए ?"
अंकित ने फौरन कोई जवाब नहीं दिया। कुछ देर सोंचने के बाद बोला।
"पहले तो यही सोंचना है कि मैं तुम्हारे प्लान में शामिल होऊँगा भी या नहीं। मुझे समय चाहिए। फिर सोंच कर सब बताता हूँ।"
"कितना समय चाहिए तुम्हें ?"
"कुछ कह नहीं सकता। जब फैसला कर लूँगा तब फोन कर बता दूँगा।"

अंकित वहाँ से लौट आया। अभी भी ट्रेन पकड़ने के लिए कुछ घंटे हाथ में थे। उसने सोंचा कि वह घर वापस लौट कर देखेगा कि वहाँ सबका व्यवहार कैसा है। अगर सब सही रहा तो वह सब भूल कर वहीं रहेगा।
उसने अपनी बहन को यह बताने के लिए फोन किया कि वह लौट रहा है। दीपा ने फोन उठाया तो हर बार की तरह वह उसकी आवाज़ सुन कर खुश नहीं हुई। वह बहुत बुझी बुझी लग रही थी। अंकित ने पूँछा।
"क्या हुआ दीदी ? तबीयत ठीक नहीं है क्या ?"
"तबीयत ठीक है। पर घर का माहौल ठीक नहीं है।"
"क्यों ??"
"कानपुर से ताऊ जी आए थे। तुम्हें तो पता है कि वो जब आते हैं तो कुछ ना कुछ बवाल कर जाते हैं।"
"मेरे बारे में कुछ कह रहे थे ?"
दीपा चुप हो गई।
"दीदी कौन सी नई बात है। जब मैं वहाँ था तब भी वह जब आते थे मेरे बारे में कुछ ना कुछ जली कटी ही सुनाते थे। नया क्या है।"
"इस बार तुम्हारा नाम लेकर मम्मी को बहुत कुछ कह गए। कह रहे थे कि कैसी माँ हो। औलाद नहीं संभाली गई।"
दीपा की बात सुन कर अंकित को धक्का लगा। उसने भले ही घर छोड़ा हो पर मेहनत कर ईमानदारी से अपनी जगह बनाई थी। यह बात ताऊ जी भी जानते थे। पर वह फिर भी उसकी माँ को बातें सुना कर चले गए।
अंकित सोंचने लगा कि अगर वह इस तरह हार कर लौट गया तो ताऊ जी और बाकी के लोगों को बातें बनाने का मौका मिल जाएगा। इसलिए उसने वापस लौटने का इरादा छोड़ दिया।
उसने दीपा को समझाया कि वह परेशान ना हो। वह कोशिश कर रहा है। एक दिन जब वह सफल हो जाएगा तो सबकी बोलती बंद हो जाएगी।
उसने दीपा से तो कह दिया था कि वह सफल होकर दिखाएगा। पर अब सवाल था कि यह होगा कैसे। उसके पास तो नौकरी भी नहीं थी। अब उसे नई नौकरी तलाशनी पड़ेगी।
अंकित जानता था कि बहुत सी मुश्किलें हैं। पर वह इस स्थिति में लौट कर लोगों को बातें बनाने का मौका नहीं देगा।










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